लोकमान्य-बाल गंगाधर तिलक
१८५७ की क्रांति क्यों विफल रही ?
क्यों तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान विफल हुआ ?
क्योंकि हम एक साथ लड़े ही नहीं !!
कौन है ये ब्रिटिश ?
कौन सा है उनका ब्रिटेन देश ??
अगर हम सब भारतीय एक साथ थूंकेगे तो उनका देश बह जाएंगा !
ऐसे कड़े शब्दों में देश की एकता और अखंडता प्रेरित करने वाले हमारे महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक.
आज लोकमान्य तिलक की १६६वी(एक सो छियासठ) जयंती है. बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते है.बाल गंगाधर तिलक बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे. वे कुशाग्र शिक्षक, निडर लेखक,सफल वकील, स्कूल व कॉलेज के संस्थापक, उत्तम सामाजिक कार्यकर्त्ता, समाज सुधारक,स्वतंत्रता सेनानी,प्रखर प्रवक्ता ,पत्रकार ,राष्ट्रीय नेता थे. उन्हें इतिहास, संस्कृत, खगोलशास्त्र एवं गणित में महारथ हासिल थी.ब्रिटिश पदाधिकारी उन्हें “भारतीय अशान्ति के पिता” कहते थे। बाल गंगाधर तिलक को लोग प्यार से ‘लोकमान्य’ कहकर पुकारते थे. स्वतंत्रता के समय इन्होने कहा था ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे पाकर ही रहेंगें.’ इस नारे ने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया था.
पारिवारिक जानकारी
अभिभावक
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी का पूरा नाम केशव गंगाधर तिलक था.बचपन में लोग उन्हें “बाल”कहते थे और “बाल” नाम से ही वे आगे भी जाने जाने लगे. लोकमान्य तिलक का जन्म चित्पावन ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई 1856 को वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था।लोकमान्य जी का परिवार एक विद्वान,धार्मिक,शिक्षित एवं सुसंकृत परिवार था| लोकमान्य जी के पिताजी का नाम श्री गंगाधर जी रामचंद्र तिलक था तथा माता जी का नाम श्रीमती पार्वतीबाई गंगाधर तिलक था।लोकमान्य जी के पिता श्री गंगाधर जी पेशे से शिक्षक थे तथा गणित वह संस्कृत भाषा के बड़े विद्वान थे तथा उनकी माता जी गृहस्वामिनी थी।लोकमान्य जी के पिता जी के विचारो का प्रभाव लोकमान्य जी के उत्तम व्यक्तित्व निर्माण में हुआ.
जीवन साथी
तिलक जी का विवाह मात्र १६ वर्ष की आयु में तापीबाई से हुआ था तब तिलक जी मैट्रिक की पढाई कर रहे थे विवाह के समय तापीबाई की उम्र केवल १० साल की थी. विवाह उपरान्त तापीबाई का नाम श्रीमती सत्यभामाबाई हुआ।
तिलक जी की संतति
लोकमान्य गंगाधर तिलक जी की तीन संताने थी ।उनका नाम श्रीधर बलवंत तिलक ,रामभाऊ बलवंत तिलक तथा विश्वनाथ बलवंत तिलक था।
शिक्षा
लोकमान्य जी ने ५ वर्ष की कम उम्र से ही शिक्षा ग्रहण करने हेतु स्कूल में प्रवेश लिया. ५ वर्ष वर्ष की आयु से ही उन्हे अपने पिता श्री गंगाधर जी के सामान गणित वह संस्कृत में रूचि थी.उन्होंने अपने आयु के १० वर्ष से शिक्षा ग्रहण करने हेतु पुणे में प्रयाण किया और पुणे में सरकारी हाई स्कूल में प्रवेश ग्रहण किया। लोकमान्य जी अपनी कुशाग्र बुद्धि से हाई स्कूल में सदैव अग्रणी रहे.मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, तिलक ने डेक्कन कॉलेज में दाखिला ले लिया.डेक्कन कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते समय उन्होंने किताबें पढ़ने में बहुत रूचि ली.वे बहुत ज्यादा समय तक किताबे पढ़ते एवं ज्ञान ग्रहण करते थे.वे बिलकुल विद्या के उपासक बन गए थे. उन्होंने पढ़ते समय संस्कृत,मराठी काव्य,गणित,इतिहास,खगोलशास्त्र आदि विषयों का अध्ययन किया|शिक्षा ग्रहण करने के साथ साथ उन्होंने,उत्तम स्वास्थ्य होने की आवश्यकता को पहचाना वह उत्तम स्वास्थ्य बनाने हेतु कठोर मेहनत से उत्तम आरोग्य ग्रहण किया।उन्होंने १८७७ में बीए की डिग्री फर्स्ट क्लास में पास की. भारत के इतिहास में तिलक वो पीढ़ी से थे, जिन्होंने मॉडर्न पढाई की शुरुवात की और कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी. इसके बाद भी तिलक ने पढाई जारी रखी और LLB की डिग्री भी हासिल की.
