कई बार पीरियड्स आने अचानक बंद हो जाते हैं । इसे हल्के में ना लें। यह रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स या हार्मोन्स से जुड़ी समस्या हो सकती है।
किसी युवती के पीरियड्स आने अचानक बंद हो जाएं और यह स्थिति 6 महीने तक बनी रहे, तो इसे डॉक्टरी भाषा में एमेनोरिया कहते हैं। जमशेदपुर की सीनियर कंसलटेंट डॉ इंदू चौहान के अनुसार कुछ महिलाओं को समय के बाद भी पीरियड्स शुरू होती है। यह स्थिति जीवन भर बनी रहती है। तब इसे प्राइमरी एमेनोरिया कहते हैं। लेकिन पीरियड्स आ रहे हों और अचानक रुक जाएं, तो उसे सेकेंडरी एमेनोरिया कहते हैं। प्राइमरी एमेनोरिया जन्मजात दोष है, तो सेकेंडरी एमेनोरिया के कई कारण हो सकते हैं । इनमें से कुछ सामान्य ,तो कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट या किसी मेडिकल समस्या की वजह से होते हैं।
प्राइमरी एमेनोरिया
लक्षण
इसमें सिरदर्द ,मुंहासे, शरीर में बालों की बहुत ज्यादा ग्रोथ की शिकायत होती है ।
रिप्रोडक्टिव ऑर्गन के ना होने पर
कई बार लड़कियों में रिप्रोडक्टिव सिस्टम से संबंधित खास अंग जन्मजात नहीं होते। इसमें यूटरस,सर्विक्स और वेजाइना शामिल है ।तब उन्हें पीरियड्स ही नहीं आते।क्रोमोजोमल अब्नोर्मलिटीज के कारण भी हो सकता है, जिसके लिए एम.आर.आई,लैपरोस्कोपी और जेनेटिक्स टेस्ट द्वारा डायगानोसिस किया जा सकता है।
फैमिली हिस्ट्री
परिवार में एमेनोरिया की हिस्ट्री रही है ,तो भी यह समस्या हो सकती है ।
सेकेंडरी एमेनोरिया
लक्षण
सिर दर्द के अलावा दिखाई देने में समस्या ,बहुत प्यास लगने ,ब्रेस्ट से डिस्चार्ज के निकलने ,गॉइटर होने( गले के पास बड़ी हुई थायरॉइड ग्रंथि) त्वचा के रंग के गहरे होने ,व्यवहार में बदलाव, डिप्रेशन और वेजाइना में सूखापन आदि के लक्षण नजर आते हैं । ये सभी इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी से होते हैं।
फिजियोलॉजिकल कारण
इसमें प्रेगनेंसी, ब्रेस्ट फीडिंग, मेनोपॉज और कॉन्ट्रासेप्टिव्स शामिल हैं। बर्थ कंट्रोल पिल्स लेने वाली युवतियों को यह समस्या हो सकती है। ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव्स लेना बंद करने पर ओवरी से नियमित रूप से अंडे रिलीज होने और फिर से पीरियड्स आने में कुछ समय लग सकता है । कॉन्ट्रासेप्टिव्स शरीर में फिट कराए जाने पर भी यह समस्या हो सकती है।
दवाएँ
एंटीसाइकोटिक्स, कैंसर केमो थेरैपी, एंटीडिप्रेसेंट ब्लड प्रेशर व एलर्जी की दवाएं लेने पर भी पीरियड्स रुक सकते हैं।
लाइफस्टाइल
(1) वजन कम होना
सामान्य वजन से 10% वजन कम होने पर शरीर में हार्मोन से जुड़े कामों में रुकावट पैदा हो सकता है। खासतौर से ओवेल्यूशन में बाधा आती है। एनोरेक्सिया या बुलिमिया जैसे खाने से जुड़ी समस्या होने पर हारमोंस में असामान्य रूप से बदलाव आने से इसका असर पीरियड्स में पड़ सकता है और वह बंद हो सकता है।
(2) एक्सरसाइज
बहुत ज्यादा एक्सरसाइज का भी मेंस्ट्रुअल साइकिल पर असर पड़ता है ।एथलीट्स में बहुत सारी बातें मिलकर उनमें पीरियड्स ना आने का कारण बनती है ।इसमें शरीर में फैट कम होना ,स्ट्रेस अधिक होना आदि शामिल हैं।
(3) स्ट्रेस
तनाव से हाइपोथैलमस (दिमाग का एक हिस्सा ) के काम करने के तरीके में अस्थायी रूप से बदलाव आता है। हाइपोथैलेमस मेंस्ट्रुअल साइकिल को नियंत्रित करने वाले हार्मोन को काबू में रखता है । इसमें बदलाव आने से ओवेल्युशन(अंडों का रिलीज होना ) और मेंस्ट्रुअल साइकिल दोनों रुक सकते हैं।
