अनाथ लड़की

अनाथ लड़की

यह तो निर्विवाद सत्य है कि साहित्य समाज का आईना है, और सच्चा साहित्यकार वहीं है, जो तत्कालीन परिस्थितियों के परिवेश में समाज में व्याप्त आचरण, सभ्यता और कुरीतियों से आपको परिचित कराता है। पर यही वह साहित्यकार है, जो आपको समाज के कटु यथार्थ के साथ साथ उसके लिए खूबसूरत आदर्शों की भी स्थापना करता है।और जो साहित्यकार अपने साहित्य में इन दोनों पहलुओं को एक समुचित अनुपात में रचने में सफल होता है, वह एक सच्चा साहित्यकार कहलाता है। और इस मामले में हम मुंशी प्रेमचंद जी निस्संदेह सर्वोच्च पायदान पर देखते हैं। जब बात प्रेमचंद जी की किसी एक बेहतरीन कहानी की समीक्षा की सामने आई, तो यह फैसला लेना निस्संदेह बहुत ही मुश्किल या फिर कहें, तो नामुमकिन सा लगता है।

जब प्रेमचंद जी की कहानियों पर नजर दौड़ाई जाए, तो उनकी अधिकांश कहानियों में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण मिलता है। उनके द्वारा लिखित लगभग तीन सौ कहानियों के विस्तृत सागर मंथन से उनकी सबसे मासूम कहानी को ढूंढ पाना सच में एक बहुत बड़ी बात है, और वह कहानी है “अनाथ लड़की”, जो रिश्तों में संवेदनाओं के साथ साथ मानवीय मूल्यों को स्थापित करने में भी सक्षम है।

कहानी एक छोटी लड़की, जिसके पिता का देहांत हो चुका है, के मासूमियत भरे सवाल से शुरू होती है, जहाँ वह अपने विद्यालय में मुआयना करने आए सेठ पुरुषोत्तमदास जी को अपना पिता मान लेती है,”जहाँ तुम जाओगे वहीं मैं भी चलूँगी। मैं तुम्हारी बेटी हूँगी।” बस यहीं से शुरुआत होती है एक खूबसूरत रिश्ते की, जिसे जीवन की किताब में इंसानियत कहा जाता है। सेठ जी की करुणा एक गरीबी में पर रही अनाथ लड़की की दुश्वारियों को सोचकर ही और गहन हो जाती है और वह उसी क्षण से ही लड़की की मदद करने को तैयार हो जाते हैं।

भावनाओं के रचयिता मुंशी प्रेमचंद मानव मन की सायकोलॉजी को खूब गहराई से अपने शब्दों में उकेरते हैं “माँ की मुहब्बत में गहराई और आत्मिकता होती है जिसे बच्चे समझ नहीं सकते। बाप की मुहब्बत में खुशी और चाव होता है जिसे बच्चे खूब समझते हैं।” बाल मनोविज्ञान को इतनी खूबसूरती से गढ़ते हैं कि हर दृश्य हमारी आंखों के सामने चलचित्र की तरह घूमने लगता है।

“सुन्दरी के जूते अच्छे सही लेकिन उनमें ऐसे फूल कहाँ हैं। ऐसी गुड़िया उसने कभी देखी भी न होंगी। इन खयालों से उसके दिल में उमंग भर आयी और वह अपनी मोहिनी आवाज में एक गीत गाने लगी।” इसी तरह गरीब इंसान की बेबसी का चित्रण उजागर हुआ है “फुर्ती से फटे हुए कपड़े समेट कर कोने में डाल दिये कि कहीं सेठ जी की निगाह उन पर न पड़ जाए। यह स्वाभिमान स्त्रियों की खास अपनी चीज है।” रोहिणी के प्रति यही स्नेह का भाव स्थायी रूप से सेठ जी के दिल में घर कर जाता है और वह ताउम्र पिता का उत्तरदायित्व निभाते हैं।

