एक नई सुबह
माना गहरा है रात का अंधियारा,
है घोर तमस,
नहीं गगन में एक भी तारा,
छुप गया चाँद भी,
ग़मों की बदलियों में,
सुबक पड़ी चांदनी,
बादलों का लेकर सहारा।
माना तूने खोया प्यार जीवन का,
कहां गया वह हँसता चेहरा,
वह मीठी बातें, वह साथ तुम्हारा।
इस बेरहम महामारी ने,
तोड़ दिया एक ही झटके से
जन्म जन्मों का वो साथ तुम्हारा।
बच्चे से माँ को छीना,
बहन से भाई को,
हुआ किसी माँ का आँचल सूना,
कहीं रो रहा बेटा,
देख बाप की मय्यत,
तो कहीं बूढ़े कंधे ढो रहे,
शव जवान बेटे का।
यह कैसा कहर है,
ओ परमात्मा !
दोस्त ने दोस्त को खोया,
कोई न रहा पूरी धरती पर,
इस प्रकोप से अछूता।
माना यह देह है नश्वर,
पंचभूत से बनी ये काया,
समा जायेगी एक दिन,
भूमि, जल, वायु, अग्नि और
आकाश में,
पिंजड़ा तोड़, अजन्मी अमर आत्मा,
मिल जाएगी, असीमित अनंत व्योम में।
माना आएंगे सबके पड़ाव,
कुछ के पहले तो,
कुछ के पल भर बाद।
भय मृत्यु से नहीं,
ओ कान्हा !
डरती हूँ मैं इस बढते महाकाल से,
काल भैरवी के नग्न नृत्य से ।
क्षमा कर दो हम सबको,
ओ कान्हा!
आ जाओ अपने सौम्य रूप में।
लौटा दो सुख चैन हमारा,
बच्चों को मासूम बचपन,
खेलें कूदें शाला में जाएँ,
ईद और दिवाली पर फिर,
हम दोस्तों को गले लगाएं।
हम सब को,
लौटा दो साँसें हमारी।
सुना है,
हर सहर की किस्मत में,
एक नई सुबह भी होती है,
क्या ऐसा दिन आएगा,
फिर से उगेगा चांद गगन में,
चांदनी खनक कर मुस्कुराएगी।
फिर से सूरज की बिंदिया
चमकेगी धरती के माथे पर,
मंदिरों में घंटियाँ और
होगी अज़ान मस्जिदों में,
फिर से होगा अमन चैन,
और,
फिर से होगा जग में उजियारा।
(शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए आशावादी होना अनिवार्य है । दुख के बादल आते हैं पर उन्ही से सुख का मूल्य पता लगता है। हमें कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि हर रात के बाद सुबह फिर आती है ।
यह कविता मैंने मई २०२१ में लिखी थी जव कोविड का प्रकोप अपनी चरम सीमा पर था। मेरी प्रिय सखी जो उस समय अपने पति की मृत्यु से बिलकुल बिखर सी गयी थी, फिर से जीना सीख रही है ।आज उस नई सुबह की किरणें फिर से मुस्कुरा रही हैं । )
नीरजा राजकुमार
आई. ए. एस (सेवा निवृत्त)
भूतपूर्व मुख्य सचिव, कर्नाटक