सिवाय आकाश के

सिवाय आकाश के

तुम
मेरे पर
कुतर देना चाहते हो

चाहते हो
मुझे
मेरा आकाश न मिले

तुम
चाहते हो कि
मैं
तेरे पिंजरे में
बंद होकर रहूँ
तेरे सिखाए बोली-बात
न भूलूँ

मत बिगड़े
तुम्हारी कोई व्यवस्था
बहलता रहे
तुम्हारा मन भी
होती रहे
तुम्हारी सेवा बराबर

मगर अब
मुझे भी
नहीं दिखाई दे रहा कुछ भी
सिवाय आकाश के।

केशव दिव्य
छत्तीसगढ़,भारत

0