एक अद्वितीय योद्धा-सैम होर्मूसजी फ़्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ
हम सब भारतीय सेना की वीरता और पराक्रम की हमेशा प्रशंसा करते हैं जब भी सेना कोई ऐसा काम करती है जिससे हमारे देश का सामर्थ्य दिखता हैं तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। कुछ ऐसे ही थे सैम मानेकशॉ जिन्हें देश का पहला फील्ड मार्शल बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उन्होंने एक नहीं बल्कि अपने कार्यकाल के दौरान 5 युद्धों में भाग लिया है, और हर युद्ध में इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है, फिर चाहे वह द्वितीय विश्व युद्ध हो या भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध जिसमें बांग्लादेश बना था।
भारत के पूर्व सेना अध्यक्ष सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ जिनके बदौलत आज हमारा देश कई ऐतिहासिक युद्ध को जीत चुका है।यह वीर पुरुष कई सारी ऐतिहासिक युद्ध के चश्मदीद गवाह रहे हैं। सैम मानेकशॉ का जन्म अमृतसर में 3 अप्रैल 1914 को एक पारसी परिवार मे हुआ । आपके पिता होर्मसजी मानेकशॉ पेशे से डाॅक्टर थे और माता हीराबाई मानेकशॉ सफल कर्मठ गृहणी थी ।सैम मानेकशॉ छ भाई बहन थे।
सैम मानेकशॉ की शिक्षा
सैम मानेकशॉ की प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में ही हुई है। इसके बाद हायर एजुकेशन के लिए शेरवुड कॉलेज नैनीताल में एडमिशन लिया, लेकिन 1932 में इन्होंने यह कॉलेज छोड़ दिया। इस वक्त उनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी इस समय सैम मानेकशॉ ने जूनियर कैंब्रिज सर्टिफिकेट हासिल कर लिया था, इस परीक्षा को पास करने का मतलब यह होता था कि उसकी इंग्लिश काफी अच्छी है और वह बाहर जाकर पढ़ाई कर सकता है।
चूंकि सैम के पिता मेडिकल ऑफिसर थे, इसलिए उनके मन में भी बचपन से मेडिकल ऑफिसर बनने का सपना पल रहा था, इसलिए उन्होंने अपने पिता से कहा की अब सर्टिफिकेट भी है इसलिए वह लंदन जाकर मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते हैं लेकिन उनके पिता ने उनकी कम उम्र का हवाला देकर ऐसा करने से मना कर दिया और उनका एडमिशन अमृतसर के हिंदू सभा कॉलेज में करवा दिया । इस बात से वे पिता से नाराज हो गए और एक तरह से उनके फैसले के खिलाफ विद्रोही तेवर अपनाते हुए आर्मी भर्ती की परीक्षा देकर सेना में शामिल हो गए, और बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए। वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे।वहां से वे भारतीय सेना में भर्ती हुए। इसी दौरान इंडियन मिलिट्री कॉलेज के मीटिंग में यह तय किया कि इंडियन मिलिट्री एकेडमी की शुरुआत करनी चाहिए, ताकि भारतीयों को सेना के उच्च पदों के लिए तैयार किया जा सके। इस एकेडमी में प्रवेश की उम्र 18 से 20 वर्ष की रखी गई और चयन की प्रक्रिया पीएससी परीक्षा थी । सैम मानेकशॉ ने यह परीक्षा को छठवीं रैंक से उत्तीर्ण किया । इस तरह इनका देश को मिलिट्री सेवा देने का आगाज हुआ।
सिल्लो बोडे से मुलाक़ात
सैम मानेकशॉ 1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए, यहाँ सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को विवाह में बदल गई। उन्हें दो बेटियां शैरी और मैरी हुईं। सैम के बारे में कहा जाता है कि वो जितने सख्त जनरल थे उतने ही हंसमुख और मजाकिया इंसान भी थे। इस बारे में उनकी बेटी शैरी अक्सर बतातीं हैं कि डैड घर में होते थे तो हम लोग यह सोचकर परेशान रहते थे कि वो अब क्या करेंगे।घर मे होने पर उन्हें हर समय मजाक सूझता रहता था। उनकी बेटी शैरी बताती हैं कि वो जब घर में घुसते तो वे जोर से चिल्लाती “डैड इनफ”। एक बार उनकी बेटी ने बीबीसी को बताया- “लोग सोचते हैं कि सैम बहुत बड़े जनरल हैं, उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी हैं, उनकी बड़ी-बड़ी मूंछें हैं तो घर में भी उतना ही रौब जमाते होंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था।वह बहुत खिलंदड़ थे, और बच्चे की तरह शरारत करते थे”।
