भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- किरण बेदी

किरण बेदी : एक व्यापक व्यक्तित्व

किरण बेदी का जन्म भारत को स्वतंत्रता मिलने के कुछ ही समय बाद 9 जून, 1949 को अमृतसर पंजाब में हुआ था। यह वह समय था जब देश अपनी स्वतंत्रता के अभी शैशव काल में ही था। देश में सामाजिक और राजनैतिक हालात अभी स्थिरता पाने को अग्रसर थे। बेटा और बेटी में भेदभाव रखने वाले समाज में वह प्रकाश पेशावरिया और प्रेम पेशावरिया की चार बेटियों में से दूसरे नंबर पर किरण बेदी ने जन्म लिया। उनकी तीन बहनें हैं जिनमें से शशि कनाडा में रहती हैं और एक कलाकार हैं। दूसरी बहन रीता क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और लेखक है जबकि तीसरी बहन अनु एक वकील हैं। और इन सबके साथ परवरिश पाते हुए किरण बेदी ने खुद को अपनी मेहनत और लगन से एक ऐसे मुकाम पर पहुंचाया, जिसकी उस समय कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

शिक्षा और खेलकूद में उपलब्धियां

प्रखर बुद्धि की मल्लिका किरण बेदी ने सैक्रेड हार्ट कन्वेंट स्कूल, अमृतसर से शिक्षा की शुरुआत की थी। वे जी एन यू से इंग्लिश में बी.ए. (आनर्स) होने के साथ-साथ  दिल्ली विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में एम.ए. और कानून की स्नातक हैं। साथ ही, वे आई.आई.टी. दिल्ली से सामाजिक विज्ञान में डॉक्ट्‍रेट भी ले चुकी हैं। 1972 में उन्होंने एक कारोबारी बृज बेदी से विवाह किया था, जोकि एक सुप्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी थे , जिनकी 2016 में कार्डियक अटैक से मृत्यु हो चुकी है। शादी के तीन वर्ष बाद उनकी बेटी साइना पैदा हुई थी। वे दो साल के लिए खालसा कॉलेज फॉर वीमेन, अमृतसर में एक लेक्चरर रहीं और बाद में जुलाई 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती हुई थीं और IPS के अधिकारी रेंक में शामिल होने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

शैक्षणिक गतिविधियों के साथ साथ खेलों में भी उन्हें बहुत रुचि थी। छात्र जीवन से ही वो टेनिस खेलती रहीं और उन्होंने टेनिस में कई खिताब जीते। एक किशोरी के रूप में, बेदी 1966 में राष्ट्रीय जूनियर टेनिस चैंपियन बनीं। 1965 और 1978 के बीच, उन्होंने राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चैंपियनशिप में कई खिताब जीते, जिनमें से 1972 में एशियन लान टेनिस चेंपियनशिप भी शामिल है।

कर्मठता की प्रतिमूर्ति

अपने पैंतीस साल के लंबे कार्यकाल में किरण बेदी ने विविध पोस्ट पर रहते हुए साहस, निडरता बड़ी शिद्दत से पुलिस सेवा में बड़ी ईमानदारी से कर्तव्यनिष्ठा का पालन किया। IPS में शामिल होने के बाद, बेदी ने दिल्ली, गोवा, चंडीगढ़ और मिजोरम में सेवा की। उन्होंने दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में एक सहायक पुलिस अधीक्षक  के रूप में अपना करियर शुरू किया, इसके बाद, वह पश्चिम दिल्ली चली गईं, जहां वह DCP के रूप में कार्य करते हुए महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी लाने में सफल रही । इसके बाद एक ट्रैफिक पुलिस अधिकारी के रूप में उन्होंने दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों के लिए यातायात व्यवस्था की देखरेख की और 1983 में गोवा में एस पी यातायात की जिम्मेदारी निभाई । उसके बाद निरंतर विविध विभागों में अलग अलग पोस्ट पर काम करते हुए मई 1993 में, वह दिल्ली जेल में महानिरीक्षक (IG) के रूप में तैनात हुईं।  2003 में, बेदी पहली भारतीय महिला बनीं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र में महासचिव के पुलिस सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया।  सामाजिक सक्रियता और लेखन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने 2007 में पुलिस अनुसंधान एवं विकास कार्यालय में महानिदेशक के अपने पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।

