चूड़ियों की खनक
रवि के पैर का उत्साह जैसे हवा से बात कर रहा था।घर जल्दी पहुंचने के लिए उसके पैर आतुर हो रहे थे।
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वक्त के साथ हमें यू इतने लम्बे समय तक इस तरह अलग रहना पड़ेगा ।
पूरे एक वर्ष बाद आज उससे मिल पाऊंगा।
आसमान में टिमटिमाते तारे की चमक उसके मुख मंडल की आभा को चमका रही थी।पैरों का नया जूता भी आज उसका साथ नहीं दे रहा था।रात गहरा चुकी थी ट्रेन लेट होने के कारण उसे कोई रिक्शा नजर नहीं आया।वह भीड़ के छटने के इंतजार के कारण उतरने में लेट हो गया था।इसी कारण स्टेशन से इक्का-दुक्का रिक्शेवाले भी नदारद हो चुके थे।पास की सारी गुमटियां बंद हो चुकी थी।रात का चीरता सन्नाटा उसे किसी मधुर धुन की तरह प्रतीत हो रहा था।
फुटपाथ पर भिखारी अपना डेरा जमा चुके थे,सड़क की डिम लाइट में एक भिखारन उसकी ओर लपकी।
उसके बाल एक बड़ी फुटबॉल की तरह उलझे और फुले हुए थे,उसकी ऊँची साड़ी से आधे पाँव दिख रहे थे,ब्लाउज की एक फ़टी आस्तीन उसके अंग की नुमाइश कर रही थी।वह उसके करीब आकर हाथ फैलाकर रुआंसी होकर उसका रास्ता रोकते हुए बोली-
“ए, बाबू…कुछ दे जा!,
सुबह से आज कुछ नही मिला,
भगवान तेरा भला करेगा।
उसने जेब से 20 का नोट निकालकर उसकी हथेली पर रख दिया वह दुआएं देती हुई आगे बढ़ गई।
आज वह अपने शहर वापस लौटा था।
अपनी प्रेमिका बनाम पत्नी रेवती के पास पूरे एक साल बाद जा रहा था। रेवती गांव की सीधी-साधी लड़की थी लेकिन शहर की चमक दमक देखकर वह बड़े ख्वाब देखने लगी।रेवती को रवि से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें थी।वह अपनी हर बात मनवाना चाहती थी। कुछ वर्षों के साथ के बाद रेवती का व्यवहार अचानक बदल चुका था।शायद वह उसकी उम्मीदों को पूरा करने में सक्षम नहीं था।
इधर वह अपने गांव के पुश्तैनी घर में आना नहीं चाहती थी। इसी कारण वह अकेले ही अपने बीमार पिता की सेवा के लिए उसे गांव में ही रुकना पड़ा।
पिता को पैरालिसिस होने के कारण रेवती उन्हें अपने पास रखना नहीं चाहती थी तो इसलिए उसे एक साल तक पिता की सेवा के लिए अपने पुश्तैनी गांव में ही रुकना पड़ा था।
पिछले महीने ही पिता का आकस्मिक देहावसान हो चुका था। वह अपना गांव का पुश्तैनी मकान पिता की अमानत समझकर अपने पास रखना चाहता था। सोच रहा था कि उम्र ढल जाने पर गांव आकर ही बसेरा करेगा।
आज वह इतने अंतराल के बाद अपने शहर अपनी पत्नी के पास जा रहा था।
मन में न जाने कितने स्वप्निल उड़ते परिंदे की चहक उसे एक खुशनुमा एहसास करवा रही थी।
इस पूरे समय में रेवती एक बार भी कभी अपने ससुर को मिलने गांव नहीं आई हमेशा नौकरी का हवाला देती रही।
एक प्राइवेट स्कूल में प्राइमरी सेक्शन की टीचर होकर भी वह ससुर की तीमारदारी के लिए आने की चाह नहीं रखती थी।
वह अपने पिता को अकेला नहीं छोड़ सकता था तो वह अपने पुत्र धर्म का निर्वाह कर वापस लौट रहा था।
………
सुबह की इस लालिमा उसके मन में एक सुखद अनुभूति से भर रही थी।वह स्टेशन काफी पीछे छोड़ आया था।
अभी घर की दूरी तय करने में वक्त था।
उसके पाव हिरण की तरह कुचाले भर रहे थे।
वह सोच रहा था कि इतने समय बाद अपनी रेवती से मिलेगा तो वह कितनी खुश होगी।उसके लिए खरीदी कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां उसके गोरे हाथों की कितनी शोभा बढ़ाएगी ।दिल की बेचैनी के साथ रेवती के ख्यालों में ही कब आधा रास्ता तय कर लिया उसे पता ही नहीं चला।
शादी के तीन साल बाद ही पिता की बीमारी का पता चला तो उसे गांव आकर रुकना पड़ा।उसके अंतर्मन के विरह की व्याकुलता उसे बेचैन कर रही थी।अब वह अपने शहर आ चुका था। सूर्य देवता अपनी पूर्ण लालिमा के साथ दर्शन दे रहे थे।पक्षी पूर्व से पश्चिम की ओर पलायन कर रहे थे।सड़क पर वाहनों की आवाजाही ने अपनी रफ्तार पकड़ ली थी।वह थक चुका था।एक चाय की खुली गुमटी पर चाय के लिए रुका।उसका नया जूता उसे काट रहा था। चाय पीकर वह फिर चल पड़ा।
मल्टी का चौकीदार उसे देख पूछ बैठा- “किस नंबर के फ्लैट में जाना है…?
