हमारी लड़ाई

हमारी लड़ाई

नर्स आकर जब कुलवंती के कान में यह कहने लगी तो कुलवंती को मूर्छा आ गई| उसका पूरा शरीर कांपने लगा|
… “यह क्या हुआ” कहते हुए वह थहरा कर बैठ गई | कुलवंती को दांत लग गया| नर्स अपना पूरा जोर लगा कर कुलवंती को पकड़ कर सामने पड़े ओसारे के पर उसकी पीठ टिकाने लगी और उसकी बेटी को पानी का छींटा देने को बोली| कुलवंती की सात बरस की बेटी उसके मुंह पर पानी का छींटा मारने लगी| लोगों की भीड़ जमा हो गई| ‘क्या हुआ… क्या हुआ…’ का हल्ला शुरू हो गया| लोग-बाग होश में ले आने की और हाथ लगाकर उसको दीवार की ओट लगाकर बैठाने की कोशिश करने लगे| इन सब के बीच वह न जाने कहां खो गई| लोग जब तक नर्स से पूछते, जानते तब तक तो वह झट से गायब हो गई| कौन पहचानता था उसे? किसी का ध्यान भी नहीं था उस पर… कोई देखा होता तब तो! थोड़ी ही देर में बहुत सारी नर्सें, डॉक्टर और अस्पताल के कर्मचारी सभी जुटकर चिल्लाने लगे… ‘हटो…हटो… यहां से…यहाँ ये सब रोना-गाना नहीं चलेगा… चलो जाओ सब|’ फिर एक डॉक्टर भुनभुनाने लगा “एक तो यहां पर किसी का एक मरीज भर्ती रहेगा और पूरा खानदान यहां यहां आकर बैठा रहेगा|” कुलवंती की आंखों से नदी निकल गई उस नदी में कुलवंती खुद ही डूबने उतराने लगी| उसका कोई किनारा नहीं दिख रहा था- क्या करे…. क्या करे… कुलवंती कहां जाए|” होठों के किनारों को जोर से सिलकर रखी कुलवंती की बस सिसकी पर सिसकी निकल रही थी| बीच-बीच में “मेरी मुस्की… मेरी मुस्की” वह कहती जा रही थी| लोगों को यह लग रहा था कि इसका कोई मर गया है और कुछ लोग कोरोना के डर से तो पहले ही सरक गए| डर और घबराहट से कोई पास आ ही नहीं रहा था| कुछ लोग अपने आप को संभालते हुए अपना मास्क ठीक करते हुए दूर जाकर अपनी वचन से ही धीरज धराने लगे… अपना प्रेम जताने लगे|
अपने प्रेम की पहली निशानी को कुलवंती संभाल नहीं सकी| इस दुख को वह किस किससे और मुंह से कहे| ‘मुस्कान’… कुलवंती की प्रेम की निशानी थी| उस प्रेम की निशानी जिस प्रेम के नशे में डूबकर कुलवंती ने अपना घर, अपने मां-बाप, अपना गांव छोड़ कर अपने मैके की चौखट लाँघकर चली आई| सुदीप और कुलवंती दोनों ने अपने घर से भागकर शादी रचाई थी| कुलवंती सुदीप की भाभी की ममेरी बहन थी| सुंदर ऐसी कि रूप की चांदनी जैसे टपक रही हो| इसी के कारण बड़े-बड़े घरों से उसका रिश्ता भी आता रहा था| भाई की शादी में सुधीर और कुलवंती की आपस में देखा देखी हुई और वही प्रेम प्रसंग शुरू हो गया| सुदीप और कुलवंती दोनों में से किसी का परिवार इस शादी के लिए तैयार नहीं था| ऐसे में घर से विरोध करके ये दोनों चुपचाप भाग निकले| पटना में एक मंदिर में शादी करके वहीं से शाम को ट्रेन पकड़कर दिल्ली के लिए निकल लिए| दिल्ली दिल्ली पहुंचकर सुदीप की टकराहट अचानक जिंदगी के खुरदुरे यथार्थ से हुआ| कठिन संघर्ष करते हुए किसी तरह सुदीप सट्टा के बिजनेस में अपने हाथ आजमाने लगा और ठीक-ठाक पैसा भी आने लगा| लेकिन ऐसे कामों की तो लीला ही अजब है अपने साथ कई सहोदर बुराइयां ले ही आता है| धीरे-धीरे सुदीप की भी संगत बिगड़ गई| दारू, शराब और जुए की लत पड़ गई और सुदीप के घर-परिवार मे रोज रोज़ कलह के किस्से बनने लगे| इसी परिस्थिति में एक-एक करके कुलवंती को चार बच्चे हुए |
मुस्कान …. कुलवंती और सुधीर दोनों की की पहली बेटी…. इसकी सुंदरता की तो कोई सीमा ही नहीं थी| क्यूँ न हो बेटी क्यूँ एक बार्बी भी गुड़िया की तरह माँ बाप दोनों खूबसूरती के मिसाल|
इधर दारु-शराब की लत में पड़ कर सुदीप ने अपने पूरे बिसनेस का सत्यानाश कर डाला और साथ में अपना गुर्दा भी नशे की आहुति चढ़ा दिया | बीमारी में पड़कर खटिया से सटे सुदीप के इलाज के लिए कुलवंती ने अपना दिन-रात एक कर डाला| उसकी बीमारी के इलाज के लिए बर्तन भांडा तक बेच दिया घर-घर जाकर लोगों के बर्तन मांजने लगी….लेकिन सुधीर तीन वर्ष पहले कुलवंती को बीच मझधार में चार बच्चों के साथ इस संसार में अकेला छोड़कर चला गया| कुलवंती के सामने अथाह समुद्र था| ना मायके से कोई सहारा और ना ही ससुराल से कोई पूछने वाला|
