रामोतार की फोटो
“लो आ गए बड़के भैया की मोटर… राम- राम बड़के भैया! राम-राम चाची ! बड़ी दीदी राम-राम !” धारीदार पाटरे का पैजामा, फुल शर्ट को बाहों में लपेटे ,कंधे पर लाल रंग का अंगौछा डालें वह लगभग चार फुट पांच इंच का, रंग पक्का यह अदना सा व्यक्तित्व सबका अभिवादन कर रहा था ।हां उस अदने से इंसान का नाम है राम अवतार पर जब लोग उसे बुलाते हैं तो वह रामोतार हो जाता है ।
चाचा -चाची ने राम अवतार के अभिवादन का प्रत्युत्तर दिया। “राम- राम रामोतार भैया ! ” बड़ी दीदी भी कार से नीचे उतरते हुए मुस्कुराते हुए बोली ” राम -राम रामोतार ”
“आप कितने दिनों बाद आई बड़की दीदी ” बड़की दीदी को देखते ही रामोतार शुद्ध खड़ी बोली बोलने की भरपूर कोशिश करता ।
“रामोतार भैया! बस पढ़ाई बहुत हो गई है….. कैसे हो ?”
“बिल्कुल ठीक ” रामोतार के सांवले चेहरे पर झक सफेद दांत मुस्कुराते हुए प्रकट हो गए। रामोतार के उत्तर पर बड़की दीदी सोच में पड़ गई ‘ क्या सचमुच रामोतार बिल्कुल ठीक है ।अपने घर में पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ा पर कद में सबसे छोटा, दो छोटे भाई ,दो छोटी बहनें ,पिता का साया बहुत पहले ही सर से उठ चुका था। बूढ़ी होती हुई माँ ,कमाने का जरिया बस बटाई पर खेती करना, गांव में छोटा सा कच्चा घर जिम्मेदारियों के पहाड़ के नीचे दबा रामोतार……और बिल्कुल ठीक ! ‘
“बड़की दीदी लाइए हम बैग लेते हैं आपका ।” रामोतार की खनकती हुई बोली से बड़की दीदी जो अभी बहुत बड़ी नहीं थी दसवीं में ही पढ़ती थी, मुस्कुरा दी । ”
“दीदी!छोटे चाचा ,छोटी चाची देखेंगे कि बड़के चाचा आए गइन हैं मेरा मतलब कि आ गये हैं तो बड़े खुश हो जायेंगे। शाम तलक जब सब लोग के आने पर घर में रौनक लग जहियै मेरा मतलब रौनक लग जायेगी । ” रामोतार अपनी धुन में बोले जा रहा था । बोलना तो उसकी खासियत है पूरा चलता- फिरता रेडियो जिससे लंबी -लंबी वार्ताएं अत्यंत ही रोचक प्रसंगों के साथ प्रसारित होती रहती।
” बड़की दी ! ई नल आप नहीं चला सकेंगी हम चलाते हैं” रामोतार की फिर वही खड़ी बोली
बड़की दी हँस दी ” ठीक है भैया ! आप ही चला दो ” बड़की दीदी आँगन में लगे हैंडपंप से हांथ मुँह धोने लगी ।
” दीदी !आप फोटो लाई हो ” रामोतार ने चहक कर पूछा
“फोटो……बड़की दी भी सोचने लगी….” फोटो तो मैं भूल गई ” । पिछले साल होली में गांव में सब लोग इकट्ठा हुए थे ।दादी और छोटे चाचा- चाची तो वही गांव में रहते हैं ,बाकी सारा परिवार बच्चे होली में अपने-अपने शहरों से पहुंच जाते। होली खेलने के बाद सब नहा धोकर अच्छे कपड़ों में कुर्सियों पर बैठ गए थे। कुर्सियों का इंतजाम रामोतार ने ही किया था ।”बीच वाली कुर्सी में दादी बैठिहैं ओके बगल वाली मा बड़के चाचा-चाची, दीदी इधर दाहिने तरफ वाली कुर्सी के किनारे खड़ी हुइहैं , परधान चाचा दादी कै दुसरी तरफ और फिर मझंले चाचा- चाची के बगल मा छोटे डॉक्टर चाचा -चाची ,उनकै पाछे हम खड़े हुई जात हैं अउर बच्चा पार्टी आगै बईठ जावो। “रामोतार निर्देश दे रहा था । मुस्कुराते प्रफुल्ल चेहरे के साथ रील वाले हॉटशाॅट कैमरे से फोटो खींची गई। गहरे सांवले रंग में चमकते हुए झक सफेद दातों के साथ रामोतार सबसे अधिक मुस्कुरा रहा था।
