परमवीर-कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव
हम कहते हैं आजादी हमें देश के नेताओं ने नागरिकों ने, क्रांतिकारियों ने, समाज सुधारकों ने, अहिंसा के पुजारियों ने, अपना लहू बहाकर, तन-मन -धन न्योछावर करके दिलवाई है। लेकिन कभी हमने सोचा कि यह आजादी सदा यूँ ही बनी रहे, अक्षुण्ण रहे और हमारे देश का तिरंगा नील गगन में यूं ही लहराता रहे, भला ऐसा कैसे संभव हो सका है ?
यह सिर्फ और सिर्फ देश के जांबाज महानायक,वीर, देश भक्त सैनिक, जो चाहे थल सेना के हो या जल सेना के हो अथवा वायुसेना के हो के कारण ही संभव है ।ऐसे वीर जो देश की सीमा पर माइनस जीरो से भी कई गुना कम डिग्री सेंटीग्रेड पर बर्फीली चोटियों पर , तपते हुए रेगिस्तान में,अपनी जान की परवाह न करते हुवे देश की सीमा पर पहरा देते रहते हैं ,
उनके ही बदौलत हम सब भारतवासी चैन की नींद अपने अपने घरों में सोते हैं।
जल सेना, थल सेना एवं वायु सेना, तीनों सेनाओं में युद्ध स्थल पर अपनी बहादुरी, शौर्य, दिखाने व अपनी जान की परवाह किए बगैर देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले वीरों को “परमवीर चक्र” से नवाजा जाता है। यह तीनों सेनाओं का सर्वोच्च पदक पुरस्कार है। अभी तक यह पुरस्कार अधिकतर स्थिति में वीर सैनिकों को मरणोपरांत ही मिला है।
इस चक्र को प्राप्त करने वाले तीन जवान ही अभी जीवित हैं।
मैं अपने आलेख में परमवीर चक्र विजेता “श्री कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव” का जिक्र करना चाहती हूँ । एक ऐसा योद्धा जो जिसने सबसे कम उम्र में पदक परमवीर चक्र को प्राप्त किया है, और सबसे बड़ी बात यह है की वे पदक प्राप्त करने वाले “जीवित योद्धा” हैं।
कैप्टन योगेंद्र सिंह का जन्म जन्म एक फौजी और किसान परिवार में पिता रामकरण सिंह और माता का नाम संतरा देवी के घर 10 मई 1980 उत्तर प्रदेश बुलंदशहर के औरंगाबाद, अहीर गांव में हुआ
आपके पिता श्री कारण सिंह स्वयं एक सैनिक रहे।उन्होंने कुमाऊं रेजिमेंट से 1965 व 19 71 के युद्ध में भाग लिया था। उनके भाई स्वयं सेना में रहे हैं।
बचपन से ही भाई व पिता से युद्ध के रोमांचक किस्से सुनते हुए वे बड़े हुए, युद्ध की बातों ने उनके जीवन पर गहरा असर किया और मन ही मन उन्होंने सेना में भर्ती होने की ठान ली थी ।
विधिवत शिक्षा कक्षा 12 तक उन्होंने प्राप्त की।
उनके पिता का स्वास्थ खराब रहने लगा और बड़े भाई पहले ही फौज में जा चुके थे। भाई व अन्य रिश्तेदारों के कहने पर उन्होंने भी फौज के लिए ट्राई किया दरअसल उनके भी ह्रदय की इच्छा फौज में ही मैं भर्ती होने की थी। प्रथम बार में ही उनका सिलेक्शन भी हो गया।
इस वक्त योगेंद्र सिंह जी की उम्र मात्र 16 वर्ष 5 माह थी।
उनकी प्रथम ट्रेनिंग मेरठ में बहुत ही कड़े अनुशासन,कठिन परिश्रम से हुई। 1 साल की कठिन ट्रेनिंग के पश्चात योगेंद्र सिंह जी को 18 ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भेजा गया। उन्हें 18 ग्रेनेडियर्स की पोस्ट मिली जो “कमांडो प्लाटून घातक” का हिस्सा था।
यह यूनिट कश्मीर वैली के अंदर ही थी यहां पर उन्हें आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन करना, आतंकवादियों को घेरना, उन पर विजय हासिल करना इत्यादि सिखाया गया।
इसके पश्चात उन्हें 2 माह की छुट्टी घर आने की मिली, इन्हीं छुट्टियों में उनका विवाह कर दिया गया,
उनकी जीवन संगिनी का नाम रीना देवी है। ,वह एक समझदार धीरजवान महिला हैं । विवाह के मात्र 15 दिन बाद ही उन्होंने अपने पति को देश सेवा के लिए जाने दिया था।