अब आते हैं कथा शिल्प और उसके ताने बाने पर। एक अनाथ बच्ची को देखते ही उस पर स्नेह उमड़ आना और फिर सारी उम्र उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेना निस्संदेह एक बहुत ही नेक काम है, पर इतना सरल नहीं। रोहिणी का सेठ जी को अपने पिता के रूप में अपनाने के बाद उसके शैशवोचित गर्व और चंचलता का बढ़ना स्वाभाविक था, वहीं उसकी बढ़ती उम्र के साथ-साथ उसके चारित्रिक विकास का भी बखूबी वर्णन किया है। रोहिणी अब आन्तरिक और बाह्य सौन्दर्य में अपनी पाठशाला की नाक थी, घमण्ड और बनावट और चंचलता से मुक्त। स्त्रियोचित उत्कर्ष की मंजिलें वह धीरे-धीरे तय करती चली जाती थी। यहां एक सुघड़ कहानीकार के अपने उत्तरदायित्व को निभाते हुए प्रेमचंद जी रोहिणी के चरित्र में एक भारतीय नारी के परंपरावादी मगर साथ ही आदर्शवादी रूप को उभारने में सफल रहे हैं।

कहानी में एक खूबसूरत मोड़ तब आता है, जब सेठ जी का बड़ा बेटा नरोत्तमदास कई साल तक अमेरिका और जर्मनी की युनिवर्सिटियों से इंजीनियरिंग विभाग में शिक्षा पूर्ण कर अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित कालेज में उन्होंने सम्मान हासिल कर बम्बई वापस आता है तो उन्हीं का स्वागत करने के लिए बम्बई में एक बड़ा जलसा किया जाता है। रोहिणी को सेठानी जी ने विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। सेठानी कौशल्या देवी ने उसे अपनी बेटी की तरह प्यार ही किया। शास्त्री की परीक्षा पास कर चुकी रोहिणी के सौन्दर्य और उसके कपड़ों की चर्चा होती है। इस घटनाक्रम के जरिए मुंशी प्रेमचंद जी ने एक साधारण सी कहानी में भी तत्कालीन सामाजिक परिवेश में पढ़ी लिखी महिलाओं को सम्मान मिलने की ओर संकेत किया है।

इसी तरह मिस्टर पुरुषोत्तमदास के तशरीफ लाने के वक्त उनके दर्शन की उत्कंठा का पागलपन की हद तक जा पहुँचना समाज में भी विदेशी शिक्षा के पीछे की मानसिकता को उजागर करता है। बिल्कुल उसी समय रोहिणी का अपनी मण्डली के साथ देशप्रेम में डूबा हुआ गीत गाना और उसके प्रभाव को दिखाना भी प्रभावित करता है। और सबसे बढ़कर नरोत्तम दास द्वारा लोगों को ढंग से धन्यवाद भी ज्ञापित न कर पाना अंग्रेजी शिक्षा की शख्सियत को उभार पाने की नाकामी को इंगित करता है।

प्रेमचंद जी रोहिणी का सरस्वती जी के घर पर मेहमान बनकर रुकना और नरोत्तम दास से उनके मूक प्यार की अभिव्यक्ति को ज्यादा विस्तार न देकर रुक्मिणी द्वारा बेटी की शादी की चिंता पाठकों के मन में आगे की कहानी के लिए पाठकों के मन में उत्सुकता जगाते हैं। तभी सेठानी जी द्वारा उसकी शादी के लिए एक लड़के का प्रस्ताव भेजे जाने पर रुक्मिणी द्वारा नरोत्तम दास के साथ अपने प्यार की यादों और सेठ जी के सामने कुछ न कह सकने की बेबसी का दृश्य भावुक करता है। पर कहानी नाटकीय मोड़ लेती है, जब शादी वाले दिन सेठ पुरुषोत्तम दास जी अपने बेटे को ही दूल्हे के रूप में लाकर रोहिणी के सामने ला खड़ा करते हैं।और भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति होती है जब सेठ जी ने गले से लगा हँसकर कहते हैं,” क्यों अब तो तुम मेरी अपनी बेटी हो गयीं?”

प्रेमचंद ने अपनी कहानी में पात्रों का स्वतंत्र चरित्र का निर्माण किया, जो परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करते हैं। प्रेमचंद की सभी कहानियाँ एक व्यापक सामाजिक आधार पर विकसित हुई हैं, और “अनाथ लड़की” भी उससे अछूती नहीं है। जब जब प्रेमचंद जी की कहानियों पर चर्चा होगी, यह कहानी अपने अनूठे अंदाज, पात्रों को खूबसूरती से गढ़ने और मासूमियत भरी कहानी की वजह से याद रखी जाएगी।..

सीमा भाटिया
लुधियाना, पंजाब

1
0 0 votes
Article Rating
82 Comments
Inline Feedbacks
View all comments