” बड़की दी हमें यह वाली फोटो चाहिए “अपनी खड़ी बोली में रामोतार ने बड़े ही आधिकारिक लहजे से बात कही थी ।
“हां रामोतार भैया !अगली बार जरूर ले आऊंगी पर बड़की दीदी तो फोटो लाना भूल गई थी। इतनी सारी बातों में रामोतार की फोटो की बात तो मन के किसी हिस्से में समाकर गुम हो गई थी इसलिए इस बार गांव आते समय भूल गई। “रामोतार भैया !अगली बार याद से लेकर आऊंगी”
” अबकी बार जरूर ले आइएगा दीदी !रामोतार के काले चमकते चेहरे पर सफेद दांत के साथ मुस्कान बिखर गई …पर आंखों में कहीं उदासी भी झलक रही थी । रामोतार सच पूछो तो सबकी उदासियां गठरी में उठाकर फेंक देने का काम करता। होली की शाम चाय सिधरी में (मिट्टी की बनी कोठारिया ) में सब पीते और रामोतार चबूतरे पर खड़ा हो जाता। “रामोतार! आज कौन किस्सा से लेकर आए हो “डॉक्टर चाचा ने चाय सुड़कते हुए पूछा
“उ दिन चाचा ! गांव में जब परधानी की कुर्सी जीते रहे, एक जने बीस-बीस रुपए की माला पहनाई,दूसरे जने पचास-पचास की ,तीसरे जने कहे हम तुमसे पीछे काहे रहे कोनो कम है का ,वै सौ-सौ का नोट का माला पहनाय दिहिन। हम तो चाचा कै मुंह देखत रहे । चाचा नोटों की माला मा फंसे गला कइसे खुजलाएं ? हम सोचै कि हम खुजलाय दें पर हमार कद अउर हमार हाथ चाचा की गर्दन तक कइसे पहुंचे ! भगवान जी हमार कद बहुते ही बढ़िया बनाए दिहीन…. ” रामोतार बोलते- बोलते हँस पड़ा शायद जब वो उदास होता है तो हंस पड़ता है…..” फिर भैया जान्यो का भवा ,एक जने बालूशाही और लड्डू लेकर चले आए और चाचा के मुंह में ठूस दिहीन। अब चाचा ऊपर से मुस्कुराए रहैं पर भीतर- भीतर गुस्सात रहैं …’ हाथ मा दे का चाही तो मुंह मा ठूस दिहिन, बाद मा हमका भी एक ठो लड्डू पकड़ाईन। हम चाहत रहे बालूशाही खाएका. ..उकै बाद चाचा के साथै भीड़ चलै लगी, आप सब रुतबा देखतौ…. अइसा लागत रहै जैसे गांधी पिक्चर मा गांधी जी दांडी यात्रा करत रहे वैसे ही हम सब चाचा कै साथ एक साथ चलत रहैं। एक जने आए के चाचा कै पैर पकड़ लिहिन, हम सोचै ‘ल्यो हुई गवा अब कल्याण । चाचा कहीं जोर ना बोल दैं कि पैर काहे पकड़्यो मुंह से बोलौ जो बोलना है ‘ पर हम देखै चाचा मुस्कुरैते रहै गएन। हम समझ गए कि चाचा अब पूरे नेता हुई गए हैं।”
” फिर क्या हुआ रामोतार भैया!”। बड़की दीदी ने उत्सुकता से पूछा ।
“अरे दीदी! आप बड़े मजे लेकर सुन रही हैं ” रामोतार फिर खड़ी बोली पर चला आया था।” रामोतार सुनाओ आगे आपन कहानी ” छोटी चाची मठरी खाते हुए बोली ।
“…. हां चाचा सब लोगन से घिरे- घिरे घर आए गयैऔर दादी, चाची आरती का थाल लिए चाचा की आरती उतारै लगीं। हम तो चाची का चेहरा देखत रहैं ,अइसी सरमात रहीं जइसे कि छुईमुई सरमाए जात है। हमका तो इत्ती हँसी आवत रही कि पूछो नाही पर चाचा अपने मा मस्त रहें ।दादी चाचा का पान खावाए दिहिन. …हां हम भूल गएन रहे कि चाचा का वहां गांव में सब लोग माला पहनाई दिन रहे, दादी तिलक लगाए रहीं और अब पान का बीड़ा से मुंह लाल ….चाचा इत्तो जम रहे रहन कि पूछो नाही और कुछ सोचकर रामोतार से मुस्कुराया ।
