निर्णय
एक तो खुद अपने परिवार की इतनी बड़ी जिम्मेदारी और ऊपर से मौसमी के घर की पहरेदारी। और भी तो कितने पड़ोसी हैं ,सबके साथ मौसमी की अच्छी पटती भी है।कई बार सोची कि मौसमी से कह दूं कि तुम अब चाबी किसी और के घर में रखा करो। पर पता नहीं क्यों मैं मौसमी से कह नहीं पाती। ऐसा मेरे झिझक के कारण होता है या उसके सामिप्य के सुखद एहसास का अनुभव मुझे ऐसा करने नही देता, मैं कह नहीं सकती।
दिन के सारे काम निपटाने के बाद दोपहर को अपनी थकान मिटाने के लिए बिछावन पर जब एक बार लेट जाती हूं तो बार-बार उठकर चाभी लेना देना अच्छा नहीं लगता। जैसे ही हल्की नींद आने लगती है ।हर रोज मौसमी की बाई उसी समय चाबी अंदर फेंककर जोर से आवाज लगाती हैं और मेरी नींद टूट जाती है । लेकिन क्या करूं? इस झमेला से कैसे फुर्सत पाऊं? कुछ समझ नहीं पाती। सोचती हूं हमने क्यों यह लफड़ा अपने सर पर ले लिया । मैंअभी इसी द्वंद में उलझी ही हुई थी ,कि मौसमी की बाई ‘ पद्मा’ मेरे कॉल बेल को बजाते हुए ग्रील से चाबी अंदर फेंक कर अपने भारी-भरकम आवाज से हर रोज की तरह यह कह कर चली गई कि, “मेम साहब चाबी हमने ड्राइंग रूम में फेंक दी है। आप उठालीजिएगा।”मेरा मन चिड़चिड़ा गया।भले ही उस समय मुझे चाबी लेने के लिए बिछावन से नहीं उठना पड़ता हो लेकिन नींद तो टूट ही जाती है न! फिर कितनी कोशिश क्यों न करूं पर नींद नहीं आ पाती ।
आश्चर्य होता है कि हमारी नींद डनलप के गद्दे और ए .सी के सुख के बावजूद हल्की आहट से ही कैसे टूट जाती है? जबकि कारखानों में ,सड़कों पर काम करने वाले मजदूर अपने फुरसत के कुछ पलो में भी चिलचिलाती धूप में किसी दीवाल या पेड़ की हल्की छाया में तेज गति से चलने वाले मशीनों वाहनों की आवाज के बावजूद भी अपनी झीनी होती हुई गंदी गमछी को बिछाकर कितनी गहरी नींद में सो जाते हैं।
मेरा मन इन्हीं विचारों की मीमांसा कर रहा था कि “ट्रींग –ट्रांग –ट्रींग”कॉल बेल की आवाज आई। इस स्टाइल से कॉल बेल बजने से मैं समझ गई कि यह मौसमी ही है। मैं बिछावन से उठकर मौसमी की चाबी हाथ में ले ग्रील का ताला खोली। रोज की तरह मौसमी को अंदर आने के लिए कहा। मुझे पता था इस समय वह मेरे घर के अंदर नहीं आएगी। कहेगी “नहीं,थोड़ा फ्रेश होकर खाना खा लूं बादमेआऊंगी।”।मगर आज उसने ऐसा कुछ नहीं कहा। वह मेरे ड्राइंग रूम में आकर सोफे पर बैठ गई।मैं सोचने लगी शायद इतनी तेज धूप में स्टैंड से पैदल चल कर आई है, थक गई होगी। इंसान हर दिन तो एक सा नहीं रहता ।मैं उसके लिए शरबत बना कर लाई । मौसमी का चुपचाप बैठना मुझे अस्वाभाविक लगा ।उसके पास तो बातों का खजाना होता है ।वह लोगों को अपनी बातों में इतने अच्छे ढंग से इंवॉल्व कर लेती है, कि सामने वाले को बिल्कुल बोरियत नहीं लगती। मैंने मौसमी से उसकी तबीयत के विषय में पूछा “मौसमी तुम्हारी तबीयत ठीक है न?”
