भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- डॉ राम मनोहर लोहिया

डॉ राम मनोहर लोहिया 

भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए अगणित स्वतंत्रता सेनानियों ने असंख्य बलिदान दिए। उन्ही सपूतों में से एक थे डॉ.राम मनोहर लोहिया ,जिन्होंने भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।
वे बेहद साहसी, प्रगतिशील और आशावादी इंसान थे। वर्तमान समय में भी उनकी अनमोल विचार धारा आम जनमानस के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।वे क्रांतिकारी लेखक, विचारक एवं समाजवादी राजनेता थे।वे गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी थे और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी प्रमुख भूमिका रही।

डॉ.राम मनोहर लोहिया जी का जन्म 23 मार्च 1910 को अकबरपुर,उत्तर प्रदेश श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में हुआ था और सीता की मिथिला में उनका ननिहाल था। उनकी माता का नाम चंदा देवी था जो एक शिक्षिका थीं।उनके पिता स्वर्गीय हीरालाल जी पेशे से अध्यापक तथा सच्चे राष्ट्रभक्त, गांधीवादी एवं स्वतंत्रता सेनानी भी थे। ढाई वर्ष की कम उम्र में मां का निधन हो जाने से उनका पालन पोषण उनकी दादी ने किया।

प्राथमिक शिक्षा के बाद महाविद्यालय शिक्षा बनारस और कोलकाता में प्राप्त कर वे  उच्च अध्ययन के लिए लंदन गए।किंतु उन्हें यह महसूस हुआ कि जिस देश ने अपने देश को गुलाम बनाया है वहां शिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए और  विचार कर वे जर्मनी चले गए। वहीं उन्होंने अपना शोध कार्य किया । उनका शोध विषय था “नमक सत्याग्रह” और वही उनकी थीसिस थी जिस पर उन्हें पीएचडी मिली ।यह दुनिया का सबसे छोटा शोध प्रबंध है ।मात्र 28 पेज का रिसर्च पेपर। *सुआखर* दुनिया के एक महान विचारक थे।उन्होंने महात्मा गांधी के ग्रामीण उद्योग की कल्पना को लेकर विश्व प्रसिद्ध “स्माल एंड ब्यूटीफुल” पुस्तक लिखी थी, वही लोहिया के शोध प्रबंध के जांचकर्ता थे।

जब वे जर्मनी में थे तब हिटलर की तानाशाही की शुरुआत हो चुकी थी। लोहिया ने उसकी तानाशाही का भरपूर विरोध किया और उसकी आमसभा में सीटियां बजाईं। हिटलर ने उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई जिससे उन्हें बर्लिन छोड़ना पड़ा।
भारत आने के बाद उन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की तथा अगस्त क्रांति के समय महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के बाद वे भूमिगत हो गए और उन्होंने भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व किया । जयप्रकाश जी जेल छोड़कर भागे थे । उनकी और जयप्रकाश जी की जोड़ी लोगों को लगातार स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने को प्रेरित कर रही थी। ऊषा पारेख के साथ उन्होंने आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की और गोपनीय ढंग से प्रसारण किया । लगभग 1 वर्ष से अधिक उन्होंने आजाद हिंद रेडियो के माध्यम से लोगों को आजादी की प्रेरणा दी। भूमिगत रहते हुए उन्होंने एक पत्रिका निकालनी शुरू की  । “जंग शुरु जी” आगे बढ़ो।


1943 में जब मुखबिर की सूचना पर वे गिरफ्तार हुए तो ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें लाहौर जेल में बंद किया ।लाहौर के किले में जेल बनाकर अंग्रेज पुलिस ने उन्हें भारी यातना दी ।

