हरफनमौला बंशी
बंशी उठ जा! देख सभी उठ गए |सूरज पंक्षी पेड़ पौधे| देख गाय भी रंभा रही | उठ जा तू भी |बंशी को अम्मा परेशान सी झकझोर रही थी| वो चादर को सिर तक ओढ़ कर कमरे की कोने वाली चौकी पर अड़ा सा पड़ा हुआ था |
उठ जा रे लड़के…. उठ नहीं तो बाबूजी को अभी बुलाती हूँ |अम्मा का धीरज खोता जा रहा जा था |
तभी झपाक से चादर खींच लिया गया और पीठ पर झटका लगा | तू कैसा लड़का है रे | अम्मा को तबाह किए रहता है |स्कूल जाना है की नहीं… उठ लाठ साहब….|बड़का भैया ने हाथ से खींच कर बंशी को बरजोरी खड़ा कर दिया |पर बंशी की नींद से भरी आँखें नहीं खुलीं |खड़े खड़े ही आँखें मीचे अम्मा के गले जा लगा |अम्मा ने एक हाथ से उसे संभालते हुये दूसरे हाथ से अपना माथा ठोक लिया |
हे ईश्वर! हे कान्हा! कैसा लड़का हुआ है ई बंशी…. कइसे पढ़ेगा…. कुछो करेगा जिंदगी मे या घासे काटेगा….
रतन ने न आव देखा न त्ताव बंशी का हाथ पकड़ खींचना शुरू कर दिया और कमरे के बाहर बरामदे के नल के नीचे ले जा कर खड़ा कर दिया |नल के सर्र से गिरते पानी के धार में अकबकाते बंशी की साँसे उजबुजाने लगी |
छोड़ो रतन भैया…. छोड़ो हमको ….
और करेगा बहानेबाजी स्कूल नहीं जाने का | रतन भैया का सबेरे सबेरे पढ़ाई छोड़ उठने से पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था |
छोड़ दे रतन नींद टूट गई है उसकी…….. जाएगा स्कूल अब …..
अम्मा बंशी को रतन की पकड़ से छुड़ाने लगी| तौलिये को सीधे उसके माथे पर डाल दिया |तौलिये के अंदर बंशी की आँखें मिचमिचने लगी |अम्मा जरा धीरे ….. आँखें दबी जा रही हैं
हाँ हाँ क्यों नहीं….. अम्मा और ज़ोर ज़ोर से हाथ चलाने लगी ……..रोज रोज ई सब क्या करता है रे सबको तंग कर रखा है ……
छठी मे पढ़ने वाले बंशी के लिए अब तैयार हो कर स्कूल जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं था |सीधे सीधे नहला दिया भैया ने… अब दाँत साफ करूँ और संडास जाऊँ| उल्टी दिशा में काम शुरू करूँ |आँखें खुली भी नहीं की नहला दिया …. ये भी कोई बात हुई .. तुरंत नहा कर तुरंत संडास जाते मुझे बहुत बुरा लगता है…..कितनी भूख भी लगी है मुझे … बंशी की शिकायते थमने का नाम नहीं लें रही थीं |
भूख लगी है तो आ कर खाना का ले जल्दी से ….
अम्मा ये सोचते हुये चौके में भागी की गनीमत है कि बच्चों के बाबूजी घर पर नहीं हैं नहीं तो बंशी डांट ही नहीं खाता बल्कि अच्छी ख़ासी चपत भी खा जाता |अम्मा का अन्तर्मन थरथरा गया |उन्हें अपने इस नटखट बच्चे की बड़ी चिंता रहती |रतन जितना पढ़ाकू था बंशी उतना ही मस्तमौला |बेटी मानसी काम से मतलब रखने वाली लड़की थी |पढ़ाई के वक्त धूनी रमाई रहती बाकी वक्त अम्मा के आगे पीछे डोलती रहती| बाबूजी कार्यालय के कामों में व्यस्त रहते| घर की ज़िम्मेदारी अम्मा के कंधों पर टिकी रहती |बस्ता कंधे पर टाँगते बंसी सारा समय रतन भैया से नजरें चुराता रहा जो लगातार उसे घूरे जा रहे थे |उसके घर से बाहर जाते ही रतन अम्मा पर बरस पड़ा,,,,,,
अम्मा संभाल अपने इस बेकहल लड़के को |इसकी रग रग में शैतानी दिखती है मुझको |
ऐसे मत बोलो रतन , बड़े भाई हो तुम उसके ….. अम्मा का उदास स्वर गूँजा …..
