नरेन्द्र दामोदरदास मोदी
युग – प्रवर्तक और नव राष्ट्रचेतना के संवाहक
नरेन्द्र मोदी का नाम लेते ही मानस पटल पर स्पष्ट काल विभाजन उभर आता है – एक सन २०१४ के पहले का भारत और दूसरा सन २०१४ के बाद का भारत। यह ठीक वैसा ही है जैसे कि मोहनदास करमचंद गाँधी का नाम लेने पर मन में सन १९४७ के पहले और बाद के भारत के दो चित्र उभर आते हैं। ऐसा ही कुछ अब्राहम लिंकन, नेल्सन मंडेला इत्यादि महापुरुषों और वैश्विक नेताओं को याद करने पर भी होता है। किसी भी क्षेत्र में जब कोई व्यक्ति इतना प्रभावशाली हो जाए कि उसके कारण काल – विभाजन का दृश्य उत्पन्न होने लगे तो वह युग – प्रवर्तक और महानायक जैसे उच्च, प्रतिष्ठित और अनुकरणीय व्यक्तित्व की श्रेणी में पहुँच जाता है। ऐसे व्यक्ति सदियों में जन्म लेते हैं। नरेन्द्र दामोदरदास मोदी उनमें से एक हैं।
भारत माता के अनेक महान सपूतों के बलिदानों के फलस्वरूप देश को सन १९४७ में स्वतन्त्रता मिल गई और स्वराज स्थापित हो गया। किन्तु, सामने चुनौतियाँ बहुत बड़ी थीं। दो सौ वर्षों की परतंत्रता ने देश को आर्थिक रूप से भी तोड़ कर रख दिया था। अतः जो भी देश के तत्कालीन कर्णधार थे उन्होंने अपनी क्षमता और योग्यता के अनुरूप देश को आगे ले जाने का भरपूर प्रयत्न किया। अनेक पंचवर्षीय योजनाएँ आरंभ करके विकास का चक्र तेजी से गतिमान रखने का प्रयत्न किया गया, जिससे कि इस पावन भूमि पर रह रहे विशाल जन – समूह के जीवन – संघर्षों को कम करके जीवन स्तर को ऊपर उठाया जा सके।
आर्थिक प्रगति के साथ – साथ सांस्कृतिक उन्नति का प्रयत्न भी हुआ। कला और विज्ञान के क्षेत्र में भी हम आगे बढ़ने लगे। किन्तु जैसे – जैसे समय बीतता गया, वैसे – वैसे हमारी प्रतिबद्धता देश और समाज से अधिक निजता के प्रति होने लगी और हम आत्म्सत्तात्मकता की ओर अग्रसर होते गए। फलस्वरूप अनेक राजनीतिक विसंगतियाँ और विकृतियाँ उभर आईं, जिनके कारण देश का विकास बाधित हुआ और आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर हम शेष विश्व की तुलना में पिछड़ने लगे। हमारे ऊपर एक पिछड़े देश का ठप्पा लग गया। वह पिछड़ापन मात्र आर्थिक ही नहीं, अपितु हर दृष्टि से माना जाने लगा। हमारी सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति पर भी प्रश्न चिह्न लगाए जाने लगे। इसके अतिरिक्त देश में अनेक बार अस्थिरता का वातावरण भी उत्पन्न हुआ। यदि यह कहा जाए कि उर्ध्वगमन के स्थान पर हम अधोगमन करने लगे, तो अनुपयुक्त नहीं होगा। स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि जिस शब्द “नेता” को बड़े ही गर्व और सम्मान के साथ स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक सुभाषचंद्र बोस के नाम के पहले लगाया जाता था, वही शब्द आम जनमानस के लिए भ्रष्ट आचरण, झूठ, धूर्तता जैसे अनेक दुर्गुणों का पर्याय बन गया।
ऐसे में जनमानस के द्वारा एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी| जिस समय देश के संसाधनों का उपयोग सत्ताधारी लोगों के द्वारा आम जनमानस की भलाई के स्थान पर स्वहित में किए जाने की प्रवृत्ति अपने चरम पर पहुँच चुकी थी; जब धर्म और वोट बैंक की राजनीति के सहारे चुनाव जीते जा रहे थे; जब सत्ता में होना जनसेवा के स्थान पर धन अर्जित करने का पर्याय बन चुका था और नित्य ही आर्थिक अनियमितताओं की घटनाएँ प्रकाश में आने लगी थीं; जब प्रायः ही देश के किसी न किसी हिस्से में आतंकवादियों के द्वारा बम धमाके किए जा रहे थे और निर्दोष लोग हताहत हो रहे थे; जब देशवासियों के मन में असुरक्षा की भावना पूरी तरह से घर कर गयी थी और जब भारत को पूरा विश्व