द्वितीय विश्व युद्ध में सैम मानेकशॉ का योगदान
1939 में इनकी बटालियन को पगोड़ा हिल पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई, जो कि काफी कठिन था। इसके बावजूद भी इन्होंने जापान की आर्मी का काफी कड़ा प्रतिकार किया और इस मिशन में इनकी टीम के करीब आधे सैनिक या तो जख्मी हो चुके थे या शहीद हो चुके थे, उसके बावजूद भी उन्होंने उस पहाड़ी पर कब्जा कर ही लिया। इस समय एक मशीनगन की गोली इनके शरीर को छलनी कर देती है। तभी उनकी मेडिकल टीम के सदस्य शेर सिंह उन्हें एक ऑस्ट्रेलियाई सर्जन के पास लेकर जाते हैं। पहली नजर में तो सर्जन साफ-साफ मना कर देते हैं कि उनकी बचने की संभावना लगभग ना के बराबर है तभी सैम मानेकशॉ होश में आते हैं तो डॉक्टर पूछते हैं कि तुम्हारे साथ क्या हुआ है तो वह बड़े मजाकिया अंदाज में कहते हैं कि ऐसा लग रहा है किसी गधे ने मुझे एक लात मार दिया है। उनके सेंस आफ ह्यूमर से डॉक्टर भी प्रभावित हो जाते हैं और उसके बाद उनका ऑपरेशन करते हैं जिसमें किडनी, लीवर और फेफड़े से 7 गोलियां निकालते हैं।
1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर कब्जाने की कोशिश की
सान 1947 में आजादी का जश्न एक तरफ था दूसरी तरफ था विभाजन का दर्द। इसी बीच नए नवेले देश पाकिस्तान ने भारत को एक और दर्द देने की सोची। वो बहुत गुप्त रूप से कश्मीर को हथियाना चाहता था। उस वक़्त कश्मीर के राजा हरि सिंह थे। जब तक उन्हें इस बात की भनक लगी तब तक पाकिस्तान अपनी आधी चाल चल चुका था। तब महाराजा हरिसिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई, जिसके बाद सैम मानेकशॉ, वी. पी. मेनन जैसे कई बड़े लोग एक्शन में आये। हरि सिंह, वी. पी. मेनन के साथ दिल्ली आ गए, इसी दौरान सैम मानेकशॉ ने कश्मीर के पूरे इलाके का हवाई निरीक्षण किया, जिसके बाद यह तय हुआ कि जितना जल्दी हो सके भारतीय सेना को मैदान पर उतार दे, नही तो पाकिस्तानी सेना श्रीनगर पर कब्जा कर लेगी। इसके बाद सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में सेना उतारी गई और श्रीनगर और फिर कश्मीर को अपने हाथों में ले लिया।
भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में अहम भूमिका
भारत का वह बहादुर सपूत, जिसने पाकिस्तान से दो टूक कहा- ‘समर्पण करो या हम तुम्हारी हस्ती मिटा देंगे’
8 जुलाई 1969 को इन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया गया था। 1971 में होने वाला यह युद्ध असल में पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच का युद्ध था। पश्चिमी पाकिस्तान स्वायत्तता की मांग कर रहा था जो पूर्वी पाकिस्तान के हुक्मरानों को पसंद नहीं आ रहा था , इसलिए उन्होंने वहां की स्थिति को कंट्रोल करने के लिए सेना उतार दी। इसके बाद पाकिस्तानी सेना का पूर्वी पाकिस्तान पर अत्याचार शुरू हुआ और बड़ी संख्या मे पूर्वी पाकिस्तानी मारे गए । स्थिति बहुत जटिल होती जा रही थी पूर्वी पाकिस्तान भारत का अभिन्न अंग था अत: भारत ने निर्णय लिया कि वह इस युद्ध में भाग लेगा। उस वक्त