बड़ा भाई हूँ तभी कह रहा हूँ …. इसे शहर के हॉस्टल में रखवा देता हूँ |बारहवी में पढ़ने वाले रतन की मसें भींग गई थी |वो अब खुद को घर का जिम्मेदार सदस्य समझता था |बिगड़ रहे भाई को सम्हालना उसकी ज़िम्मेदारी है और उसे छोटे भाई के लिए हॉस्टल एक उचित कदम लग रहा था |
घर के बरामदे पर जूते के तगमे बांधते बंशी के कानों में हॉस्टल शब्द पड़ चुका था |हाथों से बाल ठीक करते हुये बंशी के कदम मन मन भर के हो गए |नहीं अब वो इतनी शैतानी नहीं करेगा |हॉस्टल में तो रोज स्कूल भेजने वाले कडक हंटरधारी शिक्षक रहेंगे….. नहीं ….नहीं वो तो एक दिन भी नहीं रह पाएगा ……पर वो तो अम्मा को कितनी बार बता चुका है कि वो कोई बहाना नहीं बनाता ….. रात बिस्तर पर जाते ही उसे सपने आने शुरू हो जाते हैं …आँखें बंद करते ही कैसा फूल सा हल्का हो जाता है वो…….ऊपर उठता जाता है …..ऊपर उठता जाता है …..और फिर जैसे ही आसमान के नजदीक पहुंचता है कि आसमान दो भागों में बंट जाता है ,,,,,,,, और उसके लिए रास्ता दे देता है फिर कैसी चमकती रोशनी वाली चमकीली दुनियाँ में वो पहुँच जाता है जहां एक ही तारा है अपने चंदा जैसा और अंसख्य चंदा हैं अपने तारों से |एक चंदा से दूसरे चंदा की दूरी बस इतनी जितनी पड़ोस की सरोज चाची की छत |वो कैसे बताए की रोज वो रोज एक चाँद से दूसरे चाँद पर कूदता रहता है ……वो किस दुनियाँ का विचरण रोज करता है वो कैसे बताए ……फिर सुबह सुबह आँख लग जाती है सारे सपने वाष्पित हो जाने कहाँ खो जाते हैं ,,,,फिर नहीं खुलती सुबह सुबह समय पर नींद |वह कोई बहाना थोड़े ही न करता है ,,,,पर उसकी बात न अम्मा समझती है न ही रतन भैया |एक बार दीदी को सपनों की बात बताई थी तो दीदी कितना अचरज से सुन रही थी |उसे ही जरा जरा उम्मीद है कि वो एक दिन आसमान की सैर करने एक दिन सच में जरूर जाएगा |लेकिन वो हास्टल में रहने नहीं जाएगा |वो नहीं रह पाएगा | वो आज रतन भैया को जरूर विश्वास दिलाएगा की सपनों में वो पूरे ब्रह्मांड की सैर करता है ……कितने चाँद पर घूमते वक्त उसने अपने जैसे लोगो को चहलकदमी करते देखा है |वह जरूर विश्वास दिलाएगा उन्हें कि एक दिन जब वो बड़ा हो जाएगा तो समान की सैर जरूर करेगा |
बंशी ओ बंशी ….. सर ने अभी तुझे आवाज दी है…..बगल में बैठे अमित ने ज़ोर से केहुनी मारी |तू क्या सोचता रहता है …. देख सर तुझे ही घूर रहे हैं |
बंशी की नजर सीधी गिरधारी लाल सर पर जा अटकी जो ऐनक के अंदर से उसे ही ग्रूर रहे थे
क्यों बंशी बाबू किस विषय पर रिसर्च कर रहे थे आप ? बड़ी गहरी सोच में डूबे हुये थे |मेरी आवाज आपकी कानों क्या मन मश्तिष्क तक भी नहीं पहुंची…….क्यों ??