“हां शालिनी तबीयत तो ठीक है ,पर आज एक घटना ने मुझे झटका सा दिया है। मेरे सोच के विपरीत। इस घटना से मैं उलझन में पड़ गई हूं। समझ नहीं पा रही हूं कि ऐसा कैसे हो गया?” क्या हो गया ? “मैंने आश्चर्य से मौसमी से पूछा।”
मौसमी ने कहना शुरू किया, ” एक महिला बंदी के आश्चर्यजनक व्यवहार ने मुझे झकझोर दिया है।”
शालिनी– “यह भी क्या कम आश्चर्यजनक बात है कि एक कैदी के व्यवहार ने तुम्हें इतना हिला दिया है? ”
मौसमी—“मैं उसके ऐसे व्यवहार का कारण ढूंढना चाह रही हूं पर कुछ समझ नहीं पा रही हूं। ”
शालिनी— “अच्छा अब पहेलियां ही बुझाती रहोगी या कुछ कहोगी भी।”
मौसमी— 5 वर्ष पूर्व एक हत्या के आरोप में उसे, उसके पति , उसके चचेरे जेठ एवं देवर को जेल में लाया गया था। मैं शायद उसके विषय में तुम्हें बताई भी थी ।उसके चेहरे से मासूमियत झलकती थी ।आंखें बड़ी बड़ी। ज्यादा बोलती नहीं थी। शर्माती तो ऐसे थी ,जैसे नई नवेली दुल्हन हो। उस दिन वह भी क्लास में बैठी थी। नये चेहरे को देख मैंने उसे अपने पास बुला कर पूछा- “तुम्हारा नाम क्या है? ”
उसने धीरे से कहा “जी, सुफला पूर्ती।”
“तुम्हारी उम्र कितनी है सुफला? ”
अभी वह कुछ बोलने ही जा रही थी कि तभी महिला बार्ड की इंचार्ज एक बंदी ,नीलू जो रोज महिलाओं में सफाई व्यवस्था के कार्यभार को बांटती थी और कैदियों के नंबर का हिसाब रखती थी , ने कहा “नंबर बंदी खाता में इसका उम्र 20 वर्ष लिखवाया गया है।”
मैंने प्यार से पूछा, “यहां कैसे आ गई सुफला?” वह मेरी आंखों में विवशता भरी नजरों से देखने लगी ।उसका वह दयनीय चेहरा आज भी कभी कभी मुझे याद आ जाता है ।उसके चुप रहने पर आशा, जो महिला बंदियों की एक तरह से लीडर थी झट से बोली, “बताती काहे नहीं है रे , कि मर्डर करके आए हैं ।बड़ा सती सावित्री बन के खड़ी है ।जैसे कि कुछ की ही नहीं है।तेरा जीभबा कट गया है का रे , मैडम के बात का जवाब नहीं देती है।”
शालिनी क्या बताऊं उस समय उसनेे कैसे एक क्षण के लिए कातर नजरों से आशा को देखकर अपने सर को नीचे झुका लिया था। मैंने आशा को चुप रहने के लिए कहा और बोली- ” आशा, किसी को ऐसे थोड़े ही न बोला जाता है। कल ही आई है, डरी हुई है । आशा जो दबंग किस्म की महिला बंदी थी। अपने दबंगई वाली आवाज मे फिर उससे कहने लगी, “का रे तुमको जान मारने में डर नहीं लगा था और मैडम जी के बात का जवाब देने में डर लगता है। सब मन का बदमाशी है।”
मैंने थोड़ा नाराज होते हुए आशा से कहा, “ऐसे नहीं बोलते हैं, मैंने आप लोगों को ऐसे ही बात करना सिखाया है क्या आशा? मैंने सुफला से कई बातें पूछी , कई प्रश्न किये ।
“सुफला तुम पढ़ी लिखी हो?”
“जी नहीं ।
“पढ़ना चाहती हो?
“हां ” उसने अपने सिर को हिलाकर स्वीकृति जाहिर की। मैंने उससे कहा,” ठीक है ,कल मैं तुम्हें स्लेट पेंसिल दूंगी। समय से तुम क्लास में आ जाना ।मैं तुम्हें पढ़ाऊंगी ।वह पढ़ाई बड़े मनोयोग से करती उसे पढ़ाने में मुझे भी अच्छा लगता।
एक दिन उसे अकेला पाकर मैंने उससे पूछा,- “क्यों सुफला क्या उसने सही में तुम्हारे साथ बलात्कार किया था?”
