निर्मला

निर्मला

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं आम जनता से जुड़ी हुई है।आम आदमी क्या सोचता है,वह कैसे अपने जीवन को संभालते हुये एक एक कदम वह अपनी मंजिल की ओर बढ़ता है,इसका सुंदर चित्रण प्रेमचंद ने अपने सभी कथाओ में किया है।
मैं प्रेम चंद की सारी पुस्तके पढ़ी हूँ, आज से करीब 35 साल पहले जब मैं इंटर में थी,घर में ही पुस्तकालय थामैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पूरी किताबे मैने पढ डाली थी।उनमे “निर्मला ” ने मेरे मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ा है।उसका वर्णन मैं यहाँ करूंगी,जो मेरे दिल के काफी करीब है।

“निर्मला”अपने आप में तत्कालीन परिस्थितियों का वृहद भाव समेटे हुया है।अनमेल विवाह ,दहेज प्रथा और पुरष का नारी पर अधिकार भाव का बहुत ही सुंदर चित्रण किया गया है।
हिरणी सी कुलांचे भरती हुई निर्मला अपनी शादी के

बात सुन धीर गंभीर और लज्जाशील हो जाती है, क्योकि हमारे समाज में शादी का ताना बाना कुछ ऐसा बुना गया है,की शादी होते ही लड़कियों को घर गृहस्थी के बोझ तले दबना ही पड़ता है।वह अपनी गृहस्थी को अच्छे से चलाने के चक्कर में अपनी सारी खुशियों का न्योछावर कर देती हूँ।निर्मला जैसी निम्न मध्यम वर्ग की लड़की दहेज के अभाव में बेमेल विवाह का शिकार हो जाती है और ताउम्र वह अपने परिवार को सहेजने में अपना प्राण न्योछावर कर जाती है।
निर्मला की आवाज का दर्द आज भी हर लड़कियाँ महसुस करती है” हम लड़कियाँ है,हमारा घर कही नही होता,”
यह आज भी उतना ही सच है,लड़कियों का या तो ससुराल होता है या मायका ,अपना घर? आज भी हमें मुंह चिढ़ाते हुए प्रतित होता है।

निर्मला स्वपन में अपने अंधकारमय भविष्य को देख लेती है।बाबू उदयभान लाल की बड़ी बेटी निर्मला की शादी की बात बाबू भालचंद के बेटे से तय होती है।लेकिन निर्मला के पिताजी के मृत्यु के बाद भालचंद ने अपने बेटे से शादी नकरने से इंकार कर देते है।मानो दहेज ही कन्या को गुणवती रूपवती और कुलीन बनाता है।
अंतत निर्मला की शादी दहेज के अभाव में मुंशी तोताराम से हो जाती है,जो तीन लड़को के पिता थे,और एक विधवा बहन भी घर में थी।यहाँ भी प्रेमचंद ने अपनी कथा में यह बात स्पष्ट की है की विधवाओं का उसके ससुराल में कोई स्थान नही रहता है।मैके का वैशाखी ही उसका सहारा होता है।तोताराम का बड़ा बेटा मंसाराम सोलह वर्ष का था जो निर्मला का हम उम्र था।
तोताराम निर्मला के पिता के उम्र के थे,अतः अपनी नैसर्गिक कमी को अपने पैसो से पूरा करना चाहते द थे।उनकी विधवा बहन रुक्मिणी अपने को उस घर की मालकिन समझती थीअब निर्मला के आ जाने से खुद को असुरक्षित समझने लगी थी।
उधर तोताराम अपने बेटे और निर्मला के संबंध में भ्रम पाल लिये थे,और उधर रुक्मिणी विमाता के विरुद्ध चक्रव्यूह रचते थहती थी,निर्मला की स्थिति उस पंखहीन पंछी की तरह थी जो फरफरा तो सकता हैं लेकिन अपने को बचाने के लिए कोई कदम नही उठा पाता।
अक्सर देखा गया है कि सतौली मॉं उतनी बुरी नही होती हैवह बच्चो से बेहद प्यार भी करती है,क्योकी नारी में ममत्व नैसर्गिक गुण है,लेकिन बिना गर्भ धारण किये माँ का अधिकार समाज को पचता नही हैऔर उसके स्वभाविक प्यार को दिखावा का नाम मिलता है और उसके ममत्व को कसौटी पर कसा जाता हैं।बुआ रूपी समाज निर्मला और तीनो बच्चो और तोताराम के बीच कभी सहजता आने ही नही देना चाहती है।
मंसाराम अपनी और निर्मला की पवित्र रिश्ते को अपने प्राण न्योछावर कर के दे देता है।
इस कहानी में बेमेल विवाह से उत्पन्न सारी परिस्थितियों का जीवंत चित्रण किया गया हैं।
किस तरह से निर्मला निर्दोष होते हुए भी उसे हर समय विमाता के नजर से ही देखा जाता है।
“आशा” निर्मला की बेटी भी कही दहेज के अभाव में बेमेल विवाह का शुरू कार ना हो जाय ,इसके लिए निर्मला आशा के जन्म के तुंरत बाद से ही अपने खर्चे में कटौती कर दहेज का जुगाड़ करने लगती है।
विषम परिस्थितियों से जुझते हुए अंततः निर्मला भी इहलोक को विदा कर जाती हैं, जाते जाते उसके पति तोताराम भी आ जाते है।

निर्मला जितना बार पढ़तीं हूँ आंखे भर आती है।

आरती श्रीवास्तव
जमशेदपुर, भारत
प्रकाशित पुस्तके-15 सांझा संकलन
पांच प्रकाशन के राह में, एकल संग्रह प्रकाशन के राह में।
लेखन विधा-छंदमुक्त, छंदयुक्त, मुक्तक दोहा,सोरठा, नवगीत,कह मुकरी,वर्ण पिरामिड, हाइकुसोदेका,तांका,शायली छंद,उल्लाला,सवैया,संस्मरण,यात्रा वृत्तांत, लघुकथा, आदि।

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