की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह तुरंत ही पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दें लेकिन सैम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया क्योंकि भारतीय सेना उस समय हमले के लिए तैयार नहीं थी। उन्हें नाराज देखकर सैम ने इस्तीफे की पेशकश कर दी और कहा, ‘मैडम प्राइम मिनिस्टर आप मुंह खोले इससे पहले मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आप मेरा इस्तीफा मानसिक, या शारीरिक या फिर स्वास्थ्य, किस आधार पर स्वीकार करेंगी?’ हालांकि इंदिरा ने इस्तीफे की पेशकश ठुकरा दी । तब मानेकशॉ ने पूछा कि आप युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं ? उन्होंने कहा, “हां। ” इस पर मानेकशॉ ने कहा, मुझे छह महीने का समय दीजिए। मैं गारंटी देता हूं कि जीत आपकी होगी। यदि आप सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दे तो मैं आपसे वादा करता हूं कि हमारी जीत सुनिश्चित है। बस आप मुझे मेरे हिसाब से काम करने की अनुमति दे दें। इंदिरा गांधी उनकी बात मान गई और फिर जब उन्होंने इंदिरा गांधी से कुछ दिनों बाद कहा कि हां अब इंडियन आर्मी युद्ध में उतरने के लिए तैयार है तो उसके बाद जो हुआ वह इतिहास में दर्ज है। 15 दिनों में 90 हज़ार पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। 1971 की जंग में पाकिस्तान को हराने और नया मुल्क बांग्लादेश बनाने का पूरा श्रेय सिर्फ एक ही शख्स को जाता है वो हैं फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ। ये भारतीय सेना के इस लीडर की ही ताकत थी, जिसने जंग खत्म होने के बाद पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों को बंदी बना लिया।
फील्ड मार्शल के रूप में
युद्ध खत्म होने के बाद इंदिरा गांधी ने तय किया कि इन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बना दिया जाए, लेकिन एयर फोर्स और नेवी को मंजूर नहीं होने से यह संभव नहीं हो सका। इनकी रिटायरमेंट जून 1972 में थी, जिसे 6 महीने बढ़ा दिया गया और इन्हें फील्ड मार्शल की रैंक में प्रमोट कर दिया गया इसी के साथ सैम मानेकशॉ देश के पहले फील्ड मार्शल बने। फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने अपने चालीस वर्ष के कार्यकाल के दौरान कई युद्ध लड़े जिसमें उन्होंने 1939 मे द्वितीय विश्वयुद्ध, 1962 में भारत-चीन युद्ध , 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया। भारत-चीन युद्ध और उसके बाद की सारे युद्ध सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में लड़े गए थे।1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वेलिंगटन में बस गए थे। वृद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बीमारी हो गई थी और वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में कोमा में चले गए थे। उनकी मृत्यु वेलिंगटन (तमिलनाडु) के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में 27 जून 2008 में हुई।
सैम मानेकशॉ को मिले अवॉर्ड एवं उपलब्धियां
पद्म भूषण – 1968
पद्म विभूषण- 1972
जनरल सर्विस मैडल – 1947
पूर्वी स्टार
पश्चिमी स्टार
रक्षा मैडल
संग्राम मैडल
सैन्य सेवा मैडल
इंडियन इंडिपेंडेंस मेडल
25Th इंडिपेंडेंस एनिवर्सरी मैडल
20 ईयर लांग सर्विस मैडल
9 ईयर लांग सर्विस मैडल
मिलिट्री क्रॉस
1939-45 स्टार
बर्मा स्टार
वॉर मैडल 1939-45
इंडियन सर्विस मैडल
व्यक्तित्व के विभिन्न रंग
उनके कार्यकाल के दौरान उनके व्यक्तित्व के विभिन्न रंग देखने को मिलते है …..
