इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी
“किसी ने इंदिरा गाँधी को ‘कोल्ड ब्लडेड रूथलेस वोमन’ (Indira Gandhi is a cold blooded ruthless woman) कहा | क्या आपको पता है किसने ?”, अचानक इंटरव्यू बोर्ड के एक सम्मानित सदस्य ने अकस्मात् ही पूछा | आज से कुछ ५० वर्ष पूर्व, आईएएस की लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद, मार्च १९७२ के पहले हफ्ते में, मेरा इंटरव्यू UPSC दिल्ली में चल रहा था | इंटरव्यू शुरू हुए कुछ मिनट ही बीते थे | उन दिनोंआईएएस तथा अन्य सेंट्रल सर्विसेज के लिए केवल एक ही बोर्ड होता था और ८ सदस्य |आज कल तकरीबन ७ ऐसे बोर्ड बैठते हैं | मुझे इन में सेवा निवृत्त होने के बाद कई बार सदस्य के रूप में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है | पर उस दिन मैं कैंडिडेट थी और बोर्ड के सामने इंटरव्यू दे रही थी |
मुझे उस समय उत्तर तुरंत याद नहीं आया तो मैंने ईमानदारी से कहा, “जी नहीं |” माननीय सदस्य ने विषय बदलने के पहले संयोगवश कहा, “हेनरी किसिंजर ने”| बिना कुछ सोचे समझे मेरे मुँह से निकल गया कि, “तब तो यह बड़ी प्रशंसा है |” (it is a great compliment, Sir!) इंटरव्यू अंग्रेज़ी में हो रहा था | बस यहीं से पूरे इंटरव्यू का रुख बदल गया | बोर्ड के सारे सदस्यों ने एक साथ प्रश्न दागने शुरू कर दिए | “यह आप कैसे कह सकती हैं ?”, “क्या मतलब?”
एक क्षण के लिए तो मैं सकते में आ गयी | मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण इंटरव्यू चल रहा था | मुझे हर जवाब सोच समझ कर देना था और विवादास्पद जवाबों से दूर ही रहना था | पर तीर तरकस से निकल चुका था।अपने आप को संतुलित करके मैंने पूरे विश्वास के साथ भारत और अमरीका के राजनैतिक संबंधों की विवेचना शुरू कर दी | अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट हेनरी किसिंजर बांग्ला देश युद्ध में इंदिरा जी के पूर्णतः विरोध में थे | वही नहीं, तत्कालीन सोवियत यूनियन को छोड़ कर कोई भी देश भारत के पक्ष में नहीं था | अमरीका ने तो जल युद्ध की चेतावनी भी दे दी थी | इस सब की भी एक पृष्ठभूमि थी |
अमरीका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के समय में भारत और अमरीका के बीच सम्बन्ध ठीक ठाक थे | जवाहर लाल नेहरू की गुट निरपेक्ष नीति के बावजूद अमरीका ने भारत को हमेशा तत्कालीन सोवियत यूनियन के अधिक करीब समझा | इंदिरा जी के प्रधान मंत्री बनने के कुछ महीनों में ही भारत पर खद्यान्न की कमी का भारी संकट आ पड़ा था | राष्ट्रपति जॉनसन के समय में हमें भारी मात्रा में अमरीका से गेहूं आयात करना पड़ा | वह लाल रंग का गेहूं इतनी निकृष्ट गुणवत्ता का था कि उसे भारतीय मवेशियों ने भी ठुकरा दिया | नतीज़ा यह हुआ कि भारत, डॉक्टर एम् एस स्वामीनाथन के नेतृत्व में, हरित क्रांति लाने में जुट गया और भारत – अमरीका संबंधों में थोड़ी गिरावट आई | उसके बाद रिचर्ड निक्सन वहां के राष्ट्रपति बने और हेनरी किसिंजर सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट | वह राजनैतिक दृष्टि से पकिस्तान के काफी करीब थे | भारत के परमाणु ऊर्जा प्रयोग और अन्तरिक्ष अभियान भी उनकी नज़र में खटक रहे थे|
पूर्वी पाकिस्तान में १९७० में चुनाव हुए और शेख मुजीबुर रेहमान प्रधान मंत्री के रूप में चुने गये | पर पश्चिमी पाकिस्तान, जो पूर्वी पकिस्तान के साथ लगातार सौतेला व्यवहार कर रहा था, ने चुनाव के नतीज़ों को रद्द कर के शेख मुजीबुर रेहमान को गिरफ़्तार कर लिया | पूर्वी पकिस्तान की जनता ने इस का कड़ा विरोध किया जिसे पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने बेहद क्रूरता से दबाया | लिहाज़ा लगभग १ करोड़ शरणार्थी पूर्वी पकिस्तान से भारत आ गए और उस से भी ज़्यादा अन्य देशों में चले गए |
