मेरे पापा सुपरमैन
फादर्स डे पर पापा, चलो मैं एक कविता सुनाती हूं।
क्या हो आप हमारे लिए यह दुनिया को बदलाती हूं।
हमारे पापा सुपरमैन हर विपदा से लड़ जाते हैं।
हो जाए हम वीक तो स्ट्रांग उन्हें हम पाते हैं।
घर समाज और रिश्तेदारी बखूबी निभाते हैं।
वो हमारे पापा जी, जो माथुर साहब कहलाते हैं।
सही को सही गलत को गलत कहना हमको सिखलाया है।
दान धर्म और मानवता का रस्ता हमको दिखलाया है।
पढ़ा लिखा कर सशक्त बना कर हमको इज्जत दिलवाई है।
प्रेरित होकर आपसे ही हमने पहचान बनाई है।
हम सब भाई बहनों को हर सुख और आराम दिया।
ऑफिस के बाद शाम को, बेशक ओवरटाइम में काम किया।
ना थकान ना आलस ना रुकने का ही नाम लिया।
वर्कर के लीडर, प्रधान समाज के इन कामों को किया।
हो कितनी भी दिक्कत परेशानी और बधाएं।
हंसकर कर गए पार बिना, किसी को जताएं ।
शौक और मिजाज की रंगियत हमेशा रखी बनाएं ।
फिल्मे दिखाना, पिकनिक ले जाना, हमको भी हर दम मजे कराएं।
जवानी में भी थे और बुढ़ापे में भी नियमों के बिल्कुल पक्के हैं।
आज की जनरेशन के बच्चे इन्हें देख हल्के बक्के हैं।
राम का नाम हरदम जुबान पर रहता है।
71 के हो गए पर कौन कमबख्त ये कहता है।
फादर्स डे पर यही दुआ बार-बार करती हूं।
आपका मन खुश और शरीर स्वस्थ रहें।
आपके आशीषों की वर्षा हम पर हर वक्त रहें।
आपकी उम्र राम जी लंबी ऐसी बनाएं।
मेरी बेटी के बच्चों को भी, आप अपनी गोद में खिलाएं।
ललिता माथुर चौहान
तंजानिया