अमर स्वाधीनता सेनानी राजा राव तुलाराम सिंह
भारत का इतिहास वीरों की गाथाओं से भरा पड़ा है।
इतिहास में यूँ तो बहुत से स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उनमें कुछ सेनानियों ने अपनी वीरता संकल्प और दृढ़ निश्चय के बल पर अंग्रेजों को लोहे के चने चबाये और जीवन पर्यंत उनसे संघर्ष करते रहे। ऐसे योद्धाओं में रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम का नाम अग्रणी है। राव तुलाराम अंग्रेजी सत्ता से जीवन पर्यंत देश की आज़ादी के लिए लड़ते रहे यहाँ तक कि विदेशी सहायता के लिए भी ईरान, रुस,कंधार, काबुल तक पहुँच गए।
राव तुलाराम का जन्म 9 दिसंबर 1825 को रेवाड़ी के अहीर राजघराने में हुआ।उनके पिता राजा पूर्ण सिंह के पास 87 गाँव की बहुत बड़ी रियासत थी।माता ज्ञान कौर
एक पढ़ी लिखी कुशल गृहणी थी जिनकी देखरेख में ही तुलाराम की शिक्षा दीक्षा घर पर सम्पन्न हुई । साथ ही युद्ध कौशल और घुड़सवारी के गुर भी सीखे।राव तुलाराम को हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फ़ारसी व अंग्रेज़ी भाषाओं का बखूबी ज्ञान था। दुर्भाग्यवश चौदह वर्ष की अल्पायु में ही तुलाराम के पिता राजा पूर्ण सिंह का देहांत हो गया जिससे कम उम्र में ही तुलाराम को रेवाड़ी रियासत के शासन की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई।अंग्रेजों ने धीरे धीरे उनकी रियासत को हड़पना शुरू कर दिया क्योंकि रेवाड़ी रियासत ने अंग्रेजों के विरुद्ध मराठों की मदद की थी।उस समय की जनता अंग्रेज़ी शासन की
कर प्रणाली से त्रस्त थी।किसानों की आय का आधा हिस्सा कर देने में ही चला जाता था। ऊपर से सूखे व अकाल की समस्या से जूझते हुए किसान के पास कुछ नहीं बचता था।रेवाड़ी का अहीरवाल क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण अधिकांश जनता कृषि की आय पर ही निर्भर थी।राजा राव तुलाराम ने जब शासन की बागडोर सम्भाली तो ख़ज़ाना लगभग ख़ाली था न ही राजा की सुरक्षा के लिए कोई अभेद्य क़िला था, न सेना के लिए गोले बारुद हथियार। ऐसे में सबसे पहले उन्होंने बड़ी कुशलता से ख़र्चों में कटौती करते हुए आर्थिक स्थिति को मज़बूत किया और क़िले का भी निर्माण कराया। साथ ही एक गन फ़ाउंड्री भी खोल कर तोप व बंदूको का काम शुरू कराया।
इसी बीच 10 मई 1857 को मेरठ से अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बज गया और उस संग्राम में राजा राव तुलाराम भी अंग्रेजों के विरुद्ध कूद पड़े।उनके चाचा राव कृष्ण गोपाल अंग्रेज़ी सेना की नौकरी को छोड़कर क्रान्तिकारी बन गए और रेवाड़ी चले आए।राजा तुलाराम ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर उन्हें अपनी सेना का सेनापति नियुक्त कर दिया।
राव तुलाराम ने अंग्रेज़ी सेना के बहुत से अहीर-गुज़र -राजपूतों को अपनी ओर कर उन्हें विद्रोह के लिए प्रेरित किया।अंग्रेज़ राजा तुलाराम से पहले से ही खार खाए बैठे थे।उन्होंने विद्रोह को कुचलने के लिए अपने अफ़सर विलियम फ़ोर्ड को भेजा किंतु उसे भी भारतीय सिपाहियों की वीरता के आगे जान बचाकर भागना पड़ा।
राजा तुलाराम ने राव कृष्ण गोपाल और अपने चचेरे भाई राव गोपाल देव को सेना के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी सौंप रखी थी और खुद दिल्ली में मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के हाथ मज़बूत करने में लग गए ताकि उनसे मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया जा सके।
राव तुलाराम के विद्रोही तेवर देखकर अंग्रेजों ने 19 नवंबर को नारनौल के नसीबपुर में युद्ध के लिए सेना भेजी।नसीबपुर की धरती योद्धाओं के रक्त से लाल हो गई।राव तुलाराम ने मात्र पाँच हज़ार घुड़सवारों की टुकड़ी के साथ अद्भुत रण कौशल का परिचय देते हुए अंग्रेज़ी सेना के कर्नल जॉन का सर कलम कर दिया।कई दिन युद्ध चला और इस युद्ध में राजा राव तुलाराम जीतने ही वाले थे कि अंतिम क्षणों में अंग्रेजों ने पड़ोसी नाभा जींद पटियाला व कपूरथला के राजाओं को अपने साथ मिलाकर युद्ध का पासा पलट दिया और तुलाराम को मैदान छोड़कर वापिस जाना पड़ा किंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और रानी लक्ष्मीबाई तथा तात्यांटोपे के पास मदद के लिए पहुँच गए और तात्यां टोपे से मिल गए।
देशी राजाओं ने तुलाराम को विदेशी सहायता प्राप्त करने के लिए एक संदेश देकर ईरान,रुस,काबुल जाने की सलाह दी।1859 में वे रुस,कंधार व फिर काबुल पहुँच गए।
उन्हें इस कारण विदेशों में “भारत का प्रथम राजदूत” भी कहा जाता है जो भारतीय राजाओं का संदेश लेकर सहायता के लिए विदेश गए।वहाँ उन्हें रुस से मदद नहीं मिली तो वे काबुल के बादशाह मोहम्मद खान से मिले।खान ने उनको सहायता देने में तो असमर्थता प्रकट की किंतु उनकी खूब आवभगत की।इसी दौरान 23 सितंबर 1863 को काबुल में ही एक भयंकर महामारी का वे शिकार हो गए।जीवन के अंतिम क्षणों तक वे अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे किंतु उनसे हाथ नहीं मिलाया और न ही उनकी पकड़ में आए।
आज उनके वंशज प्रपौत्र राव इंद्रजीत सिंह केंद्र सरकार में मंत्री हैं जिनके पिता राव बीरेन्द्र सिंह हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री तथा केंद्र में कृषि मंत्री रह चुके हैं।रेवाड़ी व दिल्ली में भी राव तुलाराम के नाम पर अनेक स्मारक मार्ग फ़्लाइओवर स्टेडियम आदि बने हुए हैं जो उनकी बहादुरी का प्रतीक हैं।
उनकी पुण्य तिथि यानि 23 सितंबर को हरियाणा में शहीदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है और इस दिन सरकारी अवकाश रहता है।आज़ादी के ऐसे वीर योद्धा स्वतंत्रता सेनानी को शत शत नमन।
राजपाल यादव,
गुरुग्राम,भारत