सर …मैं…. सर ……बंशी की आवाज गले में ही अटक गई |
चलिए अगर आपकी तंद्रा टूट गई हो तो मेरे पास अपना अंक पत्र लेकर आयें |परसो मैंने आप सभी बच्चों को माता पिता से हस्ताक्षर करवा कर वापस मुझे जमा करने के लिए |याद है न सबको कल छुट्टी थी तो आज मेरे पास जमा कर दें सभी |बशी तुम सबसे आगे बैठे हो सो जमा करेने की शुरुआत तुमसे ही होगी |
जी सर…. कह बंशी ने धीरे धीरे अपना बैग खोलना शुरू किया और एक एक कर सब कॉपी को बैग के अंदर ही झाड़ना शुरू किया
अच्छा अभी बंशी बाबू अभी ढूंढ ही रहे हैं तो एकदम अंतिम पंक्ति से बच्चों जमा करना शुरू करो अंकपत्र|गिरधारी सर ने निर्णय बदला |टेबल पर अंकपत्र जमा होने लगे एक ….दो …तीन ……पैतीस….. बस पाँच बच्चे बच गए |अनुभव कक्षा का हेडब्योय था |उसने एक एक कर सबके नाम उजागर करना शुरू कर दिया |ईश्वर ….आकाश …..विष्णु……कृष्ण ….और बंशी…..सर……इन पांचों के अंकपत्र नहीं प्राप्त हुये |
सर एक क्षण सोच में डूबे फिर पांचों को एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा |ये तीसरी और अंतिम अवधि थी अंकपत्र जमा करने की |आकाश के पीठ पर एक छ्डी पड़ी |सारे बच्चों ने समझ लिया कि इस बार फूलछड़ी नहीं है वाकई सर का मूड ऑफ है |कृष्ण ने तीसरे नंबर पर खड़े होकर खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया था | दूसरी नंबर पर खड़े बंसी का दिमाग जाग चुका था बल्कि पूरी तरह सक्रिय हो चुका था |सर की लहराती छड़ी को लहराते हुये आगे बढ़ते देख उसके दिमाग में हरकते चलने लगी |सररर र र …. से आगे बढ़ती छड़ी उस तक ज्यों ही पहुँचती की वो फुर्ती से बैठ गया |तेजी से दौड़ रही छड़ी की नोक सिर झुका कर खड़े कृष्ण के सीने से जा टकराई |आह कर के कृष्ण जमीन पर आ गिरा सामने बंशी घुटनों के बल बैठा हुआ था |बंशी चीखें मारता हुआ जमीन पर सपाट हो चुका था |पूरी कक्षा स्तब्ध थी | दो दो बच्चे जमीन पर पटाये हुये थे |सर हैरानी से कभी दोनों लड़को तो कभी अनुभव को देख रहे थे |अनुभव ने जल्दी से पानी के छींटे दोनों बच्चों पर डालना शुरू कर दिया | कृष्ण हड़बड़ता उठ बैठा पर बंशी ने आँखें नहीं खोली |अनुभव ने बंशी को झकझोरना शुरू किया पर वो तो निस्तेज पड़ा हुआ था |कृष्ण अपनी चोट को भूल बंशी के चेहरे पर पानी के छींटे मार रहा था |पूरी कक्षा आँखें फाड़े वहाँ एकत्रित थी | कक्षा से शोर निकाल कर बाहर के गलियारे, स्कूल के प्रांगण होते हुये हैड मास्टर जी के कमरे में दाखिल हो चुकी थी |
सर कक्षा का एक लड़का बेहोश हो गया है …..आप जल्दी चलिये …….
हैडमास्टर साहब तेज कदमों से चलते हुये कक्षा की ओर बढ़े |चुपचाप अचंभित खड़े गिरधारी सर को सवालिया नजरों से देखा और बंसी की नब्ज पर हाथ रखा |बालों में अंगुलियाँ फेरी |गालों को थपथपाया और कहने लगे बच्चों को किसी किस्म की हल्की फुलकी मार का मैंने माना किया है ना…..
गिरधारी सर एक अनुभवी शिक्षक थे|उनका चेहरा लाल पड़ गया ….नहीं सर ऐसी बात नहीं बच्चे बातों पर ध्यान नहीं देते तो थोड़ी सख्ती करनी पड़ती है |
हाँ हाँ गिरधारी बाबू मैं जानता हूँ बच्चो को अनुशासन में रखना कितना कठिन है |मैं आप जैसे
समझदार शिक्षक पर प्रश्न ही नहीं उठा सकता |वो तो आजकल के इन नियमों ने हमें बहुत बांध कर रख दिया है |बच्चा शायद डर गया है |मास्टर साहब आप इसे अभी घर छोड़ आए |कह कर हैडमास्टर साहब तेजी से विधालय के गेट की ओर बढ़ गए |तब तक बंशी भी उठ कर बैठ गया था और अपने दोस्तों को भकुआ सा देख रहा था |
गिरधारी सर रिक्शे पर बैठ चुके थे |आँखें बंद किए निस्पंद बंशी को अनुभव और आकाश अपने कंधे का सहारा दिये रिक्शे पर चढ़ाने चल दिये |
दोनों दोस्तों के उपर पूरे शरीर का भार डाले बशी के पैर जमीन पर मुड़ मुड़ जा रहे थे |
अबे बंशी पैर तो ठीक से चला…… पीछे पीछे चले आ रहे लड़को के हुजूम से आवाज आई |कक्षा स्थगित हो गई थी |पूरी कक्षा बंशी के पीछे पीछे गेट की ओर मार्च कर रही थी |अन्य कक्षाओं में कौतूहल था |शिक्षकों के मना करने के बावजूद बच्चे त्ताक झांक कर रहे थे |बीच में लद कर बैठे बंशी के एक तरफ गिरधारी सर और दूसरे तरफ मोनिटर अनुभव उसे लगभग पकड़ कर बैठे हुये थे |
दिन के एक बजे बेटे को घर पहुंचा देख अम्मा घबड़ा उठी |
अजी बच्चा नरभसा गया है थोड़ा सा ….और कुछ नहीं हुआ है गिरधारी सर सफाई दे रहे थे |वे बंशी को आवाज देने लगे …..उठो बंशी बेटा घर आ गया है …..अनुभव ने अम्मा को कोने में ले जा कर अंक पत्र वाली बात बताई |
अंक पत्र पर साइन??….अम्मा चौकी …पर इसने तो कुछ बताया ही नहीं …..अच्छा पहले बच्चा भला चंगा तो होजाए ….अम्मा चिंतित दिखी ….