यह जानने के लिए कि रेडियो प्रसारण में कहां रहे और उनके साथी कौन थे ।उन्हें बर्फ की सिल्लियों पर सुलाया गया और रात भर सोने नहीं दिया। अंग्रेज पुलिस को उम्मीद थी कि वह घबराकर टूट जाएंगे किंतु वे तो सचमुच के लोहिया थे। लगभग 1 वर्ष के बाद महात्मा गांधी के कहने पर उन्हें लाहौर से आगरा जेल भेज दिया गया। जब वे आगरा जेल में थे तभी उनके पिता जी जेल में  उनसे मिलने आगरा जेल आ रहे थे कि रास्ते में उनका निधन हो गया ।लोहिया को सूचना मिली। लोगों ने कहा कि जेल में शर्तनामा लिखकर पिता के अंतिम कार्य हेतु बाहर आना चाहिए ।किंतु लोहिया ने साम्राज्यवादी और देश को गुलाम बनाने वाली सरकार से कोई रियायत नहीं लूंगा , कहकर इंकार कर दिया और जेल में ही रहे।
आजादी के बाद भी वे सत्रह अट्ठारह बार आजाद सरकार में जेलों में रहे।1947 में जेल से छूटने के बाद जब वह बाहर निकले तो उनका शरीर बहुत क्षति ग्रस्त था।उन्होंने अपने दोस्त गोवा के मैंनिंज के घर जाकर विश्राम करने का निर्णय लिया और उनके साथ गोवा में उनके गांव गये। जब लोगों को पता चला तो वे जमा हुए और उन्हें गोवा के पुर्तगाली शासकों की जुल्म गाथा सुनाई। यद्यपि भारत आजाद हो गया था किंतु गोवा आजाद नहीं हुआ था। लोगों के आग्रह पर पणजी में उन्होंने सभा करने की सूचना दी और पुर्तगाली सरकार के प्रतिबंध के बावजूद भी पणजी पहुंच गए ।वे मंच पर भाषण की शुरुआत कर ही रहे थे कि तभी पुर्तगाली अफसर ने उन्हें रोकने के लिए उन पर रिवाल्वर तानी ।लोहिया ने उसका हाथ नीचे करके कहा ,”ज्यादा ऊंचे मत उड़ो, धैर्य रखो”। इस घटना ने गोवा में आजादी की आग को फैला दिया ।सभा के बाद उन्हें गिरफ्तार करके गोवा के किले के अंदर के भाग में बंद कर दिया। वे गोवा आंदोलन के सूत्रधार भी थे और गोवा के लोगों ने उन्हें वही सम्मान भी दिया। सभा वाले स्थान का नाम लोहिया चौक रखा गयाऔर गोवा विधानसभा के प्रांगण में एकमात्र लोहिया की प्रतिमा है।
वे सतत सत्याग्रही थे और जहां कहीं भी अन्याय देखते थे, उसकी खिलाफत करते थे।
एक बार अमेरिका के दौरे पर उन्होंने एक होटल में बोर्ड लगा देखा कि भारतीय काले लोग उसमें प्रवेश नहीं कर सकते।उन्होंने होटल का कानून तोड़कर गिरफ्तारी दी और कई घंटे तक बंद रहे।कई घंटे बंद बाद अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से उनके प्रवक्ता ने सामूहिक रुप से उनसे माफी मांगी ।लोहिया ने इस पर कहा माफी मुझसे नहीं स्टैच्यू आफ लिबर्टी से मांगनी चाहिए जिसका अमेरिका ने अपमान किया है ।आजादी की प्रतिमा लगाकर उसको रोकना और दंड देना उसका प्रमाण है।
उन्होंने नेपाल की राजशाही के खिलाफ लोकतंत्र की स्थापना के लिए आंदोलन में भाग लिया था।तब एक बार जब वे फरार थे, उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उन पर  गोलियों दागी गई और वे बाल-बाल बचे।
एक बार अपने मित्र के पास रायपुर गए और जंगल देखने की इच्छा प्रकट की। मित्र के साथ वे पास के अभयारण्य गए। उनकी सोच थी कि शेर अहिंसक होता है।वह शिकारी और धोखे पर हमला करता है ।तभी उन्हें जंगल में एक शेर दिखा जो कि एक चट्टान पर बैठा था। लोहिया गाड़ी से उतर कर उसके पास जाकर खड़े रहे।उनका साथी परेशान था। वह गोली भी नहीं चला सकता था कि कहीं लोहिया को न लग जाए।दो चार मिनट शेर के पास खड़े रहने के बाद लोहिया वापस आ गए और गोली चलाने की जरूरत नहीं पड़ी।
लोहिया ने समुचित दुनिया में बराबरी का सपना देखा और बराबर उसी का संदेश करते रहे ।सप्त क्रांति के रूप में उन्होंने दुनिया को आवश्यक 7 बातों का संदेश दिया। आर्थिक विषमता, सामाजिक विषमता, कार्य, रंग भेद, लैंगिक आदि सभी प्रकार की विषमता, हथियारों और युद्ध की समाप्ति और बालिग मताधिकारों से निर्मित संसद की स्थापना।ये सात सपने उन्होंने दुनिया को बताया।

