दूध के दाम
प्रेमचंद साहित्य की समीक्षा करना थोड़ी जुर्रत की बात है! कहानी विधा के दूसरे उन्मेष काल के चमकते सितारे प्रेमचंद थे।कोई सोच भी नहीं सकता था कि किसी की लेखनी से कहानियों की ऐसी गंगा प्रवाहित होगी जिसमें भारतीय ग्रामीण समाज केंद्र में होगा और बरसों ये कहानियाँ समय की धारा में इतिहास की साक्षी बन जीवंत रहेंग़ी। बचपन में ही माँ का देहांत होने के कारण इस अपूर्ण रिश्ते की टीस उनकी कई कहानियों के माँ पात्रों में गूंजती है। कई जगह वे कृतियों में स्त्री के मातृत्व पक्ष का मर्मस्पर्शी वर्णन करते नज़र आते है।जब गोबर विदेश से लौटता है (गोदान) तो धनिया के बारे में वे कहते हैं—आज तो वह ….इस फ़टेहाल में भी रानी है…।इसाई बन जाने के कारण जाति से बहिष्कृत बेटे को प्रेमचंद की माँ गले लगाती है- इतने दिनों बाद उसे मैंने पाया है, अब उसे नहीं छोड़ सकती…चाहे बिरादरी छूट जाए।(खून सफ़ेद)।‘विधवा के बेटे’ की माँ छली-स्वार्थी संतान को अपनी गहनों की पिटारी सहर्ष सौंपती है और संतृप्त होती है। ऐसी स्त्रियाँ जो दूसरों के बच्चों के प्रति माता सम वात्सल्य का अनुभव करती हैं उन्हें वे ‘महा तीर्थ’ की उपाधि प्रदान करते हैं(महातीर्थ)।मुझे इस नाज़ुक रिश्ते को लेकर लिखी कहानी’ दूध का दाम ‘ बहुत मर्मस्पर्शी लगती है। यहाँ हमेशा की तरह सरस किस्सागोई तो है ही साथ ही समजोन्मुखता भी है यानी इस नाज़ुक रिश्ते व स्थिति का सामाजीकरण और सुधारवादी सोच।
‘दूध का दाम’ कहानी में गाँव के ज़मींदार बाबू महेशनाथ सुधारवादी होते हुए भी नर्स की ऊँची फीस के कारण चौथी संतान के रूप में पुत्र प्राप्ति होने पर नर्स को नहीं बुला पाते और भंगी गूदड की पत्नी भूँगी को मदद के लिए बुलाते हैं। गूदड और भूँगी ज़मींदार के यहाँ तीन कन्याओं के बाद पुत्र कामना ही कर रहे थे ताकि अच्छी तगड़ी बख़्शीश मिले।सिपाही द्वारा आधी रात को बुलाए जाने पर भंगी अपने तीन माह के पुत्र को ज़मीन पर लिटाकर धन व साड़ी की आकांक्षा में ज़मींदार के बच्चे को दूध पिलाने भागती है।आशा व्यर्थ नहीं जाती।
खूब अच्छा खाना मिलता और बड़ी पूछ भी। अपने बच्चे के लिए ऊपर के दूध की व्यवस्था कर वह ज़मींदार के यहाँ बच्चे के मुंडन में सोने के चूड़े और ब्याह में कंठा मिलने के वादे पर दूध पिलाई के साथ दाई का काम भी करती है। मालिक – मालिकिन पर भूँगी का जैसे राज है।बच्चा सुरेश उसकी दूध पर मोटा-तगड़ा पलता है और उसका अपना बालक मंगल रोगी।।किंतु साल भर में पंडित मोटेराम शास्त्री भंगिन का दूध छुड़ाकर प्रायश्चित्त करने को कहते हैं और इच्छानुसार व आवश्यकतानुसार बदलते इन मूल्यों पर बहस करने के बावजूद भूँगी को मोटी दक्षिणा देकर अपदस्थ कर दिया जाता है। वर्गीय भेद की विडंबनायें आदर्श को लेकर नहीं चलतीं। इसे प्रेमचंद ने दो टूक सामने रखा है।इस बीच प्लेग में गूदड चल बसता है और भूँगी को परनाला साफ़ करते वक्त सांप काट देता है। अनाथ मंगल ज़मींदार के बेटे की जूठन पर जीने लगता है और सदा मालिक के दरवाज़े के सामने कुछ मिलने की आशा में पड़ा रहता है।मिट्टी के सकॊरों में परोसा जूठन उसे खलता नहीं पर मिट्टी का सकोरा खलता है! गाँव के लड़के निचली जाति और जूठन खाने को लेकर उसे चिढ़ाते हैं पर अछूत होने पर भी सुरेश उसे खेलने बुला लेता है! ना करने पर भी ज़बर्दस्ती घोड़ा बनाकर सवारी की जाती।एक दिन मंगल भार से बचने के लिये पीठ से सुरेश को सरका देता है।उसके रोने की आवाज़ सुन मालिकिन आती हैं और मंगल पर दोष मढ़ दिया जाता है कि उसने सुरेश को जान बूझ कर छू दिया है ! उससे जो उग्र डाँट तत्काल मंगल को पड़ती है उससे अपमानित हो वह कुत्ते को लेकर अपने जीर्ण-शीर्ण घर को ये सोचकर चला जाता है कि जब तक उसे बुलाया न जाएगा वह नहीं जाएगा। यहाँ कुत्ता टामी और मंगल में भूख से प्रेरित अतीव मार्मिक बात-चीत होती है जिसमें वे तय करते हैं कि कोई उन्हें न जूठन देने ढूँढेगा न बुलायेगा। सो वे बेकार का गौरव छोड़ जूठा खाने आप ही चले जाएँ। दोनों इस कड़वे यथार्थ को स्वीकार करते हैं कि अम्मा के दूध का यही दाम मिल रहा है।
कहानी यथार्थ से ओत-प्रोत है साथ ही सरसता से भरपूर । पात्रों के मुँह से निकलते शब्द इतने सहज-स्वाभाविक हैं कि ये लिखित कथा नहीं कोई सजीव चलचित्र सा प्रतीत होता है।भूँगी निचली जाति की है पर ज़मींदार पर अपने दूध का रुआब झाड़ती है।आख़िर माँ के दूध की क़ीमत कौन लगाये! भूख की आग के सामने सभी जीवों और मनुष्य का समान हाल है।टामी और मंगल का वार्तालाप इस बात को हास्य से लैस कर स्पष्ट करता है। जाति भेद की विडंबनाओं ने भंगी के पुत्र का जो हाल किया वह विदारक है। विवशता की इस चरम बिंदु पर पहुँच मुंशी प्रेमचंद सभी पाठकों के मन में एक अनकही क्रांति का आह्वान करते हैं जो इतनी सार्थक और सशक्त है कि बदलाव के बीज पड़ ही ही जाते हैं।
राधा जनार्धन
-पार्थिव, मज्झिम निकाय( दो कविता संग्रह)
-कुछ निबंध,कहानियाँ आदि हिंदी अंग्रेज़ी दोनों में प्रकाशित।
-कविता, कहानी, गीतिनाट्य, निबंध, नाटक आदि विधाओं में लेखन।