एक अव्यवस्थित देश के रूप में देख रहा था, उसी समय देश के प्रधानमंत्री पद के लिए एक ऐसा व्यक्ति सामने आता है जो जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, तुष्टिकरण, ऊँच, नीच इत्यादि सभी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर विकास, राष्ट्रचेतना, सुरक्षा और आम लोगों की समृद्धि की बात करता है; जो जनसेवा के माध्यम से नेता शब्द की खोयी हुयी गरिमा को वापस लाने की बात करता है; जो बिना किसी भेदभाव के पूरे एक सौ तीस करोड़ भारतीयों की बात करता है। ऐसी बात नहीं थी कि भारतीय राजनीति में ऐसी बातें करने वाला वह पहला व्यक्ति था। उसके पहले भी अनेक राजनेताओं के द्वारा ऐसी बातें कही जाती रही थीं, किन्तु उल्लेखनीय बात यह है कि भारतीय जनमानस ने उस व्यक्ति पर अपना पूरा विश्वास जताया। फलस्वरूप उसके नेतृत्व में राजनीतिक दल “भारतीय जनता पार्टी” ने सन २०१४ के आम चुनावों में ऐतिहासिक विजय के साथ पहली बार पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। सर्वविदित है कि उस व्यक्ति का नाम नरेन्द्र मोदी है।
उस चुनावी विजय के बाद नरेन्द्र मोदी ने भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ – ग्रहण किया।
यहाँ एक प्रश्न उठता है कि नरेन्द्र मोदी पर जनमानस ने विश्वास क्यों किया? आखिर क्या कारण था कि जिस समय लोगों का नेताओं बातों से विश्वास पूर्णतया उठा चुका था और वे मानने लगे थे कि राजनेताओं की बातें मात्र चुनावी हथकंडे होती हैं, ऐसे में नरेन्द्र मोदी की बात पर उन्होंने अक्षरशः विश्वास क्यों किया? वास्तव में लोग अकारण किसी के ऊपर विश्वास नहीं करने लगते हैं, बल्कि व्यक्ति को अपने कार्यों के द्वारा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए लोगों का विश्वासपात्र बनना पड़ता है। केंद्र की राजनीति में आने से पहले नरेन्द्र मोदी बारह वर्षों तक गुजरात प्रान्त के मुख्यमंत्री रह चुके थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने गुजरात का इस तरह से सर्वांगीण विकास किया कि वह सभी के लिए एक उदाहरण बन गया था। पूरे देश में सर्वत्र गुजरात के विकास की चर्चा होती थी। वहाँ की नदियों, सड़कों, यातायात, प्रशासन इत्यादि का कायाकल्प हो गया था। व्यवसाय और व्यापार के क्षेत्र में इस तरह से वृद्धि हुयी थी कि निवेशकों के लिए गुजरात पहली वरीयता बन चुका था। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं था जिसमें मोदी के कार्यकाल में गुजरात ने अभूतपूर्व प्रगति न की हो। यही कारण रहा कि जब उन्होंने देशवासियों से देश के कायाकल्प की बात कही तो सबने उनकी बात पर विश्वास किया।
वास्तव में उस समय देश की जनता को एक ऐसे नेता की तलाश थी जो निष्ठावान, कर्मठ , दूरदर्शी और देश की सुरक्षा के सम्बंध में कड़े निर्णय लेने वाला हो। उन्हें नरेन्द्र मोदी में ये सभी गुण दिखाई दिए। दशकों के राजनीतिक जीवन में कभी भी उनके ऊपर आर्थिक अनियमितता का आक्षेप नहीं लगा था, जो कि उनकी निष्ठा को दर्शाता था, गुजरात का विकास उनकी कर्मठता का मानक बना और बिना दूरदृष्टि के यह सब कर पाना संभव नहीं था। आम चुनावों में उतरने से पहले ही देशवासी नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व – क्षमता, दूरदृष्टि और कार्यकुशलता से पूर्णतया अवगत थे, अतः उनको अपना समर्थन दिया।
भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी पहले व्यक्ति, पहले नेता और पहले सांसद थे, जिन्होंने संसद की सीढ़ियों पर पैर रखने से पहले मंदिर की भाँति माथा टेककर एक उच्च आदर्श प्रस्तुत किया। उनका सन्देश सभी पाँच सौ तैंतालीस सांसदों, हजारों विधायकों व नेताओं तथा भारतीय जनमानस के लिए स्पष्ट था कि उनके लिए संसद कोई सामान्य कार्यस्थल नहीं अपितु एक पवित्र कर्मस्थल था। उस दो मिनट के कार्य के पीछे एक विस्तृत और विलक्षण सोच थी जिसकी एक लम्बी – चौड़ी व्याख्या की जा सकती है। वह मात्र एक नवनिर्वाचित सांसद का भारत के संसद को सम्मान देना ही नहीं था अपितु राष्ट्रचेतना को नए ढंग से परिभाषित करने का प्रयत्न था। उस कार्य के माध्यम से यह बताना था कि हमारा देश और उसका संविधान सर्वोपरि हैं और उसके प्रति निष्ठावान रहना सभी का कर्तव्य है। संसद में पहुँचने के पहले ही उनके द्वारा किए गए इस व्यवहार से भारतीय जनता अभिभूत हो उठी और साथ में आश्वस्त भी कि उन्होंने चयन में कोई त्रुटी नहीं की।
प्रधानमंत्री का पदभार सँभालने के साथ ही नरेन्द्र मोदी अपनी अभिनव दृष्टि और कर्मठता के नित्य नए उदाहरण प्रस्तुत करने लगे। उनके अंदर देश और देशवासियों की सेवा करने का एक अद्भुत उत्साह और लगन देखने को मिला। ऐसा लगता था कि जैसे हर पल उनके अंदर एक छटपटाहट हो कि किस तरह से देश को एक नए पथ पर ले जाया जाए, किस तरह देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाया जाए, किस तरह भारत की छवि वैश्विक पटल पर सशक्त की जाए। यही कारण था कि वे अनवरत काम में लगे रहते। कहा जाता है कि यथा राजा तथा प्रजा; जैसा मुखिया होगा, वैसे ही सदस्य होंगे। सदाचार तथा भ्रष्टाचार दोनों ही पानी की भाँति ऊपर से नीचे की ओर बहते हैं। यह बात भाजपा सरकार के विषय में पूरी तरह से सत्य सिद्ध हुई, क्योंकि नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में उनका एक भी मंत्री किसी भी तरह की आर्थिक अनियमितता के लिए आरोपित नहीं हुआ, जो कि भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व बात थी।
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही देश और भारतीय राजनीति का वातावरण बदलने लगा। उनकी नवदृष्टि और दृढ़ निर्णयों ने अनेक जनकल्याण के अभियानों को जन्म दिया और उन्हें सुचारू रूप के कार्यान्वित भी किया। एक ओर उन्होंने उन बातों के लिए भी अभियान चलाना आरम्भ किया जो देखने में तो छोटे लग रहे थे, किन्तु जिनका प्रभाव बहुत ही व्यापक था और जिनमें जन – भागीदारी भी आवश्यक थी। जैसे “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ”, स्वच्छता, शौचालय इत्यादि। ये सभी विषय ऐसे थे जो भारत की छवि से जुड़े हुए थे।
“बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” अभियान ने पुत्रियों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण इस तरह से बदल दिया कि अनेक राज्यों में लड़की और लड़के के अनुपात में लड़कियों की वृद्धि पहली बार रेखांकित की गयी, जो कि एक बड़ी उपलब्धि थी। स्वच्छता पर उन्होंने विशेष बल दिया, जिसका देशवासियों ने खुलकर स्वागत भी किया और भागीदारी भी की। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत सरकार के साथ अनेक गैर – सरकारी संस्थाएँ भी जुड़ती गईं। पहली बार देश में स्वच्छता कोई विषय और अभियान बना। आज स्वच्छता के आधार पर सभी नगरों की प्रतिवर्ष रेटिंग की जाती है जो कि सरकारी अधिकारियों और नागरिकों के लिए स्वच्छता के प्रति सजगता का एक विषय होता है। स्वच्छता की कड़ी में ही सम्पूर्ण देश को शौचालय से युक्त करने का अकल्पनीय अभियान भी चला और सफलतापूर्वक पूर्ण भी हुआ। गाँव – गाँव में शौचालयों का निर्माण किया गया। इस तरह की अनेक योजनाएँ जिन्हें कभी सोचा भी नहीं गया था और जो देश का कायाकल्प करने की क्षमता रखती थीं उनकी नरेन्द्र मोदी ने परिकल्पना की और उन्हें मूर्त रूप भी दिया। जिसमें से एक बेघरों को घर देना भी सम्मिलित था।
