कलियों को सुरभित होने दो
बीत गए पचहत्तर वर्ष देश को आजाद हुए,
आ गया आजादी का अमृत महोत्सव काल।
पर क्या सच में आजाद हुई आधी आबादी,
क्या उसका भी चल रहा है स्वर्णिम काल?
किया विचार किसी ने इस पर भी कभी?
क्या सच में उन्नत हो रहीं नारी सभी अभी?
आए दिन किस्से हैवानियत के सुनाई देते,
जो कहते आजाद नहीं आधी आबादी अभी।
कहीं भ्रूण हत्या ,कहीं तेजाब प्रकरण,
कहीं हिजाब समस्या ,कहीं यौन शोषण।
मिट्टी का तेल छिड़काव और अग्नि दहन,
हर दिन मिलते रावणों के सैकड़ों उदाहरण।
चीख चीखकर कहता है हम सबसे वक्त ,
नहीं, अभी तो चालू है बहना नारी का रक्त।
घुट रही हैं सांसें आजादी को जो पुकारतीं,
मिलें अधिकार, कटें बेड़ियां बहुत काटतीं।
आओ सभी मिलकर पंखों को उड़ान दो,
मर्मांतक घटनाओं को अब सब रोक दो।
सुरभित सुमन की तरह प्रस्फुटित हों सदा,
आधी आबादी को ‘सक्षम’विकसित होने दो।
गायत्री ठाकुर ‘सक्षम’
नरसिंहपुर ,मध्य प्रदेश