हिंदी चालीसा

हिंदी चालीसा

श्रेष्ठ, सुगढ़, सुखदायिनी, हिंदी सुहृद, सुबोध,

सरल, सबल, सुष्मित, सहज, हिंदी भाषा बोध।

नित-प्रति के व्यवहार में, जो हिंदी अपनाय,

’सरन’ सुसत्साहित्य का सो जन आनंद पाय।

जय माँ हिंदी, रुचिर भारती, सुकृत कृतीत्व सुपथ संवारती। १.

रचनाकारों के मन भाती, सत्साहित्य की ज्योति जगाती। २.

जगमग ज्योतित करे हृदय को, हुलसित-सुरभित करे कवि मन को। ३.

लेखनी को देती मृदु भाषा, कृतकों के श्रम की परिभाषा। ४.

संस्कृत भाषा से इहिं उपजी, प्राकृत, पाली से पुनि संवरी। ५.

कोउ वैदिक कोउ कहे खड़ीबोली, कोउ अपभ्रंश की बोले बोली। ६.

हिंदवी रूप धर्यों कालांतर, भारतेंदु बरतहिंन निरंतर। ७.

दोहा, रासो रूप सुहाये, विद्यापति देसी कही गाये। ८.

चारण-भाट बढ़ायी शुचिता, खुसरो पाठकजन बहु रुचता। ९.

तुलसी, सूर, कबीर सुहावें, रामानंद हरि भक्ति सिखावें। १०.

मीरां, दादू, रहीम, बिहारी, भक्ति सिखायी कविजन चारी। ११.

जायसी, घनानंद मन भावें, प्रेम-भक्ति का पाठ पढ़ावें। १२.

तुलसी मानस पाठ पढ़ायो, सूर हृदय में कृष्ण समायो। १३.

कही कबीर भक्ति की बानी, बातें करें रहीम सयानी। १४.

सत्सई रची बिहारी कविवर, मीरा भक्त ऋझावे गिरधर। १५.

रीतिकाव्य श्रृंगार सिखायो, केशव दास अधिक मन भायो। १६.

बृजभाषा और अवधि भाषा, दोऊन हिंदी मार्ग तराशा। १७.

काल आधुनिक सुविधाकारी, नवयुग लायो नव-कविता री। १८.

गद्य-पद्य दोऊ विधा निखारी, कवि-लेखक दोऊ लिये अपनारी। १९.

गीत, कहानी, लेख सुहाए, उपन्यास नव विधि के आए। २०.

श्रीधर, मैथिलीशरण, गुलेरी, हिंदी को नवरूप दिये री। २१.

नगेन्द्र, हजारी अरु जयशंकर, छायावाद को दियो गुरुमंतर। २२.

पंत, प्रसाद, नवीन, निराला, ज्योतित कियो पंथ अंधियाला। २३.

दिनकर, माखनलाल, द्विवेदी, इन सजाई हिंदी की वेदी। २४.

झांसी की रानी की महिमा, बर्ण सुनाई सुभद्रा जतना। २५,

हिंदी रचना की प्रभुताई, समय बढ़े पर बढ़ती जाई, २६.

फिर आयो युग पुन: नवीना, हिंदी लेखन भयो प्रवीना। २७.

हटे मेघ सब छायावादी, प्रगतिवाद नव लहर चलादी। २८.

हुए प्रयोग नवीन निरंतर, कविता बदल गई तदनंतर। २९.

नई कहानी अरु नई कविता, देखी-सुनी न इसकी समता। ३०.

अमृतलाल, अश्क, नागार्जुन, राघव, शिवमंगल व प्रेमचंद। ३१.

लेखन विधा परिष्कृत कीन्हीं, हिंदी गुण इनसे सब चीन्हीं। ३२.

जग में हिंदी की द्युति दमकी, अखिल विश्व में हिंदी चमकी। ३३.

दिन प्रति बढ़त ख्याति हिंदी की, बनी मातृभाषा जन-जन की। ३४.

सुगढ़ साहित्य सृजन सुखकारी, हिंदी जग की बनी दुलारी। ३५.

देवनागरी लिपि सुहाए, जस लिखिये तस पढ़िये याए। ३६.

हर हिंदी भाषी की आशा, हिंदी बने विश्व की भाषा। ३७.

बने राष्ट्रभाषा भारत की, पाये यह पहचान स्वयं की। ३८.

हर कोई जय हिंदी की गावे, विश्व पटल पर ये छा जावे। ३९.

यशस्विनी हिंदी की जय हो, विश्वभारती की जय-जय हो। ४०.

सरन घई,
संस्थापक विश्व हिंदी संस्थान,
कनाडा

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