वह खामोश रही । मैंने फिर पूछा,” उसे मारने में क्या तुम्हें डर नहीं लगा ?”
वह फिर चुप रही और अपने सर को नीचे झुका ली ।मैने सोचा शायद उसे मारने का अफसोस हो रहा है। मुझे कई बंदी ऐसे मिले हैं जो क्षणिक आवेश में कुछ गलत कर दिए होते हैं और बाद में पश्चाताप की अग्नि में जलते रहते है। मुझे लगा शायद सुफला को भी अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है। लेकिन वह तब भी चुप रही। मैं सोची शायद वह कुछ बताना नहीं चाहती। असल में बंदी ,वहां सभी बाहरी को कोर्ट -कचहरी – पुलिस का ही आदमी समझते हैं। चाहे वह डॉक्टर या शिक्षक ही क्यों न हो। मैंने उसे हिम्मत बधांते हुए कहा-” तुमने कोई गलती नहीं की है ,इज्जत लूटने वाले को मारकर तो तुमने बहादुरी ही दिखलाई है।तुम जरूर रिहा हो जाओगी।”
वह छूटेगी या दूसरे बंदियों की तरह न्याय की आशा में जेल में ही पड़ीं सड़ती रह जायेगी, ऐसी कोई आशा मैं नहीं पाल सकती थी। किंतु एक शिक्षक होने के नाते उसे मोरल सपोर्ट तो देना ही था। वह शांत हो मेरी आंखों में देखने लगी थी।
इन 5 वर्षों में उसने बहुत मेहनत से पढ़ाई की, वह वर्ग 5 तक की किताबों को पढ़कर उसके सारे प्रश्नों के उत्तर लिख दिया करती। आवेदनपत्र ,निबंध तथा पत्र लिखना अच्छी तरह से सीख गई थी ।जेल लाइब्रेरी से अपने लिए छोटी-छोटी कहानियों की किताब लेती और पढ़कर अन्य महिला बंदियों को भी सुनाती। किसी महिला बंदी ने उसके विषय में कभी कोई शिकायत नहीं की ।वह सबों की अपनी क्षमतानुसार सहायता किया करती । यहां तक की आशा, जो सबसे दबंग महिला बंदी थी, वह भी उससे कुछ दिनों में प्रभावित हो गई थीं। उसकी व्यवहार कुशलता को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह पढ़ी-लिखी नहीं है। पढ़ाई के प्रति उसकी लगन देखकर मैंने उससे कहा था, तुम्हारा केस अगर कुछ ज्यादा दिन भी चले तो घबराना नहीं। मैं तुम्हें जेल से ही एन .आई.ओ.एस का फॉर्म भरवा दूंगी। अगर तुम मैट्रिक पास हो जाओगी तो तुम्हें गांव में बच्चों को पढ़ाने का काम भी मिल जायेगा। यह सुनकर उसकी आंखों में थोड़ी चमक आ गई थी।
कल क्लास में वह नहीं थी। पता चला उसका जजमेंट होने वाला है, वह कोर्ट गई है ।आज वह पूर्ववत क्लास में बैठी थी। चेहरे पर वही चीरपरिचित शांत भाव। उसने मुझसे कुछ नहीं कहा। बल्कि दूसरी बंदी दीपा ने प्रसन्न होकर कहा “मैडम जी, सुफला लोगन बरी हो गया।” मैं सुफला को अपनी भविष्यवाणी की याद दिलाते हुए कही, “मैं कहती थी न! तुमने कुछ गलत नहीं किया है ,तुम बरी हो जाओगी। आज तुम्हारे साथ हुए न्याय को देखकर न्याय व्यवस्था पर हमें पूर्ण विश्वास हो गया है। ” मैंने सुफला को बधाई दी और कहा “क्यों सुफला हमें मिठाई नहीं खिलाओगी? “इस बात को सुनते ही उसके चेहरे पर एक फीकी मुस्कान फैल गई। खुशी के इस पल में उसके इस फीकी मुस्कान को मैं ठीक से समझ नहीं पाई । मुझे लगा शायद वह अन्य कैदियों से बिछड़ने से भावुक हो रही हो, रिहाई के समय अक्सर ऐसा देखा जाता है। लंबे समय के सानिध्य से एक रिश्ता बन जाता है ।और उसका टूटना भी क्षणिक ही सही पर पीड़ा तो देता ही है।