पड़ोसिन सखी ने कहा- ‘कुलवंती अकेली कब तक रोएगी| चल मेरे मालिक की एक मसाला की फैक्ट्री है| उसमे औरतें काम करती हैं| ठीक थक पैसा मिल जाता है| तेरे बच्चे पल जायेंगे|” जिंदगी में कभी बहार काम नहीं करने वाली कुलवंती के लिए ये लक्ष्मण रेखा लांघने जैसी बात थी, लेकिन रोटी के रावण के आगे कुलवंती की एक ना चली|
“दीदी इज्ज़त-पानी तो ठीक से निबह जायेगा न?” कुलवंती ने दबी जुबान में पूछा|
“अरे हाँ रे पगली …मेरे साहब अच्छे आदमी हैं| मेरी जिम्मेदारी|” मालिनी ने आश्वस्त किया|
खैर नौकरी करती हुई कुलवंती अपने चारों बच्चों को धीरे धीरे संभालने लगी | धीरे धीरे जीवन के इस ढर्रे को उसने स्वीकार कर लिया|
इन दिनों जाने कहां से कोरोना जैसी किसी बीमारी का हल्ला हुआ | कुलवंती की जिंदगी का एक और दुख भरा पन्ना फड़फड़ाने लगा| इस बार पूरा मोहल्ला ही घबराहट के रूप में तब्दील हो गया | कोरोना के डर से पूरे मोहल्ले के किसी का घर आना जाना नहीं साथ में रहना बोलना बतियाना भी एकदम बंद हो गया… ना किसी से अपनी मन की बातें कोई कह सकता था और ना ही किसी से कोई मिल ही सकता था| सभी अकेले-अकेले रहने लगे घरों में बंद स्कूल, कॉलेज, कारखाना सब धीरे-धीरे बंद होने लगे| कुलवंती का कलेजा धक-धक कर रहा था…यदि मसाला फैक्ट्री भी बंद हो जाएगी तो बच्चों का खाना, पीना, कोठरी का किराया यह सब कहां से आएगा|
सोचती सोचती कुलवंती दो रात जगी-जगी ही बिता दी| आखिर वही हुआ जिसकी आशंका से कुलवंती की नींद उड़ गयी थी| फैक्ट्री बंद हो गई | फुलवंती को पैसा मिलना भी बंद हो गया| कुछ दिनों तक तो कुछ रखा हुआ पैसा और अन्न से घर का काम चलता रहा लेकिन यह सब कब तक…खत्म होते ही मोहल्ले का रंग-ढंग बदलने लगा| मकान मालिक अपना घर खाली करने को कहने लगा- ‘किराया नहीं दोगी तो मकान खाली करो’ कुलवंती प्रार्थना करती रही.. ‘मालिक कुछ दिन और रहने दीजिए, जैसे ही फैक्ट्री खुलेगी और मुझे पैसा मिलना शुरू होगा, सबसे पहले मैं मेरा ही किराया चुकता होगी|
‘अच्छा… तो फिर उस राशन वाले का कब दोगी…जिससे तुम रोज-रोज यही वादा करके राशन लेकर आती हो’.. मकान मालिक ने तमकते हुए धमकी दिया और कुलवंती को घर खाली करने के लिए अंतिम चेतावनी देकर चला गया| वही हुआ …अंत में किराया नहीं देने के कारण कुलवंती को घर छोड़ना ही पड़ा| कुलवंती अपने बच्चों को लेकर टाट का घर बनाकर फुटपाथ पर रहने लगी| इधर एक हफ्ता बीतते मोहल्ले के लोग गांव जाने की तैयारियां करने लगे| कल कारखाना बंद हुए दो महीना हो गया| अब का डर अंदर कलेजा पर डाका डालने को तैनात था| ‘पता नहीं क्या होगा …प्रलय… सर्वनाश’ कुलवंती सोच रही थी|
‘… मौत के पहले किसी भी तरह हम अपनी मिट्टी में पहुंच जाएं… वहां खाना पीना घर-द्वार कुछ ना कुछ तो मिल ही जाएगा… कम से कम अपनों के बीच में पहुंच जाएंगे… अपनों के साथ रहेंगे जिएंगे या मरेंगे …’ सुखनी के घर से आवाज़ आ रही थी जिसके घर की दीवार की ओट से उसने टाट ताना था| वह डेज=ख रही थी सभी अपने अपने गांव जाने की तैयारी में लग गए| कुलवंती सोचने लगी वह अकेली पड़ती जा रही है|’ मालती ने कुलवंती से कहा ‘कुलवंती तुम भी चल… अब यहां का की उम्मीद छोड़…. अकेले कैसे रहेगी…. जब कंपनी खुलेगी तो फिर आ जाना| कम से कम हम लोगों के साथ चलेगी तो रास्ते में एक दूसरे को देखते-सुनते हम लोग झुण्ड में किसी तरह घर पहुंच ही जाएंगे|’
… फुलवंती सोचने लगी ‘कहां जाऊं ना मायके, ना ससुराल, कुछ भी तो मेरा अपना नहीं है| मैं कहां..कहाँ जाऊं’
‘माँ …खाना…भूख…’ बेटे के झकझोरने से कुलवंती का अचानक ध्यान टूटा… अपने बेटे को सांत्वना तक देने के लिए एक शब्द नहीं थे तो वह रोटी कहां से देती| किसी तरह रखा हुआ थोड़ा चूड़ा पानी में भीगाकर उसके सामने रख दिया| कुछ देर सोच कर कुलवंती ने अपने दांत के आशियाने की भर आँख देखा और धीरे-धीरे अपने कपड़े लत्ते बांधने लगी| सुबह ही सभी झुंड बनाकर निकलने लगे कुलवंती ने अपने मुड़े तुड़े कपड़ों को बांध लिया और कुछ जो दो-चार रूपये थे उसको उसने अपने आंचल की गिरह डाली| अपने चारों बच्चों को लेकर कुलवंती निकल ली |