एक ओर जहाँ जनकल्याण की योजनाएँ चल रही थीं, वहीं दूसरी ओर हमारे वैज्ञानिक और अंतरिक्ष अभियान भी तीव्र गति से आगे बढ़ रहे थे। पंद्रह फरवरी सन २०१७ को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष में एक साथ 104 उपग्रह भेजकर एक विश्व – कीर्तिमान स्थापित किया। भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक गर्व का क्षण था। इसके अतिरिक्त “डिजिटल इंडिया” की संकल्पना जब उन्होंने की तो वह विचार विरोधियों को बहुत ही हास्यास्पद लगा कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या और अपेक्षाकृत कम संसाधन वाले देश को डिजिटलाइज कर पाना लगभग असम्भव है। किन्तु उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति से असंभव को संभव करके दिखाया।
अपने पहले कार्यकाल की सफलतापूर्वक पूर्णता के बाद सन् २०१९ में वे पुनः आम चुनाव में उतरे। इस समय उनके पास पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री के रूप में उनके द्वारा आरम्भ किए गए कार्यों की एक लम्बी सूची थी। जिसे जनमानस ने अपने मतों के रूप में स्वीकृति दी। उनकी उपलब्धियों में एक बहुत ही प्रमुख उपलब्धि थी देश में आतंकवाद के अनियंत्रित हो चुके प्रहारों को रोकना। उनके पूरे कार्यकाल में देश के किसी भी हिस्से में एक भी आतंकी बम धमाका नहीं हुआ। उन्होंने आतंकवादियों को काश्मीर के आगे नहीं बढ़ने दिया। यह देशवासियों के लिए एक बहुत ही राहत की बात थी। अब लोग निश्चिन्त होकर बाजारों में जा सकते थे, अपने तीर्थस्थलों का भ्रमण कर सकते थे और निशंक होकर त्यौहार मना सकते थे। बम धमाकों को रोकने साथ – साथ पाक अधिकृत काश्मीर में आतंकवादियों के ठिकानों पर सुनियोजित ढंग से आक्रमण करके उन्हें नष्ट करने की सेना को उन्होंने अनुमति भी दे दी, जिससे भारतीय सेना का मनोबल बहुत बढ़ा और आतंकी घटनाओं में कमी आयी।
देश की छवि बदल रही थी, यह प्रत्येक देशवासी महसूस कर रहा था। साथ ही नरेन्द्र मोदी के कार्य देश के बाहर भी बोलने लगे थे, जो कि प्रवासी भारतीयों के लिए भी गर्व का विषय था। वे जहाँ भी जाते उनका भव्य स्वागत किया जाता। उनकी विदेश नीति पहले से बिलकुल अलग थी। उन्होंने अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ राजनयिक स्तर के साथ – साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी सम्बंध स्थापित किए। वे अन्य देशों को अपने देश के सशक्त पक्ष से अवगत कराते और उनके साथ समानता का व्यवहार करते। विश्व मंच पर वसुधैव कुटुम्बकम का सूत्र देने के साथ ही वे आतंकवाद के वैश्विक संकट की ओर भी सबका ध्यान आकर्षित कराते रहते और उसके विरुद्ध समस्त राष्ट्रों को संगठित होकर प्रतिकार करने का आह्वान करते। शीघ्र ही विश्व भर के सभी राष्ट्राध्यक्ष उन्हें बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखने लगे।
अपने पहले कार्यकाल के पहले दो – तीन वर्षों में ही नरेन्द्र मोदी की पहचान एक सशक्त वैश्विक नेता के रूप में होने लगी थी। उनकी नेतृत्व क्षमताओं से पूरा विश्व अवगत हो गया था, यह भारतवासियों के लिए एक सुखद बात थी। उन्हें एक सशक्त नेतृत्व प्राप्त हो गया था। यही कारण रहा कि दूसरी बार जब वे चुनाव में उतरे तो उन्हें पहली बार से भी अधिक जनसमर्थन मिला। नरेन्द्र मोदी का दूसरा कार्यकाल पहले से अधिक महत्वपूर्ण रहा। इस बार अनेक ऐतिहासिक निर्णय उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जिनमें प्रमुख रूप से धारा ३७०, सीएए, राम मंदिर का निर्माण और तीन तलाक थे। ये ऐसे निर्णय थे जो कि वर्षों से लंबित थे और जिनके समाधान के विषय में सोच पाना भी लोगों के लिए कठिन था। अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने इन सभी समस्याओं का स्थायी समाधान भी ढूँढ़ा और कई दशकों से चले आ रहे विवादों का अंत कर दिया।