पर इसे तो छड़ी भी नहीं लगी थी चाची …यह तो बैठा और बलात गिर गया …..ठीक हो जाएगा…..अनुभव हौले से फुफुसाया |
अच्छा अच्छा …अम्मा की आंखे झुक गई ….
गिरधारी सर और अनुभव के जाने के पाँच मिनट बाद ही बशी के कराहने की आवाज पूरे घर में गूंजने लगी ……अम्मा अम्मा… पानी ….पानी….
रूक अभी देती हूँ पानी …. अभी गरम दूध में हल्दी डाल कर भी देती हूँ ….उठ जा मेरे लाल घबड़ा मत ,,,,,अम्मा ने बशी के सर पर हाथ फेरा पर आँखों में हजारों प्रश्न तैर गए |
आज गरम गरम भात दाल पर बरका हुआ घी और आलू भुजिया पर हाथ साफ करने का मौका स्कूल के लंच टाइम में बंशी को मिला था |अम्मा इतना घी मत डाला कर मुंह में छप-छप लगती है| घी नहीं खाएगा तो मजबूत कैसे बनेगा बेटा? अम्मा का प्यार छ्लक पड़ा था| लाख मन का एक कोना बेटे की शरारत से वाकिफ था पर लगातार अम्मा उस कोने को अनदेखा कर रही थी| आखिर बच्चा है बंशी, माना अंक पत्र छुपा कर गलती की है मगर अभी वो कुछ नहीं पूछेगी| शाम में उसे अकेले में समझाएगी| रतन को भी नहीं बोलेगी कोई बात| नहीं तो उग्र हो बाबूजी से कह इसका पक्का शहर के हॉस्टल में भेजने का कोई कोई उपाय कर डालेगा |हमारा सबौर प्रखण्ड है तो क्या| हर सुविधा है यहाँ | हाइस्कूल के इन गुणी शिक्षकों के सानिध्य से बच्चा कहीं नहीं जाएगा| संभाल जाएगा एक दिन| अम्मा मन को आश्वस्त कर रही थी|
अम्मा, मैं ज़रा साइकल चला कर आता हूँ| बंशी का सूखा चेहरा देख अम्मा न नहीं कह पाई| ठीक है पर जल्दी आना! स्कूल के वक़्त यूँ घूमना शोभा नहीं देता बेटा|
ठीक है अम्मा मैं साढ़े चार के बाद ही जाता हूँ| बंशी ने बस्ते से किताब निकाला और बरामदे के कुर्सी पर बैठ पढ्न शुरू किया| साढ़े तीन बजे रतन ट्यूशन से लौटा तो उसे कुर्सी पर किताब लेकर ज़ोर ज़ोर से पढ़ते देख चौक गया|
तू अभी कैसे घर में है बंशी? चेहरा क्यूँ उतरा हुआ है?
तब तक अम्मा आ चुकी थी|अम्मा ने अंकपत्र की बात बड़ी सफाई से छुपा दी पर सजा की कहानी बरकरार थी | रतन के सब हाल जान कर बस यही कहा इससे साइकल चलाने दे अम्मा| बंशी की आँखें चमक उठी| साइकल पर पैडल मरते हुए वो गली से क्षण में ही ओझल था| हाईस्कूल की छुट्टी साढ़े चार बजे होती थी पर मिशन स्कूल में साढ़े तीन बजे ही छुट्टी हो जाती थी| आज मोड़ पर साइकल लगा बंशी अपने प्रिय मित्र गुड्डन पर धौंस जमाना चाहता था| जैसे गुड्डन आता दिखा, बंशी साइकल लेकर उसकी तरफ उसे अनदेखा करने का नाटक करते हुए गुनगुनाते हुए चलने लगा| कनखियों से वह बीच बीच में गुड्डन को देख रहा था| तभी गुड्डन ने उससे देख लिया और खुशी से कूदता उसकी ओर दौड़ा पड़ा|
ओ बंशी! तू इस समय साइकल चला रहा है? स्कूल जाते वक़्त तो मिल था मुझे| क्यूँ आ गया बीच में ही बावरा! कौतूहल से गुड्डन के मस्तक पर बल पड़ गया था|
आज सर खुद मुझे घर छोडने आये थे। पेट में दर्द था न।
अच्छा… हमें तो पेट दर्द में स्कूल में ही अलग कमरे में लिटा दिया जाता है। घर आने कहाँ मिलता है ! गुड्डन को बंशी पर रश्क हो आया। तू कितना भाग्यवान है जो ऐसे स्कूल में पढ़ता है। एक हम हैं।‘’तू आराम से सर के बगल में कैसे बैठ गया। हम तो टीचर के साथ रिक्शा पर बैठ ये सोचना भी पाप है।
हाँ तो गिरधारी सर की गोद में सर रखकर घर आया मैं । बंशी की शेख़ी रोके नहीं रुक रही थी। अम्मा ने भी घूमने भेज दिया। घर पर बस्ता रख तू भी चला आ घूमने मेरे साथ….