20 दिन के बाद पुनः उन्होंने अपनी ड्यूटी जॉइन कर ली। उन्होंने अपनी पत्नी को यह जता दिया कि देश की सेवा ही उनकी प्रथम पूजा है, देश ही उनका पहला प्यार है।
3 मई 1999 को कारगिल युद्ध शुरू हो चुका था
उस वक्त की तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने मैत्री स्वरूप एक बस यात्रा हिंदुस्तान से पाकिस्तान तक जारी की थी ताकि दोनों देशो में मित्रता कायम हो सके परंतु ऐसा नहीं हो पाया।
प्रायः कड़ाके की सर्दीयों में दोनों सेनाएं अपने-अपने जवानों को अपनी सीमा पोस्टों से जो कि जो कई गुना माइनस डिग्री सेंटीग्रेड पर होती थी, उन्हें बुला लेती थी मगर ऐसे ही समय में धोखा देते हुए पाकिस्तान ने भारत की कई सीमा पोस्टों पर अपना कब्जा जमा लिया। ऐसे कठिन समय में मोर्चा संभालने के लिए 18 ग्रेनेडियर्स के सैनिकों को द्रास सेक्टर के तोलोलिंग चोटी पर चल रही लड़ाई में शामिल होने के लिए भेजा गया ।
कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव एवं 15 जवान अपने अस्सलाह इम्यूनेशन एवं राशन लेकर सुबह सुबह 5:30 बजे चलकर रात को 2:30 बजे ऊपर पहुंच कर राशन व हथियार पहुंचाते, फिर 2 घंटे में वापस नीचे आते ।
22 दिन तक लगातार दुश्मनों के फायर ,मोटर फायर, बंदूकों के फायर से बचते हुए अपने साथियों को एम्युनेशन और राशन पहुंचाते रहे, ताकि उनके साथी जो ऊपर अपने प्राणों की बाजी लगा रहे थे उन्हें कोई कमी ना आ सके। इस लगातार 22 दिन की लगातार कठिन परिश्रम में उन्हें सेना में खास स्थान मिल गया था, एक पहचान मिल गई थी।सभी सोचते थे यह जवान फिजिकली मेंटली बहुत स्ट्रॉन्ग है, लगातार 22 दिन तक युद्ध के पश्चात तोलोलिंग चोटी पर 12 जून 1999 को विजय हासिल कर ली गई,
इसके पश्चात योगेंद्र सिंह जी को द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची चौकी टाइगर हिल पर विजय प्राप्त करने का टास्क मिला,
यह चोटी की ऊंचाई 16500 फिट के करीब है। इस वक्त योगेंद्र सिंह की उम्र मात्र 19 साल और ढाई साल की सर्विस थी । उन्हें कोई युद्ध का विशेष अनुभव ही नहीं था मगर एक देश प्रेम की भावना एक साहस और जुनून उनके भीतर भरा हुआ था । बस इसी भावना ने उनमें असीम साहस भर दिया।
2 जुलाई को योगेंद्र सिंह और उनके साथियों ने टाइगर हिल पर चढ़ाई शुरू की। रात दिन चढ़ते हुए 90 डिग्री की सीधी पहाड़ी पर रस्सी के सहारे अभी वे चढ़ ही रहे थे कि दुश्मन सेना ने उन पर बंदूकों का फायर कर दिया, जबर्दस्त बमबारी भी जारी कर दी । चारों तरफ मौत का ही आलम था।कई सैनिक घायल या मारे जा चुके थे।
सबसे बड़ी बात दुश्मन ऊपर की ओर तैनात था मगर फिर भी हिम्मत न हारते हुए ,पत्थरों के पिछे छुपते छुपाते ऊपर की ओर चोटी पर चढ़ते रहे । योगेंद्र सिंह की टीम का एम्युनिशन समाप्ति की और बढ़ रहा था ,उन्होंने प्लानिंग कि की गोली तब ही चलाएंगे जब दुश्मन बिल्कुल करीब आ जायेगा।
चोटी पर 15 में से सिर्फ 7 जवान ही ऊपर चढ़ पाए थे।
ऊपर चढ़कर आमने सामने
सातों सैनिको ने दुश्मन पर जबरदस्त फायरिंग की। कई दुश्मनों को मार गिराया मगर उनमें से एक पाकिस्तानी सैनिक ने जाकर अपने सैनिकों को इत्तला कर दी और तभी दुश्मन सेना के कई पाकिस्तानी सैनिक आ पहुंचे। उन्होंने चारों तरफ से घेर लिया, योगेंद्र सिंह समेत सात और साथी सैनिक जमीन पर गिर चुके थे।
