इस्तीफा

इस्तीफा

हिन्दी कथा साहित्य की प्रथम सीढ़ी प्रेमचंद की कहानियों से प्रारम्भ हुई प्रतीत होती है। तीसरी- चौथी कक्षा से प्रेमचन्द की कहानियाँ जैसे’ बूढी काकी ‘, हामिद का चिमटा ‘, नमक का दरोगा आदि से शुरू होते- होते आत्माराम, कफन, इस्तीफा आदि कहानियों के द्वारा’उच्च स्तर की कक्षाओं तक अपनी अमिट छाप छोड़ती चलती हैं। किंतु यदि प्रेमचन्द की कोई एक कहानी का चयन करने की बात हो तो मैं ‘इस्तीफा ‘कहानी का चयन करूंगी। प्रेमचंद की य़ह कहानी जीवन को बहुत ही गहराई से प्रभावित करती है, प्रेरित करती है। मेरे जीवन पर भी इस कहानी का अद्भुत प्रभाव पड़ा और किसी निर्णायक स्थिति तक मैं पहुंच पायी।
‘ इस्तीफा ‘ कहानी आपादमस्तक प्रभावित करती चलती है। कहानी का शीर्षक ही कौतुहल जगाता है कि किसका इस्तीफा, क्यों, कैसे…। फ़तहचंद कहानी का मुख्य किरदार है जिसे प्रेमचंद ने बहुत ही खूबसूरती से उभारा है। फतहचंद दफ्तर का एक दब्बू क्लर्क है। कोई भी आकर उसे कुछ भी बोल जाता है। घर मे, रिश्ते नातों मे, मित्रों के बीच भी उसका व्यक्तित्व मुखर नहीं है और रूप रंग से भी पैंतीस की उम्र में पचास का सा लगता है। प्रेमचंद उसके व्यक्तित्व को एक पंक्ति मे समेटते हुए कहते हैं कि फतहचंद
का नाम यदि हारचंद होता तो ठीक होता…..।
फतहचंद अपने ऑफिस के ‘बड़ा साब’ की हर बेतुकी बात को इसलिए सुन लेता है क्योंकि उसे अपने घर परिवार की पत्नी बच्चों के लालन- पालन की चिंता है। जब फतहचंद की पत्नी शारदा उसके स्वाभिमान को जगाती हुई कहती है “….इज्ज़त गवां कर बाल बच्चों की परवरिश नहीं की जाती, तुम उसे मार कर आए होते तो मैं गुरूर से फूली नहीं समाती..” । इस एक वाक्य ने फतह चंद के भीतर स्वाभिमान को जागृत कर दिया और वह उल्टे पांव ‘बड़ा साहब ‘ के बंगले में गया और पूरे रुआब से अपनी बात कही अपने अपमान का बदला लिया और” …मैं तुम्हारे मातहत।अब काम नहीं कर सकता…” कहते हुए उसे इस्तीफा सौंप दिया। उस दिन फतहचंद के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी और वह अपने नाम को सार्थक कर रहा था।
प्रेमचंद ने इस रोचक कहानी के माध्यम से रेखांकित किया है कि जीवन मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्वाभिमान होता है, अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए जीवन जीने मे सार्थकता है अन्यथा जीवन भार सदृश हो जाता है।
कहानी मे फतह चंद की पत्नी शारदा उसकी अनुगामिनी से अधिक उसकी सहचरी के रूप मे, उसकी मार्गदर्शिका के रूप प्रदर्शित होती है। स्त्री विमर्श के दायरे से यदि कहानी को देखा जाए तो प्रेमचन्द स्त्री को सबल चेतन व्यक्तित्व के रूप मे प्रदर्शित करते हैं ,वह न केवल अपने अस्तित्व के प्रति सजग है वरन् जीवन संघर्ष को आस्था के साथ स्वीकारते हुए अपने पति घर-परिवार को
सम्हालने में समर्थ दीखती है।
कहानी का गठन बहुत ही रोचक है जो कहानी को पठनीय बनाता है। य़ह कहानी हर पाठक वर्ग को रुचिकर लगती है चाहे वो बच्चा हो, या वृद्ध या नौजवान।
पात्रानुकूल प्रवाहपूर्ण ,मुहावरे दार उर्दू मिश्रित भाषा से कहानी को गति मिलती है। य़ह कहानी आदि से अंत तक बांधे रखती है साथ ही उत्सुकता भी बनाये रखती है और कहानी का अंत हृदय ही नहीं आत्मा को तृप्ति प्रदान करता है।
समग्र रूप से प्रेमचन्द की कहानी ‘ इस्तीफा ‘ बहुत ही अच्छी और प्रेरणास्पद कहानी है।

डॉ जया आनंद
प्रवक्ता
स्वतंत्र लेखन
(मुम्बई)

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