अभी आया… गुड्डन के कदम तेज हो आये। एक दोस्त मौज में हो तो दूसरे के दिल पर चोट लगना लाज़मी था। यहाँ वही घटना घटी थी। असली बात तो चद्दर के नीचे जा छुपी थी। दोनों दोस्त साइकल चलाते चलाते बड़े वाले मैदान में आ पहुंचे थे। बड़े मैदान के चारों ओर दोनों की सायकलें बेलगाम दौडनी शुरू हो चुकी थी। तेज तेज खूब तेज। तेज चक्करों की संख्या एक दो से बढ़ती पंद्रह और अठारह तक जा पहुंची थी। आखिरकार साइकल एक तरफ और दोनों दोस्त मैदान में पेट के बल हाफ रहे थे दूसरी तरफ। साढ़े पाँच से अधिक का वक्त हो आया था। पूरी रोशनी फैली थी। मैदान के पूर्वी कोने पर पीपल का बड़ा सा हरियाया वृक्ष था| उस की शाखाएँ आती जाती हवा संग यूं हिल रही थीं मानो बच्चों के खेल को देख तालियाँ बजा रही हों ।
अब घर चलते हैं। बंशी का प्रस्ताव था।
नहीं…. चल शंभू कक्का की दुकान से कोई टॉफी खरीद कर खाते हैं। गुड्डन की जीभ लपलपाने लगी।
पर पैसे कहाँ हैं यार! बंशी ने ठंडी सांस ली। बहुत कंजूस हैं चचा। बड़ों को उधार देता नहीं, हमें क्या देगा। बंशी का मन भी दुकान पर आ अटका था।
पीपल के पेड़ से समकोण बनाते हुए शंभू की परचून की दुकान थी। वो दुकान बच्चों के लिए किसी राजा के खजाने की तरह थी। आगे ही शीशे के बोयामों की कतारें सजी रहती थीं। जिसमें दूधिया सफ़ेद पेड़े, लड्डू, बताशे तथा कई तरह की टौफ़ियाँ सजी रहती थीं। दूसरी कतारों में कई तरह के नमकीनों का राज रहता था। इसके साथ-साथ घर गृहस्थी में काम आने वाले हर प्रकार की चीजें वहाँ उपलब्ध रहतीं। शभू के बारे में एक बात बहुत प्रसिद्ध थी की वह किसी को एक पैसा भी उधार नहीं देता था। उसकी दुकान पर एक मोटा सा कैप्सन टंगा रहता
“नकदी में सुख है, उधार में भूख है”।
दुकान पर जाकर कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं। गुड्डन टॉफी खाने की जिद पर अड़ा था।
दो-दो टॉफी दोगे चाचा? पैसे कल दे पाएंगे …..गुडड्न हकलाते हुए बोल पड़ा| बंशी की आँखें सफ़ेद दूधिया पेड़े पर जा अटकी थी| आह! कैसे मीठे मीठे पेड़े है! काश पेड़े मिल पाते| अब तक गुडड्न को घर चलने को प्रेरित करने वाला बंशी अब पेड़े पर मंत्रमुग्ध था|
का? पैसे कल देगा? जा भाग यहाँ से… हम उधार देते है किसी को जो तुम्हें दें? चल भाग… शुंभ की आँखें आग फेकने लगी| एकदम आगे निकाल आई आँखों को देख दोनों दोस्त मुड़े और दौड़ लगा बैठे| अपनी अपनी साइकल पर बैठ दोनों तेजी से पैडल मरने लगे| पीछे पीछे शंभू ढेला हाथ में पकडे चला आ रहा था| शंभू का दिन भर ऐसे लड़कों से पाला पड़ता रहता था| पत्थर उठा बच्चों को दौड़ा देना उसकी आदत हो गयी थी| बच्चों को भगा वो पेड़ के पास के कुएँ पर गया और अपनी एक रस्सी लगी बाल्टी से ताज़ा पानी निकाल कर हाथ पाँवों को धो कर तरोताज़ा हो वापिस दुकान पर आ बैठा|
आज बंशी को अपना अंकपत्र अम्मा को थामना ही था| कोई चारा नहीं था| साइकल लागते हुए वो सुबह सुबह रतन भैया द्वारा किए गए आत्याचारों को कोस रहा था| उसका बस साफ मानना था सुबह सुबह अगर भैया उसे जबरन नहीं नहा देते तो न उसका मूड ऑफ होता न उसका पूरा दिन इस तरफ बीतता| शंभू चाचा के दुकान से इस तरह भगाया जाना उसे बहुत अखरा पर सफ़ेद पेड़े आँखों में घूमते रहे|
बंशी का घर में घुसते ही बाबूजी से सामने हो गया|
कहाँ था बंशी? दे रिपोर्ट कार्ड| देखूँ किस विषय में सबसे ज़्यादा नंबर हैं| रतन ने ठीक से पढ़ाया नहीं तुम्हें तभी हिसाब में नंबर कम आए| सही कह रहा हूँ ना?