“क्या हुआ रामोतार भैया ! प्रिया बिटिया आंखों में चमक लिए बोली
” कछु नहीं छोटी बिटिया ! हम तो बस चाचा के परधान बने पर जो जलवा देखै रहैः वै तो गजबे रहै ,हमार सीना चौड़ा हुई गवा कि हम कुछ बनि गएन।” रामोतार की परधान चाचा की गौरव गाथा चलती जा रही थी। रामोतार गाथा कहते हुए कभी मुस्कुराता ,कभी जोर से हंसता,कभी थोड़ा सोचता …सब के सब उसकी बातों को सुनते रहे ।इतना रस रहता रामोतार की बातों में कि कोई टस से मस नहीं होता । रात हो रही थी रामोतार को अचानक कुछ याद आ गया। “भैया! अब काल सुनाइब “। रामोतार की गाथा का मध्यांतर आ गया था शायद ! रामोतार परधान चाचा की गौरव गाथा गाते हुए अपने घर पहुंच गया था ।चूल्हे पर बूढ़ी मां मोटी- मोटी रोटियां सेक रही थी, छोटी बहन प्याज काट रही थी, एक बहन सिल पर चटनी पीस रही थी, दोनों छोटे भाई भाई कच्चे आँगन में बिछी खटिया पर पसरे हुए थे। । हंसता -मुस्कुराता रामोतार घर में बड़ा है कद का छोटा है तो क्या हुआ; बड़प्पन की गंभीरता रामोतार के चेहरे पर घर पहुँचते ही उभर आती।
रामोतार के आगे खाने की थाली आ गई थी ।दाल रोटी प्याज पानी …”अम्मा ! सब्जी काहे नहीं बनाई?” रामोतार ने खाना देखकर मुँह सिकोड़ा
” बेटवा ! आज हमारे पास पइसवा रहे नाही अउर यह मधुरिया परधान भैया के बगिया गई नाही वहैं से तोड़ लउती कौनो सब्जी , यही खातिर दाल बनाय लिहैं”। अम्मा रोटी सेकते- सकते बोली
रामोतार ने दो मोटी -मोटी गुदारी रोटी खाई प्याज और दाल के साथ और वह भी आँगन में बिछी खाट पर अपने दोनों छोटे भाइयों के साथ लेट गया ।आंगन के पास पेड़ से आच्छादित आकाश के झांकते हुए टुकड़े में टके हुए सितारों को रामोतार निहार रहा था कि उसकी नजर आँगन के पास बने कमरे की कच्ची दीवार जिसे उसकी बहन मधुरिया ने नीचे गेरू और चूने से रंग के कुछ चित्रकारी की थी, पर चली गई ‘…हां ई जगह पर परधान चाचा ,दादी बड़के भैया ,बड़ी दीदी के परिवार की फोटो के लिए बहुत बढ़िया है, हमहुँ साथ खड़े हन फोटो मा ।परधान चाचा हैं आखिर हमरे ,हमरो रुतबा भी बढ़ जाब ….’ रामोतार यही सब सोचता रहता ।
गांव का रिवाज था कि होली के दिन परधान चाचा का परिवार और उनकी बिरादरी के लोग सुबह-सुबह नए कपड़े पहन कर एक दूसरे से होली मिलने जाते और मजाल है कि कोई भी उन पर रंग डाल दे। रामोतार भी हमेशा की तरह साथ चल दिया।
” कौनो हमरे ऊपर रंग ना डार्यो ,हम चाचा के साथै हैं “रामोतार पूरा रौब जमाते हुए बोलता
“बड़की दीदी ! आप आगे चलो ,गुझिया,पापड़ खा लीजियेगा सोना चाची के यहां…..और दीदी! अब की बार फोटो जरूर लायो मेरा मत लाइएगा ” रामोतार बोलता जा रहा था ।बड़की दीदी हंसकर रह गई। रामोतार अपने अभावों को किनारे करता हुआ उन सब की खुशी में शामिल था ।