हारमोंस में असंतुलन
पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम – इसमें हारमोंस में बदलाव का असर पीरियड्स पर पड़ता है ।
थायरॉइड के सही ढंग से काम न कर पानी पर थायरॉइड ग्लैंड के ज्यादा सक्रिय होने पर हाइपरथॉयराइडज्म और कम सक्रिय होने पर हाइपोर्थायराइडिज्म हो जाता है।इसका असर मेंस्ट्रुअल साइकिल पर पड़ता है।
पिट्यूटरी टयूमर
पिट्यूटरी ग्लैंड में ट्यूमर बनने से या मेंस्ट्रुअल साइकिल को कंट्रोल करने वाले हारमोंस के काम करने में दखल दे सकता है ।
समय से पहले मेनोपॉज सामान्य तौर पर मेनोपॉज लगभग 45 से 54 साल की उम्र में होता है। कुछ महिलाओं में 40 साल की उम्र से पहले ही अंडे बनने बंद होने और पीरियड्स रुक जाने की समस्या हो सकती है ।
रीप्रोडक्टिव ऑर्गन्स में गड़बड़ी
यूटराइजन स्कारिंग – इसे अशरमैन सिंड्रोम भी कहते हैं यूट्रस की लाइनिंग में स्कार टिशूज बन जाते हैं। ये टिशूज कभी-कभार सिजेरियन ऑपरेशन, फाइब्रॉइड के इलाज या अवार्शन के दौरान बन जाते हैं, जो इस लाइनिंग को बाहर निकालने नहीं देते और पीरियड्स आने रूक जाते हैं।
वेजाइना की संरचना में दोष
वेजाइना मे रूकावट होने पर भी पीरियड्स नहीं आते । वेजाइना में झिल्ली या दीवार के बन जाने से यूटरस और सर्विक्स से होने वाली ब्लीडिंग में रुकावट आती है।
दिक्कतें
इन्फर्टिलिटी- ओवेल्यूशन और मेंस्ट्रुअल पीरियड ना होने पर गर्भधारण संभव नहीं है
ओस्टियोपोरोसिस -इस्ट्रोजन हारमोंस में कमी के कारण पीरियड्स आने बंद हुई है, तो हड्डियों के कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है ।जिन महिलाओं को समय पूर्व पीरियड्स आने बंद हो जाती हैं या अनियमित हो जाती हैं । उन्हें कुछ समस्याएँ हो सकती है।
टेस्ट व डाइग्रोस
डॉक्टर पेल्विक की जांच करके पता लगाते हैं कि रिप्रोडक्टिव ऑर्गन से जुड़ी कोई समस्या तो नहीं ।
ब्लड टेस्ट
पेशेंट का ब्लड टेस्ट कराने पर हारमोनल समस्या के बारे में पता चल जाता है । जिसमें थाइरॉइड फंक्शन टेस्ट, ओवरी फंक्शन टेस्ट ,प्रोलेक्टिन टेस्ट, भेल हार्मोन टेस्ट की जाँच की जाती है। लेकिन सबसे पहले प्रेग्नेंसी टेस्ट करते हैं । इससे प्रेग्नेंसी होने या ना होने की पुष्टि होती है।
प्रोजेस्ट्रॉन चैलेंज टेस्ट
इस टेस्ट से पता लग जाता है कि अंडाशय इस्टोजन बना रहे है कि नहीं । इसमें डॉक्टर मेंस्ट्रुअल साइकिल के लिए हारमोनल दवाइएं पांच से दस दिन के लिए देते हैं।
इमेजिंग टेस्ट
लक्षणों व ब्लड टेस्ट को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर इमेजिंग टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। इसमें अल्ट्रासाउंड, कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी ,एमआरआई शामिल है ।
स्कोप टेस्ट
इन सब जाचों से कोई खास बात ना मालूम होने पर हिस्टेरोस्कोपी की जाती है ।
ट्रीटमेंट
इसका ट्रीटमेंट पीरियड्स ना आने के कारण पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स या अन्य हार्मोन थैरेपी से मेंस्ट्रुअल साइकिल शुरू हो जाता है ।थायरॉइड या पिट्यूटरी की समस्या होने पर दवाएं दी जाती है। ट्यूमर या स्ट्रक्चर में किसी तरह की रुकावट की समस्या होने पर सर्जरी की जाती है ।
डॉ. इंदु चौहान
गायनेकोलॉजिस्ट
प्रोपराइटर ऑफ वरदान मैटरनिटी एंड नर्सिंग