मोटेराम जी शास्त्री
कौआ चला हँस की चाल, अपनी भी भूल गया,
प्रस्तुत पंक्ति ही जैसे आधार है मुंशी प्रेमचंद जी की हास्य कथा पंड़ित मोटेराम जी शास्त्री का। बड़े ही सरल एवं सहज भाव से इस पूरी कहानी को आकार दिया है मुंशी जी ने। बहुत ही कम पात्रों के साथ इस कहानी का परिप्रेक्ष्य बहुत ही उम्दा सजाया है।
किसी भी वस्तु या भाव का अतिरेक हानिकारक है। जिसमें आत्मविश्वास का अतिरेक सबसे ज़्यादा नुक्सानदेह है। मोटेरामजी का पात्र हर उस व्यक्ति को दर्शाता है जिनकी वैचारिक प्रक्रिया में स्थिरता नहीं होती। वो जिस स्थान पर होता है उससे सदैव असंतुष्ट ही रहता है।
हालाँकि मोटेरामजी की धर्मपत्नी का पात्र बड़ा ही ठहराव वाला और समझदार है परंतु हड़बड़ाहट में जीने वाला व्यक्ति ठहराव नहीं समझ पाता। अततः मोटेरामजी भी अपना शिक्षा का व्यवसाय छोड़ वैद्यकी करने को तत्पर हो जाते हैं। और सुलझी हुई पत्नी भी गहनों की लालच में साथ चल देती है।
शुरू शुरू में सब सही चलता है। परंतु और ज़्यादा की लालच में पंड़ित जी रानी के चक्कर में पड़ जाते हैं और अंत में बहुत मार भी खाते है। उनके कठिन समय में उनका एक भी बनावटी दोस्त दिखता नहीं। यह बात मनुष्य की स्वार्थपरायणता का आलेखन करती है।
अंत में, लौटकर बुद्धु घर जाते है और वापिस वही शिक्षक का कार्य करने लगते है।
बहुत बड़ी बात को सहजता, सरलता से कहना और सामंजस्य, संयोजन एवं संतुलन के साथ। ये तो हर सदी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद जी ही कर सकते हैं। महान लेखक को मेरा शत शत नमन।
जिग्ना मेहता
शिक्षा:- बी.एस.सी
प्रकाशित पुस्तकें:- उनका एकल संग्रह ” आविर्भाव” तथा “पंचरश्मि”,”सागर के मोती”, “इश्क़ ए वतन”, “झरोखा” “बाउन्डेड एहसास” इत्यादि है।
लेखन की विधाएँ:- छंदोबद्ध, मुक्त छंद, लघुकथाएं, बहर में ग़ज़ल, हाइकू,तांका आदि।