हार कभी न मानी
राह कठिन है जीवन की
पर हार नहीं मानी है.
पर्वत-सी ऊँची मंज़िल पर
चढ़ने की ठानी है.
जीवन के पाँच दशक पार हो जाने के बाद जब अपने जीवन को एक द्रष्टा के तौर पर देखती और विश्लेषण करती हूँ तो लगता है एक व्यक्तित्व वस्तुतः अपने माता-पिता और पूर्वजों की देन तो है ही साथ ही यह सुख-दुख, अच्छे- बुरे, उपलब्धि- असफलता के अनुभवों से रची बसी एक दिव्य प्रस्तुति है। मैं भी अपने पूर्वजों, अपने अनुभवों और अपने भाग्य और कर्मों की मिली जुली एक प्रस्तुति मात्र ही हूँ।
पैतृक स्थल एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि:
भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ राजेन्द्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई (स्टेशन एवं पोस्ट) के समीपवर्ती ग्राम – भटकन, जिला- सिवान से निकल कर मेरे पितामह डॉ राय नागेंद्र प्रसाद ने देवभूमि प्रयागराज को अपना निवास स्थल बनाया, जहाँ उन्होंने होम्योपैथ डॉक्टर के रूप में काफी प्रतिष्ठा पाई और वहीं उन्हें श्री रामकृष्ण देव के अन्यतम शिष्य स्वामी विज्ञानानन्द का स्नेह और संरक्षण प्राप्त हुआ। रामकृष्ण मिशन, इलाहाबाद के दातव्य अस्पताल की शुरुआत करने का श्रेय मेरे पितामह को जाता है। वहाँ उन्होंने आजीवन निशुल्क सेवा दिया। पितामही रामश्रृंगारी देवी सरल हृदया भक्तिमति महिला थीं।
मेरे मातामह श्री रामेश्वर शरण (लल्लू बाबू) अररिया, पूर्णिया के लब्धप्रतिष्ठ वकील तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘परती परी कथा’ में उनका ज़िक्र है। मेरी मातामही कैलाशपति देवी को आज भी एक समाजसेवी सशक्त महिला के रूप में याद किया जाता है।
पिता
श्री राय मनेंद्र प्रसाद (अवकाशप्राप्त मुख्य अभियन्ता, बिहार सरकार), को उनकी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, विनम्रता और आध्यात्मिकता के लिये जाना जाता है। रामकृष्ण मिशन के सक्रिय सदस्य होने के साथ उनके हिस्से रामकृष्ण मिशन के छपरा सेंटर की स्थापना में अहम योगदान का श्रेय जाता है । अपनी बढ़ती उम्र के बावजूद वे हमेशा रामकृष्ण मिशन के सेवा कार्य मे पूर्ववत सक्रिय रहते हैं। अपने पिता को मैंने हमेशा ही आगे बढ़ कर अपने परिवार तथा रिश्तेदारों की जिम्मेवारी उठाते देखा है ।
माता
अंजू प्रसाद धार्मिक विचारों वाली कुशल गृहणी हैं, जिनका मेरी शिक्षा में अहम योगदान है।मेरी माँ को मैंने हमेशा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमलोगों की इच्छाओं और जरूरतों को पूरा करते देखा है।
जन्मस्थली
मेरा जन्म पूर्णिया (ननिहाल) में 9 सितम्बर, 1964 को अपने माता पिता की प्रथम पुत्री के रूप में हुआ। अपने छोटे तीनो भाई- बहनों के लिये मैं हमेशा ही अभिभावक बनी रही।
शिक्षा-
प्रारम्भिक शिक्षा के लिये अररिया के ‘विद्या मंदिर’ मेरा दाखिला कराया गया लेकिन मैं स्कूल जाने में इतना रोना धोना मचाती कि मेरे पिता जी, जो रोज ही मुझे स्कूल पहूँचाने जाते थे,मुझे वापस घर ले आते। माँ को मैंने स्कूल जाने में बहुत ही परेशान किया। अभी भी माँ मज़ाक में कहती है, ” स्कूल जाने में इतना तंग की थी इसीलिए अब तक तुम्हें रोज स्कूल जाना पड़ता है।” वर्ग चार तक मैंने घर में ही माँ से और एक अत्यन्त स्नेहमयी मुस्लिम शिक्षिका जॉली दीदी से शिक्षा ग्रहण किया। पिता जी के पटना स्थानांतरण के बाद सेंट जोसफ़ हाई स्कूल में दाखिला हुआ, जहाँ से 1980 में दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की । दसवीं की एक घटना याद आती है.. मुझे गणित अत्यंत कठिन लगता था और प्री टेस्ट में मुझे काफी कम नम्बर आए। टीचर ने कॉपी में माँ से साईन कराने को कहा क्योंकि सबकी पता था कि माँ ही कड़ाई रखती थी, पिता जी कभी डांटते तक नहीं थे। मैं डर के मारे पिता जी से ही साईन करा के कुछ कुछ बहाना बना कर टीचर को दे आई। माँ को जब कुछ शक हुआ तो स्कूल पहुँच गयी और मेरी क्लास टीचर ने सारी कॉपियाँ दिखा दीं। सभी विषयों में काफी अच्छे नम्बर थे, गणित को छोड़ कर। मेरे तो माँ को स्कूल में देखते ही होश उड़ गए। शाम में मेरे पिता जी के ऑफिस से आने के बाद उनकी भी खबर ली गयी कि वे गणित के इतने बड़े जानकार हो कर भी मुझे पढ़ाने का समय नहीं निकाल रहे थे। उस ज़माने में ट्यूशन का चलन नहीं था। अगले ही दिन से सुबह चार से पाँच बजे तक पिता जी के साथ मेरी गणित की क्लास लगने लगी। सिर्फ़ तीन महीने में गणित मेरी काबू में आ गया और दसवीं में 100 में 95 नम्बर के साथ मेरा गणित में सर्वोच्च स्थान था।