पुरस्कार

किरण बेदी जैसी कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी के पुरस्कारों की बात करें,तो एक लंबी फेहरिस्त है
1968 : NCC अधिकारी कैडेट पुरस्कार

1979 : अकाली निरंकारी संघर्ष में हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक

1994 : सरकारी सेवा के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार

1995 : लायंस क्लब के के नगर द्वारा वर्ष का शेर

2004 : उत्कृष्ट सेवा के लिए संयुक्त राष्ट्र पदक

2005 : जेल और जेल व्यवस्था में सुधार के लिए क्रिश्चियन काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा राष्ट्रीय मदर टेरेसा मेमोरियल अवार्ड

2006 : द वीक पत्रिका द्वारा देश में सर्वाधिक प्रशंसित महिला घोषित की गई

2014 : सामाजिक प्रभाव के लिए लोरियल पेरिस फेमिना विमेन पुरस्कार

राजनीतिक जीवन

जनवरी 2015 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। उन्होंने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में असफल रूप से चुनाव लड़ा। 22 मई 2016 को, बेदी को पुडुचेरी के उपराज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था, जहां वह 2021तक काम करती रहीं। हालांकि एक राजनेता के रूप में उन्हें कई तरह के वाद विवादों और आरोप प्रत्यारोप का सामना करना पड़ा, पर इससे उनके देश के एक सच्चे नागरिक और जुझारू पुलिस अधिकारी की छवि धूमिल नहीं हुई।

सामाजिक सरोकार और मूल्यों का प्रतिपादन

एक आई.पी.एस. रहते हुए उन्होंने बहुत सारे महत्वपूर्ण काम किए। वे संयुक्त राष्ट्र पीस कीपिंग ऑपरेशन्स से भी जुड़ी रहीं ,और इसके लिए उन्हें मेडल भी दिया गया था। उन्हें क्रेन बेदी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि जब वे दिल्ली में ट्राफिक में उच्च पदस्थ अधिकारी थीं तब उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की कार को क्रेन से उठवा लिया था और पार्किंग नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना भी लगाया था।

उत्तरी दिल्ली के डीसीपी के रूप में, उन्होंने नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ एक अभियान चलाया, जो नवज्योति दिल्ली पुलिस फाउंडेशन (2007 में नवज्योति इंडिया फाउंडेशन का नाम बदलकर) में विकसित हुआ। उन्होंने तिहाड़ जेल में कई सुधारों की शुरुआत की, जिसे दुनिया भर में प्रशंसा मिली और 1994 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला और जवाहर लाल नेहरू फेलोशिप भी मिली थी। जेल सुधारों के लिए उन्हें 2005 में मानद डॉक्ट्‍रेक्ट भी प्रदान की गई थी।। उन्हीं के द्वारा संचालित संस्था ‍”इंडिया विजन फाउंडेशन” जेल सुधारों के लिए सक्रिय तौर पर काम कर रही है और अब उनके फाउंडेशन निरक्षरता और महिला सशक्तीकरण के लिए काम कर रहे हैं। वे 2011 के इंडिया अगेंस्ट करप्शन की एक प्रमुख सदस्य रही हैं जिसने अण्णा हजारे और अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर जन लोकपाल के लिए आंदोलन किया था। वे और उनके साथी देश में मजबूत लोकपाल की नियुक्ति करने के लिए सरकार से आग्रह करते रहे हैं। 2008-11 के दौरान, उन्होंने लोगों के सामाजिक जीवन में आने वाली समस्याओं और उनके समाधान को लेकर एक रिएलिटी शो “आप की कचहरी” भी होस्ट कर चुकी हैं। उनके जीवन पर तेलगु में एक नॉन फिक्शन फीचर फिल्म “कर्तव्यम्” भी बन चुकी है जिसका दुनिया भर में प्रदर्शन किया गया था, और जो दक्षिण भारतीय राज्यों में बहुत बड़ी हिट साबित हुई। उन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनी जोकि बहुचर्चित हुई।‍ बहुत से लेखकों ने किरण बेदी की जीवनी भी लिखी हैं।

