डॉ. सच्चिदानंद जोशी से अलका सिन्हा का संवाद
वातायन-वैश्विक की 91वीं वार्ता संगोष्ठी में प्रसिद्ध रंगकर्मी, संस्कृति साधक, व्यंग्यकार, निबंधकार एवं शिक्षाविद् श्री सच्चिदानंद जोशी जी के साथ अक्षरम साहित्यिक संस्था की महासचिव प्रसिद्ध कथाकार एवं कवयित्री अलका सिन्हा जी का आत्मीय संवाद सकारात्मक रचनात्मकता के भाव से मन को समृद्ध करने वाला रहा। अलका जी के सहज किंतु सटीक प्रश्नों ने न केवल जोशी जी के रचना संसार के भीतर प्रवेश दिलाया अपितु हमें अपना वह कोना भी दिलाया जहाँ से बैठकर हम उनके निजी जीवन की एक झलक पा सकें। इस आत्मीय संवाद ने हमारा परिचय डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी की माँ पद्मश्री से सम्मानित आदरणीय मालती जोशी जी के विराट लेखकीय व्यक्तित्व से परे एक ऐसी पारिवारिक महिला से कराया जिन्हें लेखन के लिए किसी विशेष मेज़ की आवश्यकता नहीं होती थी। खाने की मेज़ पर घर के कामों से फ़ुर्सत मिलते ही लिखने बैठ जाया करती थी। अच्छी लिखावट न होने के कारण सच्चिदानंद जी की रचना प्रकाशित होने के सुख से वंचित न हो जाए इसीलिए उसे अपनी सुंदर लिखावट में सजाने वाली मालती जी के उच्च आदर्शों के बारे में जानकारी मिली कि उन्होंने कभी किसी प्रकाशक से सच्चिदानंद जी की पैरवी नहीं की। मूँगफली के छिलकों से अटी पड़ी, धूम्रपान के दम घोंटू वातावरण वाले रेलवे के तृतीय श्रेणी के डिब्बे में अपनी घनिष्ठ मित्र मालविका जोशी जी को परिणय-निवेदन वाले प्रसंग को सुनकर ऐसा लगा मानो उनकी प्रेम कहानी का वह नाटकीय पल जीवंत हो गया हो । मूल रुप से मराठी में लिखित और हिंदी में ढाई आखर प्रेम के नाम से प्रकाशित कहानी के मंचन के लिए सच्चिदानंद जी ने लगभग पच्चीस वर्षों की लंबी प्रतीक्षा की ताकि वे कथानक के मुख्य पात्र 50 वर्षीय प्रोफ़ेसर की भूमिका के साथ न्याय कर सकें। अपने आस-पास घटित होने वाली कहानियों को थोड़े बहुत नाटकीय परिवर्तन के साथ अपनी लेखनी में ढालने वाले डॉ. सच्चिदानंद जी जीवन के हर पहलू में सकारात्मक भाव को चुन लिया करते हैं जिसके कारण उनकी रचनाओं को पढ़ते समय पाठक की आँखें गीली हो जाती हैं। अलका सिन्हा जी ने डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी से सभी उपस्थित दर्शकों का प्रतिनिधित्व करते हुए उनकी जिज्ञासा को साझा किया। जितनी ख़ूबसूरती से अलका जी ने उनसे प्रश्न पूछे उतनी ही ख़ूबसूरती से डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी ने उनके उत्तर दिए।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी के रचना संसार पर विशेष टिप्पणी के लिए पहले आमंत्रित वक्ता प्रो. रवि प्रकाश टेकचंदानी जी ने उनके नाम की बड़ी सुंदर व्याख्या करते हुए कहा कि जिनके चित्त में सत्य है और जो सदा आनंद में रहते हैं वही सच्चिदानंद जोशी जी हैं। रवि प्रकाश जी ने डॉ. सच्चिदानंद जी के लिए संस्कृतिकर्मी की जगह संस्कृति साधक शब्द प्रयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने विशेष रुप से उनके कथा संग्रह ‘पुत्रिकामेष्टि’ के शीर्षक कथा की चर्चा की। पुस्तक का शीर्षक ही कौतुहल उत्पन्न करने वाला है। जहाँ समाज में पुत्र की कामना में दर्जनों बेटियाँ जनी जाती हों वहाँ पुत्री की कामना अपने आप में आश्चर्य ही हो है।