अरे….,यह क्या सवाल हुआ भाई..?
साल भर बाद आया हूं,
फ्लैट नंबर 302 रवि कुमार..।
साल भर बहुत बड़ा समय होता है मुझे यहां आए अभी बीस दिन ही हुए हैं साल भर में ना जाने कितने बदलाव हो जाते हैं,सहाब।चौकीदार ने अपनी बात कहीं।
रवि अपनी भावनाओं को समेटते हुए सीढ़ियां चढ़ रहा था।
धड़कन अपने काबू से बाहर हो रही थी।
दरवाजे पर पहुंचा उसने देखा नया तोरण, नया पायदान और नया नेमप्लेट देख सोच रहा था।
मेरे नाम की नेमप्लेट कहां गई और टूट गई तो दूसरी मेरे नाम की क्यों नहीं….?
कुछ पल के लिए वह बेचैन हो उठा।
मन के उत्साह के मोतियों की माला बिखर कर टूट चुकी थी। तभी पीछे से दूध वाले ने आवाज सुनाई दी।
भाई साहब साइड दीजिए…
उसने डोर बेल बजाई।
कटे बाल गाउन पहने रेवती को देख उसके होश उड़ गए।
वह दूध की पतेली में दूध लेकर दरवाजा बंद करने लगी।
तभी रवि ने उसे पुकारा।
रेवती मैं रवि… क्या, नींद में हो…, मुझे अंदर नहीं लोगी!
रेवती की आंखों से अचानक नींद गायब हो चुकी थी।
तुम इस वक्त अचानक न जाने कितने सवाल उसके मुंह से निकल पड़े।
क्या… तुम, फोन नहीं कर सकते थे….?
वह अंदर लेने से पहले ही न जाने कितने सवाल पूछ चुकी थी।
मैं तुम्हें सरप्राइस देना चाहता था। वैसे भी मेरा फोन टूट गया है, तो सोचा यहां आकर दूसरा ले लूंगा, गांव में कहां मिलता है।
अपने घर में आते ही टेबल पर बैग रख सूकून से सोफे पर बैठ गया। नया जूता जिसने उसके अंगूठे को भयंकर काट लिया था।
उसे उतारकर उसने वहीं पटक दिया।
देखा तो जख्म ज्यादा हो चुका था।
लेकिन घर आने की खुशी में वह अपने पैर का दर्द भूल चुका था। रेवती को अंदर गए बीस मिनट से ऊपर हो चुके थे।
वह अभी तक बाहर नहीं आई।
वह भी आराम करना चाहता था तो वही सोफे पर पसर गया और उसे गहरी नींद लग गई।
इतना पैदल चलकर जो आया था जब आंख खुली तो ध्यान से घर घर के कोने-कोने को निहारा।
पर्दे ,सोफे ,डाइनिंग टेबल सब कुछ नया था।
अंदर बेडरूम में जाकर देखा तो रेवती स्कूल के लिए जा चुकी थी। ना चाय के लिए पूछा…. ना.. ही, अपनेपन से बात की।
गांव की भोली-भाली रेवती।
हाथों में खनकती चूड़ियां पहनने वाली लड़की, इतनी बदल जाएगी वह सोचने पर मजबूर हो गया।
आज उसे अपना घर हर कोने से पराया लग रहा था।
परिस्थितियां, मजबूरियां इन्सान को इतना बदल सकती हैं वह सोच ही रहा था।
दोपहर के 2:00 बज चुके थे। डोरबेल बजी रवि ने उत्साह और आत्मीयता से दरवाजा खोला रेवती को देख चौक गया।
जींस, टीशर्ट पहने उसे देख कुछ पल निहारता रहा।
तुम कितनी बदली -बदली सी लग रही हो।यह हमारा घर है और मैं जिस रेवती को छोड़ गया था।मेरा सामान,मेरा घर मुझे सबकुछ बदला-बदला सा लग रहा है।
कहते हुए अपने अंदर के दर्द को छुपाने की कोशिश करने लगा। रेवती बिना जवाब दिए ही खामोशी से अंदर चली गई।
बाहर आकर ईयररिंग उतारते हुए बोली-” मुझे तो स्कूल में लंच मिलता है, तुम तुम्हारा देख लो।”
अब कब गांव वापस जाओगे….? वह अपने मन का दर्द छुपाते हुए रेवती से बोला- “बाबा चल बसे।”
सुनते ही..रेवती मुंह बनाते हुए अंदर चली गई।
वह कुछ समय तक दरवाजा बन्द करके फोन पर बात करती रही।और रवि इंतजार में बैठा रहा।
“चलो आज शाम बाहर चलते हैं, पूरे एक साल बाद शहर आया हूं, आज बाहर ही खाना खाएंगे।”
भूख से रवि की आतडिया सूख रही थी।
डब्बे में पड़े नमकीन सेव खाकर ही दिन गुजारा।
रवि ने बेचैन होकर उससे सवाल किया।
“यार, तुम.. ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो..?
