कहानी ‘मेला’ एक वैचारिक दृष्टिकोण

कहानी ‘मेला’ एक वैचारिक दृष्टिकोण

साहित्य संसार की प्रतिष्ठित कथाकर, जो, केवल कहानियों में ही नहीं, नाटक, उपन्यास, कविता, निबंध, पत्रकारिता,लगभग साहित्य की अधिकांश विधाओं में अपना हस्तक्षेप रखतीं हैं और अपने लेखन के लिये अनेक साहित्य सम्मान से नवाज़ी गईं हैं।
प्रबुद्ध, सरल -सहज, सौम्य, चेहरे पर,निर्बाध, निश्छल हँसी ऐसे दिखती है,जैसे पूस में खिली धूप,चट्टान को भेदता झरना, आषाढ़ की पहिली बारिश, जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही मन मोहक हो, ऐसी हमारी प्रिय ममता कालिया दी को, उनके जन्मदिन पर (2 नवम्बर )अशेष शुभकामनाओं के साथ, उनकी ही एक अविस्मरणीय रचना अपने शब्दों में रच, उपहार दे रही हूँ।

यूँ तो ममता जी के सभी उपन्यास, कहानियाँ, अनूठी हैं। उनकी कृति का हर किरदार ऐसा लगता है जैसे हमारे आस-पड़ोस का, जाना पहिचाना हो।

चाहें ‘आज़ादी’ में लटूर बाबा की दादी हो या फिर ‘निर्मोही’ की कथा कहने वाली दादी, अथवा ‘कामयाब ‘के हाफ़िज़ भाई, और तहमीना। बेघर उपन्यास में कौमार्य
के सबूत को लेकर स्त्री की पवित्रता पर प्रश्न। सभी रचनाओं का कथ्य, शिल्प, शैली, प्रवाह, गठन, कहन, सभी एक दूसरे से गुंथे हैं।कथ्य का प्रवाह ऐसा की पाठक को पलक झपकाने का भी समय न मिले।
ममता जी एक ऐसी ही कहानी ‘मेला ‘प्रस्तुत कर रहीं हूँ।समीक्षा करने का दु:साहस तो नहीं हैं मेरा।पर कहानी के कुछ अंश,जो श्रद्धा -भक्ति, पाप-पुण्य,आस्था -अनास्था की, सहज, तर्क संगत विवेचन की आधार-शिला पर दृढ है।
विचारों में हलचल मचा दे।

कहानी –मेला
लेखिका -ममता कालिया

पत्रकार, सत्य प्रकाश और उनकी पत्नी चारु के घर उनकी मासी चरनी, अपनी सतसंगिनी के साथ इलाहबाद कुम्भ स्नान के लिये आईं हैं।तीरथ लाभ लेने।

इस बार ठीक 11साल 86 दिन बाद कुंभ मेला लगा है इलाहबाद में।श्रद्धा, भक्ति, अध्यात्म, किये -अनकिये पापों का प्रायश्चित करने, पुण्य कमाने, कुछ व्यापार के लिये, कुछ मनोरंजन के लिये, ठठ के ठठ, आबाल, वृद्ध, स्त्री -पुरूष चले आ रहें है, कुम्भ स्नान के लिये।
पाप का काट पुण्य है वैसे ही जैसे मैल का काट साबुन।
अलग अलग छटायें बिखरी हैं मेले में। साधु, संत, महंत की कुटियायें हैं। कुटिया में थ्री स्टार होटल सी सुख सुविधायें हैं, भोजन की खुशबू हवा में फैली हुई है। शिष्य-शिष्यायें, गुरू सेवा में रत हैं।
मेले में साधुओं की त्रिपथगा है, सच्चे, पाखंडी, मक्कार। धर्म, आस्था और आडम्बर। शिवभक्त, बगुला भक्त, अन्धभक्त। सड़क पर ऐसे यात्री भी हैं जो कड़ाके की ठंड में बोरा और कम्बल लेकर खुले आसमान के नीचे सो रहें हैं।
कहीं तम्बू से लगातार ‘खोने- पाने ‘की उद्घोषणा अनवरत जारी है।
जगह -जगह शिविर लगे हैं, कीर्तन और प्रवचन हो रहें है। माइक पर भजन, उद्घोषणा, मन्त्रोंचार की त्रिवेणी प्रवाहित है।
कहीं कवि सम्मलेन, और कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम का अनाउंसमेंट “आज शाम उषा नारायण का डांस होगा।”लोगों को आग्रह कर रहा था डांस देखने के लिये पधारने का।
कहने का तात्पर्य, चुनाव की विशाल स्वतंत्रता। जिसकी जिसमें प्रीत हो वो उस खेमे में चला जाय ‘मानो धर्म एक पिकनिक है, पुण्य, गंगा का जल।’
मेले में सरकार, प्रशासन, मीडिया सभी मुस्तैद है। अपने काम के प्रति जरुरत से ज्यादा जागरूक, एकदम चैतन्य। सभी अपनी -अपनी रोटियाँ, अपनी -अपनी तरह से सेंक रहें हैं। कितनों ने संगम स्नान किया, कितने संगम में डूब गये, कितने बचाये गये। लापता लोग हुए या नहीं हुए।टीवी, समाचार पत्र में खबरें प्रसारित हो रहीं हैं, सच झूठ का नापतौल करके।
प्रशासन प्रसन्न है, मलाई- बजट बनाकर कुछ इस तरह पेश किया गया कि केंद्र और प्रदेश सरकार की कई पीढ़ियों का महा कुम्भ हो गया।
कलम का पैनापन, पूरी कहानी में उपमोक्ति और अध्यात्म – दर्शन के साथ संगम की श्वेत -श्याम धारा मिलन के सौंदर्य बोध की रोमांचक अनुभूति करा रहा है। संगम पर दोनों धाराओं का जल, मानो जीवन के रहस्य का अंवेषण करता हो। लहरों से अठखेलियाँ करती नावें जैसे नदी के विस्फरित नेत्र हों।
चरनी मासी के अनुसार “कभी कभी पाप , अनजाने में भी हो जातें हैं। प्रयाग का महाकुम्भ संसार में सबसे अनोखा है।संगम स्नान सारे पापों को धो देता है। ”