उसको सबसे अधिक चिंता अपनी बड़ी बेटी मुस्कान की थी| तेरह वर्ष की मुस्कान की सुंदरता तो अद्भुत थी| कुलवंती की भी सुंदरता की अपने जमाने में खूब चर्चा थी, लेकिन मुस्कान तो उसको भी पार गई थी| तेरह वर्ष की मुस्कान को लेकर जब कुलवंती अपना घर छोड़कर निकली तो उसका कलेजा धक-धक कर रहा था | अपने कलेजे को हाथ में लिए मुस्कान को संभालते हुए वह आगे बढ़ रही थी| मुस्कान की सुंदरता उसके लिए काल बनती जा रही थी | उसे कितना भी छुपाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह तो तेरह वर्षीय मुस्कान का सौंदर्य मंदाकिनी की धार की तरह बेपरवाही से बही जा रही थी | इसी के कारण कुलवंती मुस्कान का खास ख्याल रख रही थी| रास्ते में जगह-जगह खाना-पीना, रोटी-ब्रेड इत्यादि मिल रहा था| जैसे-जैसे कुलवंती खाती-पीती बच्चों को खिलाती पिलाती आगे बढ़ती जा रही थी| कुलवंती को खाना-पीना से ज्यादा उन भेड़िओं की भूखी नजर मिल रही थी जो बार-बार मुस्कान की देह पर सरसराने लगती थी| कुलवंती से उसे अपने पीछे कर देती और खुद आगे बढ़कर आंख तरेरने लगती| भेड़िए सहमकर पीछे हो जाते| गर्मी और थकान से पूरा ड बेहाल था| कहीं सुस्ताने के लिए पेड़ की छांह भी नहीं मिल रही थी, फिर भी लोग इधर-उधर थोड़ी बहुत जगह देखकर लेटकर दो घड़ी आंख झपका ले ही ले रहे थे, लेकिन मजाल है जो कुलवंती की आंख पल भर को भी झपक जाय! जब तक मुस्कान सोती थी तब तक कुलवंती जगी रहती थी और अपने सोने के पहले मुस्कान को अपने पास बैठा कर बार-बार जगह रहने और सचेत रहने की हिदायत देती रहती थी| कुलवंती को तो निश्चिंत होकर सोए हुए चार दिन चार रात हो गए थे| जब से वह अपने टाट की मड़ई को छोड़कर चली थी तब से वह निश्चिंत होकर पल भर सो नहीं पाई थी चिंहुकी हुई रात सहमा दिन ही उसकी किस्मत हो गयी थी| अपने बच्चों को लेकर सही सलामत गांव पहुंचने के लिए न जाने उसने कितनी कितनी मन्नते मान रखी थी… गांव के डीह की, दक्षिण पट्टी के पीर बाबा के मजार की, कॉलेज के उत्तर के काली माई की और न जाने कहां-कहां की|
दिनभर चलते-दौड़ते हुए शाम गहराने लगी| नजदीक में एक शिविर था| वहां पर सभी लोग ऐसा है कि वहां पर सभी लोग रात होने के पहले पहुंचना चाहते थे कुलवंती भी जल्दी-जल्दी लोगों के साथ अपना पैर बढ़ा रही थी| अपने बच्चों को लगभग खींचती-खींचती वह बढ़ी जा रही थी|
“जल्दी-जल्दी पैर बढ़ाओ बच्चो… जल्दी-जल्दी! कहती हुई छोटे बेटे को मुस्कान की गोद में देती हुई कुलवंती ने उससे बड़े वाले बेटे को गोद में उठा लिया, और वह लगभग दौड़ने जैसा ही चलने लगी …शाम में किसी भी तरह वो अपने झुण्ड से अलग होना नहीं चाहती थी| अभी कुछ ही दूर तो आगे बढ़ी ही थी तब तक चारों तरफ हल्ला होने लगा – “रुक जाओ …जरा रुको साथियों… एक लड़की को मूर्छा आ गई है….” लोग बाग़ रुक गए | कुछ लोगों ने मुंह पर पानी का छींटा मारा| कुछ बुजुर्ग फूंक-फाँक करने लगे| मुस्कान को किसी तरह से होश आया | सब लोग उसको कहने “शाम हो गई है…. चलो चलो बिटिया… हिम्मत रखो… जल्दी चलो अब आ ही गया है शिविर…बस जरा सा..” वह फिर चलने लगी सबके साथ| जब तक शिविर में सब लोग पहुंचे तब तक मुस्कान को 104 डिग्री बुखार! बस यही दुर्गत बाकी थी कुलवंती की| उसके तो तलवे के नीचे से धरती सरक गई| किसी तरह उसका सिर धोते, पानी की पट्टी देते हुए कुलवंती ने रात बिताया| सुबह-सुबह ही कुलवंती को डॉक्टर की चिंता हो आई क्योंकि अब तक बुखार उतरा नहीं था| सभी भयभीत हो गए| कुछ समझदार लोगों ने कहा “चलो अस्पताल में हम चलते हैं| जैसा होगा देख कर आगे बढ़ेंगे|” मुस्कान अस्पताल गई और अस्पताल में उसे भर्ती कर लिया गया| ऐसा कहकर कि जब तक कोरोना का टेस्ट नहीं होगा तब तक और कोई इलाज नहीं हो सकता|” दो चार लोग तो किसी तरह मन मार कर रुक गए, लेकिन बाकी सब लोग वहां से कुलवंती को यूं ही छोड़ कर निकल गए| मुस्कान भर्ती हो गई| जिसका डर था वही हुआ|
“कुलवंती देवी …?”
