बड़े घर की बेटी
‘बड़े घर की बेटी’ सामाजिक जीवंतता की एक कालजयी रचना है।
मुंशी प्रेमचंद की कहानियां सीधी-साधी होती हैं और सामान्य ढंग से बातें करती हैं। इस कहानी में के चरित्र आने स्वाभाविक रूप में हैं और कथाकार ने कहीं भी भाषा कौशल या अभिव्यक्ति चतुराई का प्रयोग नहीं किया है। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण ‘बड़े घर की बेटी’ मात्र एक कहानी ही नहीं बल्कि नाट्य रूप में भी रूपांतरित होकर मंचों पर अपनी बात कर रही है।
बेनीमाधव सिंह के रूप में चरित्र ठाकुर समुदाय के संरक्षण, सहयोग और भावुकता को बखूबी दर्शा रहा है। घर के मुखिया के रूप में तात्कालीन विभिन्न सामाजिक चलन के हिमायती और अनुपालनकर्ता थे। बेनीमाधव के चरित्र में दूरदर्शिता और अच्छी समझ थी। लड़कों के शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देना। अच्छे कुल, खानदान की बहू का चयन। इनके अतिरिक्त एक विशेष बात ध्यानाकर्षण की वह है बेनीमाधव का आयुर्वेद पर अटूट विश्वास। यहां पर प्रेमचंद की लेखनी का चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है। बेनीमाधव के चरित्र में घर के मुखिया की विशेषताओं को इतनी बखूबी से पिरोया है कि यह चरित्र कहानी के आरंभ से लेकर अंत तक अपनी वर्चस्वता को बड़े सादगी से बनाए रखता है।
लालबिहारी सिंह और श्रीकंठ सिंह पुत्र के रूप में अपनी गरिमामय उपस्थिति को दर्शा रहे हैं। लालबिहारी सिंह का चरित्र कहानी के अधिकांश भाग में पार्श्व में रहता है पर जब आनंदी के संग यह चरित्र जुड़ा है तो अचानक प्रखर हो गया। श्रीकंठ का चरित्र कहानी को गति देने के लिए उभरा है। यह चरित्र आनंदी के व्यक्तित्व तले दर्शाया गया है जो एक सामान्य जीवन का चरित्र है। इन दोनों भाईयों के बीच एक-दूसरे के प्रति जो आत्मिक भाव हैं कथाकार ने खूबसूरती से ढाला है। छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति आदर और बड़े भाई की गरिमा को बनाए रखना राम और लक्ष्मण के बीच के भावों को दर्शाता है। आनंदी और लालबहादुर के बीच का प्रसंग घरों में होनेवाले नोकझोंक को दर्शाता है। प्रेमचंद ने कितनी सहजता से यह दर्शाया है कि छोटी-छोटी बातों से ही मनमुटाव का जन्म होता है जो प्रायः एक बड़ा रूप ले सकता है।
आनंदी इस कहानी की प्रमुख चरित्र है। सुख-सुविधा में जीनेवाली एक भारतीय महिला विवाह के बाद खुद को हर परिवेश में सहजता से ढाल लेती हैं जैसा कि आनंदी ने किया। अहं का टकराव जब भाभी-देवर में होता है तब घर के मुखिया का शांत रहना उनकी परिपक्वता दर्शाता है। गांव के लोगों का मजे लेकर विवाद को सुनना और नकारात्मक परिणाम का आशा रखना ग्रामीण जीवन की सोच को दर्शाता है जिसके कारण गांव भीतर से बिखर रहे हैं। आनंदी का लालबिहारी का हाँथ पकड़ कर रोकना और न जाने देना भारतीय घरों के सौंदर्य को प्रतिपादित करता है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से नारी शक्ति और नारी सम्मान की मुखरित किया है। एक सम्पन्न घर से आई आनंदी यदि हठ कर जाती तो घर टूट जाता किंतु सही समय पर विनामृतापूर्वके जिस तरह बिखरने जा रहे घर को समेटी वह केवल कहानी तक ही सीमित नहीं बल्कि आज भी नारी अपनी प्रखरता और प्रबलता के साथ भारतीय समाज को एक सूत्र में बांधे रखने की क्षमता रखती है। ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी भारतीय परिवार के स्पंदनों की सरगम है जिसकी धुन पर भारतीयता को गर्व है और उतना ही गुमान मुंशी प्रेमचंद की लेखनी पर है।
बिम्मी कुंवर सिंह