मन्त्र

मन्त्र

आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के पक्षधर मुंशी प्रेमचंद जी अपनी मनोवैज्ञानिक धारणा को प्रतिष्ठित करके पाठकों के जिस तरह से सम्मुख रखते थे वह अपने आप में विचारणीय है । प्रेमचंद की अमूल्य योगदान से आज कहानी विधा विषय का स्वरूप आदर्शवाद शिल्प की दृष्टि से नए-नए आयामों को आत्मसात करती हुई संतोषजनक पड़ावों को तय करती हुई अपनी मंजिल तक पहुंच चुकी है।आप की कहानियां ऐतिहासिक, राष्ट्रीय, सामाजिक,चरित्र और मनोवैज्ञानिक स्तरों को पार करते हुए पाठकों के हृदय में प्रवेश कर जाती है। विषय की व्यापकता चरित्र चित्रण की शुद्धता,शिक्षक संवाद,सजीव वातावरण प्रभाव,भाषा शैली, लोक मंच,लोक संग्रह, लोक वातावरण प्रेमचंद की कहानियों की खूबसूरती को और भी बढ़ा देती है।

“मन्त्र” कहानी का स्वरूप भी इसी प्रकार का है जिसमें यथार्थ और आदर्श का गहरा रंग है और अंत में विजय आदर्श की होती है। कहानी में भगत अपने आदर्श व्यवहार से पाठकों पर गहरी छाप छोड़ता है । मंत्र कहानी मार्मिक यथार्थ और आदर्शात्मक निदान के माध्यम को प्रस्तुत करता है किंतु कहीं न कहीं किसी रूप में द्वंदात्मक निष्कर्ष भी है ।एक तरफ जहां अमीर,सुशिक्षित, सभ्य और सुविधासम्पन्न लोगों में सेवाभाव, करुणा, ममता और सहानुभूति का अभाव दिखाया गया है तो वहीं दूसरी तरफ गरीब और अनपढ़ लोगों के मन में दया,सेवाभाव,करुणा और ममता जैसे गुणों को भरपूर दिखाया है। एक तरफ जहां सभ्य समाज अपनी सुख-सुविधा, नाम और कीर्ति को जुटाने में ही व्यस्त है उसके पास दूसरों के हित,संकटग्रस्त व्यक्ति की सेवा और सहयोग के लिए समय नहीं है वही श्रमजीवी वर्ग दीन-हीन वंचित होने के बावजूद भी सेवा, उपकार, श्रमदान आदि के लिए हमेशा तत्पर रहता है।

“मंत्र” कहानी में तीन प्रमुख पात्र हैं पहला समर्थ मनुष्य डॉक्टर चड्ढा के रूप में दिखाया गया है तो दूसरा हर तरफ से हारा हुआ एक दीन हीन पिता भगत और तीसरी तरफ एकलवर्गीय संपन्नता-विपन्नता, ऊंच-नीच का प्रतीक सांप… “मंत्र” एक मर्मस्पर्शी कहानी है… भगत अपने पुत्र की जीवन दान की याचना डॉक्टर चड्ढा के समक्ष करता है लेकिन चड्ढा के ऊपर उसका कोई असर नहीं होता अपनी बीमारी के कारण भगत का लड़का इस दुनिया से कूच कर जाता है लेकिन जब यही परिस्थितियां डॉक्टर चड्ढा की बेटे के साथ उभर कर आती हैं तो भगत ना करने के बावजूद अपनी पत्नी से छुपकर रात्रि में डॉक्टर चड्ढा के लड़के का उपचार करने के लिए जाता है। “मन्त्र” के माध्यम से प्रेमचंद्र जी ने डॉक्टर चड्ढा के उन्माद और उनके गुरुर को साथ ही बूढ़े भगत की गिड़गिड़ाहट को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा है। कहानी की कुछ पंक्तियां “सभ्य संसार इतना निर्मम इतना कठोर है इसका ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक ना हुआ था। वह उन पुराने जमाने की जीवो में था जो लगी हुई आग को बुझाने मुर्दे को कंधा देने किसी के छप्पर को उठाने और किसी कला को शांत करने के लिए सदैव तैयार रहते थे जब तक बूढ़े को मोटर दिखाई दी वह खड़ा टकटकी लगाए उसकी ओर देखता रहा।” भगत के रूप में एक असहाय पिता की बेचारगी को प्रेमचन्द जी ने कितना मार्मिक रूप से उभर है। शायद इसी वजह से “मन्त्र” आज भी लोगों के हृदय में राज कर रही है।

डॉ. रंजना जायसवाल
मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

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