बाबूजी के स्वर में आज अतिरिक्त मधुरव पा कर बंशी की टूटती हिम्मत फिर बंध गयी|
नहीं बाबूजी हिसाब में अच्छे नंबर हैं पर अंग्रेगी में नंबर कम है| और विज्ञान में भी|
वो दौड़ा-दौड़ा अपने बैग से स्कूल की डायरी में बड़े जतन से रखे अंकपत्र को निकाल कर बेधड़क बाबूजी के सामने कर दिया|
अंग्रेजी और विज्ञान में लाल निशान हैं। अच्छा अब दोनों विषय मैं पढ़ाऊंगा तुम्हें।
क्या? बाबूजी पढ़ाएंगे? बंशी के पैर के नीचे से मानो जमीन खिसक गयी। बाबूजी का कड़क अंदाज़ उसे पता था। क्यूँ? ठीक है न ? एकदम पकिया कर देंगे अंग्रेजी और विज्ञान में।
जी ठीक है। मुँह पर बारह बजाये बंशी ने सर झुका कर हिलाया। बाबूजी से पढ़ने का मतलब था पाँच बजे उठ कर हाथ मुँह धोकर टेबल कुर्सी पर पढ़ने बैठ जाना | रतन भैया भी तो बाबूजी से त्रस्त होकर धीरे-धीरे खुद ही पढ़ने लगे थे अपने तरीके से। नंबर अच्छे आने लगे तो बाबूजी की पकड़ से छुट गए थे। इनसे अच्छे तो रतन भैया ही थे। उनसे डर तो नहीं लगता। आज बंशी का मूड एकदम ऑफ था। मुँह बना कर बैठ गया। बाबूजी उसकी सारी किताबें ध्यान से एक-एक कर देख रहे थे। सात बजते-बजते बंशी की आँखें झपकने लगीं। किताब पर नज़रें टिका कर बैठा पर अक्षर तो मध्यम पड़ते गए और वो हल्का होकर ऊपर उठने लगा। आह! वही बादलों की सैर! वो आज फिर नक्षत्रों की ओर उड़ रहा था। उसने बहुत कोशिश की आँखें खोलने की। पर आखिरकार नींद उसे अपने आगोश में समेट सपनों की दुनिया में ले ही चली।
सुबह अम्मा के एक पुकार पर ही नींद खुल गयी। क्या पाँच बज गए? बंशी उठकर खड़ा हो गया। और बिस्तर पर बिखरे अपने कापी-किताबों को समेटने लगा।
पाँच नहीं सात बज रहे हैं। पहला दिन था, बाबूजी को कहीं जाना था। तुझे उठाने को कह गए थे। पर अब उठ और पढ़ने बैठ।
हाँ अम्मा! वैसे भी आज शनिवार है, जल्दी आकर खूब पढ़ूँगा। एक घंटा पढ़ने के बाद वो आज अंकपत्र बैग में एकदम ऊपर रख स्कूल पहुँच गया। कक्षा में सारे बच्चे उसे घेरे खड़े थे| बंशी को हंसी आ गयी| वो कैसा हीरो लग रहा था सबके बीच!
क्यूँ रे बंशी तूने गिरने का नाटक किया था न? मृदुल उसका कंधा पकड़ झकझोर रहा था|
नहीं तो! विद्या कसम!
झूठे कहीं के….. सारे बच्चे उसे घेरे हुए हंस रहे थे| अरे देखा था गिरधारी सर का चेहरा कैसा सफ़ेद पड़ गया था| चंचल आहिस्ते आहिस्ते बोल रहा था ताकि अनुभव न सुन ले|मोनिटर होने के कारण वो शिक्षकों के तरफ का ही इंसान माना जाता था| तब तक सर ने छड़ी टेबुल पर ‘ठक’ कर रखी और सारे बच्चे तितर-बितर हो गए| बंशी उठा और सीधा गिरधारी सर के टेबुल पर अंकपत्र रख दिया|
सर बाबूजी ने साइन कर दिया है| पूरे आत्मविश्वास के साथ बंशी गिरधारी टीचर के सामने खड़ा था| गिरधारी सर ने उसे देखा और पूछा, अब ठीक हो न?
