भारत के अन्नदाता- एम. एस. स्वामीनाथन
खेतों में बालियान खड़ी थीं पर उसमें दाने कम थे
भूखा था देश सारा और पड़े बेवस से हम थे
दुखी हुआ स्वामीनाथन तब खोज कुछ ऐसी कर डाली
हरित क्रांति आयी देश में मुस्कुरायी गेंहूं की बाली।
गोदाम भरे अनाजों से जेबों में हरियाली छाई
धरती उम्मीद से हुई , माँ भारती मुस्काई
एम. एस. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को कुंभकोणम, तमिलनाडु में हुआ था। उनका पूरा नाम मंकोम्बो सम्बासीवन स्वामीनाथन था। आप शल्य चिकित्सक डॉ एम. के. सम्बासिवन और पारवती थंगाम्मल सम्बासीवन के दूसरे नम्बर के पुत्र थे। जब स्वामीनाथन छोटे थे तब इनकी पिता का देहांत हो गया था उसके बाद उनकी देखभाल इनके चाचा ने की।
शिक्षा :इन्होंने अपने हाई स्कूल की पढ़ाई कुंभकोणम के कैथोलिक लिटिल फ्लावर से की, और मात्र 15 साल की उम्र में ही मैट्रिक भी पास कर लिया था । आपके घर वाले चाहते थे कि आप चिकित्सक बने तो वर्ष 1940 में स्नातक की पढ़ाई के लिए आप केरल के महाराजा कॉलेज चले गए थे वहां से इन्होंने जूलॉजी में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की परन्तु १९४३ में द्वितीय विश्व युद्ध के समय बंगाल के आकाल को आपने देखा ,उस समय अन्न की बहुत कमी हो गयी थी लोग भूखे मर रहे थे। उनको देख कर आपने अपना विचार बदल दिया तथा कृषि को अपने करियर के रूप में चुना।
एग्रीकल्चर में अपने कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए इन्होंने मद्रास के एग्रीकल्चर कॉलेज में १९४० में दाखिला लिया और वहाँ से इन्होंने वेलिडिक्टोरियन में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया उसके बाद इन्हें बैचलर ऑफ साइंस की उपाधि मिली ।१९४७ में आप इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटूट नई दिल्ली में जैविकी और पौधशिल्प (प्लांट ब्रीडिंग ) और साइटोजेनेटिक्स पढ़ने के लिए आ गए। १९४९ में आपने मास्टर्स किया। इसके बाद आपने समाज और परिवार के दबाव में आ कर सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी ,जिसमें आपका चुनाव इंडियन पुलिस सर्विसेज के लिए हो गया और उसी समय यूनेस्को (UNESCO )की तरफ से छात्रवृति के साथ, कृषि के क्षेत्र में अनुवांशिक पर काम करने के लिए नीदरलैंड से बुलावा आया। आपने कृषि को चुना। आप १९५० में कैंब्रिज आ गये ।यहाँ आपने यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर का प्लांट ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई की और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद आप १५ महीनों के लिए अमेरिका आये यहाँ आपने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन में पोस्ट डॉक्टरेट किया। जब आपका कार्यकाल समाप्त हुआ तो आपको यहीं पर नौकरी करने का प्रस्ताव मिला पर आपने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि आप भारत जा कर अपने देश के लिए कार्य करना चाहते थे।
कृषि में योगदान :
हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन 1960 के बाद के वर्षो में जब हमारे देश में अनाज की उत्पत्ति कम हो रही थी तो विशाल जनसंख्या वाले हमारे देश में अनाज का संकट उत्पन्न हो चला था। साठ के दशक में विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक बोरलॉग द्वारा ‘मैक्सिकन ड्वार्फ’ नामक एक उन्नत किस्म की गेहूँ के बीज का आविष्कार किया। स्वामीनाथन साहब ने पाया की गेहूँ की वह किस्म भारत की मिट्टी में भी अच्छी पैदावार दे सकती है। उन्होंने अपने अनुसंधान में यह पता लगाया की गेहूँ की यह ड्वार्फ किस्म हमारे देश में अनाज की समस्या के