भारत के सामने एक निर्णायक कदम लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं था | इंदिरा जी के सशक्त नेतृत्व में भारत ने ३ दिसंबर १९७१ को पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया | यह युद्ध केवल १३ दिन चला और १६ दिसम्बर १९७१ को पश्चिमी पाकिस्तान के १० हज़ार से अधिक सैनिकों और अफसरों ने भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोरा के समक्ष आत्मसमर्पण किया | ऐसी मुंहतोड़ हार के बहुत कम उदाहरण इतिहास में मिलेंगे|पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान की जकड से मुक्त हुआ और एक नए देश, ‘बांग्लादेश’ का जन्म हुआ | इंदिरा गाँधी ने सब अमरीकन चेतावनियों को ताक पर रख कर एशिया का नक्शा ही बदल दिया |
सारे भारत ने एक स्वर से इंदिरा जी का और भारतीय सेना का अभिनन्दन किया | इंदिरा ने अमरीका को उसकी औक़ात दिखा दी थी | एक भन्नाए हुए विरोधी के अपमान जनक शब्द प्रशंसा नहीं तो और क्या है ? (बाद में किसिंजर ने अपने शब्द वापिस लिए और सार्वजानिक क्षमा याचना भी की थी |) पश्चिमी पकिस्तान आज भी न ही इस हार को और न ही इस अपमान भूल पाया है |
प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने भारत को एक ऐसा गौरव दिया कि विश्व प्रसिद्द चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन ने उन्हें अपनी पेंटिंग में माँ दुर्गा के रूप में कैनवास पर उतारा, असम के डी के बरुआ ने एलान किया ‘इंदिरा ही इंडिया है”, विपक्ष के नेताओं ने भी उन्हें सराहा, जब कि कुंठित और निराश अमेरिका के हेनरी किसिंजर ने उन्हें एक ‘कोल्ड ब्लडेड रुथलेस वोमन’ की पदवी से नवाज़ा |
इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों को यह जवाब बेहद पसंद आया और फिर एकदम तनाव रहित माहौल में सामान्यतः २० -२५ मिनट चलने वाला इंटरव्यू मेरे लिए ४५-५० मिनट चला | ज़ाहिर है मेरे विचार से यह इंदिरा गाँधी की सर्वोत्तम उपलब्धि है |
एक बात और जो थोड़ा विषय से हट कर है | अंग्रेजी राज में १९४३ में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था | ४० लाख से अधिक लोग केवल बंगाल में ही भूख से मर गए थे | सब जानते हैं कि यह अंग्रेजी हुकूमत की दुर्व्यवस्था के कारण हुआ था | जब हमें आवश्यकता थी तब जानवरों के भी न खाने लायक गेहूं अमरीका ने हमें दिया| आज जब इंदिरा जी के कार्यकाल में शुरू हरित क्रांति के कारण भारत गेहूं और चावल निर्यात करने वाला एक प्रमुख देश है, रूस और यूक्रेन के युद्ध के सन्दर्भ में हमें बताने की कोशिश की जा रही है कि हम अपने देशवासियों का ख्याल छोड़ कर अपना खद्यान्न यूरोप को निर्यात करें | मुद्दा यह नहीं है कि भारत को खाद्यान्न इस समय निर्यात करना चाहिए या नहीं | मुद्दा यह है कि स्वतंत्र सशक्त भारत को अपने जनहित का ध्यान रखते हुए कोई भी न्यायोचित निर्णय लेने का पूर्ण रूप से अधिकार है और यह बात विश्व पर्यन्त समझ लेनी चाहिए |
बांग्ला देश मुक्तिकरण और हरित क्रांति के अलावा इंदिरा जी ने भारत को अपने प्रधान मंत्री के कार्यकाल के दौरान कई क्रांतिकारी कदम उठाये जिनका गहरा प्रभाव भारत के वर्तमान पर ही नहीं बल्कि भविष्य पर भी पड़ा | भारत की विदेश नीति के अलावा इन सबका हमारे सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों पर भी स्थाई असर पड़ा | अगर गिनाने बैठूं तो सबसे पहले याद आता है १९६९ में १४ प्राइवेट सेक्टर बैंकों का राष्ट्रीयकरण | इंदिरा गाँधी ने भारत को ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था और उनके इस क्रान्तिकारी कदम से भारत की पूरी अर्थ व्यवस्था की रूपरेखा ही बदल गयी | कई नज़रअंदाज़ किये हुए सेक्टरों जैसे कि कृषि, मध्यम, छोटे और गृह उद्योग, ग्रामीण इलाके इत्यादि को बैंकों से ऋण लेने की सुविधा उपलब्ध कराई गयी | यह विषय इतना विस्तृत है कि यहाँ उसका पूर्ण विवेचन संभव नहीं है| संक्षिप्त में कहूँ तो यह वो मज़बूत नीव है जिस पर आज का आधुनिक भारतीय बैंकिंग सिस्टम टिका हुआ है | आज (२०२२) के प्रधान मंत्री की लोकप्रिय जनधन योजना कभी भी कार्यान्वित न हो पाती यदि बैंकों का राष्ट्रीयकरण न हुआ होता |