“ जी”
“ मुस्कान की माँ हो?”
जी
“आपकी बेटी मुस्कान के रिपोर्ट मे कोरोना पॉजिटिव आया है| अभी तुमलोग भी अलग अलग रहना” किसी डॉक्टर ने आकर हिदायत दी| कुलवंती के पैर के नीचे से जमीन चटक गई, ऊपर से आसमान टूट पड़ा| अब तक जितने साथ देने वाले थे वह सब कुलवंती को वहीं छोड़कर निकल पड़े| अपने तीन बच्चों को लेकर कुलवंती अकेले अस्पताल के ओसारे में बैठ गई भावशून्य| मुस्कान के ठीक होने के दिन गिनने के सिवाय अब कर ही क्या सकती थी| इधर मुस्कान को अस्पताल में क्वॉरेंटाइन करके अकेले एक कोठरी में रखा गया| उससे मिल नहीं सकता था| कुलवंती की आंखों के आंसू तो मानो सूख ही नहीं रहे थे|
एक मुस्कान ही तो थी जो हर बुरे वक्त मे अपनी माँ का सहारा बनती थी| माँ फैक्ट्री में जाती थी तो भाई बहनों को सम्हालना… जब सुदीप झगडा मार पीट करता था तो मुस्कान ही उसको बचाती थी और उसको मरहम करती| खाना – पीना …चौका बर्तन …सबसे अधिक तो मीठी मीठी बातें…वो माँ की गुडिया थी|
अगल बगल की स्वयंसेवी संस्था से कोई खाना-पीना दे जा रहा था| बच्चों का पेट तो किसी तरह बाहर जा रहा था लेकिन कुलवंती को तिरिछ का कांटा चूभ रहा था | बस उसे पल-पल उसे बेटी को देखने का मन होता था लेकिन हर बार उसे मना कर दिया जाता था| डॉ रूपम उस वार्ड के डॉक्टर थे| वह समय समय पर आकर कुलवंती को बड़े प्यार से समझाते थे “घबराओ मत…तुम्हरी बेटी ठीक हो रही है… उससे मिलने से तुम्हें और तुम्हारे दूसरे बच्चों को भी हो जाएगी यह बीमारी| तुम तो जानती ही हो यह कितनी छूत की बीमारी है… धीरज रखो ठीक हो जाएगी बेटी”
ज़रा सम्हालते ही तुम्हें उससे जरूर मिलने दिया जाएगा| कुलवंती- “डॉक्टर साहब मन ही नहीं मान रहा है, कम से कम थोड़ी दूर से ही दिखा देते, वह जी रही है, यह देखकर ही मैं संतोष कर लेती”
“अरे बहन इतना भी मत घबराओ अच्छी है… बुखार छूट गया है, लेकिन आठ दस दिन तो क्वॉरेंटाइन होना जरूरी है ना? तीन दिन तो भी बीत ही गए हैं… अब 10 दिन की और बात है| तुम्हें खाना पीना की कोई दिक्कत तो नहीं है ना?” डॉक्टर ने पूछा|
कुलवंती – “नहीं डॉक्टर साहब, कुछ तकलीफ नहीं समझ मे आता है, बस मेरी बेटी मुस्कान ठीक हो जाए, डॉक्टर साहब ठीक तो हो जाएगी न?”
“चिंता मत करो, जाओ आराम से रहो, ठीक हो जाएगी|”
“आज सात दिन हो गए| मुस्कान की कोई खबर नहीं मिली| लगता है मुस्कान को देखे हुए एक जमाना हो गया|” सोचते हुए कुलवंती को तो जैसे बेचैनी शरीर में घुस गई थी| use कोई उपाय नहीं सूझ रहा था | एक नर्स आ रही थी | वह झट से जाकर उस नर्स का पैर पकड़ ली – “बहन मेरी मदद करो… नर्स अपना पैर छुड़ाने की कोशिश कर रही थी – “अभी छोड़ो …छोड़ो” लेकिन कुलवंती काहे को छोड़े? नहीं छोड़ा… तो नहीं छोड़ा| आंसुओं से नर्स का पैर भींग गया| आख़िरकार वह बैठ गई और पूछने लगी – “क्या बात है…क्या हुआ??”
कुलवंती – “सिस्टर बेटी मुस्कान सात दिन से अंदर है…वह जिंदा भी है कि नहीं… कुछ पता नहीं चल रहा है| मैं बस इंतजार कर रही हूं | अब मेरा दिल नहीं थम रहा है…कुछ तो कीजिए सिस्टर…मुझे कुछ तो उसकी खबर दीजिए…!!”
