आगमन
जिस वक्त
द्वार खटखटाया गया
भीतर उसके
एक मद्धिम दिया जल रहा था
द्वार खोल कर देखा तो
बाहर विस्मय का धुंआ
जोर से उठ रहा था
वह भीतर घुस आया और
दृढ़ता से अपना हाथ
उसकी तरफ बढ़ाया
वह फटी आंखों से देखती रह गई
ऐसे,जैसे डूबता हुआ आदमी
बोलने का प्रयत्न तो करता है
पर बोल नहीं पाता…
साथ चलो, अब और देर मत करो
विचित्र अन्तर्द्वन्द करवट बदल कर उसे पागलपन की तरफ
घसीटने लगा
अंधे रास्तों और अंधेरे भविष्य वाला कोहरा दिलो दिमाग पर
छा चुका था….
उसने अपनी आत्मा को उतार कर अलगनी पर टांग दिया
भीतर की काई
क्षीण स्पंदन की भांति सांसे ले रही थी
उसकी हड्डियों की नींव पर
किसी के साम्राज्य का महल
खड़ा हो चुका था….
उसका आगमन,आज
अखबारों की सुर्खियों में था….!
नंदा पांडेय
झारखंड, भारत