सुबह होली मिलन होने के बाद पहले की भांति सब ने पुराने कपड़े पहने और आंगन में जमकर होली होने लगी। बड़ी दीदी पूरे जोश से बाल्टी में रंग भर -भर कर सब पर डालती जा रही थी ।” रामोतार भैया ! जरा बाल्टी भरो ” बड़की दीदी ने कहा
हाँ ..हाँ दीदी ” रामोतार हंसते हुए आंगन में लगा हैंडपंप चलाने लगा । छोटे चाचा ने आकर रामोतार पर ही रंग उड़ेल दिया ।” अरे नहीं भैया ! हम का नाही भिगायो “रामोतार मुस्कुराते हुए बोला। रामोतार की दोनों छोटी बहनें मधुरिया और किरनिया और दोनों छोटे भाई जो रामोतार से खासे लंबे थे,सब आंगन में एक कोने में खड़े परधान चाचा के घर की होली देख रहे थे। रामोतार सबको देख- देख कर खुश हो रहा था ।…रामोतार हमेशा से ऐसा ही रहा था खुद कभी नहीं खेलता पर सबको रंग खेलता देख खुश होता …शायद दूसरों की खुशी में ही वह खुश हो लेता है । “मधुरिया किरनिया ! अब घरै चलो ” रामोतार में बड़े भाई का अधिकारी भाव जाग गया था और उसे अकेली अम्मा की भी चिंता है। मधुरिया, किरनिया घर चली गई, दोनों छोटे भाई परधान चाचा के घर में गाय बछड़ों का प्रबंध करने बग्घर चले गए।
परधान चाचाजी का परिवार होली खेलने के बाद नहा धोकर तैयार हो गया था। आंगन में रामोतार ने फिर से कुर्सियाँ सजा दी थीं पर अब की बार छोटे भैया, छोटी दीदी नहीं आई थी बोर्ड परीक्षा के कारण ,इस बार भी फोटो खींची गई। रामोतार भी था फोटो में बड़की दीदी के बगल में ही खड़ा था ।फोटो खींचने के बाद रामोतार बोला ” दीदी! हमें पिछले साल वाली फोटो चाहिए उस फोटो में सब हैं ” रामोतार खड़ी बोली पर आ गया था जैसे दीदी से बात करते हुए हमेशा से करता था ।
“भैया! अबकी बार नहीं भूलेंगे पर आज शाम आप कौन सा किस्सा सुनाने वाले हो ।
“आज शाम का सुनिहो मेरा मतलब शाम को सुनिएगा बड़की दी से रामोतार देहाती भाषा में बोलते हुए अचकचा गया ।
शाम सात बजे आंगन के पास बनी सिधरी (मकान का कच्चा भाग) में सब इकट्ठा हो गए । चाय की चुस्की के साथ रामोतार की कहानी सुनने के लिए सब उत्सुक थे ।
“रामोतार! आज कौन सा किस्सा ?”छोटे चाचा बोले
“भैया ! आज तो अबहैं का किस्सा है ”
“कौन सा ” छोटे चाचा बोले
“अरे बड़के चाचा का…आज गांव के रामलीला मैदान में जो भाषण दिए रहैं वही …सब लकदक हुई के सुन रहे रहैं हमहु सुनी रहे । पहिले तो वै कविता बड़े जोश मा बोले तो हमका थोड़ा बहुत समझ आवा पर लागत रहे कि बहुते बढ़िया कविता बोल रहे बड़के चाचा।
” रामोतार! बताओ भई कैसे बोल रहे थे हम “बड़के चाचा हँसते हुए पूछने लगे ।
रामोतार हाव भाव प्रदर्शित करते हुए पूरा अभिनय दिखाता रहा। ” फिर क्या हुआ रामोतार भैया !” बड़की दीदी की आँखे चमक रही थीं
“फिर सबै जन जोर से ताली बजाइन। बड़के चाचा बिल्कुल अटल जी लागत रहैं अउर भाषणो अटल जी जइसा देत रहैं ” रामोतार अटल जी का अभिनय कर के बताने लगा ” .. ये बात नई है…. ” सब जोर से हंस पड़े। और उकै बाद बड़के चाचा एक गीत गाए दिहिन ‘ऋषि मुनि राजा प्रजा ….’ ऐसे रहै कछु बहुते बढ़िया गायिन ।हम तो बड़के चाचा के बगल मा खड़े हुई गए। सब गांव वाले हमहु का देखै लगे ” बोलते हुए राम अवतार का चेहरा मुस्कुराते हुए लाल होने लगा ।