शौकीन और उदार मानेकशॉ को अच्छे कपड़े पहनने का शौक था ही साथ ही अपने साथ वालों को भी वे अच्छे कपड़ों में देखना पसंद करते थे।उन्हें जब कोई निमंत्रण मिलता था जिसमें लिखा हो कि अनौपचारिक कपड़ों में आना है तो वह निमंत्रण अस्वीकार कर देते थे । उनके मित्र ए.डी.सी. दीपेंदरसिंह बताते हैं, कि एक बार वह यह सोच कर सैम के घर सफ़ारी सूट पहन कर चले गये कि वह घर पर नहीं हैं और वह थोड़ी देर में श्रीमती मानेकशॉ से मिल कर वापस आ जाएँगे, लेकिन वहां अचानक सैम पहुंच गए और मेरी पत्नी की तरफ़ देख कर बोले, “तुम तो हमेशा की तरह अच्छी लग रही हो लेकिन तुम इस “जंगली” के साथ बाहर आने के लिए तैयार कैसे हुई, जिसने इतने बेतरतीब कपड़े पहन रखे हैं?”सैम चाहते थे कि उनके ए.डी.सी. भी उसी तरह के कपड़े पहनें जैसे वह पहनते हैं, लेकिन ब्रिगेडियर बहराम पंताखी के पास सिर्फ़ एक सूट होता था। एक बार जब सैम पूर्वी कमान के प्रमुख थे, उन्होंने अपनी कार मंगाई और ए.डी.सी. बहराम को अपने साथ बैठा कर पार्क स्ट्रीट के बॉम्बे डाइंग शो रूम चलने के लिए कहा। ब्रिगेडियर बहराम ने सैम मानेकशॉ को एक ब्लेजर और ट्वीड का कपड़ा ख़रीदने में मदद की। सैम ने बिल दिया और घर पहुंचते ही कपड़ों का वह पैकेट ए.डी.सी. बहराम को पकड़ा कर कहा,”इनसे अपने लिए दो कोट सिलवा लो।”
ज़िंदादिल मानेकशॉ
एक बार युगांडा के सेनाध्यक्ष इदी अमीन भारत के दौरे पर आए। उस समय तक वह वहां के राष्ट्रपति नहीं बने थे। उनकी यात्रा के आखिरी दिन अशोक होटल में सैम मानेकशॉ ने उनके सम्मान में भोज दिया, जहां इदी अमीन ने कहा कि उन्हें भारतीय सेना की वर्दी बहुत पसंद आई है और वो अपने साथ अपने नाप की 12 वर्दियां युगांडा ले जाना चाहेंगे। सैम के आदेश पर रातोंरात कनॉट प्लेस की मशहूर दर्ज़ी की दुकान खुलवाई गई और करीब बारह दर्ज़ियों ने रात भर जाग कर इदी अमीन के लिए वर्दियां सिलीं।
गंभीर संवेदनशील मानेकशॉ
सैम की बेटी माया दारूवाला कहती हैं कि सैम अक्सर कहा करते थे कि लोग सोचते हैं कि जब हम देश को जिताते हैं तो यह बहुत गर्व की बात है लेकिन इसमें कहीं न कहीं उदासी का पुट भी छिपा रहता है क्योंकि लोगों की मौतें भी हुई होती हैं।सैम के लिए सबसे गर्व की बात यह नहीं थी कि भारत ने उनके नेतृत्व में पाकिस्तान पर जीत दर्ज की। उनके लिए सबसे बड़ा क्षण तब था जब युद्ध बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों ने स्वीकार किया था कि उनके साथ भारत में बहुत अच्छा व्यवहार किया गया था।
