वह ध्रुव है!

वह ध्रुव है!

क्षितिज के छोर से
एक तारा
सरक कर आ छिपा
धरती के आँचल में
उसे ललचाया था शायद
धरती की सोंधी सुगंध ने
उसे उकसाया था कि
वह अपनी नन्ही रौशनी से
लोगों को
दिशाभ्रम होने से बचाए
वह रौशनी उसके साथ चलती रहे, चलती रहे
बढ़ने की उमंग के साथ
प्रेरणा देती रहे
उन सभी को
जो हार बैठे हैं
जीवन की उलझनों से और
उलझनों का क्या?
वो तो होती ही हैं
डराने धमकाने के लिए
किन्तु क्या कभी किसी ने
ध्रुव तारे को हटते देखा है
अपनी लीक से
नहीं न
वह तो बस ध्रुव है
डटा है, डटा ही रहेगा!

पुष्पा बालकृष्ण
कवियत्री और दिव्या माथुर की प्रेरणा

(दिव्या जी के जन्मदिन पर उनकी बड़ी बुआ की कविता)

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