हाल ही में मैं किसी काम से बैंक गयी तो पाया कि कई छोटे छोटे बच्चे स्कूल की यूनिफार्म पहने अपने माता या पिता के साथ बैंक आये थे | सब वंचित वर्ग से थे | मैं देख रही थी, एक सात – आठ साल की बालिका ने बड़े गर्व से खाता खोलने के रजिस्टर पर हस्ताक्षर किये | उसके तथा उसके पिता के चेहरे के भाव देखने लायक थे – हर्ष और अभिमान से परिपूर्ण | मेरे पूछने पर कि पहले कभी इतने बच्चे बैंक में नहीं देखे मैनेजर ने बड़े ही संतोष से बताया कि सरकार बच्चों को कई तरह की योजनों के अंतर्गत मदद कर रही है और उन सबके लिए बच्चों का बैंक अकाउंट होना ज़रूरी है | सन १९६९ में यह अकल्पनीय था |
और बहुत सारे सराहनीय कदम जैसे कि प्रिवी पर्सेस का उन्मूलन | मेरे विचार से स्वतंत्र और लोकतंत्रीय भारत में जिसके संविधान में हर नागरिक को समान अधिकार दिए गए हैं, राजाओं और महाराजाओं का कोई स्थान नहीं था | एक ही निर्णय से राजे- महाराजे और देश की आम जनता का फर्क मिट गया | एक सामंती मानसिकता वाले देश में यह ज़रूरी था | वैसे हमारे लोकतन्त्र से पुराना लोकतान्त्रिक इंग्लैंड आज भी यह कदम नहीं उठा सका है |
भारत का सबसे पहला परमाणु बम परीक्षण जो कि मई १९७४ में इंदिरा जी के कार्य काल में किया गया | किसी भी देश की स्वतंत्रता उसके अपने बल बूते पर ही टिकी होती है | जहाँ तक परमाणु बम का सवाल है उसका होना शायद उतने मायने नहीं रखता जितना कि न होना | क्या आप आज ऐसी परिस्थिति कि कल्पना भी कर सकते हैं जिसमे भारत के पास न तो परमाणु बम हो और न ही परमाणु ऊर्जा के शांति पूर्वक विकास के साधन ? इसी क्षमता पर भारत ने फिर १९९८ में, जब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधान मंत्री थे, डॉक्टर अब्दुल कलाम के नेतृत्व में परमाणु बम का परीक्षण पोखरन में किया और भारत को एक पूर्ण रूप से परमाणु शक्ति से विकसित राष्ट्र घोषित किया गया | इंदिरा जी के समय की तरह इस बार भी (१९९८) यह सब अमरीका के जासूसों (CIA) की नज़रें बचा कर किया गया था | भारत का अमरीका तथा यूरोप के अन्य देशों द्वारा जम कर विरोध हुआ | मैं उस समय (१९९८) भारत सरकार में कॉमर्स मिनस्ट्री में थी और मुझे अच्छी तरह याद है कि भारत पर कई प्रतिबन्ध लगाए गए और कहा गया कि हमें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी | उस पर भारत सरकार ने स्वयं ही किसी भी देश से कोई भी वित्तीय सहायता लेने से इंकार कर दिया और कई पिछड़े हुए देशों को वित्तीय सहायता देनी शुरू कर दी थी |
भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम | इंदिरा गाँधी के कार्यकाल के आखिरी वर्ष (१९८४) में राकेश शर्मा पहले भारतीय थे जो अंतरिक्ष यात्रा भेजे गए | भारत के एटॉमिक एनर्जी तथा अंतरिक्ष की खोज की योजनाओं की बुनियाद प्रख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के सुझाव पर १९६२ में भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने डाली थी | इंदिरा गाँधी ने उसको आगे प्रोत्साहन दिया और एक हिन्दुस्तानी पहली बार अंतरिक्ष में गया | एक छोटी सी शुरुआत से आज हमारा अंतरिक्ष प्रोग्राम इतना सशक्त है कि कुछ साल पहले (२०१७) भारत ने एक साथ कई देशों की १०१ सैटेलाइट्स व्यापारिक तौर पर लांच करीं | नेहरू और इंदिरा के समय में कई लोगों ने भारत जैसे विकासशील देश को इतनी धन राशि अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा सम्बंधित योजनाओं पर खर्च करने पर प्रश्न उठाये थे | उन सब का जवाब विक्रम साराभाई के शब्दों में ही देना चाहूँगी |