उपलब्धियां
स्कूल के संस्थापक
न्यू इंग्लिश स्कूल
• कॉलेज में रहते हुए भी उनका परिचय श्री. गोपाल गणेश आगरकर से हुआ । उसी समय श्री विष्णु शास्त्री चिपलूणकर निबन्धमाला का कार्यक्रम चलाकर समाज प्रबोधन कर समाज को जगाने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजी शासन के शुरुआती दिनों में समाज सुधारकों ने अंग्रेजी राज्य को एक वरदान माना था ; लेकिन 1857 की घटनाओं के बाद सोच में धीरे-धीरे बदलाव आया और वे अंग्रेजों को विदेशी समझने लगे। चिपलूणकर कहा करते थे कि अंग्रेज शासन को खत्म करने के लिए लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए। तिलक-आगरकर उनकी बातों से सहमत हुए ,वे चिपलूणकर से मिले और इन तीनों ने मिलकर 1 जनवरी 1880 को पुणे में ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ की स्थापना की और ये दोनों शिक्षक के रूप में काम करने लगे।
तिलक और उनके साथियों ने निजी स्कूल चलाने की उद्देश्य से शिक्षा के क्षेत्र में किया प्रवेश ! स्कूल चलाने का उद्देश्य सरकारी नियंत्रण से मुक्त होना और स्वतंत्र रूप से शिक्षा प्रदान करना था। इसकी के साथ अंग्रेजी शिक्षा को सस्ता और आसान बनाना , निजी स्कूल के माध्यम से शिक्षा का प्रसार करना था।
वो एक दिन पढ़ा रहे थे तभी एक ब्रिटिश अधिकारी आये तभी उन्होंने उस अधिकारी को कहा.”Dogs & Britishers are not allowed in my class.”ऐसे ज्वलंत विचारो वाले देशप्रेमी थे ,तिलक समाचार पत्रों से जनजागृति करने वाले तिलक जी।
केसरी और मराठा
जन जागरूकता पैदा करने के लिए वर्ष 1881(इक्यासी) में, केसरी (मराठी) और मराठा (अंग्रेजी) नामक दो समाचार पत्र शुरू किए; लेकिन पहले वर्ष में उन्हें उनके ज्वलंत देशप्रेमी लेखन के लिए जेल में जाना पड़ा |मै इस बात को ऐसा समझती हु की उनकी प्रखर लेखनी से शायद अंग्रेज डर गए होंगे और उन्हें जेल भेज दिया। बाद में दोनों अखबारों को चलाने की जिम्मेदारी तिलक पर आ गई।
डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना
उन्होंने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी (1884) की स्थापना के बाद संस्थान को एक विश्वविद्यालय कॉलेज के रूप में विकसित किया, जिसका उद्देश्य जनता को विशेष रूप से अंग्रेजी भाषा में शिक्षित करना था|आज इस शिक्षा संस्था के अंतर्गत ५७(सत्तावन) स्कूल एवं कॉलेज कार्यरत है|
प्रख्यात कॉलेज के संस्थापक तिलक जी
फर्ग्यूसन कॉलेज
न्यू इंग्लिश स्कूल के अच्छे प्रदर्शन के बाद, उन्होंने एक नया कॉलेज शुरू करने का फैसला किया।2 जनवरी,
1885(पचासी)को पुणे में फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना की ।कॉलेज में तिलक गणित और संस्कृत पढ़ाते थे ।
यह कॉलेज अभी भी देश के कुछ प्रख्यात कॉलेज में से एक है ।इसी कॉलेज ने भारत देश को दो पूर्व प्रधानमंत्री भी दिए है ,यहाँ भारत के ९वे प व् नरसिम्हाराव एवं १०वे पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्व प्रताप सिंह ,तथा भारतीय राज्य गुजरात व आंध्र प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री भी दिए है।
निडर लेखक तिलक जी
