सौत

सौत

प्रेमचंद जी ने अपने लेखन में शायद ही किसी मानवीय सम्बन्धों के आयाम पर अपनी कलम चलाने से खुद को अलग रखा हो |किसी भी रिश्ते की गहराई तक पहुँच जाना उनके लेखन को ऊंचाइयों तक ले जाता है |भारतीय समाज का ढांचा आपसी संवेदना के कारण टिका रहता है जो भारतीय समाज का सबसे मजबूत पक्ष है|उनकी कहानियों मे भारतीय परिवेश न केवल झलकते हैं बल्कि भारतीय दृश्यों को कहानियों में दर्शा कर वे भारतीय समाज का सुंदर और विकृत हर पक्ष को सामने लाते हैं |
सच तो ये है भारतीय समाज में परवरिश के क्रम में जिस तरह संस्कार रोपित किया जाता है उसी तरह मुंशी प्रेमचंद की कहानियों को समाज की नैतिकता का एक पैमाना बना बच्चो को श्लोक की तरह श्रवणबद्ध कराया जाता है |यानि साहित्य का धर्म ग्रंथ कहा जा सकता है प्रेमचंद की कहानियों को | भारत में प्रेमचन्द्र की किताबें पढ्ना और घर में रखना एक आवश्यक काम माना जाता है |यहाँ ये बताना भी आवश्यक हो जाता है कि प्रेमचंद की किसी एक कहानी को पसंदीदा बताना भी उतना ही मुश्किल है क्योंकि अक्सर सभी कहानी इस तरह श्रेष्त्ता धारण किए होती हैं कि सभी मेरी पसंदीदा हैं |मुझे बड़े घर की बेटी, ईदगाह, नमक का दरोगा हर बार पढ़ने पर नयी लगती है | संवेदना की किरणों को धारण किए हुए, धर्म के रास्ते पर चलते हुये अक्षत यौवना सी कहानियाँ !पर चूंकि एक कहानी का जिक्र करना है तो यहाँ प्रेमचंद की कहानी “सौत” का जिक्र करना चाहूंगी |रामू पत्नी रजिया के रहते जो निःसंतान रह जाती है क्योंकि उसके बच्चें जन्म लेकर काल कलवित हो जातें हैं , दूसरी पत्नी ले आता है |कडवे शब्द वाण और उपेक्षा के कारण वो पति का घर छोड़ दूसरे गाँव चली जाती है जबकि रामू के घर को उसी ने पैसे जोड़ जोड़ कर खड़ा किया था अपनी गृहस्थी को बहुत कष्ट झेल कर आबाद किया था पर जब उसने जाना तय किया तो रामू को मानों एक जंजाल से मुक्ति मिली और इससे दुखद समय एक स्त्री के लिए शायद ही कुछ हो | नए गाँव में रजिया अपने मेहनत और लगन के कारण आहिस्ता आहिस्ता एक धनवान और उन्नत महिला बन जाती है |समाज में एक स्थान है |सौत दासी से पति को एक पुत्र भी होता है पर दिन गरीबी और कष्ट के हैं |पति की असाध्य बीमारी और अंतिम अवस्था जान लोगो के लाख माना करने के बावजूद वो वापस पति को देखने जाती ही नहीं है बल्कि आगे का सरा जीवन विधवा सौत को छोटी बहन मानते हुये उसका हर भार अपने कंधों पर उठा लेती है और एक बड़ी बहन की भूमिका निभाती हुई सौत की ही आसरा और भर बन जाती है |
यह पूरी कहानी अलग अलग मानवीय स्वभाव का लेखा जोखा है |मात्र निःसंतान रह जाना किसी स्त्री की सबसे बड़ी कमी मान ली जाती है उसकी सारी खूबी, सारी अच्छाई इस एक कारण के भेंट चढ़ा दी जाती है|पूरी कहानी मानवीय स्वभाव का खाका खीचती है |वस्तुत मनुष्य अपनी स्वभाव का गुलाम ही होता है | स्वभाव का अच्छा पक्ष य बुरा पक्ष पारिवारिक पालन पोषण, परिस्थियों और कुछ हद तक नैसर्गिक होता है और लोगों का जीवनपर्यंत हर स्थिति परिस्थिति में व्यवहार अपने स्वभाव के अनुरूप ही रहता है | यहाँ रजिया अपने कोमल स्वभाव के कारण ही उसी सौत का हर भार संभाल लेती है जो उच्च कोटि का स्वभावगत गुण कहा जायेगा |माना तकरीबन सौ साल पहले यह कहानी लिखी गई है पर मूल फोकस मनुष्य के कोटि के गुणोंको दर्शना ही है कि मानवीय गुणो की यह पराकाष्ठा भी संभव है|
अगर आज के संदर्भ में बात करें तो सबसे ज्यादा क्षरण मानवीय गुणों का ही हुआ है | ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, नुक्ताचीनी जैसे नकारात्मक गुणों ने अपने काले डैने को अत्यंत विशाल तरीके से फैला दिया है |अब तो हाल यह है की समाज में कोटि के गुणों के मनुष्यों को दूढ्ना य सनिध्य की इच्छा रखना एक दूर की कौड़ी होती जा रही है |यानि सामान्य मनुष्यों में नकारात्मक्ता घर करती जा रही है | परस्पर संबंध कमजोर ,उलझे हुये और गलतफहमियों के शिकार हो रहें हैं|आत्मकेंद्रित स्वभाव की अधिकता होती जा रही है |ऐसे में ऐसी स्वभाव की स्त्री का होना आज के संदर्भ में अतिशयोक्ति कही जा सकती है |इस कहानी को पद्ते हुए यही महसूस किया जा सकता है की प्रेमचंद जी के समय से आज के समय में अत्यधिक क्षरण हुआ है क्योंकि वस्तुत कोई भी रचना उस समय का एक सामाजिक दस्तावेज़ ही होता है लेखक आसपास जो घटित होते देखता है उन्हें ही शब्दों में ढाल देता है य कहें प्रतिबिब्बित करता है |
प्रेमचन्द्र जी की कहानियों में उस वक्त के भारतीय समाज की छवि खुल कर सामने आई है |उन्होने अपनी पैनी दृष्टि से भारतीय समाज के कोने कोने को खंगाला है |ऐसे में “सौत” कहानी में एक स्त्री के की बेहतरीन छवि उस दौर में उच्च कोटि के मानवीय गुणों की सहजता का लेखा जोखा है |

रानी सुमिता
पटना ,भारत

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