विश्व हिन्दी दिवस
हिन्दी माँ का दूध है , और हमारा पूत ।
सदा हमारे साथ है , मन भावों का दूत ।।
निज भाषा अभिमान है , यह भगवन वरदान ।
अंतस से है फूटता , नहीं भाव व्यवधान ।।
मात तात सम पोसता , है वटवृक्ष समान ।
निज निजता का भाव दे , है मेरा अभिमान ।।
विश्व भर में फैल गया , अपने दम पर शान ।
ऊँचा तिरंगा देश का , मिले धरा पर मान ।।
अक्षर वैज्ञानिक दिया , दुनिया को सौगात ।
हिन्दी में कविगण सदा , दिखलाते औकात ।।
तुलसी मीरा जायसी , या देखो रसखान ।
सबने मिलकर है दिया , सदा हिन्दी को मान ।।
संस्कृत मम जननी रही , कहती हिन्दी आन ।
अक्षर अक्षर जोड़कर , रखती अपनी शान ।।
कथा कहानी के लिए , प्रेमचंद ही काम ।
मुरलीधर के गीत को , सूरदास है नाम ।।
माँ ममता सा प्यार है , हिन्दी इसका नाम ।
मन अंतस सुगंध मिला , विश्व धरा ही धाम ।।
देती हूँ शुभकामना , फैले खुशबू गंध ।
निज भाषा ही बात हो , सदा भक्ति हो अंध ।।
प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
झारखंड, भारत