वह अपनी जगह से उठकर मेरी तरफ बढ़ते -बढ़ते अपने पल्लू से कुछ खोलने लगी।हमें लगा वह मिठाई के लिए शायद मुझे पैसे देने आ रही है । मैंने उसे रोकते हुए कहा,”अरे पगली मैंने आज तक किसी से कुछ लिया है क्या? तुम तो जानती हो इस बात को। मैं तो तुमसे मजाक कर रही थी। तुम पैसे क्यों दे रही हो?” पैसे नहीं हैं मैडम जी। मैं पैसे भला कहां से लाऊंगी ? हम कुछ प्रश्न के उत्तर को लिख कर इस कागज में रखे हैं ,आप पढ़ कर देख लीजिएगा कितना सीखी हूं ,और वह तह लगाया हुआ एक कागज मेरे हाथों में पकड़ा दी। मैंने उसे बैग में डाल लिया।सुफला ने मुझे याद दिलाते हुए कहा। “मैडम जी अब तो आप अपना मोबाइल नंबर हमे दे सकती हैं , अपने कहा था न! कि जब तुम जेल से बाहर निकलोगी तब मैं तुम्हें अपना मोबाइल नंबर दूंगी।” मैंने एक कागज पर अपना मोबाइल नंबर लिखकर उसे दे दिया। तभी महिला वार्ड का दरवाजा खोलते हुए “सुफला पूर्ति रिहाई के लिए निकलो,” जेल जमादार ने अपनी भारी-भरकम आवाज दी ।ऑफिस में जाकर बाबू से मिल लेना और तब मुहर वाले राइटर( ऐसा बंदी जो ऑफिस में लिखा पढ़ी के काम में पदाधिकारियों का सहयोग करते हैं) से हाथ में मुहर जरूर लगवा लेना ।बस या ट्रेन में दिखा दोगी तो भाड़ा नहीं लगेगा। सुफला शायद अपनी तैयारी पूरी कर चुकी थी ।वह आकर मेरे पैर को छूते हुए कही “मैडम जी,मेरे भूल को माफ कीजिएगा ,जरूरत पड़ने से हम आपके पास आएंगे”। “मैंने कहा तुम जब चाहो मेरे पास आ सकती हो।” उसने बड़े शांत भाव से अपने चारों तरफ देखते हुए एक लंबी सांस ली और जमादार के साथ महिला वार्ड से निकल गई। मैं उसके चेहरे के भाव को नहीं समझ पाई कि उसमें मुक्ति का संतोष था या अपने साथियों से बिछड़ने का गम।
मेरे घर जाने का समय भी हो चुका था ।मैं भी ऑफिस में पहुंची ।देखी ‘गेटवार्डर’ बड़े से लोहे के दरवाजे को खोलकर सुफलपूर्ति, उसके पति,जेठ एवं देवर को दरवाजे से बाहर निकाल रहा था। मैं जब बाहर निकलने लगी तो मेरे कानों में सुफला के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज साफ सुनाई दी। वह अपने पति से चिल्लाकर कह रही थी,”तूझ जैसा पापी ,नीच , कमीना इंसान के साथ में हम नहीं रह सकती। तुम से बड़ा कसाई आज तक हमने नहीं देखा। कानून से तो तू बच गया पर मैं तुझे कभी माफ नहीं करूंगी।” मैं उस तक पहुंचूं उसके पहले वह तेज -तेज कदमों से चलते हुए न जाने किस गली में गुम हो गई । उसका पति तथा उसके संबंधी सुफला -सुफला पुकारते हुए रह गए। थोड़ी देर के लिए मेरे पैर थम से गए । उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार ने मुझे हतप्रभ कर दिया था। मुझे इसकी वजह दिखाई नहीं दे रही थी । इन 5 वर्षों में प्राय वह रोज ही मुझसे मिलती रही। उसने ऐसा तो कुछ कभी नहीं कहा। न व्यवहार में ही ऐसा कुछ दिखा जिससे इस घटना को जोड़ा जा सके। ऐसा क्या घटित हो गया? कहां दबा था यह ज्वालामुखी ? इसी प्रश्न का पीछा करते , सोचतेऔर तनाव लिए मैं यहां तक आ गई। मौसमी इतना कहने के बाद सोफे पे पीठ सटाकर चुप हो गई ,शायद कोई सूत्र ढूंढ रही हो।
मैंने मौसमी से कहा “छोड़ो इन बातों को जाकर खाना वाना खाओ। इस दुनिया में रोज ही ऐसी घटनाएं घटती रहती है। ”
“नहीं शालिनी, यह कोई छोटी बात नहीं है।”
अचानक मौसमी अपने बैग में कुछ ढूंढने लगी । हां मिल गया । वह तह किए हुए कागज के एक पर्चे को खोलने लगी, उसने आश्चर्य से कहा “यह क्या? सुफला ने तो कहा था कि इस में मैंने कुछ प्रश्नों के उत्तर को लिखे हैं। यह तो चिट्ठीहै!”
