हिन्दी हमारा मान है
शीघ्र ही हिन्दी बनेगी, अब हमारी राष्ट्र-भाषा।
हो यही विश्वास मन में, हम तनिक छोड़ें न आशा।।
एक दिन यह बात सचमुच, सत्य होकर ही रहेगी।
हिंद की भाषा किसी दिन, विश्व की भाषा बनेगी।।
मान हिन्दी का रखेंगे, शान कम होने न देंगे।
अन्य भाषा-भाव को भी, हम उचित सम्मान देंगे।।
किंतु हिन्दी सिर मुकुट है, जगमगाती दिव्यता से।
रौशनी देती जगत को, खींच लाती शून्यता से।।
मातु संस्कृत की सुता है, श्लोक जिसके देव गाते।
लोग पावन वे धरा के, जो रहे हिन्दी सुनाते।।
है सरल हिन्दी हमारी, सहज भी उतनी रही है।
श्रेष्ठ यह गंगा सरीखी, पावनी बन कर बही है।।
हैं कई भाषा जिन्हें भी, साथ में हिन्दी मिलाती।
प्रीत-मधु हर बोलियों में, घोल कर सबको पिलाती।।
सर्वभाषा-नायिका बन, पथ सुगम सुंदर बनाए।
भाल ज्यों बिन्दी सजी हो, देख हर भाषा लुभाए।।
शीघ्र हिन्दी-माथ पर यह, विश्व-भाषा ताज होगा।
हम सदा सोचें यही बस, कल न हो तो आज होगा।।
लाख करने यत्न हों पर, हम उसे कर के रहेंगे।
आपसी सहयोग से हम, हिंद के वासी करेंगे।।
— गीता चौबे गूँज
राँची ,झारखंड,भारत।