“There are some who question the relevance of space activities in a developing nation. To us, there is no ambiguity of purpose. We do not have the fantasy of competing with the economically advanced nations in the exploration of the Moon or the planets or manned space-flight. But we are convinced that if we are to play a meaningful role nationally, and in the community of nations, we must be second to none in the application of advanced technologies to the real problems of man and society, which we find in our country. And we should note that the application of sophisticated technologies and methods of analysis to our problems is not to be confused with embarking on grandiose schemes, whose primary impact is for show rather than for progress measured in hard economic and social terms.”— Vikram Sarabhai
संक्षिप्त में – ‘कुछ व्यक्ति एक विकासशील देश में अंतरिक्ष सम्बन्धी योजनाओं की आलोचना करते हैं | हमारे लिए लक्ष्य साफ है | हमें किसी भी देश की होड़ नहीं करनी है | पर हमें आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल अपने समाज की समस्याओं को सुलझाने में करना है | और इसमें हमें विश्व के किसी भी देश से पीछे नहीं रहना है | हमें दिखावटी तरीकों या अपनी डींग हाकने में कोई दिलचस्पी नहीं है | हम तो केवल एडवांस्ड टेक्नोलॉजिस का उपयोग अपने देश और समाज के उत्थान के लिए करने के लिए कटिबद्ध हैं |’
ऑपरेशन ब्लू स्टार – जिसमे जरनैल सिंह भीन्दराणवाले, जो खालिस्तान आंदोलन के नेता थे, की भारतीय सेना ने श्री हरिमंदिर साहेब अमृतसर के अंदर जा कर हत्या की थी (जून १९८४) | उस समय ख़ालिस्तानी आतंकवाद अपनी चरमसीमा पर था । उन्हें पंजाब को भारत से अलग कर के एक अलग देश चाहिये था। पाकिस्तान और अन्य कई देशों की मदद से पंजाब में मासूम लोगों की हत्या हो रही थी । एक बार फिर निर्णायक क़दम की ज़रूरत थी । इंदिरा ने सेना को आदेश दिए और सब आतंकवादियों सहित, जो पवित्र गुरूद्वारे में छुपे बैठे थे, जरनैल सिंह की भी हत्या की गई | इसी ऑपरेशन ने आखिर में इंदिरा जी की जान ले ली |चार महीने बाद ही उनके अपने सिख अंगरक्षकों ने पॉइंट ब्लेंक रेंज से उसी बन्दूक से,जो इंदिरा जी की सुरक्षा के लिए दी गयी थी, कई गोलियां उनके सीने में उतार दीं | किसी का भी आसानी से विश्वास न करने वाली इंदिरा ने अपने सिख अंगरक्षकों का अमृतसर काण्ड के बावजूद और सुरक्षा एजेंसी के चेतावनी देने के बाद भी इतना भरोसा कर लिया ? ठीक ही कहते हैं – होनी को कौन टाल सकता है |
इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी – विश्व के सबसे विशाल प्रजातंत्र की तीसरी, आज तक की पहली और आखिरी महिला प्रधान मंत्री | गौर वर्ण, एक सुंदर सी सिल्क साड़ी में सुजज्जित,गले में रुद्राक्ष की माला, सबल, सशक्त,सौम्य व्यक्तित्व की स्वामिनी इंदिरा गाँधी को बहुत सराहा भी गया और उनकी बहुत आलोचना भी हुई |
उनकी सबसे बड़ी आलोचना का विषय रहा है २५ जून १९७५ को आपातकालीन स्थिति (emergency) की घोषणा | इस विषय पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और आगे भी लिखी जाएँगी | यह इतना विस्तृत है कि इस छोटे से लेख के दायरे से बाहर है | मैं यहाँ सिर्फ इतना ही कहूँगी कि इमर्जेन्सी से यह तो स्पष्ट है कि उस समय भारत की न्याय व्यवस्था एग्जीक्यूटिव से पूर्ण रूप से स्वतंत्र थी | कैसे ? इलाहाबाद कोर्ट के जस्टिस सिन्हा ने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के चुनाव को श्री राज नारायण के पेटिशन पर रद्द कर दिया था | सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी के कृष्ण आइय्यर ने इंदिरा जी की अपील को ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला सही ठहराया। आज जब हमारे न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने के बाद या तो राज्य सभा के सदस्य नामजद होते है या फिर कहीं राज्यपाल बनते हैं, तो क्या वह इस प्रकार का निर्णय देने का साहस करेंगे ?