मेरी उत्सुकता भी बढ़ गई । मैं मौसमी के पास पहुंचकर उस कागज के पर्चे को देखने लगी । “चिट्ठी?” शालिनी ने पूछा,”किसने दिया है?” मौसमी –उसी लड़की ने ।
मौसमी ने शालिनी को पत्र देते हुए कहा लो , तुम्ही पढ़कर सुनाओ ।
शालिनी ने पत्र पढ़ना शुरु किया।
मैडम जी मंडल कारा, दुमका
प्रणाम 24/3/2004
पहले माफी मांगते हुए यह कहना चाहती हूं कि हम अपना केस के विषय में आपको सही सही बात नहीं बताई थी, कारण कि हमको बहुत डर लगता था । मेरा ससुर और मेरा आदमी हमको डराता और धमकाता था कि तुम किसी से कुछ नहीं कहेगी। हम जैसा बात तुमको सीखाएंगे वही बात तुम कोर्ट में बोलना। नहीं तो हम तुमको भी वैसा ही मारेंगे जैसा मंगल को मारा था। मैडम जी , हमारा आंख के सामने मंगल को तड़पा- तड़पा कर मारा था ।मेरा पति हमसे जबरदस्ती थाना में झूठा बयान दिलवाया था, कि मंगल हम से बलात्कार करने केलिए जबरदस्ती कर रहा था । अपने बचाव के लिए हम कुल्हाड़ी चला दीये थे । जिससे मंगल का मौत हो गया था। क्या करें? हमारा मां कहती थी कि एक बार शादी हो जाता है तो पति ही सब कुछ होता है । वह चाहे शराबी हो ,चाहे जैसा भी हो उसी के साथ रहना है ।जेल आकर हमारा बुद्धि खुल गया। यहां आने के पहले हम कुछ नहीं समझती थी।अब हमको बहुत कुछ समझ में आ गया है। और लोगन के लिए जेल चाहे खराब हो हमको तो यहां आने से जीवन का और दुनिया का बात सब समझ में आ गया है। आपके समझाने से और पढ़ाने से हम में हिम्मत भी आ गया है। फाइनल गवाही में हम सोचे थे, कि जज साहब को सब कुछ बता देंगे। पर मेरा ससुर लोकन एंटी पार्टी का सब गवाह और वकील को भी पैसा देकर खरीद लिया था। मंगल के औरत को भी डरा धमका के रखा था। अकेली है न! क्या करती वो? मैडम जी निर्दोष मंगल का तड़पता चेहरा हमारी आंखों में घूमता रहता है ।मंगल बहुत अच्छा इंसान था। वह मेरा सगा तो नहीं पर ईमान का भाई था। हमारा आदमी बहुत बदचलन था। शादी हमसे किया था लेकिन दूसरा औरत से भी संबंध रखता था ,और घर का सारा पैसा दारू और उस औरत पर लुटाता रहता था। हम जब भी अपने आदमी को समझाती और शराब पीने के लिए मना करती तो हमारा आदमी गाली बकता,और हमको बहुत मारता। बहुत कसाई है मेरा आदमी ।मेरा ससुर भी अपने बेटे को कुछ नहीं बोलता वह कैसे बोलता? दोनों बाप बेटा मिलके तो हड़िया और दारु पीता रहता था ।दोनो हर बात के लिए हम को ही गाली देता। मंगल मेरा आदमी को समझाता कि औरत जात पर काहे को हाथ उठाता है ?तब मेरा आदमी बोलता “हम अपना औरत को मारता है तुम्हारा औरत को मारेगा तो बोलना। हम अपना घर में कुछ भी करता है तुमको क्या?