चलो फटाफट एक कप चाय तो बना दो, तुम्हारे हाथों की चाय कब से नहीं पी। रेवती ने बेमन से चाय बनाकर बिस्कुट के साथ रख दी। भूख के मारे पेट में चूहे कूद रहे थे फटाफट चाय बिस्कुट खाकर वह उसके करीब आकर बैठा।
बोला-“तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं।” रेवती बेमन से बोली।
“क्या लाए हो….!”
देखो तो….., कहते हुए सूटकेस में से कागज में लिपटी रंग-बिरंगी चूड़ियां निकालकर रेवती के हाथ में पकड़ने लगा।
उसने रवि का हाथ झिडकते हुए कहा “रवि यह सब क्या है….? आज के जमाने में कोई चूड़ियां पहनता है क्या…?
जमाना बदल गया है,और समय भी।
कहते हुए चूड़ियों को बिना देखे ही अंदर चली गई।
रात बाहर डिनर के वक्त रेवती का फोन बज उठा।
“हां, यार… कल बात करते हैं,
आज नहीं,और हां… कल मिलने पर सारी बातें होंगी।
कहते हुए रेवती ने फोन पर्स में रखा।
रवि के साथ वह अपने आपको कंफर्ट महसूस नहीं कर पा रही थी। रवि भी अपनी पहले वाली रेवती को खोज रहा था वह कहीं गुम हो गई थी।
उसे अपने ही घर में अजनबी सा महसूस हो रहा था।रात रेवती उससे बिना बोले, बिना मिले ही सो गई।रवि सारी रात सोफे पर करवट बदलकर गुजारता रहा।
आज उसने अपने लिए नया फोन खरीदा था पर अब उसे इसकी जरूरत महसूस नहीं हो रही थी। उसने फोन खोला भी नहीं था। उसकी जिंदगी तो सब कुछ रेवती ही थी।वह इतनी दूर हो गई थी कि कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।सुबह इतवार था।
रेवती ने बालों में मेहंदी लगाकर कॉफी बना कर पी।
रवि ने खुद चाय बनाई।अपने मन की भावनाओ को काबू में कर उदास स्वर में पूछा।
“कॉफी कब से पीना शुरू कर दिया…?
वह बोली- “रवि समय एक जैसा नहीं रहता, बदलता रहता है, हमारी जरूरतें हो या शौक समय के साथ सब कुछ बदल जाता है।”
आज लंच पर सोहेल आने वाला है, हम दोनों साथ में रहते हैं, वह कल रात दूसरे शहर गया है, तुम्हारे आने की बात मैंने उसे कहीं तो उसने कहा कि एक-दो दिन होटल में मैनेज कर लूंगा।
तुम्हें आज नहीं तो कल बताना ही था।
रवि खामोशी से सुनता रहा।
कुछ देर खामोश रहकर चुप्पी तोड़ते हुए बोला।
“रेवती, हम पति-पत्नी है, और वह तुम्हारा कौन है …?
हम शादी करने वाले है।
“क्या….!
सोहेल यह नाम तो…..?
क्या तुम्हें अपनी और अपने परिवार की कोई चिंता नहीं!
