तीज के बहाने

तीज के बहाने

तीज के बहाने
स्त्रियां महीनों पहले से देखने लगती हैं पंचांग
करनी होती हैं उसे कई तैयारियां
नयी साड़ी, सिंदूर की डिब्बी, बिंदी, चुड़ियां
और भी कई सुहाग की निशानियां

तीज के बहाने
बनाती है परम्परागत पकवान
गुजिया ठेकुआ में मिलाती हैं
अपने संस्कारों की मिठास
फल फूल और पूजा सामग्री से सजा लेती हैं पूजा की थाली
मिट्टी से बनाती है गौरी शंकर को
और रखती है ध्यान पूर्ण विधि विधान का

तीज के बहाने
हथेलियों में रचाती हैं अगाध प्रेम को
पैरों में लगाती हैं मंगलकामनाओं का लाल रंग
मांग में भर लेती हैं सूर्य की ऊर्जा
ललाट पर लगा लेती है जीवनभर का विश्वास
आँखों में लगा लेती हैं गहरे काला रंग को
जो दिल के सुलगने से बना हैं
और ओठों पर सजा लेती है केवल रिश्ते की सकारात्मकता की लालिमा
तीज में ऐसे ही तो करती हैं स्त्रियां श्रृंगार

तीज के बहाने
घरों में होता हैं पूजा पाठ,
परिवार के सभी सदस्यों का होता है मिलन
मिटती है दूरियाँ
मंत्रोच्चारण से गुंज उठता है घर
हवन से शुद्ध होता है वातावरण
शिव पार्वती के अमर प्रेम की कथा से
होती है एक अलौकिक शक्ति का संचार
और परिवर्तित हो जाता है उसका प्रेम आस्था में

तीज के बहाने
स्त्रियों को नही चाहिए होता हैं महंगे कपड़ें या गहने
जीवन की आपाधापी में खोई हुई
प्रेम की अनुभूतियों को,
समर्पण के भावनाओं को
पुन:सृजित
पुनवृति
पुनजीर्वित करती हैं स्त्रियाँ
यही चाहिए होता है उसे क्योंकि यही है उसके जीवन का सौभाग्य
तीज के बहाने से😊

अर्पणा संत सिंह

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