एक दिन हमारा पति दारू के नशा में हम से पैसा मांगा हमारे पास पैसा नहीं था ,तो हम कहां से देते ?हम भी रेजा कुली में काम करते थे पगार मिलते ही मेरा आदमी उसी दिन सारा पैसा ले लेता था। मेरे पास कुछ भी नहीं छोड़ता था। पैसा नहीं मिलने पर मेरा आदमी पैर से ,हाथ से हमको मारने लगा ।सामने में लकड़ी काटने का कुल्हाड़ी रखा था। उठाकर बोला पैसा नहीं देगी तो मार देंगे। मंगल का घर मेरे घर के सामने था। मंगल मेरे चित्कार को सुनकर हमें बचाने आया तो मेरा पति उसे देखकर बोला लो आ गया तेरा यार। यार बनाई है न उसे , बहुत प्यार है न उससे?आज उसका भी किस्सा खत्म कर देता हूं ।और कुल्हाड़ी उठाकर मंगल के गर्दन पर मार दिया । मंगल का गर्दन कट कर लटक गया यह सब देख कर हम तो बेहोश होकर वहीं गिर गई। और जब हमको होश आया तो हमरे दरवाजे पर पुलिस खड़ी थी। उसके बाद वही थाना ,पुलिस, जेल और कोर्ट का चक्कर।
मैडम जी, मेरा पति सिर्फ मंगल का ही हत्यारा नहीं है वह हमरे अजन्मे बच्चे का भी हत्यारा है ,जो उसकी मार से खराब हो गया था। अब आपसे जानना चाहती हूं कि मैं जो करने जा रही हूं ,वो गलत है या सही ? हां, अगर गलत होगा तो हमको माफ कर दीजिएगा। मैं ऐसे हत्यारे पति के साथ नहीं रहना चाहती हूं । यह मेरा पक्का निर्णय है। उससे दूर गुमनाम होकर मंगल के औरत के लिए और उसके बच्चे के लिए कुछ करना चाहती हूं । इस कार्य के लिए हमको आपकी सहायता की जरूरत पड़ेगी। मुझे आशा है आप मेरी इस काम में जरूर सहायता करेंगी।
सुफला पूर्ति
पत्र समाप्त कर जब मैं मौसमी को देखी तो उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान फैल गई थी। मेरी तरफ देखते हुए उसने कहा-” एक साधारण सी दिखने वाली महिला मे कहां से आया इतना साहस ? शालिनी क्या तुम्हे ऐसा नहीं लगता कि सुफला ने जो निर्णय क्षणभर में ले लिया है ।वैसा निर्णय लेने के लिए हम जैसे मध्यम वर्गीय महिलाएं हजारों बार सोचेगीं ?
ज्योत्सना अस्थाना
एम.ए,एम.एड, संगीत प्रभाकर।
शिक्षा के क्षेत्र में अपने विशिष्ट योगदान के लिए सन् 2008 में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजी गई अवकाश प्राप्त शिक्षिका हैं। पिछले 25 वर्षों से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं।ये हिंदी और भोजपुरी में लिखती हैं। इनकी रचनाएं परीकथा ,अभिनव कदम ,सुसंभाव्य, समकालीन चिंतन ,इनरव्हील मैगजीन, निशांत, जलेस संवाद ,अंगना (भोजपुरी) तथा गृहस्वामिनी समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित। ‘पठार की खुशबू ‘तथा ‘इनकी कहानी इनकी जुबानी ‘(कहानी संकलन ) तथा ‘जो दिल में है’ , ‘कविता कल आज और कल’एवं काव्य संकलनो में क्रमश: कहानियो और कविताए प्रकाशित । आकाशवाणी जमशेदपुर की पूर्व लोकगीत गायिका।इनकी रचनाएं समय-समय पर आकाशवाणी से भी प्रसारित होती रहती हैं। कविता ,गीत तथा कहानी के अतिरिक्त विभिन्न विषयों पर लेख समीक्षा आदि भी लिखती रहती हैं। “जलेस” झारखंड के राज्य परिषद की सदस्य। साहित्यिक संस्था सहयोग तथा गृहस्वामिनी इंटरनेशनल की सक्रिय सदस्य के अलावा “एक प्रयास महिला संगठन” जमशेदपुर सिंहभूम की अध्यक्ष ।
संप्रति:—स्वतंत्र लेखन।
जमशेदपुर, झारखंड