उनका सिद्धांत था जो कहो वही करो,कथनी और करनी में भेद नहीं ।वे कहते थे वाणी को आजाद नहीं होना चाहिए और कर्म पर नियंत्रण नहीं,जबकि आजकल वाणी को आजादी और कर्म पर नियंत्रण हो गया है। वे समता और समानता के सिद्धांतवाहक थे। उनका कहना था *जिंदा कौमें बदलाव के लिए 5 साल का इंतजार नहीं करतीं। जाति अवसरों को बाधित करती है और अवसर न मिले तो हमारी योग्यता भी कुंठित हो जाती है यही कुंठित अवस्था हमारे आने वाले अवसरों को बाधित कर देती है ।लोहिया ने कभी संसद का बहिष्कार नहीं किया ।देश में लोकतंत्र तो खत्म हो गया ,वोट तंत्र बचा है।समाजवादियों ने संघर्ष से किनारा कर लिया है। क्षमता सिद्धांत के वे समर्थक थे।उन्होंने समाजवाद की साख कभी नहीं गिराई।गांधी जी ने उनके बारे में कहा था जब तक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जेल में है तब तक मैं खामोश नहीं बैठ सकता उनसे ज्यादा बहादुर और सरल आदमी मुझे मालूम नहीं ।उन्होंने हिंसा का प्रचार नहीं किया ,जो कुछ किया है उससे उनका सम्मान बढ़ता है
उनकी लिखित पुस्तकें  1.जंगजू आगे बढ़ो 2.क्रांति की तैयारी करो 3. आजाद राज्य कैसे बने?

उन्होंने साठ के दशक में “अंग्रेजी हटाओ” आंदोलन चलाया। उनका कहना था “अंग्रेजी अल्पसंख्यक शासन और शोषण का एक साधन है जिसका प्रयोग 40 या 50 लाख अल्पसंख्यक रूलिंग क्लास इंडियंस 40 करोड़ से अधिक लोगों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए प्रयोग कर रहे हैं।
12 अक्टूबर 1967 को नई दिल्ली में उनका निधन हुआ। सन 1977 के एक डाक टिकट पर उनका चित्र लगाकर उन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया गया।
*हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है।
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा*
डॉक्टर लोहिया के बारे में देश के प्रमुख व्यक्तियों के विचार__ 
जयप्रकाश नारायण-
राम मनोहर लोहिया का सारा जीवन आपके और दुनिया के सामने एक खुली हुई किताब है ऐसा त्यागी और बलिदानी जीवन किसी किसी को ही मयस्सर होता है।

श्रीमती इंदिरा गांधी -डॉक्टर लोहिया दलित के लिए, शोषित के लिए ,अपने प्रिय उद्देश्यों के लिए ,उनका सारा जीवन संघर्ष में था ।वे देश में समाजवादी आंदोलन के संस्थापकों में से थे। उनके बिना संसद जैसी थी अब वैसी नहीं रहेगी।

अटल बिहारी बाजपेयी-डॉक्टर लोहिया एक महान देशभक्त, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रगण्य नेता, मौलिक विचारक और क्रांति दर्शी व्यक्ति थे उनका व्यक्तित्व अनूठा, विविधताओं से परिपूर्ण और बहुमुखी प्रतिभाओं से संपन्न था।

मधु लिमए -डॉक्टर लोहिया के जाने से जो रिक्तता आई ,वह तो पूरी नहीं होगी लेकिन उन्होंने अपने त्याग में जीवन का ऐसा आदर्श एक ऐसी नजीर हमारे सामने प्रस्तुत की है कि उससे हमको हमेशा प्रेरणा मिलती रहेगी।

गायत्री ठाकुर ‘सक्षम’ 
मध्य प्रदेश ,भारत

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