“तुम्हें कुछ खबर नहीं मिला ??..क्या तुम्हें दिखाया भी नहीं गया?? वह किस डॉक्टर के अंडर में है?” नर्स ने पूछा|
“डॉ रूपम” कलपती हुई कुलवंती बताने लगी “डॉक्टर तो बहुत अच्छे हैं, रोज आकर मुझे सांत्वना देते हैं, लेकिन मेरी बेटी ने को नहीं देखने से मेरा मन मेरे वश मे नहीं है”
“आंय क्या बोली ..डॉ रूपम?? जा!!” नर्स बोली “…. हे भगवान यह क्या कह दिया तुमने…नर्स झट से खड़ी हो गई| उसका मुंह स्याह पड़ गया | तुरंत उसने अपने आप को संभाला और भय एवं आशंका में तैरती सूनी आंखों से झूठा भरोसा देती हुई हुई वह झट से अस्पताल के भीतर चली गई| पूरे शरीर में प्लास्टिक का गाउन पहनकर को सीधे डॉ रूपम के अंडर वाले मरीज के वार्ड में चली गई|
“मुस्कान… तो क्या यही कुलवंती की बेटी है…नर्स ने उसके कुम्हलाये फूल जैसे शरीर को देखकर कुछ अंदाजा लगाया और भीतर तक सहम गई| लड़की की आंखों से आंसू की धार बह रही थी|
“क्या हुआ मुस्कान… क्यों रो रही हो ? नर्स की आवाज से अचानक भयभीत हो मुस्कान बैठ गई और जोर जोर से रोने लगी| नर्स ने देखा उसके हाथ पर कोरोना पॉजिटिव का स्टाम्प था| लेकिन बुखार नहीं था | नर्स उसको अपने कलेजे से चिपकाकर पुचकारने लगी| मुस्कान तो जो रोना शुरू कि उसकी सिसकी चढ़ी सो उतरने का नाम ही नहीं ले रही थी| नर्स वार्डबॉय के पास के जाकर कुछ खुसुर-फुसुर करके उससे बहुत सारी बातें पूछी|
वार्डबॉय ने कहा “इसके पास सिर्फ डॉ रूपम ही जा सकते हैं… और किसी को जाने की परमिशन नहीं है| दिन भर में दो या तीन बार डॉक्टर राउंड लेने आते हैं| आधा-एक घंटा इलाज-पानी करके वापस चले जाते हैं|” नर्स का कलेजा धक से रह गया| शून्य हो गयी वह, लेकिन तुरत ही सब समझ गई| उसका उसका हाथ-पैर सब थरथराने लगा…. अंदर ही अंदर उसका दिल धड़कने लगा|
“डॉक्टर रूपम इस दुख की घड़ी में भी हैवानियत से बाज नहीं आ रहे हैं | डॉक्टर रूपम के इस जानवरपन से तो वह पहले से ही खूब परिचित थी| नर्स फिर जल्दी से मुस्कान के पास दौड़कर भागी| इस बार मुस्कान सिस्टर को पकड़ कर जोर-जोर से रोने लगी| गिडगिडाने लगी – “सिस्टर मुझे छोड़कर मत जाओ… मुझे छोड़कर मत जाओ सिस्टर… मैं आपको नहीं छोडूंगी…. मुझे किसी भी तरह मेरी माई के पास ले चलो सिस्टर…”
नर्स- “अरे रुक बेटा… हम तुम्हारी माई को पहले तुम्हारी पूरी खबर तो दे तो आएं… वह तो रो-रोकर पागल बनी बैठी है|”
मुस्कान ने उसे कसकर पकड़ लिया – “हम नही छोड़ेंगे सिस्टर, हम आपको नहीं छोड़ेंगे, मुझे अकेला मत छोडो…यहां से ले चलो सिस्टर…. नहीं तो मुझे जहर दे दो…. वो डॉक्टर बहुत बदमाश डॉक्टर है माई ओ माई….” कहती हुई पुक्का फाड़कर रोने लगी| नर्स देखने लगी मुस्कान के सारे अंग छिल और रगड़ा गये थे| तेरह बरस की फूल जैसी बच्ची के चेहरे पर कई खरोंच के निशान थे| उसका होठ कटा और फटा हुआ था| नर्स के कलेजा दरकता जा रहा था| वह मुस्कान के नाजुक अंगों का हाल देख रही थी…. हाल-बेहाल था| उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे| भीतर ही भीतर उसका धीरज टूटने लगा – “यह सही है कि डॉ रूपम की यह हिस्ट्री रही है लेकिन आज कोरोना के इस हाल में भी!! … डॉ रूपम कुलवंती जैसी अभागिन के बेटी के साथ भी ऐसी अमानवीय हरकत कर सकते हैं??” अचानक इस घिनौनी पशुता को देखकर नर्स के मन में एक सवाल नाच गया – “यदि इस लड़की कोरोना है तो डॉक्टर कैसे…. कैसे… कैसे…?? मतलब इसके कोरोना पॉजिटिव की सूचना भी गलत है… बात समझ में आते ही नर्स को पिछले दो तीन केस की याद आने लगी, जिसमें लड़कियों को कोरोना होने और उनकी मृत्यु की घटना शामिल है| नर्स से अब रहा नहीं गया| उसने मुस्कान से कहा – “घबराओ मत बिटिया मैं कुछ न कुछ करूंगी… जरूर कुछ करूंगी| तुम सिर्फ हिम्मत रखी रहना|” नर्स भागकर डॉ रूपम के चेंबर में आ गई | उनके टेबल और अलमारी के दराज खोलकर मरीजों की फाइल पढ़ने लगी… खोजते-खोजते उसे मुस्कान का फाइल भी मिला – “अरे… तो इसका असली रिपोर्ट नेगेटिव है?? और डॉ रूपम उसकी मां को कोरोना पॉजिटिव बताकर इस लड़की का शोषण कर रहा है…नरपिशाच डॉक्टर!! लोगों को कोरोना दानव खा रहा हैं चारो ओर दहशत फैला है… इस संकटकाल में भी इसको हवस सूझ रहा है|”
नर्स सीधे कुलवंती के पास चली गई| उसे किनारे ले जाकर उसने कुलवंती को सारी बातें समझाई | कहा – “देख बहन…वह नरपिशाच तो अब छोड़ेगा नहीं… इसके पास तीन लड़कियों का इसी तरह का केस आया था और सब में डेथ का रिपोर्ट आ चुका है| तुम जल्दी कुछ करो नहीं तो तुम्हारी बेटी मुस्कान भी….”