शरारती, साहसी, हाजिर जवाब सैम मानेकशॉ एक बार जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण ने सीमा क्षेत्रों का दौरा किया तब नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी भी उनके साथ थीं। सैम के ए.डी.सी. ब्रिगेडियर बहराम पंताखी अपनी किताब सैम मानेकशॉ- द मैन एंड हिज़ टाइम्स में लिखते हैं, “सैम ने इंदिरा गाँधी से कहा था कि आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकतीं क्योंकि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है। इंदिरा को तब यह बात बुरी भी लगी थी लेकिन सौभाग्य से इंदिरा गांधी और मानेकशॉ के रिश्ते इसकी वजह से ख़राब नहीं हुए थे।” सार्वजनिक जीवन में हँसी मज़ाक के लिए मशहूर सैम अपने निजी जीवन में भी उतने ही अनौपचारिक और हंसोड़ थे।
1971 की लड़ाई के बाद उनसे पूछा गया था कि अगर बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान चले गए होते तो क्या होता ? इस पर मानेकशॉ हंसते हुए बोले होता क्या……., पाकिस्तान 71 की लड़ाई जीत जाता ।
मेजर जनरल वी के सिंह कहते हैं, “एक बार इंदिरा गांधी जब विदेश यात्रा से लौटीं तो मानेकशॉ उन्हें रिसीव करने पालम हवाई अड्डे गए। इंदिरा गांधी को देखते ही उन्होंने कहा कि आपका हेयर स्टाइल ज़बरदस्त लग रहा है। इस पर इंदिरा गांधी मुस्कराईं और बोलीं, और किसी ने तो इसे नोटिस ही नहीं किया।”
उनकी शरारतों और मजाक के कई किस्से आज भी बेहद मशहूर हैं। वो भारत के एक ऐसे आर्मी चीफ थे, जो उस समय की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की बात काटने से भी नहीं डरते थे। इतना ही नहीं, वो इंदिरा गांधी को स्वीटी तक कह डालते थे।
खुर्राट, देशभक्त, कर्मवीर मानेकशॉ
1962 में जब मिजोरम की एक बटालियन ने भारत- चाइना की लड़ाई से दूर रहने की कोशिश की तो मानेकशॉ ने उस बटालियन को पार्सल में चूड़ी के डिब्बे के साथ एक नोट भेजा- जिस पर लिखा था कि अगर लड़ाई से पीछे हट रहे हो तो अपने आदमियों को ये पहनने को बोल दो। शर्मिंदगी से बेजार उस बटालियन ने लड़ाई में हिस्सा लिया और काफी अच्छा काम कर दिखाया।अब मानेकशॉ ने फिर से एक नोट भेजा जिसमें चूड़ियों के डिब्बे को वापस भेज देने की बात की गई थी।
मानवता के पुजारी मानेकशॉ
“1971 के युद्ध के बाद 90,000 पाकिस्तानियों को बंदी बनाया गया। बंदी शिविर में पाकिस्तानी सेना के सूबेदार मेजर के खेमे में बाहर से किसी ने अंदर आने की अनुमति मांगी। पराजय के उपरान्त इस प्रकार का सम्मान आमतौर पर अनअपेक्षित होता है। सूबेदार मेजर ने जब देखा तो वहां कोई और नहीं, विजयी भारतीय सेना के प्रमुख-जनरल सैम मानेकशॉ खड़े थे। वहां पाकिस्तानी बंधकों के लिए की गयी व्यवस्था के बारे में पूछने के बाद सैम बहादुर ने पाकिस्तानी विधवाओं को सब्र बंधाया, उनके द्वारा बनाया हुआ भोजन चखा, और सबसे मिले जुले। जब वे जाने लगे तो सूबेदार मेजर ने उनसे कुछ कहने की अनुमति मांगी। सूबेदार मेजर ने कहा – “मुझे अब मालूम चला कि भारत युद्ध क्यों जीता। वह इसलिए क्योंकि आप अपने सैनिकों का ख्याल रखते हैं। जिस तरह आप हमें मिलने आये, वैसे तो हमारे खुद के लोग हमसे नहीं मिलते। वो तो अपने आपको नवाबज़ादे समझते हैं।” कुछ ऐसे थे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जो दुश्मनों को भी अपना कायल बना लेते थे।”