राम अवतार के किस्से सब मजे लेकर सुनते रहते ।रामोतार सबको हंसाते रहता पर अपने घर पहुंचते ही उसके चेहरे पर गंभीरता आड़ लिए खड़ी हो जाती। दोनों बहनों की शादी,दोनों भाइयों की देखभाल, बूढी होती हुई अम्मा की चिंता,घर बसर करने की बेचैनी,… परधान चाचा के खेत से बटाई का पैसा काफी नहीं पड़ता है , रमेश चाचा के खेत का भी काम ले लेते तो कुछ बात बनेगी …इन सबके बीच में अपने लिए कुछ सोचता ही नहीं ।
“भैया !आज पूरी सब्जी बना रहे, खाय लो” रामोतार की अम्मा खाना परसते हुए बोली ।
“अम्मा ! परधान चाचा के यहां खाय लिहै, दादी खिलाय दिहिन, बहुते स्वादिष्ट खाना रहै” कहते हुए रामोतार पानी से हाथ मुंह धो कर आंगन में बिछी खाट पर पसर गया। परधान चाचा का परिवार उसके लिए बड़ी नियामत के समान था। उस परिवार की खुशी में खुश और उसके दुख में दुखी। लेटे हुए रामोतार की नजर फिर सामने वाली खाली दीवार पर पड़ी’ यह परधान चाचा,दादी, बड़की दीदी सब की फोटो लगाईब बहुत नीक लागे , मधुरिया की शादी में फोटो की वजह से हमरो रुतबा बढ़ि जाएब फिर अपनौ शादी करब ,हमारी औरत भी फोटो देख कर खुश हुईहै और कि उनकै आदमी परधान चाचा के यहां काम करत है’ रामोतार के चेहरे पर लजाई सी मुस्कान बिखर गई थी। कद का जितना छोटा था रामोतार सपने भी उसी कदके थे ।अपने सपनों की दुनिया बनाते -बनाते रामोतार की आंख लग गई।
अगले दिन बड़के चाचा, डॉक्टर चाचा अपने -अपने काम पर होली की छुट्टी खत्म होते ही लखनऊ जाने लगे। “बड़की दीदी ! अब की बार आयो तो फोटो याद से ले आयो मतलब ले आइएगा ” फिर आधी देहाती आधी खड़ी बोली बोलते हुए रामोतार सब के पैर छूने लगा
” हां रामोतार भैया! अबकी बार नहीं भूलेंगे” बड़ी दीदी मुस्कुरा दी ।
अगले दो साल बड़की दीदी गांव आई ही नहीं ,पढ़ाई बोर्ड परीक्षा में व्यस्त थी और तीसरे साल जब आई तो रामोतार की फोटो का ध्यान ही नहीं रहा ।उस फोटो की नेगेटिव धुलवाने का किसी को ध्यान ही नहीं रहता और रामोतार की फोटो का सपना धरा का धरा रह जाता।
“दीदी अबकी बार आयो मतलब आइएगा तो फोटो ले आइएगा” रामोतार याद दिलाता रहता और साथ ही अपने किस्सों के पिटारे से कोई ना कोई नया किस्सा सजीव प्रसारण के साथ सुना कर सबका मन मोह लेता और रात फिर गहराते सूनेपन के साथ बिता देता ।
अपनी बहन मधुरिया की शादी रामोतार ने पास के गांव के दुकानदार से करवा दी पर परधान चाचा के परिवार के साथ वाला फोटो का रुतबा वह तो अधूरा ही रह गया था।