कुलवंती पूरी बात सुन भी नहीं सकी | उसे मुरझा आ गई, उसका दांत बैठ गया| लोग फिर पानी के छींटे डालने लगे| सबों ने कहा “हटो-हटो, हवा आने दो| थोड़ी देर में कुलवंती को होश आने लगा| कुलवंती ने न जाने क्यों अपने होंठ सिल लिया| भीतर की रुलाई में वह खुद ही खुद पिघलने लगी |
नर्स को कुछ भी नहीं समझ में आ रहा था …बस इतना ही उसे समझ में आ रहा था कि कुछ करना है…छोड़ना नहीं है… कुछ करना है…. बैठकर रहने से काम नहीं चलेगा| जब कुछ शांत हो गया तो नर्स धीरे से आकर कुलवंती से बोली – “चलो तुम हमारे साथ चलो… हमारे घर चलो… मेरे घर में कहीं रहना… आउटहाउस…ओसारा कहीं भी रहना लकिन चलो… अब ठीक से सोच समझकर हमलोगों को कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा|
कुलवंती यंत्रवत अपनी मोटरी और बच्चों को लिए नर्स के पीछे-पीछे चल दी| घर पहुंचकर चाय पानी करके नर्स ने कहा – “कुलवंती अब तुम आंसू पोछ लो, सोच लो कि अब यही असली स्थिति है| यदि बेटी को बचाना है, तो तुम्हें हिम्मत करना ही पड़ेगा|” कुलवंती तो विरोधी स्वभाव की बचपन से रही थी| उसने कड़ा विद्रोह करके अपनी शादी के लिए अपना घर तक छोड़ दिया था लेकिन शादी के विरोध का बहुत ही कड़वा स्वाद और दुखद अंजाम उसे मिला था| उसी दुखद विरोध के पश्चाताप के लिए इस बार यह विरोध तो कुलवंती को करना ही होगा, क्योंकि आज कुलवंती एक माँ है… और मां तो अपनी संतान के लिए पहाड़ से भी टकरा जाती है | कुलवंती ने अपनी पुरानी हिम्मत फिर से बटोरा और सोच लिया कि “आज यदि इस लड़ाई को मैं अंगीकार नहीं करुँगी तो अपने पहले किए हुए विरोध का पश्चाताप नहीं कर पाऊंगी | अपने प्यार की निशानी बेटी मुस्कान को बचाने के लिए मुझे यह लड़ाई लड़नी ही नहीं पड़ेगी| वैसे भी अब मेरे पास खोने के लिए बचा ही क्या है… मायके ससुराल…साथी संघाती सभी तो छोड़ कर जा चुके हैं… मेरे आगे तो सिर्फ एक रणभूमि बची है… और एक बहुत मजबूत दुश्मन!….इस हाल में लड़ने के सिवा मेरे पास अब बचा ही क्या है? बेटी के दुख की कसम…. अब मैं उसके लिए अंतिम सांस तक लडूंगी| अब तो मुझे अपने हिम्मत को ही हथियार बनाना पड़ेगा|” सोचती हुई कुलवंती बोल पड़ी “सिस्टर अब मैं एक मिनट भी नहीं रुकूंगी… मुझे थाना जाना है और अभी तुरंत मैं जाऊंगी| अपनी मुस्कान के लिए आखिरी दम तक लडूंगी चाहे जो हो जाए|”
नर्स -शाब्बाश कुलवंती….बस याद रखना दुश्मन बहुत मजबूत अपराधी और प्रपंची भी है… यह लड़ाई तुम्हारी जरूर है, लेकिन इसे मैं भी अपनी ही लड़ाई उतना ही समझ रही हूं| समूची नारी जाति के सम्मान और अस्मिता की लड़ाई है…. मानवता के लिए यह लड़ाई है | डॉ रूपम का मुखौटा उतारकर उसका घिनौना चेहरा समाज के समक्ष लाना बहुत जरूरी है कूलवंती |
कुलवंती ने अपने बेटे से कहा “बाबू रे… तुम अपने छोटे भाई-बहनों को संभालो| मुझे तुम्हारी दीदी के लिए अब निकलना होगा|” नर्स और कुलवंती थाना की ओर चल दिए| थानेदार बाबू कुलवंती की बात सुने तब ना!! कुलवंती की आंखों में आंसुओं का समुंदर जरूर लहरा रहा था लेकिन कलेजा आग की लहरें लहरा रहीं थीं| आखिर में वो डकरकर चिल्लाई – “क्यों नहीं सुनेंगे आप हमारी बात… हमारी बेटी उधर भेड़ियों की शिकार हो रही है और आप कान में तेल डाले बैठे हुए हैं?? तो अगर ऐसा है थानेदार साहब तो मैं जा रही हूं बाहर अखबार, समाचार और टीवी वाले बहुत खड़े हैं… मैं उन्हीं को सुनाने जा रही हूं | अब वही लोग चैनलों के माध्यम से आपको सुनाएंगे तब आपके कानों तक बात पहुंचेगी|” थाना प्रभारी सकपका गए… क्या हुआ बताओ…बताओ बताओ क्या हुआ? खाना नहीं मिला कि पानी नहीं मिला कि किसी ने इज्जत…”