तिलक साप्ताहिक समाचार पत्रों केसरी और मराठा में कई लेख लिखे जिनमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई नीतियों की कड़ी आलोचना की और लोगों से औपनिवेशिक शासन से जुड़े अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ उठने का आग्रह किया। 1897(सत्तानबे) में चापेकर बंधुओं द्वारा कथित तौर पर दो ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या के बाद, तिलक पर हत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया और उन्हें 18 महीने के कारावास की सजा सुनाई गई। जेल की निर्धारित अवधि के बाद जब उन्हें जेल से रिहा किया गया, तो तिलक को जनता द्वारा एक राष्ट्रीय नायक के रूप में माना जाने लगा
सामाजिक एकता के जनक
गणेश पूजा को एक राष्ट्रीय त्योहार बनाने वाले तिलक जी
लोकमान्य तिलक जी ने देखा भगवान गणेश “हर आदमी के भगवान” माना जाता था, समाज के हर वर्ग ,जाती के लोग गणेश की पूजा करते थे. हर जाती के सदस्यों, नेताओं और अनुयायियों द्वारा समान रूप से गणेश जी की पूजा की जाती थी। उन्होंने गणेश चतुर्थी को समाज के बीच की खाई को मिटाने समाज में एकता स्थापित करने’ के लिए एक राष्ट्रीय त्योहार के रूप में गणेशोत्सव को लोकप्रिय बनाया। 1893 (तिरानबे) में, उन्होंने गिरगाम में पहला और सबसे पुराना मंडल- केशवी नाइक चॉल सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना की।
पहले व्यक्ति जिन्होंने सार्वजनिक स्थान पर भगवान गणेश की बड़ी मिट्टी की मूर्ति स्थापित की ।
लोकमान्य तिलक सार्वजनिक स्थान पर भगवान गणेश की बड़ी मिट्टी की मूर्ति स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति थे और गणेश उत्सव को 10 दिन तक चलने की शुरुआत उन्होंने की थी। इसने धीरे-धीरे सामुदायिक भागीदारी को देखना शुरू कर दिया। फिर उन्होंने त्योहार के दसवें दिन ऐसी सभी मूर्तियों को जलमग्न करने की प्रथा शुरू की। उन्होंने इस उत्सव का उपयोग सभी खंडित हिंदू समुदाय को बांधने के लिए किया और ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने 1892 (बानबे) के जन-विरोधी विधानसभा कानून के माध्यम से हिंदू सभाओं पर प्रतिबंध का विरोध किया।
धार्मिक और सामाजिक कार्यों का संगम
यह त्यौहार सभी जातियों और समुदायों के आम लोगों के लिए एक मिलन स्थल के रूप में भी कार्य करता था। यह धीरे-धीरे एक धार्मिक और सामाजिक समारोह बन गया। समारोह सांस्कृतिक कार्यक्रमों और राष्ट्रवादी भाषणों से जुड़ा हुआ था। यहां तक कि मुस्लिम नेताओं ने भी इन वार्षिक समारोहों में भाग लिया और भाषण दिया, देशवासियों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने का आह्वान किया।
उत्सव के उत्साह ने लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा की और यह धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया।
1905 में यह एक राष्ट्रव्यापी उत्सव बन गया था। अब, करोड़ों रुपये से हजारों सार्वजनिक पंडाल बनाए गए हैं, और उत्सव एक वार्षिक उत्सव बन गया है।
“शिव जयंती”
1895(पंचानबे) में, तिलक ने मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती “शिव जयंती” के उत्सव के लिए श्री शिवाजी फंड कमेटी की स्थापना की। इस परियोजना का उद्देश्य रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज के समाधि के पुनर्निर्माण के वित्तपोषण का भी उद्देश्य था। इस दूसरे उद्देश्य के लिए, तिलक ने तालेगांव दाभाडे के सेनापति खंडेराव दाभाडे द्वितीय के साथ श्री शिवाजी रायगढ़ स्मारक मंडल की स्थापना की, जो मंडल के संस्थापक अध्यक्ष बने।
बंगाल का विभाजन
