बेटियाँं

बेटियाँं

बेटियाँ—उफ़!ये बेटियाँ
क्यों इतनी प्यारी होती हैं बेटियां?
पिता की लाडली
मां की आंखों की नूर
होती है बेटियां
क्यों इतनी प्यारी होती हैं बेटियां?
कभी पकड़कर आँचल माँ का
चलती थी लड़खड़ाते कदमों से
हो जाती हैं सयानी
क्यों इतनी जल्दी ये बेटियाँ?
सखियों सी माँ के साथ
खिलखिलाती हैं बेटियाँ
पिता की गर्जनाओं पर
कांपती हैं माँएं जब सिर झुकाये
धर कर रूप चंडी का
निरीह माओं की ढाल
बन जाती हैं बेटियाँ
क्यों इतनी प्यारी होती हैं बेटियां?
विदा कर हौले से बचपन को
सजा कर तन पर
रेशमी साड़ियाँ माँ की
यौवन से आंख मिचौली
चुपके से करती हैं बेटियाँ
क्यों इतनी प्यारी होती है बेटियां?
कहीं माँ,कहीं बहन, कहीं पत्नी
न जाने कितने किरदारों में
ढल जाती हैं बेटियां
घर की दीवारों में
पड़ जाए न दरार कहीं
कभी खामोशी तो कभी
बेबाकी का पर्याय
बन जाती हैं बेटियां
क्यों इतनी प्यारी होती हैं बेटियां?
अभिमान की पगड़ी सजी रहे सदा
सिर पर पिता के
कई बार रोटियों के साथ
खुद जल जाती है बेटियां
विदा होकर भी मन के बागों में
कभी चंपा कभी चमेली सी
गमकती है बेटियां
क्यों इतनी प्यारी होती है बेटियां?
क्यों इतनी प्यारी होती है बेटियां—?

डॉ रत्ना मानिक
झारखंड

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