बेटी

बेटी

बेटे बेटी के मसलों ‌को,कब तक उलझाओगे
प्यारे रिश्तों को कब तक भरमाओगे।
अनमोल हैं माता पिता ‌के दोनों
समाज,कब तक भ्रम फैलाओगे।
श्री रूप धर आई बेटियाँ
सरस्वती बन पधारी बेटियाँ
अपनी उपस्थिति से घर को महकाती हैं
जानकी की अवतार हैं बेटियाँ।
संस्कृतियों का संगम हैं ये
संस्कारों की धरोहर हैं ये
बेटियों ने कमाल दिखाया है
सारी दुनिया की कोहिनूर हैं ये।
आओ मिलकर इसे संवारें
जीवन अपना इसपे वारें
पुष्प सी कोमल हैं बेटियाँ
अनन्त काल तक अक्षुण्ण रहें
माँ गंगा की तरह निश्छल हैं बेटियाँ
भ्रमर की तरह गुंजित रहें
कण कण को झंकृत करें
सुधा-रस सी दुहिता धरा की
जग में ये सम्मान दिलायें।
माता पिता की जान हैं बेटियाँ
माता पिता की मुस्कान हैं,
गर मुश्किल पर जाय तो
लक्ष्मी बाई बन रक्षा करती हैं बेटियाँ।

डॉ रजनी दुर्गेश
हरिद्वार

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