कुछ ऐसा लिखूँ
मेरा नाम डॉ.सरला सिंह है । मेरा जन्म पूर्वी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में कादीपुर तहसील के बलुआ नामक गाँव में क्षत्रिय कुल में हुआ । प्रारम्भिक शिक्षा कानपुर तथा गाँव दोनों जगह हुई । पिताजी व बाबा जी दोनों ही कानपुर में सी.ओ.डी. में नौकरी करते थे । वहीं
बाबूपुरवा कॉलोनी में हम सब रहा करते थे ।वहाँ न किदवईनगर के भारती विद्यापीठ में सातवीं कक्षा तक की पढाई हुई । बाबा जी के अचानक ही देहांत के बाद मुझे पिताजी के पास इलाहाबाद आना पड़ा । आठवीं से पी-एच.डी. तक की शिक्षा इलाहाबाद से हुई । हाईस्कूल व बारहवीं की शिक्षा बड़े ही परेशानियों के बीच हुई । पिता जी का ध्यान केवल दानपुण्य पर था इसके लिए वे पूरे समय सर्विस भी नहीं करते थे। गंगाजी के किनारे घूमते रहते थे।घर में आर्थिक परेशानियों के कारण हमेशा कलहपूर्ण वातावरण रहा करता था ।
बारहवीं के बाद मैंने ट्यूशन पढ़ाना, प्राइवेट स्कूल में पढा़ना तथा अपनी बी.ए की पढा़ई एक साथ की साथ ही घर का काम भी । अपनी बी.ए.की पढ़ाई किसी तरह पूरी करने के बाद एम.ए(हिन्दी)इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही पूरी की ।एम.ए.के बाद पूर्वाचल विश्व विद्यालय से बी.एड. की पढ़ाई की ।
एम.ए.,बी.एड.करने के बाद मेरा विवाह देवरिया के नेमा गाँव के श्री राजेश्वर सिंह से हो गया । विवाह के बाद मैंने इलाहाबाद से ही डॉ. मालती सिंह के निर्देशन में पी-एच.डी. किया। लेख तथा कविता ,कहानी पढने का शौक बचपन से ही था । लिखती भी थी ,किन्तु कभी किसी के समक्ष रखने का साहस न था । पता नहीं क्यों मुझमें आत्मविश्वास की एक कमी सी रही है ।डायरी मेंं लिखती और छिपाकर रख देती थी । मेरी शादी के बाद वह सब कबाड़ में बेच दिया गया ।
पी-एच.डी. पूरा होते ही दिल्ली में शिक्षाविभाग में शिक्षिका हो गयी तथा दो बच्चों की माँ भी । घर और बाहर की जिम्मेदारियों के मध्य साहित्य रचना के लिए समय ही न बचता था ।
धीरे-धीरे समय मन्थर गति से बढ़ता रहा ।बच्चे बड़े होने लगे । फेसबुक और व्हाट्सएप का जमाना आ गया । बच्चों की देखा देखी मैंने भी मई 2016 में फेसबुक अकाउंट बनाया और डरते डरते एक दो कविताएँ पोस्ट कर दीं । लोगों से प्राप्त उत्साह ने साहस बढ़ाया और मेरा आत्मविश्वास भी लौटने लगा । जो रचनायें हैं आपके समक्ष है।
“जीवनपथ ” काव्यसंग्रह , “आशादीप” काव्यसंग्रह , “जीवन का समर” कहानी संग्रह तथा शोध ग्रंथ “हिन्दी के आधुनिक पौराणिक प्रबंध काव्यों में “पात्रों का चरित्र विकास ” अनुराधा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुकी है।
20-25 साझा काव्य संग्रह तथा साझा कहानी प्रकाशित हो चुके हैं।
मेरे जीवन का उद्देश्य है कि कुछ इस तरह की रचनाएं लिखूं जो प्रेरक हों , शिक्षाप्रद हों, सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करने के साथ ही समाज का पथ प्रदर्शन करने वाली भी हो।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
वरिष्ठ साहित्यकार
दिल्ली