जब भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया, भारत के तमाम नेता उसका विरोध करने के लिए तैयार हो गए। तिलक ने विभाजन को रद्द करने की मांग का पुरजोर समर्थन किया और ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार का समर्थन किया, सरकार को एक ठहराव में लाने के लिए, मानद पदों और उपाधियों को छोड़ने, प्रांतीय वस्तुओं का बहिष्कार करने, केवल घरेलू उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करने और अंग्रेजी शिक्षा के बजाय राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने जैसे कार्यक्रमों की योजना बनाई गई ।जो जल्द ही एक ऐसा आंदोलन बन गया जिसने राष्ट्र को झकझोर दिया।
अगले वर्ष उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का एक कार्यक्रम तैयार किया, जिसे नई पार्टी के सिद्धांतों के रूप में जाना जाता है, जिससे उन्हें उम्मीद थी कि ब्रिटिश शासन के कृत्रिम निद्रावस्था का प्रभाव नष्ट हो जाएगा और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लोगों को बलिदान के लिए तैयार किया जाएगा।
लाल-बाल-पाल
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लाखों भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ विरोध कर रहे थे और उन्हें लगा की यह आंदोलन देश को आजादी की ओर ले जाएगा। जबकि कुछ शांतिपूर्ण दृष्टिकोण में विश्वास करते थे, दूसरों का क्रांति के प्रति अधिक प्रत्यक्ष, कट्टरपंथी रवैया था। लाल-बाल-पाल की तिकड़ी बाद वाले समूह का हिस्सा थी।
लाल-बाल-पाल ने बंगाल विभाजन के खिलाफ देश भर में भारतीयों को लामबंद किया, और बंगाल में शुरू हुए ब्रिटिश सामानों के प्रदर्शन, हड़ताल और बहिष्कार जल्द ही अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक विरोध में अन्य क्षेत्रों में फैल गए।
अविभाजित पंजाब से लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र से बाल गंगाधर तिलक और उस समय एकजुट बंगाल से बिपिन चंद्र पाल, स्वदेशी आंदोलन की वकालत करने के लिए एक साथ आए थे – ब्रिटिश सामानों की खरीद को खारिज करना और एक देश के रूप में आत्मनिर्भर बनना।
तीन गतिशील नेता, जो आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहे थे और भारत में ब्रिटिश माल के एकाधिकार का विरोध कर रहे थे, लाल-बाल-पाल तिकड़ी के रूप में प्रसिद्ध हुए। साथ में, उन्होंने सफलतापूर्वक पूरे भारत में अधिक युवा दिमागों पर कब्जा कर लिया। विविध पृष्ठभूमियों के साथ भी, उनका उद्देश्य एक ही था- ‘विदेशी’ वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना और ब्रिटिश राज को “स्वराज” से बदलना।
महात्मा गांधी ने भी तिलक जी के पहल को अपनाया
तिलक जी द्वारा शुरू की गई राजनीतिक पहल : विदेशी माल का बहिष्कार और निष्क्रिय प्रतिरोध – बाद में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के साथ अहिंसक, असहयोग के अपने आंदोलन सत्याग्रह में भी अपनाया।
पूर्ण स्वराज्य की मांग
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) सदस्य के विचार उदारवादी थे ,जो छोटे सुधारों के लिए सरकार का “वफादार” प्रतिनिधित्व किया करते थे, किन्तु तिलक जी के विचार राष्ट्रप्रेम व देश के सर्वोत्तम हित से ओतप्रोत थे वह उनका दृष्टिकोण मजबूत था, उनका उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य था, न कि टुकड़ों में सुधार, और तिलक ने जिनके विचार देश के सर्वोत्तम हित व राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत विचारों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनाने के लिए मनाने का प्रयास किया। उस मुद्दे पर, 1907 में सूरत (अब गुजरात राज्य में) में पार्टी के सत्र (बैठक) के दौरान वे नरमपंथियों से भिड़ गए और पार्टी अलग हो गई। राष्ट्रवादी ताकतों में विभाजन का फायदा उठाते हुए, सरकार ने फिर से तिलक पर राजद्रोह और आतंकवाद को उकसाने के आरोप में मुकदमा चलाया और उन्हें छह साल की जेल की सजा काटने के लिए मांडले, बर्मा (म्यांमार) भेज दिया।