सत्य को पता चलता है, मासी का चश्मा टूट गया, सत्य और चारु मासी से मिलने मेले पहुँचे। चश्मा टूटा कैसे?
मासी ने बताया कि वे गंगा स्नान को गई थीं, खासी भीड़ थी, अचानक साधुओं का जत्था शाही स्नान को आया, भगदड़ मच गई, घाट पर कीचड़ और रपटन थी, इसी धक्का मुक्की में चश्मा टूट गया।
सत्य के बहुत कहने पर भी मासी घर नहीं गईं कारण दो दिन बाद मौनी मावस्या पर बड़ा फलदायी स्नान होना है । फलत: चारु मासी के साथ मेले में रूक गई।
चारु भारतीय जन मानस की आस्था के स्पर्श से अभिभूत थी।
मेले में विदेशी भक्त हरे राम, हरे कृष्ण की धुन के साथ विभोर हो,नाच रहें थे। हुक्के चरस का दम भरा जा रहा था। गुरु -शिष्य परम्परा अंतर्गत, शिष्यायें, गुरुओं पर अपना सर्वस्व लुटाने पर आतुर थी। मासी के गुरू चारु को बिल्कुल तरबूज की तरह गोल- मटोल और लाल दिख रहें थे। चारु के पूछने पर बताया कि उसका पति उसे बहुत मारता था, तो वह भाग कर गुरू जी कि शरण में आ गई यहाँ गुरू कि कृपा से वह सब मिलता है जो एक स्त्री को चाहिए।
यहाँ उसे मौन सुंदरी नाम की साधु वेश में विदेशी महिला मिलती है, जो अपने सौंदर्य के प्रति सचेत है। वह चारु से अपना अनुभव शेयर करते हुये कहती है कि अधिकांश साधुओं को शरीर की भूख होती है। यहाँ एक मिनट के लिये भी बत्ती गुल हो जाये तो कितने बलात्कार हो जातें हैं। वह किसी को अपना गुरू नहीं बनायेगी। बल्कि वह अपना एक अलग पंथ बनायेगी। उसे दो, चार हज़ार शिष्य -शिष्याओं की तलाश है। उसकी मानना है इस प्रोफेशन में बहुत फायदा है।
मौनी मावस्या, वह भी सोमवार के दिन, सोमवती- -मौनी-अमावस्या। अद्भुत दृश्य, स्नान- ध्यान,अर्पण- -तर्पण,दान -पुण्य का। एक दूसरे को धकेलते संगम पर जाते यात्री।
नावें यात्रियों से खचाखच भरी, संगम- धारा, स्पर्श को आतुर स्नानार्थी।
पवित्र स्नान हुआ, कितना पाप धुला, कितना पुण्य कमाया पता नहीं। पर गंगा की धार और भीड़ में कितनों के सोने के कंगन गुम हुए, कितनों के गले की कंठी, हाथ की अंगूठियाँ।कोई नन्हें बच्चों को खोज रहा। कोई पति को।जाने कितनी अबोध लड़कियाँ पाई गईं , गंगा स्नान के बहाने लायी गईं थीं और छोड़ गये मंझधार।
ये पीड़ा प्रसंग हैं, मेले के।
प्रश्न है, -घर लौट कर ये भक्त, क्या सीख कर जायेंगे मेले से?
पाप -पुण्य, अध्यात्म, धर्म को लेकर विचारों में कुछ परिवर्तन होगा, या फिर संकीर्ण सरोकारों के साथ वापिस हो जायेंगे?
गंगा माई में डुबकी लगाने से क्या सच में पाप धुलतें हैं?


प्रस्तुतकर्ता:
सुनीता मिश्रा
भोपाल, भारत

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