चुहलबाज़ मानेकशॉ
सैम को खर्राटे लेने की आदत थी। उनकी बेटी मैरी दारूवाला कहती है कि उनकी मां और पिताजी कभी भी एक कमरे में नहीं सोते थे क्योंकि पिताजी ज़ोर-ज़ोर से खर्राटे लिया करते थे। एक बार जब वह रूस गए तो उनके ऑफ़िसर जनरल कुप्रियानो उन्हें उनके होटल छोड़ने गए। जब वह विदा लेने लगे तो माँ ने कहा, “मेरा कमरा कहां है?”
रूसी अफ़सर परेशान हो गए। पिताजी ने स्थिति संभाली,और कहा-असल में मैं ख़र्राटे लेता हूँ और मेरी बीवी को नींद न आने की बीमारी है, इसलिए हम लोग अलग-अलग कमरों में सोते हैं। फिर रूसी जनरल के कंधे पर हाथ रखते हुए उनके कान में फुसफुसा कर बोले, “आज तक जितनी भी औरतों को वह जानते हैं, किसी ने उनके ख़र्राटा लेने की शिकायत नहीं की है सिवाए इनके!”
कुनीतिज्ञ मानेकशॉ
1947 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद सीमा के कुछ इलाकों की अदलाबदली के बारे में बात करने सैम मानेकशॉ पाकिस्तान गए। उस समय जनरल टिक्का खां पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष हुआ करते थे। पाकिस्तान के कब्ज़े में भारतीय कश्मीर की चौकी थाकोचक थी जिसे छोड़ने के लिए वह तैयार नहीं था।जनरल एस के सिन्हा बताते है कि टिक्का ख़ां सैम से आठ साल जूनियर थे और उनका अंग्रेज़ी में भी हाथ थोड़ा तंग था क्योंकि वो सूबेदार के पद से शुरुआत करते हुए इस पद पर पहुंचे थे।
उन्होंने पहले से तैयार वक्तव्य पढ़ना शुरू किया, “देयर आर थ्री ऑलटरनेटिव्स टू दिस.”
इस पर मानेकशॉ ने उन्हें तुरंत टोका, “जिस स्टाफ़ ऑफ़िसर की लिखी ब्रीफ़ आप पढ़ रहे हैं उसे अंग्रेज़ी लिखनी नहीं आती है। ऑल्टरनेटिव्स हमेशा दो होते हैं, तीन नहीं । हां संभावनाएं या पॉसिबिलिटीज़ दो से ज़्यादा हो सकती हैं।”
सैम की बात सुन कर टिक्का इतने नर्वस हो गए कि हकलाने लगे… और थोड़ी देर में वो थाकोचक को वापस भारत को देने को तैयार हो गए।
देश के प्रति पूरी तरह समर्पित लोकप्रिय ईमानदार मानेकशॉ
मानेकशॉ और इंदिरा गांधी से जुड़े कई दिलचस्प किस्से कई किताबों में शामिल किए गए हैं। उन्हीं में से एक किस्सा स्वीटी भी है। एक तरफ जब इंदिरा गांधी के सामने लोग कुछ भी कहने से डरते थे, आर्मी चीफ मानेकशॉ उन्हें स्वीटी कहकर बुलाते थे।
1971 में जंग के लिए जब एक बार फिर इंदिरा ने अपने आर्मी चीफ से तैयारी का पूछा तो मानेकशॉ ने तुरंत कहा कि मैं हमेशा तैयार हूं स्वीटी। वो भारतीय सेना के पहले 5-स्टार जनरल थे। साथ ही वे पहले ऑफिसर थे, जिन्हें सेना में फील्ड मार्शल की रैंक पर प्रमोट किया गया था। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि एक समय इंदिरा गांधी को उनसे डर लगने लगा था।