डॉ. कुमुद शर्मा जी ने बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी सच्चिदानंद जी की रचनाओं में सकारात्मकता का भाव भरने वाले उनके वैविध्यपूर्ण अनुभव एवं उनके प्रेरक विचारों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जोशी जी की रचनाओं की विशिष्टता है – नवाचार जो बाज़ारवाद पर आधारित न होकर मानवीय संवेदनाओं पर आधारित है और इन्हें रचते हुए भी जोशी जी अपने लेखकीय कर्तव्यों को नहीं बिसारते हैं। जोशी जी की रचनाओं में यथार्थ की अनगिनत परतें होती हैं। पात्रों के अंतर्मन में प्रवेश की अनुमति देकर वे जीवन के यथार्थ के सभी सातों रंगों की छटा बिखेर देते हैं।
डॉ.लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी ने डॉ. सच्चिदानंद जी के विषय में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उनका रचना संसार जीवन को समृद्ध करता है। उनकी कविताएँ श्रेष्ठ कविताओं के मापदंड पर खरी उतरने वाली कविताएँ हैं जिनमें आज के बदलाव के सभी बिंब और चित्र समाहित हैं। डॉ. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी ने कहा कि कविताओं में तत्कालीन समय की चुनौतियाँ, विसंगतियाँ, भाव इत्यादि आना आवश्यक है और जोशी जी की रचनाएँ इस कसौटी पर खरी उतरती है। उन्होंने जोशी जी की कहानी ‘नमाज़’ को रेखांकित किया और साथ ही अपनी इच्छा बताई कि जोशी जो को पूर्णकालीन लेखक के रुप में सक्रिय होना चाहिए।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी ने कार्यक्रम में कुल तीन कविताओं का पाठ किया जिनमें से से पहली कविता ऑनलाइन गोष्ठियों में बजने वाली बिना आवाज़ की ताली को सुनने वाले पाठक को मंच के पीछे उस जगह ले जाती है जहाँ एक कलाकार अपने दोस्त की यादों में खोया हुआ उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। दूसरी कविता में एक ही कमरे में व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों रुपों में साथ-साथ ढलने वाले लोग अपने कमरों में अपना एक कोना तलाश रहे हैं क्योंकि दीवारों ने अब मिलना और मिलकर आपस में बतियाना छोड़ दिया है।
अंत में श्री अनिल शर्मा ‘जोशी’ जी ने डॉ.सच्चिदानंद जोशी जी की रचनाओं के विषय में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उनकी कविताएँ पटकथा की तरह लिखी होती हैं। बहुपक्षीय, बहुलतावादी और बहुआयामी जिनमें एक से अधिक पात्रों की उपस्थिति कविता को कहानी और संस्मरण का रुप दे देती है। डॉ.सच्चिदानंद जोशी जी के पास पत्रकारिता एवं जनसंचार का प्रदीर्घ अनुभव होते हुए भी उनकी रचनाओं की भाषा में जानकारी, सूचना अथवा प्रचार हावी न होकर मानवीय संवेदनाएँ समाहित हैं। डॉ. सच्चिदानंद जोशी जी में नाटक, कहानी, कविता, निबंध, व्यंग्य, इन सभी विधाओं को साधने की योग्यता है। डॉ. सच्चिदानंद जी की पुस्तक ‘पुत्रिकामेष्टि’ को वर्ष 2021 के दस सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में स्थान प्राप्त हुआ और अपनी संस्कृति साधना के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान के द्वारा सर्वोच्च सम्मान भी प्राप्त हुआ। अंत में श्री अनिल शर्मा ‘जोशी’ जी ने डॉ. सच्चिदानंद जी को उनके लेखन के लिए अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित की।
डॉ. पद्मेश गुप्त जी ने ब्रिटेन की साहित्यिक संस्था ‘वातायन समूह’ की ओर से आयोजित इस वार्ता संगोष्ठी को समापन की ओर ले जाते हुए सभी आमंत्रित वक्ताओं एवं दर्शकों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
आराधना झा श्रीवास्तव,
सिंगापुर