समाधान में मदद कर सकती है। इस प्रकार डॉ स्वामीनाथन के आग्रह पर नोबेल पुरस्कार विजेता विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक बोरलॉग को भारत बुलाया गया। उन्होंने बोरलॉग से यहाँ की मिट्टी और जलवायु के बारे में कई विचार विमर्श किये। बोरलॉग से उन्होंने ढेर सारी जानकारी प्राप्त की। एम एस स्वामीनाथन ने सन 1966 में बोरलॉग द्वारा आविष्कार किये गये मैक्सिको के गेहूँ के बीज के साथ एक अनुसंधान किया। आपने मैक्सिको के गेहूँ के बीज को भारत के पंजाब की घरेलू किस्म की गेहूँ के बीज के साथ मिश्रित कर एक नए किस्म के गेहूँ के संकर बीज का विकास किया। देश में हरित क्रांति कार्यक्रम के तहत इन संकर बीजों (गेहू व चावल ) को गरीब किसानो के खेतो में लगाया गया। इस क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव गेहूँ की फसल पर पड़ा। इस क्रांति ने भारत को खाद्यान की समस्या से उबारकर आत्मनिर्भर बनाया दिया।
पुरस्कार और सम्मान :
एम एस स्वामीनाथन को विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा निम्न पुरस्कार दिए गए ।
पद्मश्री – 1967,पद्म भूषण – 1972,पद्म विभूषण – 1989,1971 – रैमेन मैग्सेस पुरस्कार,1986 – अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार,1987 – विश्व खाद्य पुरस्कार,1991 – टाइलर पुरस्कार,1997 – फ्रांस का ‘आर्डर टू मेर्रित एग्री कोल ,1999 – यूनेस्को गाँधी स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।,2003 में बायोस्पेक्ट्रम में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड इन्हे अनेक विश्विद्यलयों ने डॉक्टरेट की उपाधियों से सम्मनित भी किया इसके साथ लंदन की रॉयल सोसाइटी सहित विश्व की कई प्रमुख विज्ञानं परिषदों ने स्वामीनाथन को अपना मानद सदस्य चुना है।उनकी महान विद्वत्ता को स्वीकरते हुए इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी और बांग्लादेश, चीन, इटली, स्वीडन, अमरीका तथा सोवियत संघ की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों में उन्हें शामिल किया गया है।वह ‘वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज़’ के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।
एम एस स्वामीनाथन शोध केंद्र :
एम एस स्वामीनाथन ने 1990 के प्रारम्भिक वर्षो में कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए चेन्नई में एक एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। एम एस स्वामीनाथन 1972 से 1979 तक भरतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक रहे। 1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 20 वी सदी सबसे प्रभावी 200 एशियाई व्यक्तियों की सूचि में स्थान दिया।1999 में टाइम पत्रिका ने स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था।
आपका विवाह मीना स्वामीनाथन जी से हुआ ,मीना जी से आप कैम्ब्रिज में मिले थे। जहाँ आप दोनों अपनी पढ़ाई कर रहे थे। आप दोनों की तीन बेटियां है ,सौम्या स्वामीनाथन जो कि बच्चों की चिकित्सक हैं ,मधु स्वामीनाथन जी की एक अर्थशास्त्री हैं ,नित्या स्वामीनाथन महिला और ग्रामीण विकास के लिए काम करती हैं तथा आप दोनों के पाँच पोते पोतियाँ हैं।
एम एस स्वामीनाथन जी महात्मा गाँधी और रमना महर्षि जी से बहुत प्रभावित थे। स्वामीनाथन जी के परिवार के पास २००० एकड़ भूमि थी। इस का एक तिहाही भाग उन्होंने विनोबा भावे काम के लिए दान कर दिया था। २०११ में एक साक्षात्कार में आपने कहा था कि जब आप छोटे थे आप स्वामी विवेकानन्द जी से बहुत प्रभावित थे।
रचना श्रीवास्तव
कैलिफोर्निया, अमेरिका