नयी दिशा

नयी दिशा

धूप-गुगुल के सुगंध से सुवासित और स्त्रियों के शुभ मंगल गान से गुंजायमान था हरिपुर गांव का वातावरण। लाल-पीली साड़ियों में स्त्रियाँ, धोती-कुर्ते में पुरुष और रंग-बिरंगे परिधानों में सजे बच्चे-बच्चियाँ उत्सव सा माहौल बना रहे थे,उनके परिधान सुख-समृद्धि की गवाही दे रहे थे।सब के चेहरे से संतुष्टि और खुशी झलक रही थी।अवसर था बिहार प्रांत के एक गाँव हरिपुर में चावल मिल की स्थापना दिवस के पूजन का,जिसने सफलतापूर्वक 10 वर्ष पूरे किए थे।खेती पर पूर्णतः आश्रित इस गाँव की कमजोर आर्थिकी अब मिल के कारण समृद्ध थी और गाँव में अब हर सुविधा मौजूद थी। बिजली,पानी,पक्की सड़क, बाज़ार और अच्छा 10+2 आवासीय स्कूल गाँव के विकास की गाथा सुना रहे थे।
पूजा के बाद प्रसाद बाँटती और दोपहर के भोजन के लिए सबको सपरिवार सादर आमंत्रित करती रमा और विजया फूली न समा रही थीं। उनके सपने ने साकार रूप जो लिया था। लोगों को विदा कर दोपहर भोज की तैयारी की समीक्षा कर विजया, अन्य तैयारियों का मुआयना करने गई और रमा चाय लेकर कुर्सी पर आराम से बैठी।ईश्वर को कोटिशः धन्यवाद देती चाय की चुस्कियाँ लेती रमा अतीत के गलियारे में जा पहुँची।
पंद्रह(15)वर्ष पहले रमा हरिपुर के संभ्रांत,सुशिक्षित भारद्वाज परिवार में बहू बनकर आई थी।शिक्षा,संस्कार और सुविचार वह अपने साथ लाई थी। बाद में उसकी छोटी बहन विजया भी उसी घर में छोटी बहू के रूप में रुनझुन करती आयी। दोनों के पति दिल्ली के एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत थे। उच्च विचारों,बड़े दिल व घरवाले,शिक्षित,सुसंस्कारी परिवार की इन दो बेटियों ने प्रतिष्ठित भारद्वाज परिवार की बहू बनकर परिवार की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा दिए ।
दिन बीत रहे थे दोनों बहनें अपने पति और बच्चों के साथ आराम से दिल्ली में रह रही थीं। 10 वर्ष पूर्व अचानक आयी वैश्विक महामारी कोरोना ने जब तांडव मचाना शुरू किया तो इनके पति की सैलरी भी कंपनी ने आधी कर दी। इनके लिए यह बहुत बड़ी समस्या नहीं थी पर सोचनीय अवश्य थी। आधी सैलरी से भी इनका काम किसी तरह चल रहा था पर मन में यह प्रश्न चुभ रहा था कि ऐसा तो कई परिवारों के साथ हुआ होगा और कितनों की आमदनी तो बंद भी हो गई होगी। उनका क्या होगा?
काफी विचार-मंथन के बाद दोनों बहनों और उनके पति ने तय किया कि यही अवसर है कुछ नया सोचने और करने का, समाज के लिए-समाज के साथ खड़े होने का, समाज को एक नयी दिशा देने का। आए दिन के समाचार से गरीब,मजदूर,मध्यम वर्ग की समस्या से ये परिचित थे। रोजी-रोजगार बंद था, शिक्षण- संस्थान बंद थे। अतः इन्होंने अपने लिए नया कर्म क्षेत्र चुना, बच्चों के साथ पूरा परिवार हरिपुर गाँव आ गया, शिक्षा के लिए भविष्य में बच्चों को हॉस्टल बेचने की योजना बना ली गई थी।
कुछ इनकी जमा पूँजी,कुछ परिवार का सहयोग और शेष बैंक से सरकारी ऋण लेकर इन्होंने एक चावल मिल स्थापित किया। कार्य आसान न था पर हौसले बुलंद थे और ये ऊर्जा से लबरेज थे। धान के फसल से लहलहाने वाले बिहार के उस प्रांत को अब चावल मिल उपलब्ध था। कोरोना संकट के कारण घर वापसी से उत्पन्न हालात के कारण गाँव में कामगार भी बड़ी संख्या में उपलब्ध थे।लोग खेती में रुचि लेने लगे,सबके घर-आँगन में खुशियाँ दस्तक देने लगीं।
भारद्वाज परिवार यहीं नहीं रुका, अब उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अगला कदम उठाया। N H से लगी अपनी जमीन पर एक इंग्लिश मीडियम 10+2 स्कूल की स्थापना का प्रयास शुरु किया। इनके एक काबिल,सुशिक्षित रिश्तेदार ने भी इसमें इनका भरपूर साथ दिया।वह कदम भी कामयाब हुआ।आज उसकी स्थापना की भी पांचवी वर्षगाँठ थी।
तभी विजया ने दीदी कहकर रमा को आवाज लगायी तो रमा अतीत के गलियारे से निकल वर्तमान में आ गई ।उसके चेहरे की खुशी देख विजया ने पूछा क्या बात है ? तो रमा ने 10 वर्ष पूर्व देखे सपने और उसके पूरे होने की खुशी की बात कह अपनी छोटी बहन को हृदय से लगा लिया और ईश्वर की असीम कृपा के लिए मन ही मन नतमस्तक हुई। खुशी के आँसू दोनों बहनों की नैनों से छलक पड़े जिन्हें उन्होंने अपनी साड़ी के आँचल के कोर में समेट-सहेज लिया,अनमोल थाती की तरह ।
माता-पिता के दिए संस्कार, विचार, शिक्षा और सोच से बड़ी इन दो बेटियों ने दो परिवारों का नाम रोशन किया और अपने गाँव के लोगों का जीवन खुशहाल कर, उसमें नई ऊर्जा का संचार कर,उन्हें जीवन का नया रास्ता दिखा, भविष्य के सपने संजोये नयी दिशा में चल पड़ीं।

पुष्पांजलि मिश्रा
जमशेदपुर, झारखंड

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