हिंदी का परचम
वैज्ञानिक आधार परखती
निज बल सब सत्कार कमाया
जोड़ चली सीमाएँ कुनबा
हिंदी ने परचम फहराया
सहज सरल उत्तम उच्चारण
स्वर व्यंजन रस युक्त मनोहर
अर्पित उन्नत पद सम्मानित
छवि साहित्यिक मुक्त धरोहर
शब्द मधुर संयोजित मुक्ता
मायावी हिंदी की काया
जोड़ चली …..
कोस कोस पर पानी बदले
दशम कोस पर बोली गहने
रूप अनेकों धारण करती
देव नागरी चोला पहने
जाती सबरी सम्मान करें
है भेद अनोखा अपनाया
जोड़ चली……
एक पुरातन पाली भाषा
चहुँओर इतिहास पुकारे
उन्नत भाषा की शैली में
हिंद वही इतिहास निखारे
संस्कृत ने जो पौधा सींचा
उस हिंदी की शीतल छाया
जोड़ चली…..
कंचन वर्मा
नई दिल्ली