मेरा परिचय
कहाँ- कहाँ देखूँ निज छवि अपनी,
किस-किस से बाँधू निज परिचय मैं?
कहाँ-कहाँ ढूँढू निज आधार अपना,
किस -किस के आगे शीश नवाऊँ मैं?
दिया अस्तित्व को स्वरूप जिन सबने,
कहता है मन सबको, निजपोषक अपना।
परिचयदात्री स्नेह-धूप में बनी मेरी हर परछाई,
वह घना बरगद जिसकी छाँव तले जीवन सुस्ताई।
परिचय देती घर की देहरी ,पिता का नाम,
मांँ का आँचल,रिश्ते- बंधन और अनुराग।
मेरा परिचय राग, द्वेष, अभिलाषाओं के रंग,
करुणा की आद्रता, व्यथा का आड़ोलन,
चुप्पी की गहराई ,आत्मावंचना के क्षण।
परिचय देते आशा- अपेक्षाओं के घने बादल,
कपोलों पर बरसे जो बनकर वर्षाकण।
परिचय देती घर की हँसती हरियाली,
रोटी की खुशबू, सांझ का दीपक, वक्त का साँचा,
परंपराओं की आस्था, निज संस्कृति अपनी।
मेरा परिचय ममत्व मेरा,
जिसके आरोहण में दिखती कांति अपनी।
परिचय मेरा अध्येताओं के आँखों की चमक,
उनके होठों की हँसी, उनका अस्फुटित स्पर्श।
परिचयदात्री मेरी लेखनी, बांधवी मेरी,
रोशनाई जिसकी मनोबिंबो को रंगती।
मेरा परिचय मातृभूमि की माटी,
इच्छा यही मूँदू आँखें,
इसकी गोद में हो उऋणी।
रीता रानी,
साहित्यकार एवं शिक्षिका
जमशेदपुर, झारखंड।