इसी बीच सन २०२० के आरम्भ में इस सदी की सबसे बड़ी वैश्विक त्रासदी कोरोना के रूप में उत्पन्न हो गई। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने जिस तरह से कोरोना महामारी का सामना किया वह विश्व के लिए एक उदाहरण बन गया। भारत की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। भारत कोरोना के टीके का सबसे बड़ा उत्पादक बनाकर उभरा और पूरे विश्व की उसने सहायता की। जो भारत नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में विश्व में अपनी छवि बदल चुका था, वह दूसरे कार्यकाल में शक्ति का एक केंद्र बन गया। यहाँ तक कि जब रूस और उक्रेन के बीच युद्ध आरम्भ हुआ तो समझौते के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति ने नरेन्द्र मोदी से अपील की।
कुलमिलाकर जब हम विगत झाँकते हैं तो पाते हैं कि सन २०१४ के बाद भारत की स्थिति और छवि दोनों ही बदल गयी है। लोगों के अंदर भारतीय होने की गर्वानुभूति पहले से अधिक हो गयी है। देशों की अर्थव्यवस्थाएँ तो अनेक वैश्विक कारकों के अधीन होती हैं, अतः वे थोड़ी – बहुत ऊपर नीचे होती रहती हैं, किन्तु किसी देश की छवि उसके राष्ट्राध्यक्षों और विदेश नीति के ऊपर निर्भर करता है। शक्ति का होना जितना आवश्यक होता है, उतना ही आवश्यक उसका परिचय दूसरों से कराना भी होता है। आज विश्व में कहीं भी कोई भारतीय जाता है तो उसे यह सुनने को अवश्य मिलता है कि तुम्हारा नेता बहुत सशक्त है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसका मुखिया एक सक्षम व्यक्ति हो।
ऐसा नहीं है कि नरेन्द्र मोदी को यह सब अचानक स्वतः ही किसी दैवीय – कृपा से प्राप्त हो गया। इसके लिए उन्हें एक बहुत ही लंबा संघर्ष करना पड़ा। उनका आरंभिक जीवन बहुत ही अभावों में बीता था और उन्होंने वर्षों तक स्वयं को तपाकर इस योग्य बनाया। उनका जन्म १७ सितम्बर सन १९५० को गुजरात के मेहसाणा जिले के छोटे से कस्बे वडनगर में पिता दामोदरदास मूलचंद मोदी और माता हीराबेन मोदी के घर हुआ था। वे अपने अपने छह भाई – बहनों में तीसरे क्रम पर थे। उनके पिता जीविकोपार्जन हेतु रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाते थे और आर्थिक तंगी के कारण उनकी माता को भी प्रायः दूसरों के घरों में साफ – सफाई का कार्य करना पड़ता था।
नरेन्द्र मोदी की प्रारंभिक शिक्षा वडनगर के भागवताचार्य नारायाणाचार्य स्कूल में हुई। आरम्भ से ही वे अन्य बच्चों से बिलकुल अलग थे। उन्हें अभिनय और भाषण में बहुत रूचि थी, अतः स्कूल में नाटकों और वाद – विवाद की प्रतियोगिता में भाग लेते तथा प्रायः पुरस्कार जीतते। साथ ही वे राष्ट्रीय कैडेट कोर में भी सम्मिलित थे। राष्ट्रप्रेम उनके अंदर कूट – कूट कर भरा हुआ था। १९६५ में जब भारत पाकिस्तान का युद्ध हो रहा था तो वे स्टेशन पर आने – जाने वाले सैनिकों की सेवा करते। राष्ट्रप्रेम के साथ – साथ उनका झुकाव धर्म, आध्यात्म और आत्मचेतना से साक्षात्कार की ओर भी बचपन से ही रहा। यह झुकाव एक समय इतना प्रबल हो गया कि स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने बिना किसी को कुछ बताये ही घर छोड़ दिया और दो वर्षों तक देश के अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों का भ्रमण करते रहे। अनेक स्थलों के अतिरिक्त कुछ समय उन्होंने