इमरजेंसी के २१ महीनों में जो आंदोलन चले, जैसे कि बिहार में जय प्रकाश नारायण जी की ‘सम्पूर्ण क्रांति’ वग़ैरह, उन्होंने भविष्य के कई नेताओं को जन्म दिया | कई नेतागण जिनका राजनैतिक जीवन समाप्त हो गया था या गहरी निद्रा में चला गया था, फिर से जाग्रत हो गए | मैं कभी भी इमरजेंसी की वकालत नहीं करूंगी | वह एक गलती थी। पर कुछ लोगों का मानना है कि कई बार बिना किसी कानून के भी जनता और मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन होता है और यह घोषित इमरजेंसी से भी अधिक खतरनाक होती है | वैसे श्री राजनारायण भी उत्तर प्रदेश विधान सभा के सोशलिस्ट पार्टी (उन्होंने कई बार पार्टी भी बदलीं ) से सदस्य थे | विरोधी पक्ष के नेता थे और विधान सभा के सामने एक हरे रंग का वस्त्र अपने सिर पर लपेट कर ढोल बजा कर अपना विरोध प्रकट करते थे | मैं उस समय एक छोटी बच्ची थी | हम विधान सभा से केवल कुछ फ़र्लांग की दूरी पर कोठी नम्बर १ और दो ( ओल्ड काउंसिलर रेज़िडेंस) में रहते थे। मेरे स्कूल, कालेज और विश्व विद्यालय के रास्ते वहीं से जाते थे । मैंने स्वयं उनका ढोल बजाना देखा और सुना है | मुझे वह बहुत मनोरंजक लगता था | हम बच्चे उन्हें देख कर बहुत हँसते थे | सुना था कि इलाहाबाद न्यायालय के निर्णय से सबसे ज़्यादा आश्चर्य राजनारायण जी को ही हुआ था |
इंदिरा जी और मेरे पिता जी लगभग हमउम्र थे पर पिता जी का जन्म इलाहाबाद से करीब ४०० कि मी की दूरी पर स्थित बरेली ज़िले के आंवला नामक कस्बे में हुआ था | एम ए और एल एल बी की पढाई उन्होंने लखनऊ से की थी | पढाई के दौरान ही १९४२ में महात्मा गाँधी का ‘भारत छोड़ो’ (Quit India) आंदोलन चला | पिता जी विद्यार्थी थे पर भाग लिया और जेल भेजे गए | उस समय एक ही उद्देश्य था, अंग्रेज़ी हुकूमत से भारत को आज़ाद करना है | पिता जी ने जेल से आकर पढाई पूरी की और एक बड़ी कंपनी में मैनेजर नियुक्त हो गए | वह चोरी छुपे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते रहे | भारत के स्वाधीन होने के बाद हमारे नूतन संविधान के अंतर्गत राज्यों और केंद्र में सबसे पहले आम चुनाव १९५१ -५२ में हुए | पिता जी उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए हुए चुनावों में विजयी हो कर मई १९५२ में गठित उत्तर प्रदेश की पहली विधान सभा के सदस्य बने |
उधर १९४२ में इंदिरा नेहरू का विवाह फीरोज़ गाँधी से हुआ और उन दोनों को भी इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उसी वर्ष जेल हुई | ‘फ़ीरोज़ गाँधी लखनऊ में रहते थे और दो बेहद लोकप्रिय और महत्वपूर्ण समाचार-पत्रों के कर्ता धर्ता थे – नेशनल हेराल्ड (अंग्रेजी) और नवजीवन (हिंदी) | मेरे पिता जी राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर अक्सर अंग्रेजी में लिखते थे और उनके लेख नेशनल हेराल्ड में नियमित तौर पर प्रकाशित होते और बेहद सराहे जाते थे | विवाह के पश्चात् इंदिरा भी अपने पति के साथ लखनऊ में हज़रतगंज और