जो तुम ऐसे कदम उठा रही हो।
रेवती खामोशी से रवि की बातें सुन रही थी फिर बोली-
“जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए किसी का सहारा तो चाहिए, और हां, उसने मुझे स्कूल की प्रिंसिपल बना दिया है,और यह जॉब भी मुझे सोहेल के द्वारा ही मिली है,
वह मेरे स्कूल के ओनर है, मुझे अपनी आंखों के सामने सपने दिखाई दे रही है।
तुम्हारे साथ रहकर मैं अपने भविष्य को अंधकार के गर्त में नहीं डाल सकती।”
रवि उसकी बात सुनकर कहने लगा।
“क्या…..,ऊंचाई पर चढ़ने के लिए अपनों की पीठ पर कदम रखकर ही आगे बढ़ा जाता है क्या! मेरे साथ रहकर तुम आगे नहीं बढ़ सकती।”
“नहीं… तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, तुम एक साधारण से गांव के युवक हो, तुम तो गांव चले जाओ, अपना नाम बदलकर अपने पुश्तैनी पिता के घर में रहकर दूसरी शादी कर लो, और मुझे भूल जाओ।” साफ शब्दों में रेवती अपना निर्णय सुना चुकी थी।
तभी दरवाजा बिना दस्तक के खुला।सोहेल सामने खड़ा था।सोहेल को देख रवि अपने मन के अंतर्द्वंद से लड़ते हुए खामोश खड़ा था।उसे यूं लगा मानो जिंदगी हाथ से रेत की तरह फिसल रही थी।बाहर लगी नेमप्लेट आज उसे बाहर का रास्ता दिखा रही थी। उसने अपना बैग उठाकर वापस गांव की ओर चलना ही उचित समझा।गांव की लड़की को शहर के पंख लग चुके थे।वह अपने पंखों से आजाद गगन में उड़ना चाहती थी। और मैं उसके पंखों को काट सकूँ, इतना सक्षम नहीं था।
मुझे बदलते समाज के इस परिवेश में ढलना नहीं आया।
मैंने हाथ जोड़कर सोहेल से कहा। “आप आज ही मेरे सामने मेरी रेवती से शादी कर लो, मैं वापस चला जाऊंगा।”
सोहेल मुस्कुराते हुए बोला-“शादी का अभी कोई इरादा नहीं है, मैं ऑलरेडी शादी-शुदा हूँ,दूसरे शहर में मेरी फैमिली है,रेवती मेरी फ्रेंड है,इस फ्रेंडशिप को हम दोनों लोंग टाइम तक यूं ही निभाते रहेंगे।
अचानक रेवती ने बैचेन होकर सोहेल से सवाल किया।
“यह क्या कह रहे हो,तुम….?6 महीने से तुम मेरे साथ रह रहे हो, तुमने कभी नहीं बताया कि तुम्हारा परिवार भी है,और तुम मेरे साथ भी शादी का वादा कर चुके हो,तुम्हारे भरोसे ही, मैं आज रवि को छोड़ रही हूं।”
क्या…!(सोहेल ने आंखें चौड़ी करके पूछा)
“हां,इतना बड़ा त्याग तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखता…?” कहते हुए रेवती की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। वह कभी खुद को तो कभी सोहेल को देख रही थी।
” मैं स्कूल चलाता हूँ,तुम्हारे जैसी टीचर्स रोज मेरे साथ आती है और चली जाती है,तुम भी उन्हीं में से एक हो,साफ कह देता हूँ,वर्ना बाद में कहोगी कि तुमने बताया नहीं।
रेवती उसकी बातें सुनकर सन्न रह गई।
रवि उस खामोशी को तोड़ने में असमर्थ था।
उसने अपना बैग उठाया और दरवाजे की ओर बढ़ गया।
रेवती ने पीछे से उसका बैग पकड़ते हुए कहा-“नहीं,इसमें जो सामान है,वह मेरी अमानत है,आपने साल भर तक मेरे प्यार को संभाल के रखा, और मैं सिर्फ अपने स्वार्थ के कारण आपको भूल चुकी थी, मुझे प्रायश्चित करने का एक मौका दो।
कहते हुए बैग खोलकर उसमें से रंग-बिरंगी चूड़ियों को निकालकर हाथों में पहनने लगी।
सोहेल की ओर हीन दृष्टि से देखते हुए बोली-“सात फेरों के वचन इतने कच्चे नहीं होते,मैं भटक गई थी,आप जा सकते हैं।
सोहेल की हकीकत उसके नजरों के सामने खुल चुकी थी।
अब रवि के मन में उतना ही उत्साह था जितना वह स्टेशन से उतरते वक्त महसूस कर रहा था।
देखा तो रेवती के आंखों से झर- झर आंसुओं का झरना बह रहा था। रेवती के हाथों में खनकती चूड़ियों की खनक से पूरे कमरे में एक सुखद अनुभूति का एहसास भर गया था।
वह पिछला सब भूलकर आज रवि के हाथों को अपने चूड़ियों भरे हाथों से सोफे पर बैठा कर माफी मांगने लगी।
यह पल उसके जीवन में एक नई सुबह का उत्साह भर रहा था।
वंदना पुणतांबेकर
इंदौर