बड़की दीदी की शादी तय हो गई थी ।गांव में रामोतार अपने छोटे भाइयों के साथ लखनऊ आ गया था। बड़की दी शादी की रस्मों रिवाज में व्यस्त थी ।रामोतार को देख कर मुस्कुराते हुए बोली “रामोतार भैया! आप शादी के कामकाज संभालो” रामोतार ने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। फोटो की बात अभी भी भूला नहीं था। रामोतार अपने दोनों भाइयों के साथ दौड़ -दौड़ कर काम करता “रामोतार भैया पानी ला दो, रामोतार! बिस्तर बिछा देना ,रामोतार!चावल की बोरी रखवा दो , रामोतार हलवाई के पास सब्जी की बोरी दे आओ …” रामोतार हंसते-हंसते काम करता जाता। दोनों छोटे भाई भी उसके साथ लगे रहते। धूमधाम से शादी हुई ।रामोतार अपने पाटरे वाले पजामे की जगह सफेद पजामे बुशर्ट में सजा धजा काम करता रहा और साथ ही सबको हंसाता भी रहता ।
बड़की दी विदा होकर ससुराल चली गई। गांव में होली मनती रही पर बड़की अपने घर गृहस्थी के बीच गांव नहीं पहुंच पाई। दस साल बीत गए। गांव के परधान चाचा के मंदिर का सौ साल हो रहा था ।परिवार के सब लोग पहुंच रहे थे। बड़की दीदी को गांव जाने की बहुत ललक थी। अवसर ने गांव जाने की ललक में वृद्धि करदी थी।बड़की दीदी अपने बच्चे पति समेत गांव पहुंचकर भावविभोर हो रही थी। मंदिर में स्थापित बारह ज्योतिर्लिंग, राधा- कृष्ण सभी देवी- देवता थे ।घर का लंबा चौड़ा आंगन, आंगन में लगा अनार का पेड़ और वह मकान का वह कच्चा भाग सिधरी अब नहीं थी टूट चुकी थी सिधरी की याद आते ही रामोतार का चेहरा आंखों के सामने घूम गया ।
शादी के लगभग दस दिन बाद ही बड़ी दीदी नई नवेली दुल्हन के रूप में अपने पति के साथ गांव पहुंची थी ।नए-नए जीजा जी को सब ने होली पर खूब रंगा था ।रामोतार पास खड़े होकर हैंड पाइप चलाते पानी की बाल्टी भरे जा रहा था। शाम को सिधरी में सब बैठ गए थे चाय की चुस्की के साथ और रामोतार पूरे जोश के साथ किस्सा सुनाने लग गया बड़की दीदी की शादी का …”भारी इंतजाम किए रहैं बड़के चाचा कि का बताए …कौनो खाने की कमी ना रही,गुलाब जामुन,रसगुल्ला ,रस मलाई ,दोसा, पानी बतशा …हम तो खूब खाएं और जय माल का स्टेज तो बहुते बढिया रहा ।बड़की चाची छोटी चाची सब गाना गाए रहीं तो लगे हम कौनो पिक्चर देख रहैं और बड़ी दीदी -जीजाजी उमा हीरो हीरोइन है एकदम राम -सीता की जोड़ी ।बारात मा एक मोटे रहैं,वै ऐसा नाच रह रहैं कि का बताइ , एक जमीन मा लोट गए ।हम सोचे काहे इतना बढ़िया कपड़ा पहने की जरूरत है जब नीचे लौटे का है । शादी का पंडित गायत्री मंत्र बोलत रहैं वै सब जन का डांट दिहिन कि अभी गाना मत गाओ मंत्र सुनो …हमे तो छोटे चाचा का बियाह याद आई गावा जब सादी मा कौनो पंडित जी का मंत्र नाही सुनत रहै बस आपन अंताक्षरी खेलत रहै । ”
“रामोतार अब तुमरो ब्याह भी होय का चाही ” छोटे चाचा बोले
“चाचा! पहले मधुरिया , चंदर को ब्याह होइ जाए तब सोचिबै …..कौनो लड़की मिलत नाहीं ” रामोतार शरमा गया। “रामोतार बिहार से भगा के लै आ जाए कौनो लड़की तुमरे लिए ” छोटे चाचा बोले
“नाही मिलिहै तब चाचा! भगाए लिहो” रामोतार जोर से हंस पड़ा था।
बड़की दीदी के सामने रामोतार का पूरा चलचित्र खिंच गया ।रामोतार की एक-एक बात, उसकी भाव- भंगिमा याद कर बड़की दी मुस्कुरा दी ।
“बड़की दीदी कैसी हैं आप ?” रामोतार की दोनों छोटी बहनें सामने खड़ी थी ।
“अरे किरनिया , मधुरिया कैसी हो ?शादी हो गई दोनों की”!
