तुम में ही खुद की तलाश है
लोग कहते है तू मेरी परछाई है
मैं कहती हूँ तू मुझमे है मैं तुझमे हूँ
ये क्या एहसास है कि तुम में ही खुद की तलाश है
ज़ब भी देखूँ तुम्हे मेरा अक्स नज़र आये
आइना है मेरा तू ,तुझे देख ही श्रृंगार हो जाये
ये क्या एहसास है कि तुम में ही खुद की तलाश है
मेरी हर दुआ मे शामिल है तू
खुदा की रहमत की मुकम्बल तस्वीर है तू
न चाह कर भी मेरे अरमानों
मंजिलों की राहगीर हो तुम
ये क्या एहसास है तुम में ही खुद की तलाश है
तू खुदा की नेमत से मेरे आंगन की नजाकत भरी गुलाब है
तेरे खुशबू से मेरा घर संसार गुलजार है
ये क्या एहसास है कि तुम में ही खुद की तलाश है
बंदिश तुझ पर लगा सकूं ऐसा मौका दिया नहीं
तू मेरी नाज है मेरा गुरूर है
तू जितनी निश्छल है उतना ही छली यह दुनिया
तू जितनी निश्कपट है उतनी ही कपटी दुनिया
ये क्या एहसास है कि तुम में ही खुद की तलाश है
जब से तू आई मेरी जिंदगी में, एक लम्हा भी दूर नही रही तुझसे
अपने संस्कारों विचारों के मैंने तुझमें पंख लगाएं हैं
जा तुझे आजाद किया उड़ लें अपनी चाहतों के गगन में
ये क्या एहसास है कि तुम में ही खुद की तलाश है…
अर्पणा संत सिंह