जी सर|
जाओ, बैठ जाओ|
इस संवाद के साथ ही कक्षा पढ़ाई के अपने तय ढर्रे पर चल निकली|
कल इतवार है और आज एक बजे की छुट्टी! बंशी के लिए इससे और सुखद समय नहीं होता|घर पहुँचते ही बस्ता रख खाना खा वो और गुडडन दोनों साइकल उठा भाग लेते हैं| शनिवार को उसके जी भर के खेलने पर घर पर अम्मा और भाई कुछ कहते भी नहीं |बंशी ने आज खाना पूरा कर थाली अम्मा को थमाया भी नहीं कि गुड्डन आ गया|
जल्दी चल दो बज गए…..
आता हूँ अम्मा कह …..गुददन संग बंशी चिड़ियाँ भांति फुर्र उड़ गया |अपनी आड़ी तिरछी गली से निकल रोड पर साइकल चलना उसका मनपसंद काम था |घर से निकाल वे जा पहुँचें वहीं विशाल खेल मैदान |इस वक्त वहाँ एकदम सूना सपाटा रहता था |दोनों की साइकल कल की तरह मैदान का रेस लगाने लगी| बीस चक्कर लगाते लगाते दोनों थक कर चूर थे |और अब मैदान के मिट्टी से भरे घास पर पीठ के बल चित पड़े हुये थे |तभी गुड्डन की नजर कुएं की ओर जाते शंभू दुकानदार पर पड़ी| उसके हाथ में स्टील की बड़ी बाल्टी और एक बड़ा सा रस्सा था |
चल बंशी शंभू चाचा के दुकान पर चलें | गुडड्न मिट्टी झाड़ते हुए झटके से उठा और बंशी का हाथ पकड़ उसे खड़ा कर दिया| कल का बदला लेना है की नहीं?
हाँ लेना है| बंशी की मुट्ठी भींच गई| कल की भागम भाग याद आ गई| पर दूसरे ही क्षण वो नरम पड़ गया और बोला नहीं गुडड्न, ये बदला बदला सही नहीं| चल घर वापस|
चुप रह तू… चल| गुड्डन उसे खीच कर दुकान पर ले गया| उसने देख लिया था शंभू चाचा ने बाल्टी कुएँ में डाल दिया था|छप-छपाक के साथ बाल्टी कुएँ में गोते लगा रही थी| चाचा अब भरी बाल्टी खीचने के क्रम में ही थे| तब तक गुड्डन बंशी के साथ उनके दुकान पर पहुँच चुका था| बोल क्या खाएगा? आज अपनी मौज होगी| बताशे?
नहीं, सफ़ेद पेड़े… बंशी की आँखेँ चमकने लगी थी और जीभ से लार टपकने लगी थी|
चल शर्ट आगे ला|
बंशी ने नीचे का एक बटन खोला और बाँध कर छोटी से झोली बना ली| गुड्डन ने बोयाम खोल कर पेड़े धड़ाक से उससे उझेल कर दिया| फिर उसने बताशे का बोयाम खोल दोनों हाथों से बताशे निकाल अपने मूंह में ठूस लिया| तब तक शंभू दुकानदार की नज़र उन पर पड़ चुकी थी, उसने चिल्लाना शुरू किया पर पानी से भरी बाल्टी कुएँ के कुछ ऊपर खीच चुका था| अपने पेड़े और बताशे बचाने तो थे पर पानी से भरी बाल्टी अब छोड़ी भी नहीं जा रही थी| वे ज़ोर ज़ोर से हाथ से बाल्टी खींचने लगे और उतने ही ज़ोर से दोनों पर चिल्लाता जा रहा था| शंभू चाचा को यूं देख गुड्डन बताशे भरे मुँह ज़ोर से हँसा और दोनों हथेली को और बताशों से भर चिल्ला उठा, बंशी चल भागें अब!
