भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- अरूणा आसफ़ अली

भारत रत्न अरूणा आसफ़ अली

आज़ादी के पचहत्तरवें वर्ष में जब हम देश भर में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं । तब अपनी मातृभूमि को सौभाग्यशालिनी कहने से मन को असीम प्रशंसा होती है।
भारत भूमि सदा विशेष रही है ।अपनी धन संपदा, वनसंपदा, खनिज भंडारों और प्राकृतिक सौंदर्य और विविधता के क्षेत्र में ।ये और भी ख़ास इसलिए रही है क्योंकि इसकी कोख़ से अनेक मानव रूपी हीरों ने जन्म लिया और हर क्षेत्र में अपनी माँ को गौरवान्वित किया।
किंतु हृदय की धड़कन, लहू की रवानी और देशप्रेम का जज़्बा तब और बढ़ जाता है जब दोहरायी जाती हैं गाथायें। वो अमर कथाएँ उन सपूतों की जो अपने खून से धरती को सींच गए और वो भी जिन्होंने दुश्मन को देश की सीमा से बाहर खदेड़ने में जान की भी परवाह नही की। इसी क्रम में जब स्मरण करते हैं उन स्त्रियों को जिन्होंने परम्पराओं को तोड़कर और रिवाजों को किनारे कर कंधे से कंधा मिलाकर पुरूषों के साथ आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भागीदारी दी। तब एक नाम जो अपनी अमिट छाप छोड़ गया वो है ‘अरुणा आसफ़ अली’ ।जिनको देश एक शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक और प्रकाशक रूप में भी जानता है।
1942 में भारत छोड़ो के दौरान उनके द्वारा मुंबई के गोवलिया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराने के अदम्य साहस के लिए उन्हें ख़ास तौर पर याद किया जाता है।
पंजाब के कालका में 16 जुलाई 1909 में जन्मी अरुणा गांगुली का परिवार जाति से ब्राह्मण था । पिता थे श्री उपेन्द्रनाथ गांगुली।उनकी आरंभिक शिक्षा नैनीताल में हुई । बचपन से ही अपनी कुशाग्र बुद्धि और चतुराई से अरुणा जी ने स्कूल में अपनी धाक जमा दी थी।अपनी पढ़ाई पूरी कर शिक्षिका बनी और कोलकाता के ‘गोखले मेमोरीयल कालेज’ में अध्यापन करने लगी।


परतंत्रता और भारतीयों की दुर्दशा उन्हें सदैव ही आहत करती थी। उन्होंने महात्मा गाँधी और मौलाना अबुल कलाम जी की सभाओं में भाग लेना प्रारंभ कर दिया।वे इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता से राजनीति में भाग लेने लगीं। देश की स्वतंत्रता को लेकर वो विशेष रूप से डॉक्टर राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों से प्रभावित थीं।सो वो इन तीनों के साथ कांग्रेस की ‘सोशलिस्ट पार्टी’ से संबद्ध हो गयीं।
1928 में अरुणा जी उम्र अपने से 28 वर्ष बड़े आसफ़ अली माता-पिता की इच्छा विरुद्ध विवाह किया।सो उनसे मुलाक़ात के बाद उनसे शादी करके वो भी पार्टी को समर्पित हो गयीं और विवाहोपरांत अरुणा गांगुली ‘अरुणा आसफ़ अली’ बन आज़ादी की लड़ाई में दिलो जान से सक्रिय हो गयीं ।
1930, 1932 और 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह किया और उसके लिए जेल भी गयीं।
1930 में नमक सत्याग्रह के समय उन्होंने सार्वजनिक सभाएँ कीं, जुलूस निकाले ।उनको ‘आवारा’ करार देते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें एक साल की सज़ा सुनायी।बाद में अन्य क़ैदियों साथ इन्हें रिहा नही किया गया ।लेकिन उनके पक्ष में आंदोलन होने पर अंग्रेज़ी सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा।
1932 में उन्हें पुनः बंदी बनाया गया और तिहाड़ जेल में रखा गया।जेल में राजनैतिक क़ैदियों से हो रहे दुर्व्यवहार के कारण अरुणा जी ने भूख हड़ताल कर दी।उनके इस कदम से कुछ सुधार संभव हुआ लेकिन वो अंबाला में एकांत वास में चली गईं।रिहा होने के बाद उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन से 10 साल के लिए अलग कर दिया गया था।
1942 में अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने और जेल में बंद रहने की अपेक्षा भूमिगत रहकर अन्य साथियों के साथ स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करना उन्हें ज़्यादा उचित लगा। विदेशी सरकार को खुलेआम चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला बनीं।मुंबई, कोलकाता, दिल्ली घूम घूमकर उन्होंने कांग्रेसजनों का पथ प्रदर्शन किया।


1942 से 1946 तक पूरी तरह से पार्टी में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ से अछूती रहीं।
1942 में भारत छोड़ो के दौरान उनके द्वारा मुंबई के गोवलिया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराकर उन्होंने अपने देशप्रेम का साहसी प्रमाण दिया।
1946 में उनके नाम वारंट जारी होने पर वे प्रकट हुईं लेकिन सारी सम्पत्ति जब्त कर लिए जाने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नही किया।वे भूमिगत हो गयीं सरकार ने उनके ऊपर ₹5000/- के ईनाम की घोषणा की थी।
आज़ादी के वक़्त अरुणा जी सोशलिस्ट पार्टी का हिस्सा थीं।1955 में ये समूह भारत की कम्युनिस्ट पार्टी जुड़ गया।वो इस इस समूह की केंद्रीय समिति सदस्य और ‘आल इंडिया ट्रेड यूनियन’ की उपाध्यक्ष बन गयीं ।
राजनीति में उनकी रुचि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी बनी रही इसलिए वो राजनीति में कार्यरत रहीं और 1958 में दिल्ली की मेयर बनीं।उनके द्वारा ‘मीडिया पब्लिशिंग हाउस’ की स्थापना 1960 में की गयी।
1991 में अंतराष्ट्रीय समझौते लिए उनको ‘जवाहर लाल नेहरू ‘ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारतीय डाक सेवा ने उनके नाम टिकट जारी कर उन्हें सम्मानित किया। आज़ादी की लड़ाई में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1997 में ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
26 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ़ अली ने इस संसार को अलविदा कहा।

रंजना बंसल
भारत

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