“चुप रहिए” कुलवंती ने डपट कर उनका मुंह बंद किया| “मेरी बात सुनिये” और कुलवंती में रो रो कर अपनी सारी बातें थानेदार को सुना दी| “थानेदार बाबू मुझे ना रिपोर्ट दिखाया जाता था ना मुझसे कभी और कोई बात कही जाती थी… मैं बार-बार बेटी को देखने के लिए डॉक्टर के पांव पकड़ लेती थी…. लेकिन डॉक्टर कभी भी मुझे अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं दिखाता था….” कहते कहते कुलवंती जोर से कपसने लगी| थाना प्रभारी डॉ रूपम का नाम सुनकर हड़बड़ा गए | शायद पहले भी उनके कानों में यह नाम पड़ चुका था| थोड़ा गंभीर होकर उन्होंने पूछा – “क्या सबूत है तुम्हारे पास?” कुलवंती नर्स की ओर देखने लगी | नर्स अपना पूरा परिचय देती हुई थानेदार के सामने अपनी शंका व्यक्त करते हुए पिछला कुछ इतिहास बताने लगी | कहने लगी कि “हमारे पास इस केस से संबंधित कुछ फोटो भी है सर… इसकी मदद करना बहुत जरूरी है| आज की मीडिया बहुत एक्टिव है आसपास इधर-उधर मंडरा रही है अगर बात निकलेगी तो बहुत दूर तक चली जाएगी | ऐसे भी इंस्पेक्टर साहब इंसानियत के नाते यह भी यह सही बात है और एक टीनएजर लड़की की जिंदगी का सवाल है| इसके साथ यह भी एक बड़ी बात है कि इस तरह की कुछ इस तरह की कुछ केस हिस्ट्री भी डॉ रूपम के साथ जुड़ी हुई है| अगर बात निकली तो अस्पताल के साथ पूरे इलाके की बदनामी और आपके थाने के साथ आपका नाम की उछाला जायेगा| आप कुछ तो कीजिए थानेदार साहब…. कुछ करना होगा|”
थाना प्रभारी – “सिर्फ बोलने से नहीं होगा सिस्टर, कुछ प्रमाण और सूत्र तो होना चाहिए| इस समय डॉक्टरों को लोग भगवान की तरफ पूज रहे हैं| सरकार और मीडिया दोनों डॉक्टर को बहलाने और खुश करने में लगी हुई है|”
“सर मैं बहुत जिम्मेदारी से यह बात कह रही हूं… मेरे पास इस सिलसिले में कई फोटो भी हैं|” नर्स बोली|
थाना प्रभारी – “सिस्टर, अगर आपका सपोर्ट और सहयोग मिल जाएगा तो हम लोग आगे इस अभागिन की केस को लेकर बढ़ सकते हैं|”
नर्स “मेरा पूरा सपोर्ट रहेगा आपके साथ… उस जानवर को सबक सिखाना बहुत जरूरी है सर, कुलवंती तुम शिकायत लिखवाओ …आप ऍफ़.आई.आर. लिखिए थानेदार साहब|” कुलवंती की कथा सुनकर थाना प्रभारी भी द्रवित हो गया | पूछने लगे – “आप इसके पक्ष में गवाही देने को तैयार होंगी”
“हां मैं एकदम पक्के तौर से गवाही दूंगी|” नर्स ने वादा किया| थाना प्रभारी उन दोनों के हस्ताक्षर लेकर आगे बढ़ गए| इसी बीच सिस्टर ने अपने मोबाइल में मरीज की रिपोर्ट की कुछ फोटो उसने थाना प्रभारी को दिखाया | रिपोर्ट की फोटो देखते ही थाना प्रभारी का तलवा चटक गया| पुलिस का दल अस्पताल में पहुंचते ही सीधे डॉ रूपम के चेंबर में पहुंची | डॉ रूपम से धड़ाधड़ सवाल पूछने लगी| पूछताछ करते कुलवंती के बेटी मुस्कान की फाइल दिखाने के लिए उससे कहने लगी|
“कुलवंती जो मरीज मुस्कान की मां है उनकी शिकायत पर मै आया हूं हमें मरीज मुस्कान से मिलना है|” थानेदार ने कहा तो डॉक्टर रूपम के तो होश उड़ गए| वह पसीना पूछते हुए कहने लगे “इस औरत को इतनी हिम्मत कि यह हमारे ऊपर इतना गंदा इल्जाम लगाए| हमलोग अपनी जान हथेली पर लेकर काम कर रहे हैं| दिन रात मरीजों की सेवा कर रहे हैं…. कोरोना के भयावह वातावरण में हम जिंदगी बचाने में लगे हैं, जूझ रहे हैं| आप हैं कि हमारे ऊपर इतना बड़ा इल्जाम लगा रहे हैं”
थाना प्रभारी ने कुछ नहीं सुना उठकर वार्ड की ओर चल दिए| डॉ रूपम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह बुरी तरह नर्वस हो गया और पुलिस के पीछे-पीछे मुस्कान के वार्ड की ओर चलने लगा| पुलिस के पीछे-पीछे डॉ रूपम को घबराए हुए जाते हुए देखकर अस्पताल के लोग कर्मचारी भी थोड़ी घबराहट में थे और भीतर ही भीतर खुश भी| मुस्कान को एक नजर देखते ही पुलिस को सारी बातें समझ में आ गई| आखिर अनुभवी थाना प्रभारी की आंख थी| सारा माजरा समझकर मुस्कान से उन्होंने पूछा
“बेटी नाम बताना” मुस्कान ने रोते-रोते अपना नाम बताया |उसका चेहरा आंसुओं से भीग गया|
“क्या हुआ क्यों रो रही हो… कुछ हुआ क्या??” थाना प्रभारी ने पूछा| मुस्कान डॉ रूपम को भयभीत आंखों से देख रही थी| उसका पूरा शरीर सूखे पत्ते की भांति थर-थर कांप रहा था| मुस्कान का कपड़ा गीला हो गया| थाना प्रभारी को अपनी तेरह बरस की बेटी शालू का चेहरा आंखों के आगे कौंध गया| मारे गुस्से के उनका जबड़ा भीच गया | अब तक मुस्कान अचेत हो चुकी थी|