पेट के पास सभी पेड़े संभालते दोनों दोस्त भागते गए| मैदान से एक सड़क पर आ पहुँचे- फिर वहाँ से लगे खेतों की ओर एक सुर दौड़ेते चले |कुछ दूर तक तेजी से बाल्टी खीचते हड़बड़ाते चिल्लाते शंभू चाचा दिखते रहे थे| खेत में पहुँच दोनों लोट पोट हो खूब हंसने लगे|
अब पता चला होगा उनको| किन लड़को को कल उधार नहीं दिये थे| गुड्डनहँसने लगा| चल उधर वो ईंटों के टील्हे की ओर चल ….मज़े में पेड़े खाते हैं| ईंटों के टील्हे के नीचे झाँका तो गुफा सी छोटी जगह नज़र आई।
अरे वाह !देख गुफा…बंशी गुफा देख उत्साहित था। दोनों अंदर जगह बना बैठ गए और पेड़े एक के बाद एक दोनों के मुँह में घुलने लगे। अहा! क्या पेड़े हैं….दस -दस पेड़े दोनों के पेट में जा चुके थे। अपनी जीत पर बौराते दोनों दोस्तों को गुफा का कौतूहल अंदर खींच रहा था। तभी वे छप-छप की आवाज से चौंक पड़े।
अरे देखो । आँधी आई है। बंशी की आवाज में घबराहट थी।
रुक! डर मत। थोड़ी देर यहाँ बैठते हैं। जैसे आँधी कम होगी, घर चलेंगे। तू डर मत! गुडडन ने बहादुर होने का दंभ भरा।
अरे, डरता कौन है। मैं वैसे बड़ा बहादुर हूँ पर अम्मा घबरा रही होंगी। बिजली की कड़क भी है बारिश होगी शायद। बिजली की चौंधियाहट में बंशी की घबराई आँखें मिचमीचा रही थीं। तभी मूसलाधार बारिश की आवाज सुन दोनों एक दूसरे को देखने लगे |बंशी गुड्ड्न का हाथ ज़ोर से पकड़ कस कर आँखें मीच लिया | बाहर की झम झम बारिश उनकी ओर बढ़ने लगी| गुड्डनका हाथ पकड़ वो चिल्लाया चल भाग चले …. पानी तेजी से दोनों के पाँव भिगोने लगा अचानक बंशी को महसूस हुआ कि वो गुफा की छत को पार करता हुआ फूल सा हल्का होकर आसमान की ओर उड़ता जा रहा है। वह पाँव को जितना जमीन पर रखने की कोशिश करता उतना ही हल्का होकर ऊपर उठता जा रहा था। ऊपर और ऊपर! तारों के पार चाँद को लांघता हुआ। उसने साफ देखा गुड्डन उसके पाँव पर साँप की तरह लिपटा हुआ है। उसने पैर पटकना शुरू किया….. ज़ोर और ज़ोर और ज़ोर से……
छोड़ गुड्डन वापस चलें, वापस धरती पर चलें हम…… गुड्डन ने पैर छोड़ दिया और दोनों तेजी से आसमान से गिरने लगे। नीचे और नीचे! लेकिन धरती पर गिरने से पहले ही किसी ने थाम लिया।तेज रोशनी उसी चारो तरफ महसूस हो रही थी …वो आंखे नहीं खोल पा रहा था |उसे एक तेज आवाज कान में सुनाई दी…..
बंशी उठ….उठ….. बंशी उठ…..
बंशी ने बहुत कोशिश की पर आँखें खोल नहीं पाया। वो तेज रोशनी आहिस्ते -आहिस्ते कम हो रही थी। अंधेरा था । बंशी ज़ोर से चिल्ला उठा, अम्मा! ! उसने दम लगाकर आँखें खोलीं तो अपने आप को अम्मा की बाँहों में पाया।धीमी धीमी आवाज़े धीरे धीरे शब्द फिर टूटे टूटे वाक्य बनने लगे ….एकदम धुंधली छवि धीरे धीरे आकार ले रही थी …. बाबूजी, भैया, दीदी, गिरधारी सर…. प्राध्यानाध्पायक सर ….शंभू काका ….. चारो ओर भीड़ ! बंशी ने फिर घबड़ा कर आँखें बंद कर ली ….पर गुड्डन कहाँ है …. बंशी हड्बड़ा कर उठ बैठा| अम्मा से लिपट पूछ बैठा अम्मा गुडडन?? अम्मा ने आँखों से आश्वस्त किया और बगल के बेड की ओर इशारा किया ….उसे पानी चढ़ रहा था। उसके माता पिता उसके बगल में थे। बंशी ने सर उठाकर देखा….. कहीं पानी नहीं था जो गुफा में भर गया था। गुफा भी नहीं थी। आसमान भी नहीं था, ,चाँद और तारे भी नहीं थे | एकदम नरम सी धूप अस्पताल की खिड़की के छन कर उसकी हथेलियों पर उतर रही थी |
रानी सुमिता ,
पटना
शिक्षा …. M.Sc (प्राणी विज्ञान ), एल एल बी,जर्नलिज्म
प्रकाशित पुस्तकें …. कविता संग्रह … सीधी वाली पगडंडी (2018)
साझा कथा संग्रह ….. इनकी कहानी इनकी जुबानी (2019)
कई साझा पुस्तकें
लेखन की विधाएँ ,,,, कविता ,कहानी , लघु कथा ,समीक्षा ,आलेख ,साक्षात्कार