जीवन का सफरनामा
मेरे साहित्यिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु जीवन में भी जो प्रेरणापुंज हैं उनके लिए आज शब्दों के जरिये मन के हर कोने को खंगालकर जो भाव निकले उन्हें व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ।
मेरा जन्म दुर्ग(छग) में हुआ लेकिन मेरे मां पापा गाँव में रहते थे, तब वहां अच्छे स्कूल नही थे, इसलिए ढाई साल की उम्र में दुर्ग के महावीर जैन स्कूल में मेरा दाखिला कराया गया। मुझसे छोटे दो भाई हैं । एक मुझे लगभग दो साल छोटा जो अब दुर्ग में ही रहता है। एक नौ साल छोटा जो साइंटिस्ट है और बोस्टर्न (यूएसए) में रहता है। जरूरतें सारी पूरी हुई परवरिश में कोई भी कमी नहीं रही। स्कूल बहुत ही अच्छा था 1979 से 1993 केजी 1 से 12 वीं तक 14 साल एक ही स्कूल में फुल दादागिरी, और इमोशन्स के साथ रही। गर्व है इस बात का कि हमेशा किसी की ख़ुशी की वजह बनने की कोशिश की बदले में बिना कुछ चाहे, सिर्फ एक भावना रही मन में किसी को खुशी न दे पाऊं न सही, दुख का कारण न बनूं।
मन में बहुत से भाव थे, आक्रोश था, बचपन की शरारतें थी, लड़कपन के सपनें थे, यौवन की चाहतें थी लेकिन सबकुछ एक हंसती खेलती लड़ती झगड़ती ‘प्रीति’ के अंदर कई परतों में दबी। सभी पास थे सभी अपने थे, बैर कभी पाला नहीं, पर मन के एक कोना हमेशा अछूता रहा।
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उसी कोने के खालीपन में गूंजती थी कुछ आवाज़ें जिन्हें शब्द रूप में गढ़ना छुटपन से ही शुरू कर दिया था। कभी शरारत के लिए डांट नहीं खाई स्कूल में और न अधूरे होमवर्क के लिए क्योंकि शुरू से पढाई में अच्छी रही पर कॉपी के पीछे की गंदगी के लिए बहुत डांट खाई। मुझे समझने वाले गिनती के लोग पापा, पूजा और कुछ उँगलियों पर गिने जा सकने वाले अपने। कॉपी के पीछे की गंदगी कब धीरे धीरे पूजा ने इकट्ठी करनी शुरू की पता नहीं। पर इतना पता है हर भाव और हर मनः स्थिति को शब्दों में उकेरना धीरे से डायरी लेखन में बदल गया।
यौवन की दहलीज में कदम रखते ही सब कुछ बदल गया। नानी नहीं रही, फिर वहां रहने का मन नहीं किया। कुछ सपने टूटे, कुछ छूट गए,.. जिन्दगी कभी छलती रही कभी चलती रही,.. । बी. कॉम गांव से एम कॉम पूर्व दुर्ग से किया। शादी तय होने से एम कॉम फाईनल नही हो पाया । बचपन के साथी सब दूर हुए पर ईश्वर की कृपा से अपनापन आज भी बरक़रार है।
शादी हुई, शादी के बाद सब कुछ बदल गया। मेरी डायरी जो पूजा की वजह से बनी थी सौ कविताओं और लगभग सत्तर मुक्तक्त /शेर /चतुष्पदी के साथ एक लॉकर में बंद हो गई। समकित पति के रूप में एक बेस्ट फ्रेंड साबित हुए। मेरे हर सुख दुख के साथी और साक्षी भी। शादी के बाद पहली कविता उन्हें ही समर्पित की, दूसरी कविता पूजा की सगाई पर लिखी, तीसरी कविता पूजा की सगाई और अपने मातृत्व को जोड़कर लिखी। बस फिर,…….. एक लंबा अंतराल।
उस अंतराल में ढेर सारे सुख-दुख, बेचैनी, तड़प, दर्द के साथ प्रेम, समर्पण और विश्वास भी। हर रंग जिया मैंने। शादी के दस सालों में तीन बच्चे, पांच ऑपरेशन और अनेक बीमारियों ने घेर लिया। 2008 में एकल परिवार और स्वतन्त्र जीवनयापन का दायित्व । 20/02/ 2012 में हाईपोग्लुसोमिया के पहले अटैक ने पहले से ही कमजोर शरीर को ही नहीं मेरे मन को भी बेहद क्षतिग्रस्त किया। शारीर का दाहिना हिस्से में लकवे का हल्का असर मुझे बिस्तर पर ले आया। उसी मनोदशा के चलते समकित ने अपनी पुरानी डायरी को ऑरकुट ब्लॉग और fb पर शेयर करने के लिए प्रेरित किया। नवंबर 2011 में छोटा प्रशान्त भाई भारत आया तो मेरे लिये लैपटॉप उसी ने तीन साल पहले दिया था और मैंने अलमारी में उठाकर रख दिया था उसपर मेरा ईमेल, ब्लॉग,फेसबुक सब शुरू कर दिया। वही मैंने अपने सबसे तकलीफ के समय में खुद को व्यस्त रखने के लिए इस्तेमाल किया। समकित की प्रेरणा से लिखना फिर से शुरू किया, 2012 से 2017 में मैंने लेखन से बहुत कुछ पाया। कुछ ऐसे सपने पूरे किये जो देखने में भी डर लगता था। समाजशास्त्र मे एम.ए. किया। एक्यूप्रेशर का डिप्लोमा कर डॉ. की उपाधि ली और सभी के आशीर्वाद से बहुत जल्द ही डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने हेतु शोधपत्र लेखन जारी है l