हिमालय पर्वत पर सन्यासियों के साथ तपस्या करते हुए भी व्यतीत किया। अपने उस भ्रमण के दौरान वे एक लम्बे समय के लिए पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण परमहंस आश्रम में रुके, जहाँ उन्हें स्वामी विवेकानंद के विचारों का गहनता से अध्ययन करने का अवसर मिला। स्वामी विवेकानंद के विचारों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्हें वे अपना आदर्श मानकर उनके द्वारा कही गयी बातों को अपने जीवन में उतारने लगे। आज भी अपने भाषणों में वे स्वामी विवेकानंद के विचारों को प्रायः उद्धृत करते रहते हैं।
दो वर्ष बाद जब भ्रमण करके वे वापस लौटे तो उनका विवाह जसोदाबेन के साथ कर दिया गया। किन्तु उनका मन पारिवारिक जीवन में नहीं रम सका। उनके मन में हर पल देश और समाज को लेकर द्वन्द चलता रहता था। वे अपना जीवन मात्र अपने पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति में न बिताकर, समाज और देशहित में लगाना चाहते थे। इस कार्य के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक मंच के रूप में मिल गया, जो कि उनका मार्गदर्शक बना और उन्होंने देश सेवा को धर्म के रूप में स्वीकार कर अपना जीवन जनहित के लिए समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्हें अपने पारिवारिक जीवन को त्यागना पड़ा।
यूँ तो संघ से वे एक बार बचपन में ही जुड़ गए थे, किन्तु 21 वर्ष की आयु में घर – बार छोड़कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। संघ में रहते हुए उन्हें नेतृत्व, प्रबंधन, संगठन आदि अपनी नैसर्गिक प्रतिभाओं को प्रयोग रूप में लाने और निखारने का अवसर मिला। वे आरम्भ से ही एक कुशल वक्ता और प्रेरक रहे। सेवाभाव उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। युद्ध, महामारी या कोई प्राकृतिक आपदा हो, हर कठिन समय में उन्होंने स्वयंसेवी के रूप में समाज की सेवा करना अपना कर्तव्य समझा। संघ के सेवा कार्यों में संलग्न रहने के साथ – साथ ही उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की औपचारिक शिक्षा भी पूरी की। संघ से पूर्णरूप से जुड़ने के लगभग पंद्रह वर्षों के बाद, पैंतीस वर्ष की आयु में उन्होंने देश के एक प्रमुख राजनीतिक दल “भारतीय जनता पार्टी” की सक्रिय सदस्यता ले ली।
नरेन्द्र मोदी निःसंदेह एक चमत्कारिक व्यक्तित्व से स्वामी हैं। जिन परिस्थियों में उनका बचपन बीता वहाँ से आगे बढ़कर देश का सबसे अधिक लोकप्रिय नेता और प्रधानमंत्री बनना तथा एक सशक्त वैश्विक नेता के रूप में स्थापित होना ही अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है। अपने जीवन में उन्होंने जो कुछ भी किया वह इतने सुगठित ढंग से और दूरदर्शिता के साथ किया कि उन्हें कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। अपने कार्य के प्रति समर्पण और नेतृत्व की नैसर्गिक प्रतिभा के कारण वे पहले संघ में और बाद में भारतीय जनता पार्टी में भी निरंतर ऊपर की ओर बढ़ते गए। इसी क्रम में, पचास वर्ष की आयु में वे पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने और फिर निरंतर नए कीर्तिमान गढ़ते चले गए। उन्हें उनके अच्छे कामों के कारण गुजरात की जनता ने लगातार चार बार (2001 से 2014 तक) गुजरात का मुख्यमन्त्री चुना।