लेखन और नारी सशक्तिकरण

साहित्य से किरण बेदी जी का खास लगाव रहा है। उन्होंने तिहाड़ जेल से संबंधित अपने अनुभवों, सरकारी भ्रष्टाचार और महिलाओं के सशक्तिकरण के मुद्दों पर लगभग बारह किताबें लिखी, जिनमें “गलती किसकी?”, “ये संभव है”, “डिमांड फाॅर स्वराज” और “स्त्री शक्ति, जैसे मैंने देखा” और “जाग उठी नारी शक्ति”  प्रमुख हैं।

किरण बेदी एक संवेदनशील पुलिस अधिकारी हैं। उन्होंने खाकी वर्दी को एक नई गरिमा प्रदान की है।समाज में गैर बराबरी, अन्याय और ज़ुल्म उनसे बर्दाश्त नहीं होते। “जैसे मैंने देखा” संकलन में उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को आधार बनाकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि कारगर और प्रभावशाली हस्तक्षेप व्यवस्था और सामाजिक कुरीतियों के शिकार लोगों और खासकर महिलाओं को उनका हक दिलवाया जा सकता है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने को प्रेरित किया जा सकता है। लेखक के रूप में उनकी रचनाधर्मिता उनके ही शब्दों में कुछ यूं व्यक्त होती है,” जैसा मैंने देखा, सुना तथा महसूस किया, उस पर मेरी क्या प्रतिक्रिया होती… चाहती तो नजरअंदाज कर सकती थी। मेरे लिए यह जरूरी हो गया था कि जो कुछ मैंने अंदर महसूस किया, उसको लिखूँ। इसलिए मैंने ट्रिब्यून और पंजाब केसरी में लिखने का विचार बनाया। इसके अलावा अन्य समाचार पत्रों के आग्रह को भी स्वीकार किया। फिर ये मेरी सोच और चिंतन का हिस्सा बन गए। हर लेख को मैंने अपना दिल दिमाग एक करके लिखा। ऐसा करने के बाद मैंने ऐसे पक्षी की तरह महसूस किया जो उड़ने के लिए स्वतंत्र हो। मेरे लेखों का दूसरों के लिए कितना महत्व है, यह मैं नहीं जानती लेकिन जो कुछ मैंने देखा और सुना उसे मैंने लिखने की जरूरत महसूस की। ऐसा मैं आगे भी करती रहूंगी।”

नारी’ और ‘शक्‍ति’ शब्दों को एक-दूसरे का पर्याय कहा जाए तो कोई अतिशयोक्‍ति नहीं होगी, क्योंकि यह नारी की ही शक्‍ति है कि वह अपने जैसे नर-नारियों को जन्म देती है। जब नारी के साथ ‘शक्‍ति’ शब्द जुड़ जाता है तो वह दुर्गा का साक्षात् अवतार ही बन जाती है और उसमें घर, समाज व दुनिया में व्याप्‍त बुराइयों के विरुद्ध लड़ने की एक अदम्य शक्‍ति उत्पन्न हो जाती है। कहते हैं, अत्याचार की अति एक क्रांति को, एक नव-परिवर्तन को जन्म देती है। किरण बेदी की पुस्तक की प्रत्येक अनुभूत कहानी में ऐसी क्रांति, ऐसे नव-परिवर्तन को प्रत्यक्ष घटते हुए पाती हैं। इनकी पुस्तकों में सामाजिक व आर्थिक बुराइयों की अंदरूनी सच्चाई के साथ-साथ समाज की घरेलू समस्याओं, महिलाओं से जुड़े मामलों, पुलिस प्रताड़ना, नशा, कैशोर्य समस्याओं और अपराध आदि का व‌िश्‍लेषण है। ये कहानियाँ समाज में व्याप्‍त उन असामाजिक लोगों को भी सावधान करती हैं, जो नारी शोषण करते और उसे प्रश्रय देते हैं। आज आधी आबादी की आवाज का दम नहीं घोंटा जा सकता। आज हर नारी शांति की ‘किरण’ है, जो बुराइयों के अँधेरे को अपनी अदम्य नारीत्व शक्‍ति से दूर करने के लिए कटिबद्ध है। नारी का सम्मान पुनर्स्थापित करने का एक विनम्र प्रयास है इनकी क्रांतिकारी पुस्तकें।

सीमा भाटिया
पंजाब, भारत

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