गुस्से से दहाड़ते हुए थाना प्रभारी ने कहा- “डॉ रूपम… पहले भी तीन ऐसे केसेज आ चुके हैं मेरे पास| हम पुलिस की आँखों से कोई भी चीज छुपती नहीं है| यह दृश्य तो अपने आप ही सारी कहानी कह रहा है और ख़ुद ही सारे सबूत भी दे रहा है, लेकिन कानून तो कानून है डॉक्टर…और हम कानून से आगे बढ़कर कुछ कर नहीं सकते हैं| यदि सबूत की झंझट नहीं होती तो डॉ रूपम इस मासूम की कसम मैं अभी और इसी समय तुम्हें थर्ड ग्रेड की सजा देता…लेकिन मैं भी बंधा हूँ|”
डॉ रूपम के तो होश उड़ने लगे उन्होंने कहा “थाना प्रभारी सर, आप ऐसे नहीं ऐसे बोल सकते हैं… आपने किस आधार पर मेरे ऊपर यह इल्जाम लगाया है| हम अपने मरीजों की फाइल नहीं दिखा सकते| यह एक गुप्त होता है, इसलिए मैं नहीं दिखा रहा हूं…|”
थाना प्रभारी डॉ रूपम के चेंबर में जाकर सारी अलमारियों में से फाइल निकाल- निकालकर चेक करने लगे| उनके हाथ एक काम की फाइल के पीछे लगी, लेकिन डॉक्टर की शब्दावली में लिखा उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था| तब आगे बढ़कर नर्स ने फाइल की डॉक्टरी भाषा को स्पष्ट की| थाना प्रभारी ने उन सारी फाइलों को समेटा और डॉक्टर को तुरंत गिरफ्तार करके केs को कोर्ट में रेफर करके डॉक्टर को हवालात में ले गए| साथ ही मुस्कान को उसकी मां को सौंपने की कार्रवाई उन्होंने किया| मुस्कान का केस डॉक्टर केशव प्रसाद को दिया गया | दो दिन के भीतर ये सारी कार्यवाइयाँ हुईं| डॉ प्रसाद ने दो दिनों में ही अपना मंतव्य दिया कि मुस्कान तो कोरोना था ही नहीं तो फिर किसी आइसोलेशन व क्वॉरेंटाइन की जरूरत भी नही थी| बहुत थकान और कमजोरी से चक्कर और बुखार चढ़ गया था | आनन-फानन में पहले के भी कई मरीजों की फाइल खुलने लगे| पता लगा कि डॉ रूपम पहले भी तीन ऐसे केसेज को अंजाम दे चुके थे | तीनों में मरीज की मृत्यु हो चुकी थी और तीनों और तीनों मरीज इसी तरह की लड़कियां थीं| तीनों के परिजन कोरोना के डर से अपनी अपनी जान बचाते हुए रोते रोते घर चले गए| पुलिस की गिरफ्त में डाक्टर रूपम थे| डॉक्टर प्रसाद और नर्स ने मिलकर मुस्कान का सहृदयता के साथ इलाज किया तो नर्स अलग से रोज मुस्कान को समझाती और जिंदगी की आस जगाती थी| थाना प्रभारी के सहयोग से मुस्कान की हालत जल्दी-जल्दी सुधरने लगी और उसका आत्मविश्वास भी लौटने लगा|
मुस्कान आज अस्पताल से बाहर आ रही है| कुलवंती की बेटी वापस आ गई| डॉक्टर, नर्स, थाना प्रभारी के लिए बहुत गर्व और संतोष का क्षण था | खुशी से भरी थी कुलवंती ने नर्स के कदमों में अपना सिर नवा दिया| नर्स उसे उठाकर अपनी छाती से लगाकर बोली – “कुलवंती यह तुम्हारी अकेले की लड़ाई नहीं थी, यह मेरी भी लड़ाई थी और जीत हमलोगों की हो गई| अब तुम कहां जाओगी …यह सोचो..??” यह सब बातें हो रहीं थीं तब तक मुस्कान आगे बढ़कर सिस्टर के कमर से लिपट गई और कहने लगी कि “सिस्टर हम यहीं आपके आउटहाउस में रह लेंगे और आप जो कहेंगे वही हम लोग करेंगे| आप थोड़ी-थोड़ी मदद करेंगी तो हम लोग फिर अपनी पढ़ाई लिखाई शुरू कर देंगे और आपकी सेवा भी करेंगे|” मुस्कान की डिंपल वाली गालों में चिकोटी काटती हुई नर्स पुचकारते हुए कहने लगी…
“अच्छा अकिला बुआ… पढ़लिख कर के तुम बनोगी क्या… क्या तुम्हें करना है… ठीक ठीक बताओ तभी तुम्हें रहने दूंगी अपने घर में|”
मुस्कान – “शिविर में जाकर लोगों की मदद करूंगी जैसे आप करती हो और मैं भी पढ़ लिखकर आपके जैसी नर्स बनूंगी| कहती हुई मुस्कान सिस्टर के कमर को अपनी बांहों मे बांध ली| नर्स की आंखों से झरते हुए आंसूओं से नहा कर मुस्कान का संकल्प और पवित्र होता जा रहा था |

डॉ संध्या सूफ़ी,
प्राध्यापक

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