पापा
अंगुली थाम के बहुत चलाया पापा तुमने,
जब-जब गिरा मैं बहुत प्यार से उठाया तुमने,
मेहनत कर दिन-रात था पापा पढ़ाया तुमने,
हरदम सच्ची राह पे चलना सिखाया तुमने।
जब-जब ठोकर लगी यही था सिखाया तुमने,
देखके सामने चलो पाठ ये पढ़ाया तुमने,
जब रस्ते में मुश्किल आई रोक के मुझको,
धैर्य और विश्वास का रस्ता सिखाया तुमने।
जब तय करो पड़ाव कोई तब मुड़के देखो,
कितना रस्ता अब तक तय कर पाया तुमने,
कितना आगे जाना है रुक कर यह जानो,
अंधाधुंध नहीं आगे बढ़ जाना तुमने।
सचमुच कितना गहरा ज्ञान सिखाया मुझको,
जीवन जीने का अंदाज सिखाया मुझको,
फिर जिस दिन मेरी बारी आई क्या बोलूँ,
उस दिन भी सब कुछ तुमने सिखलाया मुझको।
लेकिन मैं नादान सीख ना पाया कुछ भी,
कितना तुमने दिया ना ले पाया मैं कुछ भी,
सचमुच मेरे जैसे ही नालायक होते,
तुमने लाखों दिया न मैं रख पाया कुछ भी।
जब मैं हुआ जवान और कुछ वृद्ध हुए तुम,
मैंने अक्सर डांट के तुमको करा दिया चुप,
नहीं चाहिये सीख तुम्हारी बहुत हो गया,
सब कुछ पता है नहीं जानना और मुझे कुछ।
तुमने तब भी यही कहा शाबाश मेरे सुत,
कितना अच्छा है तुम सब कुछ जान गये हो,
जीवन क्या है जीवन की दुरूहता क्या है,
जीवन पथ के मोड़ों को पहचान गये हो।
बस छोटा सा तुम मेरा इक काम ये करदो,
आगे है इक मोड़ मुझे वो पार करा दो,
दिखता है धुंधला और कदम न पड़ते सीधे,
थाम के हाथ सड़क ये मुझको पार करादो।
मैंने थामा हाथ चला था चार ही कदम,
आगे इक पत्थर था मैंने ठोकर खाई,
स्वयं गिरा, गिर गये पिताजी बीच चौराहा,
हँसने लगे लोग, मांझा ढीला है भाई।
कौंध गया सारा बचपन तब मेरे आगे,
एक बार भी पापा ने ना मुझे गिराया,
पहली बार हाथ पापा का मैंने थामा,
और पहली ही बार में मैंने उन्हें गिराया।
तब मन ही मन कान मेरे पकड़े तब मैंने,
माफ़ी मांगी पापा से अपनी गल्ती की,
थाम के उनका हाथ ले गया पार सड़क के,
ना इस बार दिखाये तेवर, ना जल्दी की।
इस घटना से सबक मिला जो भूल ना पाया,
इसके बाद कभी ना उनका हृदय दुखाया,
जीवन भर थामी थी जिसने अंगुली मेरी,
हा, इक बार भी हाथ सही से थाम न पाया।
हर वो बेटा जो है समझता खुदा स्वयं को,
उसको इस घटना से लेनी सीख चाहिये,
जैसे बच्चों की पापा करते हैं सेवा,
बच्चों को भी पिता की सेवा करनी चाहिये।
प्रो. सरन घई,
संस्थापक,
विश्व हिंदी संस्थान,
कनाडा