मांडले जेल
मांडले जेल में, तिलक ने अपनी महान रचना, श्रीमद भगवद्गीता रहस्य (“भगवद्गीता का रहस्य”) – जिसे भगवद गीता या गीता रहस्य के रूप में भी जाना जाता है । तिलक ने रूढ़िवादी व्याख्या को खारिज कर दिया कि भगवद्गीता (महाभारत महाकाव्य कविता का एक घटक) ने त्याग के आदर्श को सिखाया; उनके विचार में इसने मानवता की निस्वार्थ सेवा की शिक्षा दी।
लेखक के रूप में लोकमान्य
1893 में, उन्होंने द ओरियन
1903 Vedas in the Arctic Home
1914 में श्रीमद भगवद्गीता रहस्य
Vedic Chronology and Vedanga Jyotish आदि ग्रन्थ लिखे
मांडले जेल से रिहाई
मांडले जेल में अपने कार्यकाल के दौरान, तिलक को मधुमेह का पता चला था। उन्हें 16 जून, 1914 को रिहा किया गया, जब प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने वाला था। फिर उन्होंने कांग्रेस के साथ सुलह की मांग की और महात्मा गांधी को ब्रिटिश शासन जैसे विशाल साम्राज्य से लड़ने के लिए अहिंसा को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की निरर्थकता के बारे में समझाने की कोशिश की।
ऑल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना
तिलक ने 1916-18 में जीएस खापर्डे और एनी बेसेंट के साथ स्वराज के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए ऑल इंडिया होम रूल लीग की स्थापना में मदद की। ऑल इंडिया होम रूल लीग ने स्वराज की मांग की उन्होंने किसानों को जुटाने के लिए गांवों-गांवों का दौरा किया।अप्रैल 1916 में लीग के 1400 सदस्य थे, और 1917 तक सदस्यता लगभग 32,000 हो गई थी। एक राष्ट्रीय नेता के रूप में तिलक के कद में वृद्धि के बावजूद, होम रूल आंदोलन ने अंग्रेजों को 1917 में मोंटेगु घोषणा का मसौदा तैयार करने के लिए मजबूर किया|
हिंदू-मुस्लिम एकता
लखनऊ समझौता
बाल गंगाधर तिलक ने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की और इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और 1916 में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के साथ लखनऊ समझौता किया, जिसने राष्ट्रवादी संघर्ष में हिंदू-मुस्लिम एकता प्रदान की।मुस्लिम लीग के नेता भारतीय स्वायत्तता की मांग करते हुए कांग्रेस आंदोलन में शामिल होने के लिए सहमत हुए। विद्वान इसे भारतीय राजनीति में एक संघात्मक प्रथा के उदाहरण के रूप में उद्धृत करते हैं।
एक युगपुरुष का अंत
उन्होंने 1 अगस्त 1920 को मुंबई में अंतिम सांस ली थी
अंतिम संस्कार में 2 लाख से अधिक लोग शामिल हुए, जो भारतीय इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा है।
अंतिम संस्कार के लिए लोगों की इतनी भीड़ थी कि अंतिम संस्कार श्मशान के बजाय चौपाटी पर किया गया।लोकमान्य तिलक का अंतिम संस्कार बैठे हुए पैरों की स्थिति (पद्मासन) में किया गया, जो केवल संतों को दिया जाता है।पंडित नेहरू महात्मा गांधी के साथ अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
उन्ही के शब्दों में कहूँगी जो हम सभी के लिए प्रेरणादायी है :
देशकार्य ही देवकार्य होता है।
देशकार्य ही देवकार्य होता है।
वन्दे मातरम।।
अश्विनी केगावंकर
नीदरलैंड