साहसी निर्भीक मानेकशॉ
शरारतें करने की उनकी यह अदा, उन्हें लोकप्रिय बनाती थीं लेकिन जब अनुशासन या सैनिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच संबंधों की बात आती थी तो सैम कोई समझौता नहीं करते थे। उनके मिलिट्री असिस्टेंट रहे लेफ़्टिनेंट जनरल दीपेंदर सिंह एक किस्सा सुनाते हैं, “एक बार सेना मुख्यालय में एक बैठक हो रही थी।रक्षा सचिव हरीश सरीन भी वहाँ मौजूद थे। उन्होंने वहां बैठे एक कर्नल से कहा, यू देयर, ओपन द विंडो।वह कर्नल उठने लगा।तभी सैम ने कमरे में प्रवेश किया रक्षा सचिव की तरफ मुड़े और बोले, सचिव महोदय, आइंदा से आप मेरे किसी अफ़सर से इस टोन में बात नहीं करेंगे।यह अफ़सर कर्नल है यू देयर नहीं।”उस ज़माने के बहुत शक्तिशाली अफ़सर हरीश सरीन को उनसे माफ़ी मांगनी पड़ी।
चर्चित किस्से
एक मोटरसाइकिल के बदले ले लिया आधा पाकिस्तान
मानेकशॉ और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान एक साथ फौज में थे और दोस्त हुआ करते थे। उस समय मानेकशॉ के पास एक यूएस मेड मोटरसाइकिल हुआ करती थी। देश का बंटवारा हुआ तो 1947 में याह्या खान पाकिस्तान फौज में चले गए वहीं, मानेकशॉ भारत में रहे। याह्या खान ने जाते-जाते मानेकशॉ से ये अमेरिकी मोटरसाइकिल 1000 रुपए में खरीद ली। लेकिन पैसे नहीं चुकाए। समय बीतता गया। मानेकशॉ भारत के आर्मी चीफ बने और उधर पाकिस्तान में याह्या खान सरकार का तख्तापलट कर राष्ट्रपति बन गए। 1971 की जंग में पाकिस्तान के सरेंडर करने के बाद मानेकशॉ ने कहा था कि याह्या ने आधे देश के बदले में 24 वर्ष बाद उनकी मोटरसाइकिल का दाम चुका दिया।
ऐसा ही एक प्रचलित किस्सा है, चीन युद्ध में हार के बाद भारतीय जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए वह पूर्वी मोर्चे पर पहुंचे। वहां उन्होंने मोर्चे पर मौजूद अग्रिम पंक्ति के जवान से निगाहें मिलाकर कहा कि ”याद रखना तुम उस आदेश तक यहां से पीछे नहीं हटोगे जब तक तुम्हे ऐसा करने के लिए नहीं कहा जाए” यह कहकर मानेकशा मुडे और पीछे से आवाज लगाकर उस जवान से कहा, ”याद रखना वो आर्डर तुम्हारे लिए कभी नहीं आएगा।”
जब भारत में उड़ी तख्तापलट की अफवाह
इंदिरा गांधी अपनी लीडरशिप, पॉलिटिक्स और ब्यूरोक्रेसी के कंट्रोल को लेकर हमेशा सतर्क रहती थीं। एक बार अफवाह फैली कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से सरकार का तख्तापलट करने की फिराक में हैं। इससे इंदिरा काफी डर गई थीं। उन्होंने मानेकशॉ को मीटिंग पर बुलाया और इस बारे में सवाल किए तो आर्मी चीफ ने कड़क अंदाज में इंदिरा को जवाब दिया। उन्होंने कहा- मेरी और आपकी दोनों की नाक बड़ी लंबी है। मगर मैं दूसरे के काम में अपनी नाक नहीं अड़ाता। इसलिए आप भी मेरे काम में नाक न डालें।
