हम अब भी आज़ाद नहीं….
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं,
फल-फूल रहे मुट्ठीभर लोग,
सारे हुए आबाद नहीं।
है कहां सुरक्षित अब भी,
मेरे भारत की हर बाला,
वासनांध दुष्टों ने जिसका,
जीना दूभर कर डाला,
अंधेरा रात सा हिस्से में आया,
हो सका प्रभात नहीं
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं,
कटघरे में खड़ी हो जाती वह,
मांगती है न्याय,
खबरें बनती अखबारों की,
होता उस पर अन्याय,
तीखे सवालों से क्या,
करते तुम आघात नहीं
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं।
देश की धरोहर को,
क्षति पहुंचाना हमको आता है,
तोड़-मोड़ करना और,
बसें जलाना हमें भाता है,
भारत बंद हो जाए तो क्या,
हम होंगे बरबाद नहीं
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं।
धर्म, जाति भेदभाव के,
अब भी स्वर कानों पर पड़ते हैं,
बैर दिलों में रहता जीवनभर,
हम आपस में लड़ते हैं,
मौन हो जाते रिश्ते तब,
हो पाता कभी संवाद नहीं,
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं।
दौड़ते घोड़े कागज पर हैं,
विकास के नाम पर,
चर्चाओं में व्यस्त नेता,
ध्यान नहीं है काम पर,
टूटती महंगाई से कमर,
सुधरे अभी हालात नहीं,
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं।
कभी-कभी रास्तों पर,
बाल मज़दूर भी दिख जाते हैं,
नन्हें हाथों से कमाकर,
जो घर अपना चलाते है,
भुखमरी खींचते तस्वीरों में,
सुनते हम फरियाद नहीं,
आज़ाद हो गया है भारत,
हम अब भी आज़ाद नहीं।
स्मिता प्रसाद दारशेतकर
गोवा ,भारत