उस के निकट ‘ला प्लास’ रोड पर रहीं | मेरे पिता जी की कर्म भूमि आंवला (चुनावी क्षेत्र) और लखनऊ (उत्तर प्रदेश विधान सभा) दोनों थे । पर उनका अधिकतर समय आंवला में ही बीतता था|उन्होंने मुझे ६ महीने की उम्र में मेरी माँ के साथ अपनी बड़ी बहन (मेरी बड़ी बुआ जी) के पास लखनऊ रहने को भेज दिया था | युवा नवल किशोर अपने क्षेत्र के विकास में इतने व्यस्त थे कि उनके पास अपनी पत्नी और छोटी सी बच्ची के लिए न ही समय था और न ही साथ रखने के संसाधन | कुछ ऐसे ही जैसे कि पिता जवाहर को नन्ही सी इंदिरा के लिए समय ही न था |
मेरे पिता जी १९७० में राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित हो कर दिल्ली आये और उनके साथ मेरी माँ, छोटी बहन और मैं | बड़ी बुआजी भी अधिकतर दिल्ली में हम सबके साथ रहती थीं | दिल्ली में ही पिता जी का इंदिरा गाँधी से अधिक संपर्क हुआ | इमरजेंसी का पिता जी भी अवश्य विरोध करते क्योंकि उन्होंने हमेशा सही का साथ दिया और ग़लत का विरोध, पर १९७५ मार्च में उनका अल्प आयु में ही हार्ट अटैक से देहांत हो गया।
इंदिरा गाँधी मेरे विवाह में मेरे पिता जी के निमंत्रण पर हम दोनों को आशीर्वाद देने के लिए सम्मलित हुईं | बड़ी अनौपचारिकता से बड़ी देर रुकीं | मुझे याद है कि उनके सिक्योरिटी संचालक काफी सतर्कता से सब ओर नज़र रखे हुए थे और उनके हमारे यहां इतनी देर रुकने से थोड़े परेशान भी | अपने विवाह के दो फोटो आपके साथ साझा कर रही हूँ |
मेरे विवाह में: इंदिरा गाँधी (तत्कालीन भारत की प्रधान मंत्री), फाल्गुनी राजकुमार (मेरे पति) और मैं (११ मार्च १९७४).
मेरे पिता जी – नवल किशोर (तत्कालीन राज्य सभा सदस्य), मेरे पति – फाल्गुनी राजकुमार, मैं, इंदिरा गाँधी (तत्कालीन भारत की प्रधान मंत्री) और मेरी माँ – कौशल्या देवी (११ मार्च १९७४)
सारांश में केवल इतना कहूँगी कि मेरा व्यक्तिगत रूप से किसी भी राजनैतिक दल से कोई सम्बन्ध नहीं है । देश निर्माण में हर प्रधान मंत्री का अपना योगदान होता है | उनका ही नहीं जीवन के विभिन्न दायरों से जुड़े हर व्यक्ति – चाहे वह डॉक्टर हो या इंजीनियर हो या एडमिनिस्ट्रेटर हो या राजनैतिज्ञ हो या इंडस्ट्रियलिस्ट हो या केवल एक नागरिक हो – सब का अपना सम्मलित प्रयास होता है | जैसे कि किसी भी ईमारत में हर ईंट और हर सलाख का अपना अपना महत्व होता है | एक स्वाधीन देश के शुरू के प्रधान मंत्री जो मज़बूत बुनियाद रखते हैं, उसी के ऊपर आने वाले प्रधानमंत्री एक शानदार ईमारत खड़ी करते हैं |आज की कांग्रेस पार्टी में क्या हो रहा है, क्या सही और क्या ग़लत है उस सब से इस लेख का कोई सरोकार नहीं है। मैं तो बस यही कहना चाहूँगी कि स्वाधीन भारत के नव निर्माण में और एशिया का नक्शा बदलने में इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी की भूमिका को कोई भी कभी भी, न तो अभी और न ही भविष्य में, नकार सकेगा |
नीरजा राजकुमार
आई ए एस (सेवा निवृत्त)
भूतपूर्व मुख्य सचिव
कर्नाटक सरकार