अब तक मान-सम्मान, नाम-पहचान और आभासी दुनिया से कई सच्चे रिश्ते,.. कई अपने जिन्होंने रिश्तों को परिवार की तरह समेटा मुझे। भावनाओं का सैलाब अब रोज उमड़ता है, रोज शब्दों के नए चित्र बनते हैं। सुख में दुःख में हर भाव में लेखन यूँ घुल गया है मानो उसके बिना मेरा अस्तित्व ही नहीं।
हां! लेखन मेरा सबकुछ, आज जीने का एक मात्र सहारा, मेरे लिए लेखन पहले सिर्फ दवा पर अब संजीवनी है और ये संजीवनी मुझे पुनर्जीवित करने के लिए लेकर आए समकित, इसलिए आभार समकित का,..।
आभार मेरे बच्चों तन्मय जयति और जैनम् का जो हर संभव मदद करते हैं।
आभार पापा-मम्मी का जिन्होंने मुझे इस योग्य बनाया, मम्मी जी पापा जी का जिन्होने प्रोत्साहन दिया, मेरे भाईयो-भाभीयो गिरिश भैय्या-ज्योति भाभी, प्रवीण- नीतू, प्रशान्त-मेघा, बचपन के मित्र अनुराग, अंजु और सपना का जो आज तक प्रेरित करते है,….सबसे ज्यादा आभार मेरी सखी और बहन पूजा का जिसने यादों में मेरे लेखन को संचित और जीवित रखा,….
अप्रेल 1998 से आज तक हर छोटी मोटी बीमारी में ही नहीं बल्कि हर अच्छे बुरे समय में मुझे मानसिक सम्बल घर के बड़े और डॉ. ही नहीं बल्कि सच्चे दोस्त और मार्गदर्शक की तरह दिया डॉ. चाची और चाचा (डॉ भारती सुराना एवम डॉ. अशोक सुराना) ने उनका दिल से आभार। डॉ. अरुणा मानकर दी एवं एडवोकेट विनोद कोचर फूफाजी का भी विशेष आभार जो हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
आभार उषा-निलेश भैय्या, सीमा भाभी-नितिन भैय्या अदिति भाभी-संजय भैय्या और समकित के सभी मित्रों का जो हमेशा आगे बढने की प्रेरणा देते रहे, आभार सैफी सर का जिन्होंने मेरी पहली किताब ‘मन की बात’ प्रकाशित की, आभार पुनीत का जिसने मेरी दूसरी किताब ‘मेरा मन’ का संपादन कर प्रकाशित करवाया। प्रीति अज्ञात, स्वाति जैन, कीर्ति वर्मा, पिंकी परुथी जैसे अभिन्न मित्र मिले।
आभार डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ का क्योंकि जो मातृभाषा के विकास या महिला सशक्तिकरण के लिए कर हूँ उसमें उनका विशेष योगदान रहा है।
तमाम विसंगतियों के बाद भी ये सब मेरे अपनों में शामिल हो ही गए सभी मेरे मार्गदर्शक और मित्र बने रहें यही प्रार्थना।
1 फरवरी 2016 को 13 महिलाओं के एक व्हाट्सअप समूह से की गई शुरुआत जिसने सृजन फुलवारी से सृजन शब्द से शक्ति का सफर तय किया।
दिसंबर 2015 से जैन प्रतिभा मंच, अन्तरा एवं कई अन्य व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़े रहने के बाद भोपाल 25 सितंबर 2016 को राष्ट्रीय कवि संगम के सानिध्य में *सृजन-शब्दशक्ति सम्मान समारोह* में *अंतरा* के एडमिन *मनोज जैन जी* के साथ संयोजन का एक सुखद अनुभव रहा। व्हाट्सअप समूहों के जरिये बने परिचय में प्रगाढ़ता आई। समूहों में अकसर कई असामान्य परिस्थियों का सामना हो जाता है। किसी कारण पुराना अंतरा और सृजन शब्द शक्ति दोनों ही समूह भंग कर एक नया साहित्यिक ग्रुप नये तरीके से संचालित करने का मन बना और मैंने और मनोज जी ने मिलकर फिर से व्हाटसप पर अंतरा-शब्दशक्ति समूह बनाया, साथ ही साथ फेसबुक अंतरा-शब्दशक्ति को भी सक्रिय करने का निश्चय किया। आज लगभग 18000 सदस्य फेसबुक ग्रुप से जुड़ चुके हैं।
1 नवंबर 2016 से लोकजंग दैनिक संध्याकालीन समाचार पत्र में अंतरा- शब्दशक्ति पेज पर रोज 7-8 अंतरा सदस्यों की रचना सोमवार से शुक्रवार तक प्रकशित होती रही। जिसमें अब तक हज़ारों रचनाकार शामिल हुए।
