वह

वह

किताबों की जिंदगी से
तब्दील हुई जब गृहिणी में
आटा-दाल से सम्बंध जो कर
बचत का हिसाब लगाना,
साड़ी बांधना,
पल्लू सम्हालते हुए रोटी बेलना,
चूडियों और पायल के बंधनों से बंधना,
नये सम्बंधों और संबोधनों को
दिनचर्या का हिस्सा बनाना,
उसी बीच माँ की प्यार भरी थपकी अपनी जुगनू सी रोशनी से चमका देती कुछ हिदायतें ।
वह बिखेर देती है रोशनी चारों ओर ।

2
अपने भीतर हर रोज
एक नया सूरज उगाना चाहती हूँ
उगाना चाहती हूँ
रोशनी की पंखुडियों को
अपनी हथेलियों पर
चाहती हूँ
स्वयं को आग के हवाले
करना चाहती हूँ
कुन्दन बनने के लिए ।
मुट्ठी में रखना चाहती हूँ सूरज
रोशनी के लिए ।
मिट्टी बनना चाहती हूँ
धरती से जुड़े रहने के लिए।
बस ऐसे ही रहना चाहती हूँ
जैसी हूँ मैं ।

विद्या भंडारी
कोलकाता, भारत

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