” हां बिटिया अब सब जिम्मेदारी निभ जाए ऐसे सोचत हैं” रामोतार की अम्मा आ गई थी ।
अभी तक रामोतार कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। “अम्मा! रामोतार किधर है?… और उसकी शादी…” बड़की दीदी का प्रश्न अधूरा ही रह गया
“बिटिया !सब छोट भाई -बहन की सादी रामोतार कर दिहिन पर आपन…इनके कद की कौनो मिलते नाहीं ,का करी।
बड़की दीदी सोच में पड़ गई कुछ बोलते ही नहीं बना ।रामोतार कुछ देर बाद आया पर चेहरे पर वो रौनक जो पहले हुआ करती थी अब नदारद थी ।
“कैसी हो बड़की दीदी ? आप बहुत साल बाद आई” रामोतार ने मुस्कुराते हुए औपचारिकता निभाई
” हाँ भैया! घर गृहस्थी,…..बच्चों ! यह रामोतार भैया ,बहुत बढ़िया किस्से सुनाते हैं ” बड़की दीदी ने रामोतार को उत्तर देते हुए अपने बच्चों से परिचय करवाया।
मंदिर का पूजा पाठ, गांव का की दावत का कार्यक्रम चला, भजन कीर्तन भी हुआ, गांव की बगिया, फुलवारी की घुमाई भी हुई…. बस नहीं हुआ तो दादी से मिलना (दादी अब नहीं रही थी )और रामोतार के किस्से ।सिधरी टूट चुकी थी और शायद रामोतार के किस्सों के लिए कोई मंच भी अब नहीं बचा था। सुबह सब के जाने की अफरा-तफरी मच गई। रामोतार गाड़ी में सब का सामान चढ़ा रहा था ।सारे लोग गाड़ी में बैठ गए थे ।अब गांव में छोटे चाचा भी नहीं रहते वह भी लखनऊ आ गए ।रामोतार अकेला खड़ा था नीचे मुस्कुरा रहा था धीरे से बोला ” दीदी ! आप फिर आयो हो मेरा मतलब आइएगा “इस बार उसने फोटो की बात नहीं कही पर फोटो की बात भूला तो रामोतार भी नहीं और बड़की दीदी के भी मन के कोने में रामोतार की फोटो बसी थी पर न रामोतार बोला न बड़की दीदी कुछ बोल पाई ।अब तो मोबाइल फोटो का जमाना आ गया था। सब डिजिटल पर उस फोटो की तो बात ही अलग थी। पूरा परिवार था उसमें रामोतार के साथ,रामोतार के रुतबे की बात थी। अब तो कई लोग इस दुनिया से कूच कर चुके हैं और समय के साथ फोटो भी पुरानी पड़ चुकी है और रामोतार का रुतबा भी। रामोतार की वह कच्ची दीवार अब भी सूनी है वहां कोई फोटो नहीं और वह सूनापन उसके जीवन में भी ।वह बिल्कुल अकेला है ।
बड़की दी ने चलते हुए पाँच सौ का नोट उसे थमा दिया ” अरे नहीं दीदी !” रामोतार सकुचा गया ।
बड़की दीदी ने जबरदस्ती उसके हाथ में नोट पकड़ाया और मुस्कुरा दी आखिर कुछ भी तो नहीं दे पाई रामोतार को, एक फोटो तक भी नहीं जिससे वो अपने रुतबे की बाट जोहता रह गया ……किस्से सुनाने वाले रामोतार के जीवन का किस्सा तो अधूरा था पर रामोतार अब भी मुस्कुरा रहा था।
डॉ जया आनंद
प्रवक्ता (मुम्बई)
स्वतंत्र लेखन