16फरवरी2017 को अंतरा को एक और मुकाम देते हुए फेसबुक पेज अंतरा-शब्दशक्ति के नाम से प्रकाशित किया जिसे लगभग 4600 सदस्यों ने अब तक पसंद किया है।
इस बीच हमनें साथ-साथ 4 अन्य कार्यक्रमों का भी संयोजन किया।
दो बिल्कुल विपरीत नज़रिये और सोच के लोगों ने एक साथ काम करने की आदत डाल ली और तब संस्था के पंजीकरण और प्रकाशन संबंधी विचार मन में आने लगे। तभी एक पत्रिका की परिकल्पना सामने आई, पर अंतरा के नाम से कोई अन्य पत्रिका पहले ही रजिस्टर्ड थी और किसी अन्य नाम के लिए मनोज जी की असहमति थी।
तब 1जुलाई 2017 से ‘अन्तरा-शब्दशक्ति’ के नाम से कुछ अलग करने का मन बनाया। तभी एक दिन वेबपत्रिका की बात मन में आई और मैंने मन की बात स्वीकार कर ली। बहुत सारे अवरोध आए पर संघर्ष जारी रहा।
आज परिवार और व्हाट्सअप और फेसबुक के समूह में सभी ने हर कदम पर सक्रियता और स्नेह के जरिये हौसला बढ़ाया तभी कदम बढ़ते रहे, कारवां बढ़ता गया। परिणाम स्वरूप अंतरा-शब्दशक्ति के दो वर्ष पूरा होने के पूर्व ही स्वप्न को एक साकार रूप देने की कोशिश की है। जो कुछ दिनों से प्रतीक्षित था।
छोटे से गांव *वारासिवनी* से पूरा कर पाने में कुछ समस्याओं के चलते अनिश्चित था वो स्वप्न था हमारी अपनी वेबसाइट,…
आज भी नित नए प्रयास जारी हैं आज 19 अंक वेब मैगज़ीन के प्रकाशित हो चुके है। अन्तरा-शब्दशक्ति विमोचन एवं सम्मान 3 फरवरी 2018 को 7 साझा संकलन एवं भाषासारथी सम्मान के साथ मातृभाषा.कॉम के एक संकलन का विमोचन सम्पन्न किया।
यहां से फिर एक नई राह खुली संपादन के साथ स्वयं का प्रकाशन ।
अन्तरा-शब्द शक्ति प्रकाशन आरम्भ करने का नया संकल्प 25 मार्च को मूर्त रूप में सामने आया। उद्देश्य हिन्दी साहित्य को कम से कम मूल्य पर एवं संचार माध्यमों एवं नई तकनीकियों के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु आंदोलन में सक्रिय सहभागिता।
आज अन्तरा शब्दशक्ति एक ऐसा सृजन मंच जो शब्द से शक्ति का विस्तार करके हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के साथ-साथ स्त्री शक्ति, युवा शक्ति और नवांकुरों के साथ-साथ स्थापित रचनाकारों की विविध विधाओं में निहित रचना प्रतिभाओं को एक मंच पर लाकर वैश्विक स्तर पर लाने हेतु प्रयासरत है। अंतरा-शब्दशक्ति, वेबसाइट, मासिक वेबपत्रिका (ई मैगजीन), समाचार पत्रों में प्रकाशन के माध्यम से तथा सप्ताह का कवि विशेषांक (एक कवि का परिचय रचनाओं सहित हर रविवार सार्वजनिक मंच पर समीक्षा हेतु प्रस्तुत) वेबसाइट, फेसबुक पेज, फेसबुक ग्रुप और व्हाट्सअप ग्रुप के माध्यम से वृहद पर रचनाकारों को जनमानस से जोड़ता है।
अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन के माध्य से साझा संकलन, स्मारिकाएँ, समीक्षाएं आदि भी प्रकाशित करवाकर प्रतिभाओं को सामने लाने का सतत प्रयास जारी है। साझा संकलनों, लघु पुस्तिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाता है। 25 मार्च 2018 को प्रकाशन पंजीकृत हुआ तब से अब तक 310 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी है। 2019 विश्व पुस्तक मेला में सम्मिलित हुए।
अब जून 2019 से अन्तराशब्दशक्ति एक पंजीकृत संस्था के रूप में भी सेवाएँ देगी।
1-2 जून को 70 पुस्तकों के विमोचन एवं सम्मान का भव्य आयोजन और साहित्य सम्मेलन वारासिवनी में भव्य रूप में सम्पन्न हुआ।
आशा है हम सब मिलकर अंतरा-शब्दशक्ति को हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु प्रयासरत रहते हुए साहित्य के आकाश का चमकदार सितारा बना पाएंगे।
डॉ प्रीति सुराना
संस्थापक, संचालन एवं संपादक
अन्तरा-शब्दशक्ति
वरिष्ठ साहित्यकार
वारासिवनी मध्यप्रदेश