मेरी भूलों को कर दो माफ

मेरी भूलों को कर दो माफ

तुम्हारे प्रेम में आकंठ डूबी
थी मैं ,
कभी किसी बात पर रुठी न
थी मैं,
तुमने मेरे पंख काट कर सहेज
दिये थे ,
बिना पंखों के भी खुश थी मैं
तुमने कहा था कि पहले तुम
गगन छू लोगे ,
अपने सपने पूरे कर लोगे ,
मैंने सोचा कि तुम्हारे मेरे
सपने एक हैं ,
पर तुम तो धोखेबाज निकले
मेरे पंखों को नोंच कर
फेंक गये ,
पर मैं हारी नहीं ,फिर से नये
पंख उगा लिये
एक नये गगन को खोज लिया
अब मैं सूरज को छू
सकती हूँ ,
चाँद सितारों के संग खेल
सकती हूँ
अब तुम कहते हो कि मेरी
भूलों को कर दो माफ ,
तो सुन पुरुष! मैंने तुझे कर
दिया माफ ,
पर याद रख मेरे बिना तेरा
कोई अस्तित्व नहीं ।

मनोरमा पंत
भोपाल,भारत

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