ऐसा नहीं था कि उनकी राजनीतिक यात्रा बहुत सरल और निष्कंटक थी। उन्हें पहली बार गुजरात का मुख्यमंत्री बने मात्र पाँच महीने ही हुए थे कि उनका प्रदेश हिन्दू – मुसलमान के भयंकर दंगे की चपेट में आ गया, जिसकी विश्व स्तर पर चर्चा हुयी। जब आपदा आती है तो विरोधियों को प्रहार करने का अधिक अवसर मिल जाता है। अतः उस दंगे की आड़ में पार्टी के अंदर और बाहर के उनके विरोधी उनकी कीर्ति को धूमिल करके उन्हें अपदस्थ करने का कुचक्र पूरे जी – जान से रचने लगे। यहाँ तक कि उनके विरुद्ध एक संप्रदाय विशेष का विरोधी होने का अभियान तक चलाया जाने लगा। आलोचनाओं का दौर अपने चरम पर पहुँच गया। देश और विदेश के पत्र – पत्रिकाओं में उनके विरुद्ध प्रायोजित लेख प्रकाशित किए जाने लगे। किन्तु सदा की भाँति उन्होंने सबका उत्तर अपने कार्यों से दिया और जनमानस सदैव उनके साथ खड़ा रहा।
नरेन्द्र मोदी का जीवन उतार- चढ़ावों से भरा हुआ रहा। यदि हम उनके गुणों की बात करें तो एक महान नेता और युगद्रष्टा के समस्त गुण उनके अंदर विद्यमान हैं। समस्याओं का निदान ढूँढ़ने की उनकी शक्ति विलक्षण है और उनकी दृष्टि नवीनता और सकारात्मकता से भरपूर है। देशहित में कठोर निर्णय लेने में भी वे कभी हिचकिचाते नहीं हैं। किन्तु उसके पहले वे अपनी पूरी तैयारी भी करते हैं। जब उन्होंने काश्मीर से धारा ३७० हटाया तो उसके पहले पूरे विश्व के सशक्त देशों के साथ ऐसा सम्बंध स्थापित कर लिया था कि उस घटना को सबने भारत के आतंरिक विषय की तरह ही लिया और कोई भी देश उसके विरोध में नहीं खड़ा हुआ जो कि हमारे देश की एक बहुत बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि थी।
नरेन्द्र मोदी के कार्यों और उपलब्धियों की एक लम्बी सूची है जिसे किसी एक वक्तव्य या लेख में नहीं समेटा जा सकता। उनके जीवन पर दर्जनों पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। उनके कार्यों और प्रतिभा की सराहना हेतु उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से समानित किया गया, जिनमें कुछ प्रमुख सम्मान निम्न हैं –
१. अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद का आदेश- सऊदी अरब द्वारा गैर-मुसलमानों को सर्वोच्च सम्मान
२. गाजी का राज्य आदेश अमीर अमानुल्लाह खान- अफगानिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
३. फिलिस्तीन राज्य का ग्रैंड कॉलर- फिलिस्तीन का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
४. जायद का आदेश- संयुक्त अरब अमीरात का सर्वोच्च सम्मान
५. सेंट एंड्रयू का सम्मान- रूस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
६. इज़्ज़ुद्दीन के शासन का सम्मान- मालदीव का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
७. पुनर्जागरण के राजा हमद सम्मान- बहरीन का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
८. योग्यता की विरासत (लीजन ऑफ मेरिट) – संयुक्त राज्य अमेरिका का अत्यंत प्रतिष्ठित सम्मान
अंत में मैं नरेन्द्र मोदी के जीवन के उस पक्ष की भी थोड़ी बात करना चाहूँगा जिसकी आम लोगों के बीच बहुत कम चर्चा होती है। वे एक भावुक व्यक्ति हैं, यह तो सभी जानते हैं। किन्तु, वे एक रचनाकार भी हैं यह कम लोगों को ज्ञात होगा। उन्होंने आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों का सृजन भी किया है, जिसमें “सेतुबन्ध” (लक्ष्मण राव की जीवनी), “आँख आ धन्य छे” (गुजराती कविताएँ), कर्मयोग, आपातकाल में गुजरात (हिंदी), ज्योतिपुंज (आत्मकथन) इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
हम सब भारतवासियों के लिए यह एक गर्व का विषय है कि नरेन्द्र मोदी जैसे समर्थ, युग-प्रवर्तक और राष्ट्रचेतना के संवाहक व्यक्ति हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं। उनके नेतृत्व में हमारा देश निरंतर आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विकास और समृद्धि की ओर बढ़ता रहेगा।
प्रताप नारायण सिंह
भारत