मानेकशॉ के सेनाध्यक्ष बनने के बाद भारतीय सेना के स्तर में जबरदस्त सुधार हुआ। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जो पूर्व में मानेकशॉ की काबिलियत देख चुकी थी ने उन्हें पाकिस्तान से युद्ध की जिम्मेदारी दी गई। इसको लेकर भी एक चर्चित किस्सा है। पूर्वी पाकिस्तान में जनरल याहया खान के बढ़ते जुल्मों की दास्तां सुनकर इंदिरा गांधी काफी बेचैन थीं वे चाहती थी कि पाकिस्तान पर तुरंत हमला किया जाए। इसलिए उन्होंने 1971 में जब जनरल याहया खान के जुल्म से तड़फते पूर्वी पाकिस्तान पर हमला करने की प्लानिंग की तो इसका सबसे पहला जिक्र तत्कालीन सेनाध्यक्ष मानेकशॉ से ही किया। कैबिनेट की मीटिंग में इंदिरा ने मानेकशॉ को बुलाया और उनसे कहा कि वह पूर्वी पाकिस्तान पर हमले की तैयारी करें। मानेकशॉ ने तपाक से जवाब दिया कि क्या आप युद्ध हारना चाहती हैं। उनके इस जवाब से इंदिरा स्तब्ध रह गईं। इंदिरा को मानेकशाॅ से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी। इंदिरा ने कहा नहीं, तब मानेकशॉ बोले मुझे युद्ध के लिए कुछ दिन का समय चाहिए। मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूं। एक इंटरव्यू में मानेकशॉ ने बताया कि वह युद्ध के लिए तैयारियां करना चाहते थे। इंदिरा ने उन्हें एक महीने का वक्त दिया। जिसके बाद उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करना शुरू किया और सीमा पर तैयारियां शुरू कर दीं। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास बन गया। भारत ने पूरी तैयारी के साथ पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से के समर्थन में हमला किया। मानेकशॉ की कुशल रणनीति के सामने पश्चिम पाकिस्तानी सेना ने 13 दिनों में ही घुटने टेक दिए। पाक सेना के 93 हजार जवानों ने लेफ्टिनेंट जनरल ए ए कियानी के नेतृत्व में पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस जीत के बाद अरोडा और मानेकशॉ दोनों हीरो बने गए। भारत की इस बड़ी जीत ने इंदिरा गांधी को दुनियाभर में एक मजबूत नेता के तौर पर तो स्थापित किया ही मानेकशॉ को भी विशिष्ट दर्जा मिल गया। इस जीत के बाद इंदिरा इतनी उत्साहित थीं कि मानेकशॉ को उन्होंने सैम बहादुर कहकर संबोधित किया। मानेकशॉ से मिलते ही इंदिरा ने कहा, “सैम यू डन इट”। इस तरह सैम मानेकशॉ वह शख्सियत थी जिनमे कठोरता कोमलता दृढ़ता कर्मठता सहासी ईमानदार कूटनीतिज्ञ देशप्रेमी जैसे कई पहलू से परिचित हुए है । तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी जानती थीं कि मानेकशॉ जैसे लीडर की दम पर ही वो पूर्वी पाकिस्तान में जंग जीत सकती हैं, इसलिए वो उनके सारे नखरे सहती थीं। हम आज स्वतन्त्रता के अमृतमहोत्सव पर ऐसे कर्मयोद्धा के प्रयासों को शत-शत नमन करते है ।
नमिता दुबे,
इन्दौर,भारत