अब न सहूँगी

अब न सहूँगी

मारपीट अब बहुत हो गई
ओछी हरकत अब न सहूँगी

खौफ़ दिया क्रूर कर्मों से
भँडास निकाली जी भर कर
रोई मैं चुपचाप अकेले
करवट बदली रात-रात भर

पर न बहाऊंगी सावन अब
बिजली बन कर कड़कूँगी मैं
वार किया तो चुप न रहूँगी

मारपीट अब बहुत हो गई
ओछी हरकत अब न सहूँगी

प्रतिकार में तेवर बदलु
माथा मेरा ठनक गया तो
एक चीख न्यायालय पहुँचे
बात बात में तुनक गया तो

जहर बहेगा आँचल से
आँखों से खून के फव्वारे
प्रतिशोध से क्यों न कहूँगी

मारपीट अब बहुत हो गई
ओछी हरकत अब न सहूँगी

हरिहर झा,
मेलबोर्न,ऑस्ट्रेलिया

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