तदन्तर पटना वीमेन्स कॉलेज से 1984 में स्नातक , पटना विश्वविद्यालय से ही मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री, पुनः पटना विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में पी एच डी की डिग्री हासिल की । मेरे गाइड डॉ विमलेश्वर डे थे, जो कि एक विश्वविख्यात मनोवैज्ञानिक एवं मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष थे ।
ओ
विवाह –
1987 में श्री दीपक श्रीवास्तव ( एम टेक, आई आई टी रुड़की) से विवाह हुआ ।
श्वसुर, स्व डॉ एस एन पी श्रीवास्तव ( डायरेक्टर, जी एस आई, प्रो वाइस चांसलर, नार्थ ईस्ट यूनिवर्सिटी) एक जाने माने भूगर्भशास्त्री थे जो जीवनपर्यंत पठन एवं लेखन के कार्य मे लगे रहे।
सन्तान
पुत्र सौम्य दीप, एक प्रखर इंजीनियर एवं अनुसन्धानकर्ता है जिसे वर्ग आठ में ही उसके एक शोध पत्र के लिये महामहिम डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम ने सम्मानित किया था।
कार्यकलाप
मैंने 1990 में पटना में अपने मनोवैज्ञानिक Counselling & Guidance केन्द्र की शुरुआत की थी जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से विद्यार्थियों का एवं जरूरत के अनुसार माता पिता एवं शिक्षकों का भी मनोवैज्ञानिक निर्देशन किया जाता था। उस समय वहाँ के हर बड़े स्कूल ने इस कार्य की काफी प्रशंसा की और हमारे साथ जिद गए। साथ ही सेंट केरेन्स हाई स्कूल में मैंने शिक्षिका के रूप में भी काम किया ।
सन 1997 में मुझे कुछ निजी कारणों से जमशेदपुर आना पड़ा। तब से वर्तमान तक आज़ाद नगर स्थित विवेकानन्द इंटरनेशनल स्कूल की स्थापना से ले कर विस्तार तक का काम एक प्रधानाध्यापिका के रूप में कर रही हूँ। साथ ही जमशेदपुर में भी एक मनोवैज्ञानिक, काउंसलर, महिलाओं एवं बच्चों हेतु सामाजिक कार्यकर्त्री एवं लेखिका के रूप में पहचान बना पाई हूँ।
विशेष रूप से पिछले बाईस वर्षों से मुस्लिम महिलाओं एवं बच्चियों के प्रशिक्षण एवं शिक्षण में अहम योगदान कर पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मेरी के शिष्याएं और अनेक लड़कियों का आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण हुआ जिससे वे अच्छे एवं प्रतिष्ठित पदों पर नियुक्त हो पाई।
आज़ाद नगर शान्ति समिति की सदस्या होने का भी सम्मान प्राप्त हुआ।मैं धन्य हूँ कि मेरा एक ऐसे आध्यात्मिक परिवार में जन्म हुआ , जिससे मुझे रामकृष्ण मिशन भावधारा की आध्यात्मिक सम्पदा विरासत में मिली और वहाँ की सक्रिय कार्यकर्त्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
सम्मान
मेरे लिये मेरे विद्यार्थियों का सही रूप में शिक्षित हो कर एक अच्छा मनुष्य, एक ईमानदार नागरिक बनने और अच्छी नौकरियों के द्वारा अपने परिवार के जीवन स्तर को सुधारने से बड़ा कोई सम्मान नहीं। उनके, अभिभावकों तथा पूरी आज़ाद बस्ती का स्नेह और आदर मेरी सबसे बड़ी सम्पदा है। फिर भी कुछ सम्मान मिले हैं जिनके लिये मैं हृदय से आभारी हूँ।
एशियन वीमेन अचीवर में नाम.
रोटरी द्वारा कम्युनल हारमनी अवार्ड
लायंस द्वारा बेस्ट प्रिंसिपल अवार्ड
अल हेरा द्वारा महिलाओं एवं बच्चियों की शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिये सम्मान।
माई किड्स द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिये सम्मान।
मैं आभारी हूँ, जीवन में आए प्रत्येक व्यक्ति एवं परिस्थितियों का जिन्होंने कभी खुशियां दे कर कभी कठिनाइयां और कष्ट दे कर मेरे जीवन के कैनवास पर रंग उकेरे ।
डॉ निधि श्रीवास्तव
मनोवैज्ञानिक
प्रधानाध्यापिका
विवेकानन्द इंटरनेशनल स्कूल
मानगो, जमशेदपुर