दुश्मन सेना का कमांडर फायर करता हुआ सबको चेक कर रहा था कि कोई बच तो नहीं गया। योगेंद्र सिंह यादव को भी पैरों में गोलियां मारी,भुजा,में कंधे में गोली मारी, मगर वे चुपचाप उस दर्द को सहते हुए लेटे रहे। तभी उनके कानों में आवाज पड़ी कि नीचे जो हिंदुस्तानी एमएमजी पोस्ट है उसे बर्बाद कर दो। यह सुनने के पश्चात योगेंद्र सिंह यादव ने प्रभु से प्रार्थना की, कि हे प्रभु मुझे जिंदा रखना। बस मेरे सर में और सीने में गोली ना लगे। तभी एक सैनिक ने बंदूक तानी और योगेंद्र सिंह के सीने पर गोली चला दी । मगर कहते हे जाको राखे साइयां मार सके ना कोय,उनके पॉकेट में 5- 5 के सिक्के रखे हुए थे। गोली सिक्कों से टकराकर वापस हो गई। शायद यही उनके जिंदा रहने की चाहत का परिणाम था, उन सैनिकों ने जब इत्मीनान कर लिया कि यह सब मर चुके हैं तब वे जाने लगे, उसी वक्त योगेंद्र सिंह यादव ने एक ग्रेनेड दुश्मन पर फेंका जो कि आखिरी हथगोला था। दुश्मन कमांडर का सर उड़ गया।दुश्मन को लगा की भारतीय सैनिक की कोई टुकड़ी ऊपर आ पहुंची है।
इधर घायल होते हुए भी योगेंद्र जी ने बाए हाथ से ही गन उठाकर दाए -बाए लुढ़क लुढ़ककर फायर करना शुरू कर दिए।
दुश्मन सेना भाग खड़ी हुई और फिर अलग-अलग स्थानों पर लुढ़क कर उन्होंने फायरिंग की जिससे पाकिस्तानी सैनिकों ने समझा की हिंदुस्तान की कोई बड़ी टुकड़ी सैनिकों की, ऊपर आ चुकी है, और वे यह समझ कर वहां से भाग खड़े हुए। यादव जी ने अपने साथियों के और पास जाकर देख पर कोई भी उनका साथी जीवित नहीं बचा था । वह बहुत देर तक वहां रोते रहे। उनका एक हाथ पूरी तरह टूट चुका था ।उन्होंने उसे तोड़ने की कोशिश की क्योंकि वह काफी लटक रहा था, लेकिन तोड़ ना सके। फिर वे लुढ़कते हुए पहाड़ी के पास आए। तब उन्होंने सोचा कि वह किधर जाए?? एक अदृश्य शक्ति ने कहा कि इस नाले की तरफ लुढ़क जाओ और वे उस अदृश्य आदेश पर उधर ही लुढ़कते चले गये, उन्हे दिखना बिल्कुल बंद हो चुका था । 72 घंटे से आधा बिस्कुट का पैकेट ही उन्होंने खाया था,
तभी उन्हें भारतीय सैनिकों ने देख लिया। उन्हे कंधो पर उठाकर कमांडर कुशाल सिंह ठाकुर के पास ले जाया गया।
जब कमांडर ने उनसे पूछा ऊपर रिक्वायरमेंट क्या है ? तब उन्होंने कहा … सिर्फ इम्युनेशन और सैनिक !!
और कुछ नही …… कमांडर ने पूछा ।
नही सर, भुख लगती ही नहीं। सर सात दिनों में सिर्फ आधा पैकेट बिस्किट खाया हूं,।
उन्हें फर्स्ट एड दी गई । तीन- चार स्टोव जलाकर हीट दी गई ।
तब उन्होंने ऊपर की पूरी जानकारी दी। उसी जानकारी के बदौलत उस पोस्ट “टाइगर हिल” को विजयी किया गया ।जब उनके शरीर से गोलियां निकाली गई तो वे गिनती में 17 गोलियां थीं । लगभग 2 साल तक उनका इलाज चला और उनकी इसी बहादुरी पर अपनी जान की परवाह न करते हुए उनके द्वारा
उपलब्ध करवाई महतवपूर्ण जानकारी पर “टाइगर हिल” पर विजय पाया गया।
सरकार के द्वारा उन्हें सेना का सर्वोच्च पदक “परमवीर चक्र” ,राष्ट्रपति के आर नारायणन ने प्रदान किया।
हम उनके माता को नमन करते हैं जिन्होंने ऐसे वीर सपूत को जन्म दिया और हम सैल्यूट करते हैं कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को जिन्होंने इतनी कम उम्र में मात्र 19 वर्ष की आयु में साहस और वीरता का परचम लहरा कर देश भक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण वा देश प्रेम की प्रेरणा दी ।
वे सूबेदार,मेजर सूबेदार ऑनरेरी कैप्टन योगेंद्र सिंह सूबेदार के पद से रिटायर हुए हैं।
उन्हे “कारगिल का टाइगर” भी कहा जाता है।
वे सेवा निवृत्त होकर सामाजिक उत्थान एवं देश हित के कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हैं। युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं।
कुंती हरिराम
झांसी,भारत